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समाज

अब हैकरों के निशाने पर कोरोना की वैक्सीन

४ दिसम्बर २०२०

जानी मानी सूचना प्रौद्योगिकी कंपनी आईबीएम का कहना है कि हैकरों ने कोरोना वैक्सीन तक पहुंचने की कोशिश की है. आईबीएम के अनुसार इसके पीछे किसी देश का हाथ लगता है.

Symbolbild | Lateinamerika - Coronavirus - Impfung Astrazeneca
तस्वीर: picture-alliance/empics/D. Cheskin

अमेरिकी कंपनी आईबीएम ने कहा है कि उसने एक बड़े साइबर हमले का पता लगाया है जिसके तहत विश्व स्वास्थ्य संगठन की टीकाकरण मुहीम में सेंध लगाने की कोशिश की जा रही थी. आईबीएम के साइबर सिक्योरिटी रिसर्चरों के अनुसार इस सिलसिले में साइबर जासूसी सितंबर में ही शुरू हो गई थी. हालांकि वे इस बात का पता नहीं लगा पाए कि इसके पीछे कौन था और यह भी कि क्या यह कोशिश सफल रही.

कंपनी के अनुसार जिस तरह की तकनीकों का इस्तेमाल किया गया और जिस सटीक तरीके से कंपनियों को निशाना बनाया गया, उसे देख कर लगता है कि इसके पीछे किसी देश के सरकारी तंत्र का हाथ है.

इस साइबर हमले पर रिपोर्ट तैयार करने वाली आईबीएम की विश्लेषक क्लेयर जाबोइवा का कहना है कि हैकरों ने एड़ी चोटी का जोर लगाया जो कि काफी "असाधारण" है. हैकरों ने चीन की कंपनी हायर बायोमेडिकल के वरिष्ठ कर्मचारी के नाम से वैक्सीन से जुड़ा सामान बनाने वाली कंपनियों को ईमेल भेजे. इनमें कहा गया कि कंपनी वैक्सीन को ट्रांसपोर्ट करने और सैम्पलों को संभाल कर रखने में महारत रखती है. इस काम के लिए जिस तरह के फ्रिज का ईमेल में जिक्र किया गया है, उसे देख कर पता चलता है कि हैकरों ने वैक्सीन से जुड़ी तकनीक पर बहुत बारीकी से रिसर्च की थी. फ्रिज के मॉडल और दाम बेहद विश्वसनीय थे. क्लेयर जाबोइवा ने इस बारे में कहा, "जिस किसी ने भी यह कैम्पेन तैयार किया है, वह महामारी से निपटने के लिए वैक्सीन मुहैया कराने की सप्लाई चेन में इस्तेमाल होने वाले सभी चीजों से अच्छी तरह वाकिफ था."

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हायर के नाम से ऐसे ईमेल दस अलग अलग कंपनियों को भेजे गए. हालांकि आईबीएम ने इनमें से सिर्फ एक का ही नाम सार्वजनिक किया है. यह नाम यूरोपीय आयोग के टैक्स और कस्टम यूनियन के महानिदेशालय का है. यह संस्था पूरे यूरोपीय संघ में सीमा शुल्क का काम संभालती है और टीके के आयात को ले कर इसी ने नियम भी तय किए हैं.

हैकरों का निशाना मुख्य रूप से विकासशील देशों पर रहा. साथ ही जर्मनी, इटली, दक्षिण कोरिया और ताइवान में भी कंपनियों से संपर्क किया गया. कोरोना वैक्सीन को माइनस 70 से माइनस 80 डिग्री के ठंडे तापमान पर रखना जरूरी है. इससे अधिक तापमान पर वैक्सीन प्रभावशाली नहीं रह जाती. ऐसे में "कोल्ड चेन" तैयार करने की जरूरत पड़ती है यानी उत्पादन से ले कर टीकाकरण केंद्र तक ट्रांसपोर्ट के दौरान वैक्सीन को ऐसे बक्सों में सुरक्षित रखना होगा जहां यह तापमान बना रहे.

यही कारण है कि हैकरों ने ऐसी कंपनियों को निशाने पर रखा जो ऐसे सोलर पैनल बनाती हैं. ये सोलर पैनल गर्म देशों में वैक्सीन रेफ्रिजरेटर चलाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. साथ ही ऐसे पेट्रोकेमिकल उत्पाद बनाने वाली कंपनियां भी इसमें शामिल हैं जो ऐसे फ्रिज में रखी जाने वाली सूखी बर्फ बनाती हैं.

आईबी/एनआर (रॉयटर्स, एपी)

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