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अब उत्तर प्रदेश में खुल रहा है नेतागीरी का स्कूल

फैसल फरीद
११ अक्टूबर २०१८

अकसर नेताओं में पेशेवर तौर तरीकों और आधुनिक शैली का अभाव दिखता है. इन नेताओं की बढ़ती चुनौतियों को देख कर उत्तर प्रदेश में जनप्रतिनिधियों के लिए ट्रेनिंग सेंटर खोला जा रहा है. यह देश में अपनी तरह का पहला संस्थान होगा.

Indien Neu Delhi BJP Politiker und Priester Yogi Adityanath
तस्वीर: Imago/Hindustan Times/A. Yadav

राजनीति और नेता तो भारत के कण कण में हैं लेकिन बीते कुछ वर्षों में राजनीति बदली है. ज्यादा संसाधन, नई टेक्नोलॉजी, महंगी गाड़ियां, लोगों में जागरूकता, मीडिया की पहुंच, हर समय चर्चा में रहना और ऊपर से सोशल मीडिया की चुनौती. अब जनप्रतिनिधी यानी नेता हर समय निगरानी में रहते हैं. उनकी कार्यशैली और व्यवहार सवालों के घेरे और लोगों की नजरों में हैं. जरा सी चूक उनके करियर को भारी नुकसान पहुंचा सकती है. जाहिर है कि चुनौतियां हैं तो नेताओं को सीखना भी पड़ेगा. वैसे अभी तक नेतागीरी का कोई औपचारिक स्कूल नहीं है. यही सब देख कर उत्तर प्रदेश सरकार ने एक प्रशिक्षण केंद्र खोलने का फैसला किया है. इसके बारे में 10 अक्टूबर को कैबिनेट की बैठक में अंतिम मुहर लग गई.

उत्तर प्रदेश सरकार के प्रवक्ता के मुताबिक वर्तमान में इस तरह के पाठ्यक्रम कॉलेज और यूनिवर्सिटियों में मौजूद नहीं हैं. जनप्रतिनिधियों को लोकतांत्रिक संस्थाओं, संगठनों की अलग अलग विधियों और परिपाटियों के साथ ही नियम और कानून की जानकारी देने के लिए एक प्रशिक्षण केंद्र की जरूरत महसूस की गई. यह उनके लिए होगा जो राजनीति में कदम जमा चुके हैं और उसकी बारीकियां सीखना चाहते हैं. 

तस्वीर: Imago/Hindustan Times

यह प्रशिक्षण केंद्र दिल्ली से सटे गाजियाबाद में बनेगा. इसके लिए करीब 51,213 वर्गमीटर भूमि चिन्हित कर ली गई है. इस वित्तीय वर्ष में इस केंद्र के लिए 50 करोड़ रूपये का प्रावधान किया गया है. इस केंद्र में ऐसे डिप्लोमा या डिग्री पाठ्यक्रम भी होंगे जो युवाओं को राजनीति में आने के लिए तैयार करेंगे. नगर विकास मंत्री सुरेश खन्ना ने बताया कि यह केंद्र आवासीय होगा जिसमें जनप्रतिनिधियों के रहने की भी व्यवस्था होगी.

राजनीति के प्रशिक्षण की क्या जरूरत? 

पहले की तुलना में राजनीति में आने वाले नेताओं की औसत आयु घटती जा रही है. उत्तर प्रदेश विधान परिषद में जहां पहले सिर्फ वरिष्ठ नेता नजर आते थे अब वहां ज्यादातर सदस्य 35 साल के हैं. पहले जहां नेता चुनाव में सालों की मेहनत और राजनीतिक अनुभव के बाद आते थे वहीं अब सीधे विधायक और सांसद का चुनाव लड़ रहे हैं. आम वोटरों में भी अब ज्यादा तादाद युवाओं की ही है. तमाम संसाधनों ने व्यापक जनसंपर्क को भी आसान कर दिया है. राजनीति के ग्लैमर और रसूख के कारण हिंदी पट्टी में इस तरफ लोगों का रुझान तेजी से बढ़ रहा है. चुनाव के समय तमाम ऐसे होर्डिंग दिखते हैं जिनमें संभावित उम्मीदवारों की तस्वीर लगी होती है. राजनीति अब सेवा का माध्यम नहीं बल्कि कमाई और ताकत पाने का जरिया बन गई है. 

लखनऊ से सटे बाराबंकी के रहने वाले गयासुद्दीन किदवई ने 1960 में राजनीति शुरू की थी और पहली बार 1990 में एमएलसी बने यानी 30 साल बाद. अब की पीढ़ी में इतना सब्र नहीं है. पहले तो किसी नेता को अपनी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष से मिलने में ही कई साल लग जाते थे. अब मुलाकात और संपर्क काफी आसान है. पहले नेता जमीन से जुड़े रह कर, लोगों के बीच संघर्ष कर और राजनीति में तप कर स्थापित होते थे. अब के नेता लॉन्च होते हैं. लकदक कपड़े, स्टाइलिश जीवनशैली और तामझाम के साथ यह अपनी हवा बनाते हैं. नतीजा यह हुआ है कि इन नेताओं के पास चमक दमक तो है लेकिन जानकारी और अनुभव का नितांत अभाव. ना तो ये संसदीय परंपराओं को जानते हैं ना ही नियम कानूनों को.

नेता का मतलब सिर्फ चुनाव जीतना ही नहीं है. बहुत से विधायक और सांसद भी अपने अधिकारों और कर्तव्यों से अनजान हैं. सदन में कौन सी बात कैसे रखनी है. किस नियम के तहत काम रोको प्रस्ताव आ सकता है, किस नियम के तहत सूचना देनी है, व्यवस्था का प्रश्न उठाना है इन सब से बहुत से विधायक और कुछ सांसद भी अनजान हैं. यह सब बातें ट्रेनिंग में सिखाई और बताई जाएंगी. समाजवादी पार्टी की पिछली सरकार में चुने गए विधायकों के लिए प्रबोधन का कार्यक्रम रखा गया था लेकिन वो सिर्फ कुछ ही दिनों के लिए था. यह स्कूल पूरी ट्रेनिंग देगा.

तस्वीर: DW/F.Freed

सोशल मीडिया का असर

सोशल मीडिया ने दूसरे क्षेत्रों के साथ ही राजनीति पर भी काफी असर डाला है. हर जगह हर कोई अपनी राय देने के लिए तैयार बैठा है. नेता भी सोशल मीडिया से जुड़े हुए हैं. यह अपने समर्थकों और इलाके के लोगों से जुड़े रहने का भी एक आसान तरीका है. हालांकि सब कुछ इतना आसान भी नहीं, जरा सी चूक हुई नहीं कि नेता के खिलाफ कुछ भी वायरल हो जाता है. लोगों से मिलने में जरा सी बेरुखी, गाड़ियों के काफिले में कोई चूक, नमस्कार बोलने में देरी, भरी सभा में आई झपकी, पहनावे में कोई लापरवाही वायरल हो जाता है. कभी कभी तो कोई सेल्फी भी नेताओं को एक पल में जमीन पर ला कर खड़ा कर देती है.

ऐसे में हर पार्टी अपना सोशल विंग मजबूत करने में जुटी है. कुछ साल पहले समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने बाकायदा ट्विटर की टीम बुला कर नेताओं को प्रशिक्षण दिलवाया था. अब पार्टी खुद वीडियो और दूसरे कंटेट जारी करती है जिसे नेता शेयर करते हैं.

इस स्कूल में नेताओं को इस बात की भी ट्रेनिंग दी जाएगी कि कैसे मीडिया पर अपनी और अपनी पार्टी की बात रखनी है. कैसे प्रभावशाली तरीके से ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचा जाए. सोशल मीडिया के उपयोग के बारे में ट्रिक्स और तरीके भी बताए जाएंगे. क्या कहना है और क्या नहीं यह सब इस ट्रेनिंग का हिस्सा होगा.

राजनीति अब पूरी तरह से पेशेवर हो चुकी है, तो ऐसे में नेताओं को तैयार करने के लिए इस तरह के संस्थान की जरूरत तो होगी ही.

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