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"अभूतपूर्व" कदमों से ही सुधरेगी धरती की हालत

८ अक्टूबर २०१८

ग्लोबल वॉर्मिंग को कम करने के लिए इंसान को अपनी ऊर्जा खपत, यात्रा और निर्माण में "अभूतपूर्व" बदलाव करना होगा. अगर ऐसा नहीं हुआ तो दुनिया गर्म हवाएं, बाढ़ लाने वाले तूफान, सूखा और कई जीवों के लुप्त होने के खतरे झेलेगी.

Polarexpeditionen von Acacia Johnson
तस्वीर: Acacia Johnson

संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में यह बात कही गई है. संयुक्त राष्ट्र से जुड़े इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज यानी आईपीसीसी का कहना है कि 2015 में जब पेरिस समझौता हुआ था तब पृथ्वी के तापमान में इजाफे को 2 डिग्री सेल्सियस की बजाय 1.5 डिग्री सेल्सियस पर रखने पर सहमति बनी होती तो इसका "फायदा साफ तौर पर लोगों और हमारे प्राकृतिक इकोसिस्टम को मिलता."

आईपीसीसी की रिपोर्ट बताती है कि जिस दर से दुनिया का तापमान बढ़ रहा है उससे लगता है कि यह 2030 से 2052 तक 1.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाएगा. रिपोर्ट के मुताबिक उन्नीसवीं सदी के मध्य से पूर्व औद्योगिक स्तर की तुलना में यह एक डिग्री बढ़ चुका है.

तापमान को 1.5 डिग्री के लक्ष्य पर रख कर समुद्र के जलस्तर में बढ़ोत्तरी को साल 2100 तक 2 डिग्री के लक्ष्य की तुलना में 3.9 इंच नीचे रखा जा सकता है. इससे बाढ़ का खतरा कम होगा और समुद्री किनारों, द्वीपों और नदियों के डेल्टा पर रहने वाले लोगों को जलवायु परिवर्तन के हिसाब से खुद को ढालने के लिए ज्यादा वक्त मिल सकेगा.

तापमान में इजाफे का लक्ष्य 1.5 डिग्री तक रख कर जीवों के मरने और लुप्त होने के साथ ही पृथ्वी, ताजे पानी और समुद्र तटीय इकोसिस्टम पर पड़ने वाले प्रभाव को भी कम किया जा सकेगा.

दक्षिण कोरिया के इंचियोन में रिपोर्ट को अंतिम रूप देने के लिए हाल ही में आईपीसीसी की बैठक हुई. 2015 में सरकारों ने आईपीसी से अनुरोध किया था कि वे ग्लोबल वॉर्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रखने के औचित्य और महत्व का आकलन करे. पेरिस समझौते को इस साल पोलैंड में होने जा रहे क्लाइमेट चेंज कांफ्रेंस में कैसे लागू किया जाए? इस लिहाज से इस रिपोर्ट को सरकारों और नीति तय करने वालों के लिए एक वैज्ञानिक मार्गदर्शक के रूप में देखा जा रहा है.

तस्वीर: Acacia Johnson

तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिए मानवीय गतिविधियों से होने वाले कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन में 2030 तक 45 फीसदी कटौती करनी होगी. इसके साथ ही 2010 के स्तर से इस सदी के मध्य तक "शून्य" पर पहुंचना होगा.

अभूतपूर्व बदलाव

रिपोर्ट में कहा गया है कि दोबारा इस्तेमाल होने वाली ऊर्जा से बिजली की सप्लाई 2050 तक 70-85 फीसदी तक ले जानी होगी जो फिलहाल 25 फीसदी है. गैस से उत्पन्न होने वाली बिजली को घटा कर 8 फीसदी और कोयला जला कर पैदा होने वाली बिजली को 2 फीसदी के नीचे लाना होगा. इस संदर्भ में तेल का जिक्र नहीं किया गया है. अगर औसत वैश्विक तापमान अस्थायी रूप से भी 1.5 डिग्री के पार चला जाता है तो फिर पर्यावरण से कार्बन को निकालने के लिए अतिरिक्त उपाय करने होंगे जिससे साल 2100 तक तापमान को 1.5 डिग्री की वृद्धि से नीचे रखा जाए.

हालांकि रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि जंगल लगाने, बायो एनर्जी के इस्तेमाल और कार्बन डाइऑक्साइड को रोकने और उसका भंडारण करने जैसे उपायों की बड़े पैमाने पर अभी पुष्टि नहीं हुई है और इसके कुछ जोखिम भी हैं.

मुश्किल यह है कि 1.5 डिग्री के लक्ष्य को हासिल नहीं किया जाता तो फिर दुनिया में बड़े बदलाव होंगे. तापमान निचले स्तर के लक्ष्य पर रहा तो आर्कटिक सागर 100 साल में सिर्फ एक बार बर्फ से मुक्त होगा, लेकिन तापमान अगर ऊंचे स्तर पर रहा तो ऐसा हर दशक में कम से कम एक बार होगा. कोरल रीफ के लिए अभी ही संकट है और यह कम हो रहे हैं लेकिन तापमान के बढ़ने का मतलब है कि यह पूरी तरह से खत्म हो जाएंगे.

आईपीसीसी के बोर्ड सदस्य अमजद अब्दुल्ला का कहना है, "रिपोर्ट दिखाती है कि हमारे पास बहुत कम मौके बचे हैं जिनसे हम अपने जीवन देने वाले जलवायु तंत्र को असोचनीय नुकसान से बचा सकें."

एनआर/एके (रॉयटर्स)

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