पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने घोषणा की है कि वो अपनी ही पार्टी बनाएंगे. उन्होंने यह भी कहा है कि वो बीजेपी के साथ मिल कर चुनाव लड़ना चाह रहे हैं.
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घोषणा कैप्टन की तरफ से उनके मीडिया सलाहकार रवीन ठुकराल ने ट्विटर पर की. "पंजाब के भविष्य के लिए जंग शुरू हो चुकी है", यह कहते हुए रवीन ने बताया कि कैप्टन जल्द ही अपनी नई पार्टी शुरू करेंगे.
उन्होंने यह भी कहा भी कि यह पार्टी पंजाब के सभी लोगों के हित के लिए काम करेगी, जिनमें "अपनी उत्तरजीविता के लिए एक साल से ज्यादा से लड़ रहे किसान" भी शामिल हैं. पार्टी के बारे में आगे बताते हुए रवीन ने कहा कि "पंजाब को राजनीतिक स्थिरता और आंतरिक और बाहरी खतरों से सुरक्षा की जरूरत है."
बीजेपी के साथ की उम्मीद
पार्टी की विचारधारा के बारे में संकेत देते हुए उन्होंने शुरू में ही घोषणा कर दी कि 2022 में होने वाले पंजाब विधान सभा चुनावों में उन्हें बीजेपी के साथ मिल कर चुनाव लड़ने की उम्मीद है. हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि ऐसा वो तभी करें अगर किसान आंदोलन का समाधान किसानों के हित में हो जाएगा.
हालांकि कैप्टन पार्टी कब शुरू करेंगे और आगे के कदम कब उठाएंगे इस बारे में ना उन्होंने और ना रवीन ने बताया. कैप्टन ने 18 सितंबर को पंजाब के मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था. उन्होंने कांग्रेस पार्टी से अभी तक इस्तीफा नहीं दिया है.
उनकी इस घोषणा को कांग्रेस के लिए उनके इशारे के रूप में भी देखा जा रहा है. उनकी दो घोषणाओं में परस्पर विरोधाभास भी नजर आ रहा है. बीजेपी तीन नए कृषि कानून के खिलाफ एक साल से भी ज्यादा से आंदोलन कर रहे किसानों के निशाने पर है.
आगे क्या करेंगे कैप्टन
ऐसे में किसी पार्टी या नेता के लिए किसानों के हित और बीजेपी से हाथ मिलाने की बातें एक साथ करना चौंकाने वाला है. उनकी इस घोषणा पर पंजाब सरकार में मंत्री परगट सिंह ने मीडिया से कहा कि वो पहले से कह रहे थे कि कैप्टन बीजेपी और अकाली दल के साथ मिल कर काम कर रहे थे.
करतारपुर गलियारे की स्थापना के मौके पर अमरिंदर सिंहतस्वीर: Getty Images/AFP/N. Nanu
कैप्टन पहले भी कांग्रेस पार्टी छोड़ कर अपनी पार्टी शुरू कर चुके हैं. उन्होंने 1984 में ऑपरेशन ब्लूस्टार के विरोध में कांग्रेस पार्टी छोड़ दी थी. उसके बाद वो शिरोमणि अकाली दल में शामिल हो गए थे लेकिन 1992 में उन्होंने अकाली दल से भी नाता तोड़ लिया और शिरोमणि अकाली दल (पंथिक) नाम से एक नई पार्टी शुरु की.
हालांकि 1998 के विधान सभा चुनावों में अमरिंदर और उनकी इस नई पार्टी को भी बड़ी हार का सामना करना पड़ा. उसके बाद कैप्टन कांग्रेस में लौट आए और अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया.
किसने खोए और किसने पाए सबसे ज्यादा दलबदलू नेता
दलबदलू नेताओं पर एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की एक रिपोर्ट में कई दिलचस्प तथ्य सामने आए हैं. जानिए पिछले पांच सालों में कितने विधायक और सांसद चुने गए किसी और पार्टी के टिकट पर और बाद में चले गए किस और पार्टी में.
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बड़ी संख्या
एडीआर के मुताबिक पिछले पांच सालों में कम से कम 433 सांसदों और विधायकों ने चुनाव जीतने के बाद पार्टी बदल ली और अगला चुनाव इसी नई पार्टी के टिकट पर लड़ा.
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गिरा देते हैं सरकार
हाल में मध्य प्रदेश, मणिपुर, गोवा, अरुणाचल प्रदेश और कर्नाटक में विधायकों के दल बदलने की वजह से सरकारें गिर गईं.
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किसने खोए सबसे ज्यादा नेता
2016 से 2020 के बीच हुए चुनावों के दौरान इनमें से सबसे ज्यादा, यानी 170 (42 प्रतिशत), विधायक कांग्रेस ने गंवा दिए. बीजेपी ने सिर्फ 18 विधायक (4.4 प्रतिशत) गंवाए. बीएसपी और टीडीपी ने 17, एनपीएफ और वाईएसआरसीपी ने 15, एनसीपी ने 14, एसपी ने 12 और आरजेडी ने 10 विधायक खोए. सबसे कम विधायक सीपीआई (1), डीएमके (1) और आरएलडी (2) जैसी पार्टियों ने खोए.
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सबसे लोकप्रिय ठिकाना
इन दलबदलू नेताओं में से सबसे ज्यादा नेता बीजेपी में गए. इस अवधि में इनमें से 405 विधायकों ने दोबारा चुनाव लड़ा, जिनमें 182 (44.9%) विधायक अपनी अपनी पार्टी छोड़ कर बीजेपी में शामिल हुए. कुल 38 विधायक (9.4%) कांग्रेस में गए जबकि 25 विधायक (6.2%) टीआरएस में शामिल हुए.
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लोक सभा में बीजपी को नुकसान
2019 के लोक सभा चुनावों के दौरान बीजेपी के पांच लोक सभा सदस्यों ने (41.7%) ने दूसरी पार्टी का दामन थामा. कुल 12 लोक सभा सदस्यों ने अपनी पार्टी छोड़ी और उनमें से पांच (41.7%) कांग्रेस में शामिल हुए.
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राज्य सभा में कांग्रेस का पलड़ा हल्का
2019 के चुनावों के दौरान कांग्रेस के सात राज्य सभा सदस्यों (43.8%) ने पार्टी को छोड़ दूसरी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा. कुल 16 राज्य सभा सदस्यों ने अपनी पार्टी छोड़ी और उनमें से 10 (62.5%) बीजेपी में शामिल हुए.
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दलबदलू नेताओं का हश्र
2019 लोक सभा चुनावों में जिन 12 सांसदों ने अपनी पार्टी छोड़ दूसरी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा उनमें से एक भी सांसद चुनाव जीत नहीं पाया. पिछले पांच सालों में अलग अलग राज्यों में 357 विधायकों ने अपनी पार्टी छोड़ दी, लेकिन उनमें से सिर्फ 170 विधायक ही दोबारा चुनाव जीत पाए. विधान सभाओं के उप-चुनावों में 48 विधायकों ने पार्टी बदली, लेकिन उनमें से सिर्फ 39 जीत पाए.
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राज्य सभा की कहानी अलग
मौजूदा राज्य सभा में 16 ऐसे सदस्य हैं जो इससे पहले भी राज्य सभा में थे, लेकिन दूसरी पार्टी में. पार्टी बदलने के बावजूद ये सब दोबारा चुनाव जीत गए.