अंतरराष्ट्रीय गैर सरकारी संस्था ऑक्सफैम की ताजा रिपोर्ट के अनुसार अमीरों और गरीबों में बढ़ते फासले का असर खास कर महिलाओं पर पड़ रहा है.
विज्ञापन
दावोस में होने वाली सालाना विश्व आर्थिक फोरम से ठीक पहले ऑक्सफैम ने अपनी रिपोर्ट जारी कर दुनिया भर के अर्थशास्त्रियों का ध्यान अमीरों और गरीबों में बढ़ते फासले की ओर खींचने की कोशिश की है. रिपोर्ट में कहा गया है कि 2017 से 2018 के बीच में मात्र 26 लोगों के पास उतनी संपत्ति थी जितनी दुनिया के कुल 3.8 अरब गरीब लोगों के पास है. यह आंकड़ा स्विस बैंक क्रेडिट सुइस और फोर्ब्स पत्रिका की दुनिया के सबसे रईस लोगों की सूची के आधार पर तैयार किया गया है. रिपोर्ट के अनुसार इन 26 लोगों की दौलत प्रति दिन औसतन ढाई अरब डॉलर की दर से बढ़ रही है.
ऑक्सफैम के कार्यकारी निदेशक विनी ब्यानयीमा ने अपने बयान में कहा कि यह "अस्वीकार्य" है, "जहां एक तरफ कंपनियां और रईस कम टैक्स का फायदा उठा रहे हैं, वहीं लाखों लडकियां शिक्षा के अधिकार से महरूम रहती हैं और महिलाएं मातृत्व में देखभाल के अभाव से जान गंवा रही हैं." रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर दुनिया के सबसे रईस एक फीसदी लोगों की संपत्ति पर मात्र 0.5 फीसदी ज्यादा टैक्स लगा दिया जाए, तो इससे उतना धन मिल सकता है जिससे लाखों गरीब बच्चियां स्कूल जा सकेंगी और लाखों महिलाओं को स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएं मिल सकेंगी.
ब्यानयीमा ने कहा कि सरकारों को सुनिश्चित करना होगा कि बड़ी कंपनियां और धनी लोग अपने हिस्से का कर चुकाएं और फिर इस कर का लड़कियों और महिलाओं के कल्याण के लिए सही तरह से निवेश किया जा सके. उनका कहना है कि दावोस में मिलने वाले लोगों के पास वह ताकत है कि वे दुनिया में फैलती इस असमानता का अंत कर सकें. ब्यानयीमा खुद हर साल इस सम्मेलन में हिस्सा लेते हैं. वे कहते हैं, "समाधान हैं और इसीलिए तो हम दावोस में आते हैं, ताकि इन नेताओं को याद दिला सकें कि आपने वायदे तो किए हैं, अब कुछ कर के भी दिखाएं. नीतियां हैं, उपाय सिद्ध भी किए जा चुके हैं."
ऑक्सफैम ने अपनी रिपोर्ट में सुझाया है कि महिलाएं अपनी जिंदगी के जो लाखों घंटे बिना किसी मेहनताने के घर के काम करती हैं, परिवार का ध्यान रखती हैं, उसकी ओर भी ध्यान दिया जाए और महिलाओं को बजट से जुड़े फैसलों में हिस्सेदार बनाया जाए. साथ ही सरकारों को हिदायत दी गई है कि बिजली, पानी और बच्चों की देखभाल पर ज्यादा खर्च किया जाए ताकि बगैर मेहनताने वाले काम करने में महिलाओं को कम से कम वक्त लगे. इसके अलावा जन सुविधाओं के निजीकरण से बचने की भी बात कही गई है.
ऑक्सफैम की रिपोर्ट हर साल जारी होती है और हर साल ही इस पर खूब चर्चा भी होती है. लेकिन इसके आलोचकों का कहना है कि रिपोर्ट पश्चिमी देशों के कुछ चुनिंदा अध्ययनों के आधार पर तैयार की जाती है और इसके नतीजे व्यवहारिक नहीं होते. अमीरों से धन ले कर गरीबों में बांटने की ऑक्सफैम की रॉबिन हुड वाली नीति भी लगातार सवालों के घेरे में रहती है.
आईबी/एके (रॉयटर्स, एएफपी)
रॉबिनहुड नाम का मसीहा क्या सचमुच में था?
रॉबिनहुड नाम का मसीहा क्या सचमुच में था?
कानून की परवाह नहीं करने वाला यह नायक अमीरों की संपत्ति लूट कर गरीबों में बांटने के लिए विख्यात था. फिल्मों, किताबों और किस्से कहानियों में जिसका बार बार जिक्र हुआ, क्या वह सचमुच कोई इंसान था या कोरी कल्पना?
बॉलीवुड से लेकर हॉलीवुड तक हिट
भारत में डकैतों, बाहुबलियों पर बनी फिल्में खूब चलती हैं और इनके नायकों का किरदार अकसर इस छवि के आस पास ही रहता है. हॉलीवुड में "प्रिंस ऑफ थीव्स" को अनगिनत फिल्मों में दिखाया गया. 1991 में केविन रेनॉल्ड्स के निर्देशन में बनी फिल्म में केविन कोस्टर ने नायक की भूमिका निभाई और उसके विश्वस्त सहयोगी बने मॉर्गन फ्रीमैन.
मध्ययुगीन नायक
रॉबिन हुड के कारनामों का वर्णन मध्ययुग से ही लेखकों की कलम से मिलता रहा है. पहली बार इन कहानियों का सारांश "अ जेस्ट ऑफ रॉबिन हुड" में छपा. कानून तोड़ने वाले रॉबिन हुड की गाथा को 15वीं सदी की इस रचना ने 456 छंदों में व्यक्त किया. आज की तारीख में भी रॉबिन हुड के बारे में जानकारी पाने के लिए रिसर्चरों को इसकी शरण में जाना पड़ता है
तस्वीर: public domain
चालाक लोमड़ी
डिज्नी ने मध्ययुग के इस किरदार को 1973 की क्लासिक एनिमेशन में जानवर बना दिया. चालाक लोमड़ी रॉबिन को उसके वफादार भालू दोस्त लिटल जॉन से मदद मिलती है. दोनों साथ मिल कर प्रिंस जॉन नाम के शेर और उसके बेशर्म अनुचर भेड़िये शेरिफ ऑफ नॉटिंघम से लोहा लेते हैं.
तस्वीर: Walt Disney
शेरवुड में शैतानी
3डी एनिमेशन सीरिज "रॉबिनहुड: मिसचीफ इन शेरवुड" में रॉबिन हुड लोमड़ी की बजाय लाल बालों वाला नायक बन गया. छह साल से ज्यादा उम्र के बच्चों के लिए बनी इस फिल्म में युवा रॉबिन के कारनामे दिखाए गए, जो हमेशा अपनी बातों से चिरशत्रु प्रिंस जॉन को निरुत्तर कर देता है.
यहां छिपता था रॉबिन
कहानियों में रॉबिन और उसके साथियों के बारे में कहा जाता है कि वे एक शेरिफ के प्यादों से छिपने के लिए बलूत के इस पेड़ में छिप जाते थे. करीब 700 साल पुराना यह पेड़ इग्लैंड में मेजर ओक के नाम से जाना जाता है, जो नॉटिंघम के पास शेरवुड के जंगल में खड़ा है. रानी विक्टोरिया के जमाने से ही इसकी विशाल शाखाओं को उन्नत तकनीक के जरिए सहारा दिया जाता रहा है.
कभी रॉबिन को एक महान आदमी बताया गया तो कभी आम. मेड मारियन रॉबिन हुड की प्रेमिका हैं. मध्ययुगीन साहित्यों में भी उन्हें एक स्वतंत्र महिला के रूप मे दिखाया गया, जो उस दौर में एक अनोखी बात थी. रिचर्ड लेस्टर की फिल्म "रॉबिन एंड मारियन"(1976) में शॉन कॉनरी और ऑड्री हेपबर्न ने यह किरदार निभाया.
तस्वीर: Getty Images
नकल के लिए पर्याप्त मसाला
व्यंग्य पसंद करने वालों के लिए "रॉबिन हुड: मेन इन टाइट्स" शायद रॉबिन हुड की फिल्मों में सबसे बेहतर है. 1993 की इस कॉमेडी फिल्म ने इससे पहले बनी सारी फिल्मों का मजाक उड़ाया, खासतौर से केवन कोस्टनर वाली "प्रिंस ऑफ थीव्स" का. हंसी मजाक और आसान द्वीअर्थी शब्दों वाली फिल्म में कई ऐसे चरित्र भी थे जिनकी उम्मीद नहीं की गई थी.
तस्वीर: Imago
कॉमिक्स का कामयाब सितारा
अनगिनत फिल्में और टीवी सीरियल ही नहीं, रॉबिन हुड ने मशहूर फ्रेंच कॉमिक सीरिज को भी प्रेरित किया. "रॉबिन डे बोआ" के नाम से 1965 से 1975 के बीच यह प्रकाशित हुई. इसका जर्मन भाषा में भी अनुवाद किया गया और दोनों ही देशों में ये काफी प्रचलित रही. इस सीरीज की एक साथ 100 कॉमिक्स जर्मन भाषा में छापी गईं.
बाहरी शख्स का स्मारक
इस बात का बहुत महत्व नहीं है कि रॉबिन हुड वास्तव में था या नहीं. उसकी कहानियों ने सैकड़ों सालो से लोगों का मनोरंजन किया है. 1952 में सिटी ऑफ नॉटिंघम ने अपने सबसे मशहूर बेटे को अमर कर दिया. रॉबिन की बाहरी और व्यवस्था के विरोधी की छवि को शहर के बाहर लगी इस मूर्ती के जरिए दिखाया गया.
तस्वीर: Wikipedia/L. Goff
सामाजिक न्याय का प्रतीक
आज के दौर में भी रॉबिन हुड का नाम हमेशा गरीबी के खिलाफ जंग का प्रतीक बनता है. बहुत से संगठनों और संस्थाओं ने इस मिथक के नाम पर अपना नाम रखा है. 2010 में तो बर्लिन में कुछ प्रदर्शनकारियों ने रॉबिन हुड टैक्स लगाने की मांग कर दी. उनका कहना था कि वित्तीय लेनदेन पर एक टैक्स लगा कर गरीबी और जलवायु परिवर्तन से लड़ा जाए.