अब समलैंगिक भी सर उठा के जी सकेंगे
६ सितम्बर २०१८इसे फैसले के साथ ही देश की सर्वोच्च अदालत ने यह भी तय कर दिया है कि प्रत्येक भारतीय नागरिक सरकारी हस्तक्षेप के बिना समानता और निजता के साथ अपनी अस्मिता को सुरक्षित रखने का संवैधानिक अधिकार है. सुप्रीम कोर्ट का फैसला नागरिक के लोकतांत्रिक अधिकारों के दायरे को परिभाषित ही नहीं करता बल्कि उसका विस्तार भी करता है. अभी बुधवार को ही सुप्रीम कोर्ट ने मलयालम की एक पुस्तक के कुछ अंशों पर प्रतिबंध लगाने की याचिका को यह कहकर खारिज कर दिया कि पुस्तकों पर प्रतिबंध लगाना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन है. सुप्रीम कोर्ट के ये दोनों फैसले भारतीय नागरिकों को सम्मान, अस्मिता, गरिमा और समानता के साथ रहने का अवसर उपलब्ध कराते हैं और स्वागत योग्य हैं.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सीधा-सीधा अर्थ यह है कि अब समलैंगिकों के बीच विवाह कानूनन संभव हो सकेगा और उन्हें संपत्ति आदि के वे अधिकार भी मिल सकेंगे जो पुरुष और स्त्री के बीच होने वाले विवाह में स्वतः ही प्राप्त हो जाते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने लोकतंत्र में चुनने की स्वतंत्रता को भी रेखांकित किया है और कहा है कि किसी भी व्यक्ति को अपने प्रकृति-प्रदत्त स्वभाव के अनुसार यौन संबंध बनाने की आजादी होनी चाहिए. अनुच्छेद 377 के तहत पुरुष और स्त्री के बीच भी सहमति के आधार पर वैसा यौनकर्म नहीं हो सकता जिसे "प्रकृति के स्वाभाविक नियम के विरुद्ध" माना जाए, लेकिन अब उसे भी सामान्य ही माना जाएगा.
अभी तक समलैंगिक पुरुष और स्त्री हमेशा डर के माहौल में रहते थे. अपने यौन संबंध उन्हें परदे के पीछे सबसे छुप कर बनाने पड़ते थे और अपनी समलैंगिकता को अपने परिवार तक से छुपाना पड़ता था. इस क्रम में कई गंभीर रोग होने का खतरा भी होता था. ऐसे अनेक मामले देखे गए जब समलैंगिक पुरुष अपने परिवार को अपने स्वभाव के बारे में शर्म के कारण नहीं बता पाया और उसकी शादी हो गयी. जाहिर है कि ऐसी शादी से एक नहीं, दो जिंदगियां बर्बाद होती हैं.
अब कानून का संरक्षण मिलने के बाद समलैंगिक स्त्री और पुरुष बिना किसी भय या लज्जा के जी सकेंगे और अपने स्वभाव के बारे में निस्संकोच बात कर सकेंगे. सबसे बड़ी बात यह है कि वे भी अब दूसरों की तरह एक स्वाभाविक जीवन जीने की स्थिति में होंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन लोगों को भी लक्ष्य किया है जिनमें जन्म के समय ही प्राकृतिक रूप से यौन-निर्धारण में गड़बड़ी होती है और ये बेकसूर लोग जीवन भर प्रकृति की गलती का खामियाजा भुगतते रहते हैं. इस फैसले से उन्हें भी बहुत राहत मिलेगी.
सबसे बड़ी बात यह है कि आज के भारत में जहां व्यक्तिगत स्वतंत्रता, गरिमा और चयन के अधिकार पर लगातार हमले बढ़ रहे हैं, जहां किसी सार्वजनिक स्थान पर एक युवक और युवती एक-साथ बैठकर बात भी नहीं कर सकते क्योंकि उन्हें "एंटी-रोमियो स्क्वायड" का डर है, जहां अपना भोजन चुनने की स्वतंत्रता पर भी दिन-रात हमले हो रहे हैं, और जहां किसी भी भिन्नता को सहन करने की क्षमता लगातार घटती जा रही है, वहां सुप्रीम कोर्ट का निजता और स्वतंत्रता के पक्ष में आया यह फैसला बहुत हद तक आश्वस्त करने वाला है.