लोकसभा उपचुनाव के नतीजों के आधार पर यकीन के साथ कहा जा सकता है कि अब मोदी लहर थकती नजर आ रही है. विधानसभा की 10 सीटों पर हुए उपचुनाव में उसके हिस्से में केवल एक ही सीट आई है.
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2014 से लेकर 2017 के अंत तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के विज्ञापनों पर 3,755 करोड़ रुपये खर्च किए गए. यह सभी जानते हैं कि मोदी सरकार का हर काम सिर्फ नरेंद्र मोदी के नाम पर होता है और उन्हीं को उसका श्रेय दिया जाता है. स्वाधीन भारत के इतिहास में शायद ही किसी प्रधानमंत्री की ऐसी एकल छवि बनाई गई जिसके तहत हर जगह केवल प्रधानमंत्री का ही चित्र, केवल उनके ही उद्धरण और केवल उनका ही वर्चस्व नजर आए.
एक समय था जब हिन्दी फिल्म जगत में माना जाता था कि पहले नंबर पर अमिताभ बच्चन हैं और अगला नंबर दस से शुरू होता है, यानी एक और दस के बीच कोई नहीं है. पिछले चार सालों के दौरान ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति बनती गई है जिसमें केवल वित्तमंत्री अरुण जेटली के अलावा और किसी भी केंद्रीय मंत्री की कोई हैसियत नजर नहीं आती.
नरेंद्र मोदी से पहले शायद ही किसी प्रधानमंत्री ने राज्य विधानसभा के चुनावों और लोकसभा एवं विधानसभा के उपचुनावों में इतना अधिक प्रचार किया हो. इसे देखते हुए यह स्वाभाविक है कि जब जीत का सेहरा उनके सर पर बंधेगा, तो हार की जिम्मेदारी भी उन्हीं की होगी. इसी तरह पूरी केंद्र सरकार के कामकाज के लिए एकमात्र उन्हें ही जवाबदेह माना जाएगा.
2014 के लोकसभा चुनाव के समय नरेंद्र मोदी ने इतने लंबे-चौड़े वादे कर डाले कि उनमें से एक भी पूरा होता नजर नहीं आ रहा है. सांप्रदायिक ध्रुवीकरण और हिन्दू-मुस्लिम कार्ड खेलकर, कहीं औरगंजेब तो कहीं टीपू सुलतान, कहीं अलाउद्दीन खिलजी तो कहीं मुहम्मद अली जिन्ना के मुद्दे उछाल कर चुनाव जीतने की रणनीति भी इसीलिए भोथरी होती जा रही है क्योंकि अंततः रोटी, कपडा और मकान की समस्या ही लोगों की मूल समस्या है.
भारत की कौन सी पार्टी कितनी अमीर है
भारत की सात राष्ट्रीय पार्टियों को 2016-2017 में कुल 1,559 करोड़ रुपये की आमदनी हुई है. 1,034.27 करोड़ रुपये की आमदनी के साथ बीजेपी इनमें सबसे ऊपर है. जानते हैं कि इस बारे में एडीआर की रिपोर्ट और क्या कहती है.
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भारतीय जनता पार्टी
दिल्ली स्थित एक थिंकटैंक एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय जनता पार्टी को एक साल के भीतर एक हजार करोड़ रूपये से ज्यादा की आमदनी हुई जबकि इस दौरान उसका खर्च 710 करोड़ रुपये बताया गया है. 2015-16 और 2016-17 के बीच बीजेपी की आदमनी में 81.1 फीसदी का उछाल आया है.
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कांग्रेस
राजनीतिक प्रभाव के साथ साथ आमदनी के मामले भी कांग्रेस बीजेपी से बहुत पीछे है. पार्टी को 2016-17 में 225 करोड़ रुपये की आमदनी हुई जबकि उसने खर्च किए 321 करोड़ रुपये. यानी खर्चा आमदनी से 96 करोड़ रुपये ज्यादा. एक साल पहले के मुकाबले पार्टी की आमदनी 14 फीसदी घटी है.
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बहुजन समाज पार्टी
मायावती की बहुजन समाज पार्टी को एक साल के भीतर 173.58 करोड़ रुपये की आमदनी हुई जबकि उसका खर्चा 51.83 करोड़ रुपये हुआ. 2016-17 के दौरान बीएसपी की आमदनी में 173.58 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. पार्टी को हाल के सालों में काफी सियासी नुकसान उठाना पड़ा है, लेकिन उसकी आमदनी बढ़ रही है.
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नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी
शरद पवार की एनसीपी पार्टी की आमदनी 2016-17 के दौरान 88.63 प्रतिशत बढ़ी. पार्टी को 2015-16 में जहां 9.13 करोड़ की आमदनी हुई, वहीं 2016-17 में यह बढ़ कर 17.23 करोड़ हो गई. एनसीपी मुख्यतः महाराष्ट्र की पार्टी है, लेकिन कई अन्य राज्यों में मौजूदगी के साथ वह राष्ट्रीय पार्टी है.
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तृणमूल कांग्रेस
आंकड़े बताते हैं कि 2015-16 और 2016-17 के बीच ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस की आमदनी में 81.52 प्रतिशत की गिरावट हुई है. पार्टी की आमदनी 6.39 करोड़ और खर्च 24.26 करोड़ रहा. राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा रखने वाली तृणमूल 2011 से पश्चिम बंगाल में सत्ता में है और लोकसभा में उसके 34 सदस्य हैं.
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सीपीएम
सीताराम युचुरी के नेतृत्व वाली सीपीएम की आमदनी में 2015-16 और 2016-17 के बीच 6.72 प्रतिशत की कमी आई. पार्टी को 2016-17 के दौरान 100 करोड़ रुपये की आमदनी हुई जबकि उसने 94 करोड़ रुपये खर्च किए. सीपीएम का राजनीतिक आधार हाल के सालों में काफी सिमटा है.
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सीपीआई
राष्ट्रीय पार्टियों में सबसे कम आमदनी सीपीआई की रही. पार्टी को 2016-17 में 2.079 करोड़ की आमदनी हुई जबकि उसका खर्च 1.4 करोड़ रुपये रहा. लोकसभा और राज्यसभा में पार्टी का एक एक सांसद है जबकि केरल में उसके 19 विधायक और पश्चिम बंगाल में एक विधायक है.
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समाजवादी पार्टी
2016-17 में 82.76 करोड़ की आमदनी के साथ अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी सबसे अमीर क्षेत्रीय पार्टी है. इस अवधि के दौरान पार्टी के खर्च की बात करें तो वह 147.1 करोड़ के आसपास बैठता है. यानी पार्टी ने अपनी आमदनी से ज्यादा खर्च किया है.
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तेलुगु देशम पार्टी
आंध्र प्रदेश की सत्ताधारी तेलुगुदेशम पार्टी को 2016-17 के दौरान 72.92 करोड़ रुपये की आमदनी हुई जबकि 24.34 करोड़ रुपये खर्च करने पड़े. पार्टी की कमान चंद्रबाबू के हाथ में है जो आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री भी हैं.
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एआईएडीएमके और डीएमके
तमिलनाडु में सत्ताधारी एआईएडीएमके को 2016-17 में 48.88 करोड़ रुपये की आमदनी हुई जबकि उसका खर्च 86.77 करोड़ रुपये रहा. वहीं एआईएडीएमके की प्रतिद्वंद्वी डीएमके ने 2016-17 के बीच सिर्फ 3.78 करोड़ रुपये की आमदनी दिखाई है जबकि खर्च 85.66 करोड़ रुपया बताया है.
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एआईएमआईएम
बचत के हिसाब से देखें तो असदउद्दीन औवेसी की पार्टी एआईएमआईएम सबसे आगे नजर आती है. पार्टी को 2016-17 में 7.42 करोड़ रुपये की आमदनी हुई जबकि उसके खर्च किए सिर्फ 50 लाख. यानी पार्टी ने 93 प्रतिशत आमदनी को हाथ ही नहीं लगाया. (स्रोत: एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म)
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पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कैराना लोकसभा उपचुनाव और नूरपुर विधानसभा उपचुनाव ने यह सिद्ध कर दिया है कि हिन्दू-मुस्लिम कार्ड आर्थिक सवालों के सामने अंततः नाकाम होता है. यहां गन्ना बनाम जिन्ना का मुद्दा बनाया गया जिसमें गन्ना जिन्ना पर हावी पाया गया. यहां के किसानों ने चीनी मिलों को पिछले वर्षों में जो गन्ना दिया है, मिलों ने उसका भुगतान नहीं किया है. अब यह राशि लगभग साढ़े 13,500 करोड़ रुपये तक पहुंच गई है और इस क्षेत्र में किसान आत्महत्या करने लगे हैं. ऐसे में 2013 के दंगों और फिर कैराना में मुस्लिम गुंडागर्दी के कारण हिन्दुओं के पलायन की झूठी खबरों के सहारे जाट किसानों के परंपरागत सौहार्द्र को तोड़कर ही भारतीय जनता पार्टी जीत पाई थी. अब वह सौहार्द्र काफी कुछ लौट आया है.
इसके अलावा कर्नाटक में विधानसभा चुनाव के बाद जैसी अभूतपूर्व और पुख्ता एकता गैर-बीजेपी दलों ने दिखाई थी, उससे भी अधिक पुख्ता एकता उन्होंने कैराना और नूरपुर में दिखाई जिसके कारण बीजेपी के उम्मीदवारों को सहानुभूति का वोट भी नहीं मिल सका जबकि कैराना में उसकी प्रत्याशी मृगांका सिंह पिछले चुनाव में जीतने वाले हुकुम सिंह की बेटी और नूरपुर में प्रत्याशी अवनि सिंह पिछले चुनाव में जीतने वाले लोकेंद्र सिंह की पत्नी थीं. हुकुम सिंह और लोकेंद्र सिंह के देहांत के कारण उपचुनाव हुआ था.
मतदान के एक दिन पहले राष्ट्रीय राजमार्ग के एक छोटे-से टुकड़े के उद्घाटन के बहाने प्रधानमंत्री ने कैराना से सटे बागपत में रोड शो किया और अपने भाषण में गन्ना तथा अन्य मुद्दों की भी चर्चा की जबकि उनकी चर्चा का सड़क के उद्घाटन से कोई संबंध नहीं था. इसके बाबजूद बीजेपी की हार हुई.
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के इन नतीजों का असर अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में पूरे राज्य पर पड़ेगा, जहां मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गढ़ गोरखपुर में भी बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा है. केरल हो या झारखंड, बिहार हो या पंजाब, कहीं से भी बीजेपी के लिए अच्छी खबर नहीं है. उसे चार में से सिर्फ एक लोकसभा सीट पर सफलता मिली है. विधानसभा की 10 सीटों पर हुए उपचुनाव में उसके हिस्से में केवल एक ही सीट आई है.
दरअसल जिस तरह मुजफ्फरनगर के दंगों को हिन्दुत्व की प्रयोगशाला बनाया गया, उसी तरह कैराना और नूरपुर के चुनाव को विपक्षी एकता की प्रयोगशाला समझा गया. यह प्रयोग सफल रहा इसलिए देशव्यापी विपक्षी एकता की राह खुल गई है. मोदी लहर कमजोर होती दिख रही है. इसलिए इस प्रयोग को 2019 के लोकसभा चुनाव में तो दुहराया जाएगा ही, उसके पहले होने वाले मध्यप्रदेश और राजस्थान के विधानसभा चुनावों में भी इस पर अमल किया जाएगा. यह देश की राजनीति में एक नई शुरुआत होगी.
कितने राज्यों में है बीजेपी और एनडीए की सरकार
केंद्र में 2014 में मोदी सरकार बनने के बाद देश में भारतीय जनता पार्टी का दायरा लगातार बढ़ा है. डालते हैं एक नजर अभी कहां कहां बीजेपी और उसके सहयोगी सत्ता में हैं.
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उत्तर प्रदेश
उत्तर प्रदेश में फरवरी-मार्च 2017 में हुए विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने अपने सहयोगी दलों के साथ मिलकर ऐतिहासिक प्रदर्शन किया और 403 सदस्यों वाली विधानसभा में 325 सीटें जीतीं. इसके बाद फायरब्रांड हिंदू नेता योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री की गद्दी मिली.
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त्रिपुरा
2018 में त्रिपुरा में लेफ्ट का 25 साल पुराना किला ढहाते हुए बीजेपी गठबंधन को 43 सीटें मिली. वहीं कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्कसिस्ट) ने 16 सीटें जीतीं. 20 साल तक मुख्यमंत्री रहने के बाद मणिक सरकार की सत्ता से विदाई हुई और बिप्लव कुमार देब ने राज्य की कमान संभाली.
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मध्य प्रदेश
शिवराज सिंह चौहान को प्रशासन का लंबा अनुभव है. उन्हीं के हाथ में अभी मध्य प्रदेश की कमान है. इससे पहले वह 2005 से 2018 तक राज्य के मख्यमंत्री रहे. लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा. कांग्रेस सत्ता में आई. लेकिन दो साल के भीतर राजनीतिक दावपेंचों के दम पर शिवराज सिंह चौहान ने सत्ता में वापसी की.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
उत्तराखंड
उत्तर प्रदेश के पड़ोसी राज्य उत्तराखंड में भी बीजेपी का झंडा लहर रहा है. 2017 के विधानसभा चुनावों में पार्टी ने शानदार प्रदर्शन करते हुए राज्य की सत्ता में पांच साल बाद वापसी की. त्रिवेंद्र रावत को बतौर मुख्यमंत्री राज्य की कमान मिली. लेकिन आपसी खींचतान के बीच उन्हें 09 मार्च 2021 को इस्तीफा देना पड़ा.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/R. K. Singh
बिहार
बिहार में नीतीश कुमार एनडीए सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं. हालिया चुनाव में उन्होंने बीजेपी के साथ मिल कर चुनाव लड़ा. इससे पिछले चुनाव में वह आरजेडी के साथ थे. 2020 के चुनाव में आरजेडी 75 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी. लेकिन 74 सीटों के साथ दूसरे स्थान पर रही बीजेपी ने नीतीश कुमार की जेडीयू के साथ मिलकर सरकार बनाई, जिसे 43 सीटें मिलीं.
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गोवा
गोवा में प्रमोद सावंत बीजेपी सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं. उन्होंने मनोहर पर्रिकर (फोटो में) के निधन के बाद 2019 में यह पद संभाला. 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद पर्रिकर ने केंद्र में रक्षा मंत्री का पद छोड़ मुख्यमंत्री पद संभाला था.
पूर्वोत्तर के राज्य मणिपुर में 2017 में पहली बार बीजेपी की सरकार बनी है जिसका नेतृत्व पूर्व फुटबॉल खिलाड़ी एन बीरेन सिंह कर रहे हैं. वह राज्य के 12वें मुख्यमंत्री हैं. इस राज्य में भी कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद सरकार नहीं बना पाई.
तस्वीर: Getty Images/AFP/P. Singh
हिमाचल प्रदेश
नवंबर 2017 में हुए विधानसभा चुनावों में जीत दर्ज कर भारतीय जनता पार्टी सत्ता में वापसी की. हालांकि पार्टी की ओर से मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशी घोषित किए गए प्रेम कुमार धूमल चुनाव हार गए. इसके बाद जयराम ठाकुर राज्य सरकार का नेतृत्व संभाला.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
कर्नाटक
2018 में हुए विधानसभा चुनावों में कर्नाटक में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनी. 2018 में वो बहुमत साबित नहीं कर पाए. 2019 में कांग्रेस-जेडीएस के 15 विधायकों के इस्तीफे होने के कारण बीेजेपी बहुमत के आंकड़े तक पहुंच गई. येदियुरप्पा कर्नाटक के मुख्यमंत्री हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Kiran
हरियाणा
बीजेपी के मनोहर लाल खट्टर हरियाणा में मुख्यमंत्री हैं. उन्होंने 2014 के चुनावों में पार्टी को मिले स्पष्ट बहुमत के बाद सरकार बनाई थी. 2019 में बीजेपी को हरियाणा में बहुमत नहीं मिला लेकिन जेजेपी के साथ गठबंधन कर उन्होंने सरकार बनाई. संघ से जुड़े रहे खट्टर प्रधानमंत्री मोदी के करीबी समझे जाते हैं.
तस्वीर: Getty Images/M. Sharma
गुजरात
गुजरात में 1998 से लगातार भारतीय जनता पार्टी की सरकार है. प्रधानमंत्री पद संभालने से पहले नरेंद्र मोदी 12 साल तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहे. फिलहाल राज्य सरकार की कमान बीजेपी के विजय रुपाणी के हाथों में है.
तस्वीर: Reuters
असम
असम में बीजेपी के सर्बानंद सोनोवाल मुख्यमंत्री हैं. 2016 में हुए राज्य विधानसभा चुनावों में भाजपा ने 86 सीटें जीतकर राज्य में एक दशक से चले आ रहे कांग्रेस के शासन का अंत किया. अब राज्य में फिर विधानसभा चुनाव की तैयारी हो रही है.
तस्वीर: Imago/Hindustan Times
अरुणाचल प्रदेश
अरुणाचल प्रदेश में पेमा खांडू मुख्यमंत्री हैं जो दिसंबर 2016 में भाजपा में शामिल हुए. सियासी उठापटक के बीच पहले पेमा खांडू कांग्रेस छोड़ पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल प्रदेश में शामिल हुए और फिर बीजेपी में चले गए.
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नागालैंड
नागालैंड में फरवरी 2018 में हुए विधानसभा चुनावों में एनडीए की कामयाबी के बाद नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) के नेता नेफियू रियो ने मुख्यमंत्री पद संभाला. इससे पहले भी वह 2008 से 2014 तक और 2003 से 2008 तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे हैं.
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मेघालय
2018 में हुए राज्य विधानसभा चुनावों में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनने के बावजूद सरकार बनाने से चूक गई. एनपीपी नेता कॉनराड संगमा ने बीजेपी और अन्य दलों के साथ मिल कर सरकार का गठन किया. कॉनराड संगमा पूर्व लोकसभा अध्यक्ष पीए संगमा के बेटे हैं.
तस्वीर: IANS
सिक्किम
सिक्किम की विधानसभा में भारतीय जनता पार्टी का एक भी विधायक नहीं है. लेकिन राज्य में सत्ताधारी सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का हिस्सा है. इस तरह सिक्किम भी उन राज्यों की सूची में आ जाता है जहां बीजेपी और उसके सहयोगियों की सरकारें हैं.
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मिजोरम
मिजोरम में मिजो नेशनल फ्रंट की सरकार है. वहां जोरामथंगा मुख्यमंत्री हैं. बीजेपी की वहां एक सीट है लेकिन वो जोरामथंगा की सरकार का समर्थन करती है.
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2019 की टक्कर
इस तरह भारत के कुल 28 राज्यों में से 16 राज्यों में भारतीय जनता पार्टी या उसके सहयोगियों की सरकारें हैं. हाल के सालों में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और महाराष्ट्र जैसे राज्य उसके हाथ से फिसले हैं. फिर भी राष्ट्रीय स्तर पर प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता के आगे कोई नहीं टिकता.