"अपना" ऐप पर बढ़ई, बिजली मिस्त्री, प्लम्बर जैसे कामगार बड़ी कंपनियों से जुड़ते हैं और नौकरी पा सकते हैं. "अपना" को बड़े निवेशकों का समर्थन भी मिल रहा है और अब यह भारत की छह भाषाओं में उपलब्ध है.
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"अपना" ऐप नौकरी की तलाश कर रहे करीब एक करोड़ 'ब्लू कॉलर' मजदूरों को स्विग्गी, अमेजॉन, बाइजूज, मेडलाइफ आदि जैसी एक लाख से भी ज्यादा कंपनियों से जोड़ रहा है. इसमें 10वीं पास, 12वीं पास, स्नातक और पूर्वस्नातक योग्यताओं वाले लोग नौकरी ढूंढ सकते हैं. अपने बारे में जानकारी डालने के बाद ऐप नौकरी ढूंढने वाले का एक वर्चुअल बिजनेस कार्ड बना देता है जिसे वो कंपनियों के साथ साझा कर सकते हैं.
एप्पल के एक पूर्व कर्मी द्वारा लगभग डेढ़ साल पहले शुरू किया गया यह ऐप अब भारत के 14 शहरों में छह स्थानीय भाषाओं में उपलब्ध है. इसके पीछे है बेंगलुरु स्थित कंपनी 'अपना टाइम टेक', जिसके संस्थापक हैं एप्पल के साथ काम कर चुके निर्मित पारिख. पारिख अपने ऐप को गैर-अंग्रेजी भाषाएं बोलने वाले गरीब और मध्यम वर्ग के लोगों के लिए लिंक्ड-इन जैसी सेवा बताते हैं.
टाइगर ग्लोबल, इनसाइट पार्टनर्स, सिक्वोया कैपिटल जैसे कई बड़े निवेशकों को इस ऐप में कई संभावनाएं नजर आती हैं, जिसकी वजह से ऐप अभी तक 6.5 अरब रुपयों का निवेश आकर्षित कर चुका है. इस समय कंपनी का बाजार मूल्यांकन 41 अरब रुपयों से भी ज्यादा हो चुका है. अनुमान है कि भारत की ब्लू कालर अर्थव्यवस्था में करीब 25 करोड़ कामगार हैं. 2020 और 2021 में महामारी और तालाबंदी की वजह से इनमें से कई लोगों ने अपनी नौकरियां खो दीं.
"अपना" ऐप के संस्थापक और निवेशकों को उम्मीद है कि जिन लाखों मजदूरों की नौकरी चली गई उन्हें इस ऐप के जरिए नई नौकरियां ढूंढने में मदद मिलेगी. धीरे धीरे सरकारी एजेंसियां भी रोजगार पाने में लोगों की मदद करने के लिए इस ऐप की मदद ले रही हैं. नवंबर 2020 में झारखंड में रांची जिला प्रशासन ने "अपना" के साथ मिल कर रांची रोजगार मेला का आयोजन किया था.
इस ऐप में नौकरी ढूंढने के अलावा और भी फीचर हैं. इस पर साधारण अंग्रेजी में बातचीत करना और नौकरी के लिए ऑनलाइन इंटरव्यू का सामना करना भी सीख सकते हैं. इसके अलावा इस पर करीब 4,000 अलग अलग तरह के कौशल सिखाने वाले कोर्स भी हैं. 60 अलग अलग पेशों से जुड़े समूह भी हैं जिन पर नौकरी ढूंढने वाले जानकारी हासिल कर सकते हैं, उनके रास्ते में आ रही अड़चनों पर चर्चा कर सकते हैं और एक दूसरे के साथ नेटवर्क कर सकते हैं.
ऐप पूरी तरह से निशुल्क है. 2020 में गूगल ने इसे सबसे अच्छे ऐपों के रूप में मान्यता दी थी. धीरे धीरे "अपना" की लोकप्रियता भी बढ़ती जा रही है. गूगल प्लेस्टोर पर इसे एक करोड़ से भी ज्यादा बार डाउनलोड किया जा चुका है.
आखिर क्या बदल देंगे नए लेबर कोड
संसद ने श्रमिकों से जुड़े तीन बिल पारित किए हैं. एक तरफ इन्हें श्रम सुधार कहा जा रहा है तो दूसरी तरफ आलोचना हो रही है कि ये श्रमिकों के कल्याण के खिलाफ हैं. आखिर ऐसा क्या बदल देंगे ये लेबर कोड?
तस्वीर: DW/M. Kumar
तीन लेबर कोड
तीन श्रम संहिताएं पारित हुई हैं. ये हैं औद्योगिक संबंध संहिता, सामाजिक सुरक्षा संहिता और उपजीविकाजन्य सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्यदशा संहिता.
तस्वीर: Getty Images/AFP/B. Boro
नौकरी से निकालने की आजादी
पहले सिर्फ 100 से कम श्रमिकों वाले संस्थानों को किसी को नौकरी से निकालने से पहले या संस्थान को बंद करने से पहले सरकार से अनुमति लेना अनिवार्य नहीं था. अब इस अनिवार्यता से 300 तक श्रमिकों वाले संस्थानों को छूट दे दी गई है. यानी 300 श्रमिकों से काम लेने वाले संस्थान मनमाने तरीके से छंटनी कर सकेंगे.
तस्वीर: Reuters/R. De Chowdhuri
मनमानी शर्तों का खतरा
पहले 100 या उससे ज्यादा श्रमिकों वाले संस्थानों में सेवा से संबंधित शर्तें भी सरकारी मानकों के अनुसार सरकार की अनुमति से तय करना अनिवार्य था. अब इस अनिवार्यता से भी 300 तक श्रमिकों वाले संस्थानों को छूट दे दी गई है.
तस्वीर: Reuters/S. Roy
विनियमन मुश्किल
अभी तक फैक्टरी की परिभाषा थी वो संयंत्र जहां 10 कर्मचारी हों और बिजली का इस्तेमाल होता हो या जहां 20 कर्मचारी हों और बिजली का इस्तेमाल नहीं होता हो. इन सीमाओं को बढ़ा कर 20 और 40 कर दिया गया है. इससे ऐसी इकाइयों की निगरानी नहीं होगी जिनका पहले फैक्टरीज अधिनियम के तहत नियमन होता था.
तस्वीर: DW/J. Akhtar
अनियमित मजदूरी को बढ़ावा
फिक्स्ड टर्म कर्मचारियों को अब फैक्टरियां सीधे नौकरी पर रख सकती हैं. ठेके पर श्रमिक रखने की जरूरत नहीं होगी. लेकिन कॉन्ट्रैक्ट लेबर अधिनियम को ऐसे बदल दिया गया है कि सिर्फ 50 या उस से ज्यादा ठेके पर कर्मचारी रखने वाली कंपनियां ही इस कानून के तहत आएंगी. जानकारों के अनुसार इस से अनियमित मजदूरी को बढ़ावा मिलेगा.
तस्वीर: Reuters/R. Roy
हड़ताल की नई शर्तें
हड़ताल करने को और कठिन बना दिया गया है. पहले कानूनी रूप से हड़ताल करने के लिए अधिकतम दो सप्ताह से छह सप्ताह तक का नोटिस देना होता था. अब यूनियनों को हड़ताल पर जाने से पहले 60 दिनों तक का नोटिस देना होगा. अगर किसी भी पक्ष ने विवाद निपटारे की शुरुआत कर दी तो निपटारा होने तक हड़ताल नहीं की जा सकती.
तस्वीर: Reuters/A. Fadnavis
समझौता भी कठिन
नियोक्ता और कर्मचारियों के बीच विवाद होने पर उसी ट्रेड यूनियन को समझौते के लिए बातचीत का अधिकार होगा जिसके पास कम से कम 20 प्रतिशत कर्मचारियों की सदस्यता होगी. पहले यह 10 प्रतिशत था. कई स्थानों पर ऐसी कई यूनियनें हैं और उनमें से हर एक के लिए 20 प्रतिशत सदस्यता जुटाना मुश्किल है. ऐसे में किसी भी यूनियन को बातचीत का हक नहीं मिलेगा.
तस्वीर: AFP/N. Nanu
श्रम कानूनों से छूट आसान
राज्य सरकारों के लिए किसी भी संस्थान को किसी भी श्रम कानून के पालन से छूट देना आसान कर दिया गया है. पहले ऐसा करने से पहले राज्य सरकारों को इसकी आवश्यकता स्थापित करनी पड़ती थी.
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असंगठित क्षेत्र अभी भी बाहर
कहा जा रहा है कि असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा के कदम उठाए गए हैं, जबकि यह कदम सिर्फ गिग इकॉनमी कर्मचारियों के लिए उठाए गए हैं, जो पूरे असंगठित क्षेत्र में दो प्रतिशत से भी कम हैं.
तस्वीर: Prabhakar Mani Tiwari
परिभाषाओं में बदलाव
नियोक्ता, कर्मचारी, श्रमिक और ठेकेदार जैसे शब्दों की परिभाषाओं को बदला गया है. लेकिन श्रम संगठनों का आरोप है कि मुख्य नियोक्ता की कामगारों के प्रति जवाबदेही को कम करने के लिए इन परिभाषाओं को अस्पष्ट रखा गया है.
तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/D. Talukdar
प्रवासी श्रमिकों का नुकसान
अभी तक प्रवासी श्रमिकों को नौकरी मिलते ही काम संभाल लेने तक वेतन और यात्रा का खर्च मिलता था. वो अब नहीं मिलेगा. पहले की तरह कार्य स्थल के पास उनके अस्थायी निवास की व्यवस्था करने का नियम भी हटा दिया गया है.