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समाज

इस्राएली ड्रोनों से बांग्लादेशी घुसपैठियों व तस्करों पर नजर

प्रभाकर मणि तिवारी
२७ नवम्बर २०१९

असम में बांग्लादेश से घुसपैठ का मुद्दा देश की आजादी जितना ही पुराना है. बांग्लादेशी सीमा से लगे असम के धुबड़ी में अब आधुनिक ड्रोनों और सेंसरों की मदद ली जा रही है.

Indien-Bangladesch Grenze
तस्वीर: DW/P. Mani

भारत-बांग्लादेश सीमा पर लगातार बढ़ती तस्करी और घुसपैठ पर अंकुश लगाने के लिए सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) ने अब अत्याधुनिक ड्रोन के अलावा जमीन के नीचे और नदियों में सेंसर लगाए हैं. इसके लिए इस्राएल से रिमोट से संचालित ड्रोन, सेंसर और थर्मल इमेजर खरीदे गए हैं. केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने बीते साल मार्च में बांग्लादेश सीमा से लगे असम के धुबड़ी में एक एकीकृत सीमा प्रबंधन प्रणाली का उद्घाटन किया था.

तेज होती घुसपैठ

असम में बांग्लादेश से घुसपैठ का मुद्दा देश की आजादी जितना ही पुराना है. देश के विभाजन के बाद से ही सीमा पार से घुसपैठियों के आने का सिलसिला जारी है. इसी मुद्दे पर अस्सी के दशक में असम में छह साल तक आंदोलन भी हो चुका है. बावजूद इसके सीमा पार से तस्करी और घुसपैठ पर अंकुश नहीं लगाया जा सका है. असम की 263 लंबी सीमा बांग्लादेश से सटी है. इसमें से 119.1 किमी इलाका नदियों से जुड़ा है. तस्कर पशुओं की तस्करी और इंसानों की घुसपैठ के लिए नदियों से लगे इलाके का ही इस्तेमाल करते हैं. खासकर मानसून के दौरान नदियों के उफनने की वजह से उन इलाकों में चौबीसों घंटे निगाह रखना मुश्किल है. इसी वजह से सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) ने ऐसे इलाकों पर निगाह रखने के लिए ड्रोनों, थर्मल इमेजर व सेंसर के इस्तेमाल का फैसला किया है.

बीएसएफ के एक अधिकारी बताते हैं कि असम के धुबड़ी जिले में 61 किमी लंबी बांग्लादेश सीमा पर तस्करों और सीमापार से होने वाली अवैध गतिविधियों पर निगाह रखना टेढ़ी खीर है. उसी इलाके से ब्रह्मपुत्र नदी बांग्लादेश में घुसती है. वहां आस-पास कई छोटी नदियां हैं जो बरसात के सीजन में उफनने लगती हैं. तस्कर इसी का फायदा उठा कर अपनी हरकतें तेज कर देते हैं.

इस्राएली ड्रोन

सीमा पर होने वाली इस घुसपैठ और पशुओं की तस्करी पर अंकुश लगाने के लिए बीएसएओफ ने अब धुबड़ी सेक्टर में इस्राएल से खरीदे गए ड्रोन और थर्मल इमेजर का इस्तेमाल करेगी. बांग्लादेश के साथ असम सीमा का बड़ा हिस्सा नदियों से जुड़ा है. इस वजह से वहां बाड़ लगाना संभव नहीं है. बीएसएफ गुवाहाटी क्षेत्र के महानिरीक्षक पीयूष मोरडिया बताते हैं, "रात व दिन के समय काम करने वाले यह ड्रोन कैमरे से लैस हैं और डेढ़ सौ मीटर की ऊंचाई पर उड़ान भर सकते हैं.” वह बताते हैं कि पशुओं व नशीले पदार्थों की तस्करी अमूमन रात में की जाती है. इन ड्रोनों की सहायता से दिन के समय सीमा के आस-पास छिपे तस्करों की तस्वीरें मिल सकेंगी.

चार हजार किलोमीटर से भी लंबी है भारत-बांग्लादेश की सीमा.तस्वीर: DW/P. Mani

धुबड़ी जिले की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि आपराधिक तत्व अकसर नदी के पानी में छिपकर सीमा पार कर लेते हैं. ऐसे घुसपैठियों को रोकने के लिए बीएसएफ ने अंडरवाटर थर्मल इमेजर लगाए हैं. धुबड़ी इलाके में सीमा पर जमीन के नीचे भी सेंसर लगाए गए हैं. इससे इंसान या पशुओं की आवाजाही का पता चल जाएगा. मोरडिया बताते हैं, "यह ड्रोन पतंग की तरह उड़कर ऊंचाई से तस्वीरें ले सकता है. ऊंचाई और दिशा तय करने के लिए ड्रोन से जुड़े केबल को जमीन से रिमोट से नियंत्रित किया जा सकता है."

ऐसे एक ड्रोन की कीमत 37 लाख रुपए है. इनमें दिन व रात के समय देख सकने वाले कैमरे लगे हैं. यह दो किमी तक की तस्वीरें ले सकते हैं. इन पर तेज हवाओं या प्रतिकूल मौसम का खास असर नहीं होता. इस्राएल से खरीदे गए ड्रोन टेथर ड्रोन हैं. सामान्य और टेथर ड्रोन में अंतर यह है कि सामान्य ड्रोन को बैटरी बदलने के लिए हर आधे घंटे बाद नीचे उतारना पड़ता है और तेज हवा से यह दूर जाकर गिर सकते हैं. लेकिन टेथर ड्रोनों पर तेज हवाओं का असर नहीं होता.

बीएसएफ अधिकारी बताते हैं, "तस्कर इन ड्रोनों को आसानी से देख सकते हैं. बावजूद इससे उनके मन में देखे जाने का अंदेशा तो बना ही रहेगा. ड्रोनों की तैनाती का मकसद ऐसे तस्करों को यह संदेश देना है कि हम चौबीसों घंटे उनकी गतिविधियों पर नजर रखे हुए हैं.” बीएसएफ की निगाहों से बचने के लिए तस्कर अक्सर नए-नए तरीके ईजाद करते रहते हैं. सीमा के दोनों ओर अल्पसंख्यक आबादी होने की वजह से उस पार से आने वाले लोग स्थानीय आबादी में आसानी से घुल-मिल जाते हैं. धुबड़ी सेक्टर में हर महीने औसतन तस्करी से बांग्लादेश भेजी जाने वाली एक दर्जन गायें जब्त की जाती हैं. इनको पुलिस को सौंप दिया जाता है. वहां कोई दावेदार नहीं मिलने पर कुछ दिनों बाद ऐसे पशुओं को नीलामी से बेच दिया जाता है.

बीएसएफ के एक अधिकारी बताते हैं, "अंतरराष्ट्रीय सीमा पर बने नौ सौ से ज्यादा सीमा चौकियों पर बीएसएफ की 81 बटालियनें तैनात हैं. उनकी तादाद बढ़ाने की भी पहल की जा रही है.” सूत्रों का कहना है कि कुछ इलाकों में जीरो लाइन तक घनी आबादी की वजह से भी दिक्कतें आती हैं. अवैध रूप से सीमा पार करने वाले लोग स्थानीय आबादी के साथ घुल-मिल जाते हैं, उनकी पहचान करना मुश्किल है. ऐसे में बीएसएफ ने स्थानीय लोगों को भी इस बारे में जागरुक करने का अभियान चलाया है.

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