1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

अब ग्रामीण इलाकों में कहर ढा रहा है कोरोना

प्रभाकर मणि तिवारी
१३ मई २०२१

भारत में कोरोना की दूसरी लहर ग्रामीण इलाकों में भी कहर ढा रही है. इस महामारी के दौरान जब महानगरों और शहरों में स्वास्थ्य का ढांचा बुरी तरह चरमरा गया है, ग्रामीण इलाकों की हालत और बुरी है.

Indien Ungefähr 45 zersetzte Leichen wurden im Ganga-Fluss im Buxar-Distrikt von Bihar gefunden
तस्वीर: IANS

उत्तर प्रदेश और बिहार में गंगा नदी में बहते सैकड़ों शव तो महज एक मिसाल हैं. पश्चिम बंगाल समेत कई राज्यों में तो गांवों में इतना आतंक है कि लोग डर के मारे न तो जांच कराने जा रहे हैं और न ही अस्पताल में भर्ती होने. वहां होने वाली मौतों को कोरोना से हुई मौतों की सूची में भी जगह नहीं मिल रही है. ऐसे में कोरोना के असली आंकड़े भयावह हो सकते हैं. अब कई शहरों में संक्रमण की दर घट रही है, लेकिन ग्रामीण इलाकों में यह लगातार तेज हो रही है.

पर्याप्त जांच नहीं होने की वजह से देहाती इलाकों से असली आंकड़े भी सामने नहीं आ रहे हैं. एक तो जांच की सुविधा कम है और दूसरे आतंक के मारे लोग जांच कराने भी नहीं पहुंच रहे हैं. संक्रमण के लक्षण उभरने के बाद लोग नीम हकीमों से पूछ कर दवा खा रहे हैं. उनमें से कइयों की संक्रमण से मौत हो रही है. लेकिन ऐसे मृतकों को कोरोना से मरने वालों की सूची में शामिल नहीं किया जाता. इसलिए तमाम देशी-विदेशी अखबारो में दावे किए जा रहे हैं कि कोरोना से मरने वालो की तादाद सरकारी आंकड़ों के मुकाबले कम से कम दस गुनी ज्यादा है.

दर्जन भर राज्यों में तेज संक्रमण

देश के कोरोना से सबसे ज्यादा प्रभावित 24 में से 13 राज्य ऐसे हैं जहां अब ग्रामीण इलाको में संक्रमण तेजी से फैल रहा है. इनमें से कई जिले ऐसे हैं जहां हर दूसरा व्यक्ति पाजिटिव मिल रहा है. ऐसे मामलों में छत्तीसगढ़ पहले स्थान पर है जहां कुल मामलों में से 89 फीसदी ग्रामीण इलाकों से सामने आ रहे हैं. इसके बाद क्रमशः 79 और 76 फीसदी के साथ हिमाचल प्रदेश और बिहार का स्थान है. हरियाणा में 50 फीसदी मरीज शहरी और 50 फीसदी संक्रमित ग्रामीण इलाकों से हैं.

तस्वीर: IANS

ऐसे राज्यों में ओडीशा के अलावा राजस्थान, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश और जम्मू-कश्मीर का भी स्थान है. पश्चिम बंगाल में कोरोना संक्रमण के मामले में उत्तर 24-परगना जिला अब राजधानी कोलकाता को टक्कर देने लगा है. जिले में रोजाना करीब चार हजार नए मामले सामने आ रहे हैं और औसतन 35 मरीजों की मौत हो रही है. इस जिले में अप्रैल की शुरुआत में रोजाना चार सौ नए मरीज आ रहे थे. लेकिन ग्रामीण इलाकों में संक्रमण बढ़ने की वजह से यह तादाद अब दस गुना बढ़ कर चार हजार तक पहुंच गई है.

उत्तर प्रदेश में भी ग्रामीण इलाकों में कोरोना मामलों में भारी इजाफा हुआ है. राज्य में लागू लॉकडाउन को बढ़ा दिया गया है. गुजरात सरकार ने 36 शहरों में रात का कर्फ्यू लगा दिया है, लेकिन गांवों में कोरोना की वजह से स्थिति भयावह होती जा रही है. मध्यप्रदेश के ग्रामीण इलाकों में भी हालत बिगड़ रही है. राज्य में 819 कोविड सेंटर हैं जिनमें से महज 69 ग्रामीण इलाकों में हैं.

बिहार में सरकार के लिए चिंता की बात यह है कि कोरोना ने अब गांवों को अपना ठिकाना बना लिया है. राज्य में 76 फीसदी से ज्यादा मामले गांवों से आ रहे हैं. गांवों में बड़े पैमाने पर टेस्ट की सुविधा नहीं है. आंकड़ों से साफ है कि ग्रामीण क्षेत्रों में हालात काफी तेजी से बिगड़े हैं. बिहार में 9 अप्रैल को कोरोना संक्रमण के कुल मामलों में शहरी इलाकों के 47 फीसदी और ग्रामीण इलाकों के 53 फीसदी थे. एक महीने बाद 9 मई को शहरी क्षेत्रों के मामले जहां 24 फीसदी पर आ गए, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में इनका अनुपात बढ़कर 76 फीसदी पर पहुंच गया. इसी तरह उत्तर प्रदेश में नौ अप्रैल को कुल संक्रमितों में ग्रामीण इलाकों का अनुपात 49 फीसदी था जो 9 मई को बढ़कर 65 फीसदी हो गया.

बंगाल में देहाती इलाके बदहाल

पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता से सटे उत्तर 24-परगना जिले के वनगांव इलाके के नीरेद नाथ पाल बताते हैं कि उनके गांव में पहले तो कोरोना की जांच नहीं हो पा रही है और जांच हुई भी रिपोर्ट आने में तीन से चार दिन लग रहे हैं. उसके बाद अस्पतालों में बेड के लिए दो-तीन दिन जूझना पड़ता है. पश्चिम बंगाल सरकार भले बेड और ऑक्सीजन की कमी नहीं होने का दावा करे, ग्रामीण इलाकों की तस्वीर बदहाल ही है. झारखंड से सटे बांकुड़ा जिले में यह संक्रमण तेजी से फैल रहा है. लेकिन सरकारी आंकड़ों में जमीनी तस्वीर नहीं नजर आती.

स्थानीय पत्रकार सौरव दास बताते हैं, "गांवों में यह महामारी घर-घर फैल गई है. लेकिन पहले तो पर्याप्त टेस्ट नहीं हो रहे हैं और दूसरे लोग सामाजिक बॉयकाट के डर से जांच कराने के लिए आगे नहीं आ रहे हैं. लक्षण नजर आते ही लोग डाक्टरों से दवाएं ले कर घर पर ही इलाज कर रहे हैं. इस वजह से मौतें भी हो रही हैं.” वह बताते हैं कि जिले में अस्पतालों में बेड और आक्सीजन की समस्या नहीं है. इसकी वजह मरीजों का अस्पताल नहीं पहुंचना है. ज्यादातर अस्पतालों में आरटी-पीसीआर जांच की किट नहीं है.

दो सप्ताह पहले तक राज्य में नए मरीजों की दैनिक तादाद 16 हजार से कम थी जो अब 20 हजार के पार पहुंच गई है. इसी तरह मौत का दैनिक आंकड़ा भी 68 से 134 तक पहुंच गया है. राज्य में मृत्युदर 1.23 फीसदी है. सबसे ज्यादा मरीज कोलकाता और उत्तर 24-परगना के अलावा हावड़ा और हुगली जिलों से आ रहे हैं. स्वास्थ्य विशेषज्ञों का सवाल है कि जब जांच ही नहीं हो पा रही है तो असली आंकड़े कहां से मिलेंगे? घंटों कतार में रहने के बाद अगर जांच हुई भी तो इसकी रिपोर्ट मिलने में तीन से चार दिन लग जाते हैं.

खस्ताहाल आधारभूत ढांचा

कोरोना महामारी की खासकर दूसरी लहर ने पश्चिम बंगाल के ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य के आधारभूत ढांचा की असलियत उधेड़ दी है. राज्य में 923 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हैं. ग्रामीण इलाकों के लोग इलाज के लिए सबसे पहले वहीं पहुंचते हैं. स्वास्थ्य विभाग के रिटायर्ड अधिकारी अनिमेष बर्मन बताते हैं, ऐसे हर केंद्र पर कम से कम पांच डॉक्टरों की नियुक्ति का प्रावधान है. लेकिन ज्यादातर में एक ही डॉक्टर है. इसी तरह 348 ग्रामीण अस्पतालों में 1740 विशेषज्ञ डॉक्टरों के करीब डेढ़ हजार पद खाली हैं. पुरुष औऱ महिला सहायकों के स्वीकृत पद भी हजारों की तादाद में खाली हैं. इसलिए मरीजों की भीड़ से निपटने में दिक्कत हो रही है.

राज्य के मुख्य सचिव आलापन बनर्जी बताते हैं, "सरकार ने इंटीग्रेटेड कोविड मैनेजमेंट सिस्टम (आईसीएमसी) शुरू किया है वहां एक ही जगह बेड से लेकर आक्सीजन और वैक्सीन की जानकारी उपलब्ध कराई जा रही है. इसके साथ ही आक्सीजन मैनेजमेंट इन्फार्मेशन सिस्टम भी शुरू किया गया है.” स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि महामारी की दूसरी लहर में जब बड़े महानगरों की हालत पस्त हो चुकी है तो ग्रामीण इलाको में स्थिति का अनुमान लगाना कोई मुश्किल नहीं है.

ज्यादातर राज्यों के ग्रामीण इलाकों में न तो पर्याप्त अस्पताल हैं और न ही डाक्टर या दूसरे चिकित्साकर्मी. वहां कोरोना जांच की सुविधा भी सीमित या नगण्य है. ऐसे में इलाके के लोग भगवान भरोसे ही हैं. इसके अलावा सामाजिक वहिष्कार के डर से भी लोग कोरोना की जांच नहीं करा पा रहे हैं. संक्रामक बीमारियों के विशेषज्ञ डा. कल्लोल चक्रवर्ती कहते हैं, "तमाम राज्यों में ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य के आधारभूत ढांचे को मजबूत करना कभी किसी सरकार की प्राथमिकता सूची में नहीं रहा. अब उस लापरवाही का गंभीर खामियाजा भुगतना पड़ रहा है. अब भी सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए ताकि आगे आने वाली ऐसी किसी दूसरी महामारी या कोरोना की संभावित तीसरी लहर का मुकाबला किया जा सके.”

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें