अभिव्यक्ति की आजादी पर चाबुकों की मार
१६ जनवरी २०१५दर्जनों वर्दीधारी पुलिसकर्मियों के सामने सफेद शर्ट पहने एक कैदी सीधा खड़ा है. उसके पीछे एक और वर्दीधारी खड़ा है जो उसकी टांगों, जांघों और पीठ पर बेरहमी से बेंत मार रहा है. 50 बार मारने के बाद जब वह रुकता है तो आसपास खड़े लोग तालियां बजाने लगते हैं और "अल्लाहु अकबर" के नारे लगाने लगते हैं. यह सब उस वीडियो में देखा जा सकता है जिसे 9 जनवरी को तब छिप कर शूट किया गया था, जब पहली बार सऊदी ब्लॉगर रइफ बदावी को जेद्दा में 50 बेंतों की सजा दी गई थी. बदावी की पत्नी इंसाफ हैदर ने सीएनएन से बातचीत में कहा कि वीडियो सहन करने लायक नहीं था, "पूरा नजारा बेहद दर्दनाक था. हर एक चाबुक से मेरी जान निकल रही थी."
बर्लिन में विरोध
50 कोड़ों की मार का यह दृश्य हर शुक्रवार को दुहराया जाना है. 31 साल के ब्लॉगर बदावी को अपने ब्लॉग के लिए 10 साल की जेल और 1,000 कोड़ों की सजा सुनाई गई है. बदावी पर ये आरोप है कि उन्होंने अपने ब्लॉग दि सऊदी फ्री लिबरल्स फोरम में "इस्लाम का अपमान" किया है. सजा के अनुसार 19 और हफ्तों तक उन्हें 950 बार और चाबुक पड़ेंगे. एमनेस्टी इंटरनेशनल की रूथ यूट्नर ने डॉयचे वेले से बातचीत में इसे मानवाधिकारों के खिलाफ एक बहुत बड़ा अपराध बताया है, "इस तरह कोड़े मारे जाना एक क्रूर प्रताड़ना है. हमारी मांग है कि इस सजा को रोका जाए और राइफ बदावी को जेल से रिहा किया जाए."
गुरूवार को यूट्नर समेत कई दूसरे सामाजिक कार्यकर्ता इस सजा के विरोध में मिलकर बर्लिन में सऊदी अरब के दूतावास गए. एमनेस्टी ने दूतावास को अपने स्टाफ के लिखे 50,000 से भी ज्यादा विरोध पत्र सौंपे. उन्होंने सुनिश्चित किया कि कोड़ों की आवाज सिर्फ जेद्दा में अल जफाली मस्जिद में ही ना गूंजें, बल्कि बर्लिन तक सुनाई दें. बर्लिन में दूतावास के बाहर लाउडस्पीकर पर बदावी का दर्द सुना जा सकता था. एमनेस्ट ने ऐसे कई विरोध पोलैंड, अमेरिका, फिनलैंड, नॉर्वे और ब्रिटेन में भी दर्ज कराए.
मानवता के खिलाफ हिंसा
देशनिकाला झेल रही बदावी की पत्नी अपने तीन बच्चों के साथ कनाडा में रह रही हैं. उन्होंने बताया, "वह (राइफ) दर्द से तड़प रहा है. यह दर्द शारीरिक ही नहीं मनोवैज्ञानिक भी है. क्योंकि सड़क पर खुलेआम मार खाकर आप लोगों के लिए तमाशा बन जाते हैं."
जर्मनी संसद के अध्यक्ष नोबर्ट लामर्ट ने इस्लामी अतिवादियों के पेरिस में हमले पर दिए अपने भाषण में बदावी का भी जिक्र किया है. लामर्ट ने कहा, "ईश्वर के नाम पर कई सरकारें भी ऐसी हिंसक सजाएं मुकर्रर कर रही हैं जो इंसानियत के खिलाफ हैं." दुनिया के ज्यादातर देशों की ही तरह सऊदी अरब ने भी पेरिस में हमलों की निंदा की थी, लेकिन केवल दो ही दिन बाद वह राइफ बदावी को खुलेआम कोड़े मरवा रही है.
एमनेस्टी इंटरनेशनल की यूट्नर का कहना है कि बदावी के अलावा भी सऊदी शासन ने ऐसे कई मामलों में आजादी के सिद्धांत का उल्लंघन किया है. मानवाधिकारों की बात करने वाले कई कार्यकर्ताओं को जेल में बंद कर दिया गया जिनमें बदावी के वकील वालिद अबुलखैर भी शामिल हैं. यूट्नर बताती हैं, "उन्हें (अबुलखैर) को 15 सालों की जेल हुई और वह आज भी जेल में ही है. अब वाकई वक्त आ चुका है कि इन मुद्दों पर साफ तौर पर चर्चा हो." मगर यूट्नर समेत कई लोगों का मानना है कि जर्मन सरकार इस बारे में इसलिए ज्यादा कुछ नहीं करना चाहती क्योंकि सऊदी अरब आर्थिक मामालों और इस्लामिक स्टेट के खिलाफ लड़ाई में भी उसका एक महत्वपूर्ण साझेदार है.
मानवाधिकार मामलों में जर्मन संसद की लेफ्ट पार्टी की प्रवक्ता अनेटे ग्रोथ बताती हैं, "व्यापार और क्षेत्रीय रणनीतियों के नाम पर सऊदी अरब सरकार का समर्थन कर जर्मन सरकार असल में एक बेहद पिछड़ी हुई और अलोकतांत्रिक सरकार का साथ दे रही है, जो आतंकियों को प्रयोजित करने में भी बहुत आगे है." ग्रोथ ने बदावी की सजा को "बर्बरतापूर्ण" बताया और जर्मन सरकार से उसे आजाद करवाने की कोशिश करने की अपील की.
बदावी को पहली बार कोड़े मारे जाने के बाद जर्मन सरकार के मानवाधिकार कमिश्नर क्रिस्टोफ श्ट्रेसर ने उसे मानवाधिकार का उल्लंघन बताया था. बदावी के साथ यह बर्बरता कब तक चलेगी, इस बारे में अभी कुछ कहा नहीं जा सकता. उनकी पत्नी ने कहा है कि उन्हें इस बात का डर है कि रइफ आखिर कब तक बिना टूटे इस सजा को झेल सकेंगे. दूसरे सार्वजनिक अपमान और सजा के ठीक पहले 13 जनवरी को रइफ ने बीवी, बच्चों से दूर जेल में ही अपना 31वां जन्मदिन बिताया है.