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अब भी हैं बोस्नियाई जंग के जख्म

५ अप्रैल २०१२

भले ही 20 साल बीत गए हों, सारायेवो में कदम कदम पर उन दिनों की याद ताजा है. हवाई अड्डे से निकलने के बाद रिहाइशी इलाके में जो पहली इमारत दिखती है, उसकी दीवारें कभी सफेद हुआ करती थीं. अब यहां सिर्फ गोलियों के निशान हैं.

तस्वीर: AP

यूगोस्लाविया टूटने की कगार पर पहुंचा, तो तानाशाह स्लोवोदान मिलोसेविच की सनक परवान चढ़ गई. सर्बिया के जवानों ने गैर सर्बियाइयों को निशाना बनाना शुरू कर दिया. इंसान तो इंसान दीवारें तक गोलियों से छलनी होने लगीं. बोस्निया की राजधानी सारायेवो की सड़कें खून से लाल होने लगीं. आधुनिक विश्व का सबसे भयंकर गृह युद्ध शुरू हो चुका था. सर्बिया और सर्पस्का रिपब्लिक के बीच फंसी बोस्निया की जनता जान बचाने के लिए रास्ते तलाशने लगी. और उन्हीं रास्तों पर क्लाशनिकोव राइफलों के साथ सर्बियाई सैनिक बोस्नियाई जनता को तलाशने लगे.

सारायेवो के बाजार में कभी बोस्नियाई संगीत गूंजा करता था, 1992 में यहां गोलियों की तड़तड़ाहट गूंजने लगी. सड़क के एक पार ऑस्ट्रियाई वास्तु शिल्प में बनी सपाट छतों वाली इमारतें तो दूसरी तरफ तुर्क डिजाइन की छोटी छोटी झोपड़ीनुमा दुकानें. यु्द्ध ने इनके बीच के फर्क को मिटा दिया. गोलियां इस तरफ भी चलीं, उस तरफ भी. बीच बाजार जो चर्च खड़ा है, कत्ल का गवाह बना. आह किए बगैर दर्जनों लोगों ने इसी चर्च के पास दम तोड़ दिया. गोलियां चलती रहीं. सारायेवो घायल होता रहा.

शानदार शहर

बीस साल बाद उस दिन को याद कर म्यूजिक टीचर अमीना डेलिच सिहर जाती हैं, "यह एक शानदार शहर था." 46 साल की डेलिच बताती हैं कि किस तरह उस जंग ने उनकी जिंदगी बदल दी. एक पूरी पीढ़ी को सदमे में बड़ा होना पड़ा. बोस्नियाई युद्ध के दौरान मारे गए 11541 लोगों की याद में संगीतकार इतनी ही खाली कुर्सियों के सामने शो पेश करेंगे. शहर के होलीडे इन होटल में भी कार्यक्रम रखा गया है, जो बोस्नियाई युद्ध के दौरान मीडिया का जमावड़ा था. युद्ध के बाद गोलियों से छलनी इमारतों में सबसे पहले इसी होटल की मरम्मत की गई लेकिन इसे गहरे पीले रंग से रंग दिया गया. बोस्निया में अब यह मजाक बन गया है. इसके बारे में जिक्र होते ही बोस्नियाई अमीर बालिच पेट पकड़ कर हंसने लगते हैं, "ऐसा लगता है कि जैसे किसी ने उबले हुए अंडे में चॉकलेट मिला दिया हो. लेकिन यह हमारे शहर की पहचान है."

तस्वीर: AP

इस हंसी के पीछे बड़ा दर्द छिपा है. बरसों एक साथ रहने के बाद अलग होने का दर्द, कल तक साथ रहने वालों की गोली खाने का दर्द और बोस्नियाई हिस्से में चुन चुन कर मारे गए लोगों के रिश्तेदारों का दर्द. यह तो सिर्फ राजधानी सारायेवो की कहानी है, बोस्निया में शहर और भी हैं. कहानियां और भी हैं. दर्द और भी हैं.

1990 के दशक में जब दुनिया भर के कम्युनिस्ट देश हिले, तो यूगोस्लाविया भी टूटा. तभी सर्बियाई सैनिकों ने बोस्नियाई हिस्से पर हमला कर दिया. बोस्निया के अंदर भी सर्बियाई बहुसंख्यक इलाका सर्पस्का रिपब्लिक है, जिसे सर्बियाई सेना का साथ हासिल था. उन्होंने भी बोस्नियाई लोगों पर कहर बरपाया. कहने को संयुक्त राष्ट्र की सेना भी इस इलाके में तैनात हुई. लेकिन उसका ज्यादा असर नहीं देखा गया. एकतरफा कार्रवाई होती रही. लोग मरते रहे. बोस्नियाई संगीत में खून मिलता रहा.

लाइब्रेरी और यूसुफ

सारायेवो की लाइब्रेरी पर सर्बियाई गोले गिरे थे. यह जमींदोज हो गई. दोबारा तैयार हो रही है. 16 साल हो गए. अब तक नहीं बनी है. राजनीति शास्त्र पढ़ रहे दामीर फिलिपोविच कहते हैं, "लाइब्रेरी कमाई की जगह नहीं होती. पूंजीवादी लोग अब सिर्फ वहीं पैसे लगाते हैं, जहां से कमाई हो सके."

पास में 60 साल की जाहिदा अदेमोविच की आंखों से चुपचाप आंसू ढलक पड़ते हैं. वह अपना दर्द बताने से हिचकिचाती हैं. बहुत कुरेदने पर जज्बात उबल पड़ता है, "लाइब्रेरी तो फिर पुरानी शक्ल में लौट आएगा, मेरा बेटा यूसुफ कैसे आएगा."

रिपोर्टः अनवर जे अशरफ (एएफपी, डीपीए)

संपादनः महेश झा

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