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समाज

स्विट्जरलैंड में भी लगा बुर्के पर प्रतिबंध

८ मार्च २०२१

स्विट्जरलैंड की जनता ने सार्वजनिक स्थलों पर चेहरे को ढंकने वाले परिधानों पर प्रतिबंध के पक्ष में मतदान किया है. निर्णय के समर्थक इसे कट्टरपंथी इस्लाम से बचाव का एक कदम मान रहे हैं और विरोधी एक भेद-भाव भरा कदम.

Schweiz Referendum Verhüllungsverbot
तस्वीर: Denis Balibouse/REUTERS

आधिकारिक नतीजों के मुताबिक 51.2 प्रतिशत मतदाताओं ने प्रस्ताव का समर्थन किया, यानी प्रस्ताव के पास होने और नामंजूर होने के बीच का अंतर काफी कम रहा. कैंटन कहे जाने वाले देश के प्रांतों ने स्पष्ट बहुमत से प्रस्ताव का समर्थन किया. मतदान में 50.8 प्रतिशत मतदाताओं ने ही हिस्सा लिया. उनमें से कुल 14,26,992 मतदाताओं ने प्रस्ताव के समर्थन में मत डाला, जबकि 13,59,621 मतदाताओं ने विरोध में. 

स्विट्जरलैंड की सड़कों पर यूं भी बुर्का पहने महिलाएं बहुत कम ही नजर आती हैं, लेकिन यूरोप के कई दूसरे देशों में इस तरह के प्रतिबंध लागू होने के बाद इस देश में भी इस पर सालों से बहस चल रही थी. प्रस्ताव "चेहरे को पूरी तरह से ढंकने वाले परिधानों पर प्रतिबंध को हां" कहने का था, लेकिन इसमें स्पष्ट रूप से यह नहीं बताया गया कि बात बुर्के की हो रही है या नकाब की.

शहरों में अभियान से संबंधित जो पोस्टर लगाए गए थे उनमें एक काला नकाब पहने एक महिला को दिखाया गया था और उन पर लिखा था "कट्टरपंथी इस्लाम को रोको" और "चरमपंथ को रोको". अभियान के विरोधी पोस्टरों पर लिखा था, "एक बेतुके, व्यर्थ और इस्लाम के प्रति डर फैलाने वाले बुर्का-विरोधी कानून को ना." प्रतिबंध के लागू होने का मतलब है कि अब से सार्वजनिक जगहों पर कोई भी अपना चेहरा पूरी तरह से ढंक नहीं पाएगा, चाहे वो दुकान के अंदर को या बाहर खुले में.

एक जिला मतदान केंद्र में रखे हुए "हां" के मतदान पत्रों का ढेर.तस्वीर: Arnd Wiegmann/REUTERS

पंथ-निरपेक्षता, महिलावादी कारणों से समर्थन

हालांकि प्रार्थना स्थलों, स्वास्थ्य कारणों और सुरक्षा कारणों से चेहरे को ढंकने की अनुमति मिलेगी. यह मतदान ऐसे समय पर आया है जब कोरोना वायरस महामारी की वजह से दुकानों में और सार्वजनिक यातायात पर चेहरे पर मास्क पहनना अनिवार्य बना दिया गया है.

दक्षिणपंथी स्विस पीपल्स पार्टी (एसवीपी) ने इस प्रस्ताव पर मतदान के अभियान का नेतृत्व किया था. पार्टी के प्रमुख मार्को चीजा ने मतदान के नतीजे पर राहत व्यक्त की. उन्होंने ब्लिक टीवी पर कहा, "हमें खुशी है. हमें अपने देश में कट्टरपंथी इस्लाम बिल्कुल नहीं चाहिए."

एसवीपी का कहना था कि मतदान से स्विट्जरलैंड की एकजुटता सुरक्षित रहेगी और राजनीतिक इस्लाम के खिलाफ लड़ाई को बल मिलेगा. पार्टी का कहना है कि राजनीतिक इस्लाम से देश के उदारवादी समाज को खतरा है. संसद में समाजवादी सांसदों के मुखिया रॉजर नॉर्डमैन ने अनुमान लगाया कि वामपंथी मतदाताओं में से एक-चौथाई ने पंथ-निरपेक्षता और महिलावादी कारणों से इस पहल का समर्थन किया होगा.

"चरमपंथ को रोकिए" का नारा लिए बुर्का-बैन अभियान का एक पोस्टर.तस्वीर: Arnd Wiegmann/

मुसलमानों के खिलाफ?

उन्होंने एटीएस समाचार एजेंसी को बताया, "कोई भी समस्या हल नहीं हुई है और महिलाओं को पहले से ज्यादा अधिकार भी नहीं मिले हैं. मुझे नहीं लगता कि कैंटनों में भी कोई बुर्का-विरोधी ब्रिगेड बनाए जाएंगे." देश की संसद के बाहर करीब 150 प्रदर्शनकारियों ने प्रतिबंध का विरोध जताया. स्विट्जरलैंड से पहले यूरोप में उसके पड़ोसी देश फ्रांस और ऑस्ट्रिया और उनके अलावा बेल्जियम, बुल्गारिया और डेनमार्क इस तरह के परिधानों पर पहले ही प्रतिबंध लगा चुके हैं.

कई दूसरे यूरोपीय देशों में सीमित रूप से इस तरह ले प्रतिबंध लागू हैं, जैसे स्कूलों और कॉलेजों में. स्विट्जरलैंड की सरकार और संसद ने राष्ट्रव्यापी प्रतिबंध का विरोध किया था. न्याय मंत्री कैरिन केलर-सूटर ने एक समाचार वार्ता में कहा कि मतदान का नतीजा मुसलमानों के खिलाफ नहीं था और इससे देश की मुस्लिम आबादी का बस एक छोटा सा हिस्सा प्रभावित होगा.

2019 में हुए एक सरकारी सर्वेक्षण में पाया गया था कि देश की आबादी में 5.5 प्रतिशत मुसलमान हैं, जिनमें से अधिकतर की जड़ें पूर्व युगोस्लाविया में हैं. प्रतिबंध के विरोधियों का कहना है कि देश में जो चंद महिलाएं इस तरह के परिधान पहनती हैं वो या तो पर्यटक होती हैं या धर्म बदल कर इस्लाम ग्रहण करने वाली.

सीके/एए (एएफपी)

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