अमीर लें जिम्मेदारी तो गरीब देशों पर कम पड़ेगी मार
२ अक्टूबर २०१७
आईएमएफ की एक रिपोर्ट ने अमीर देशों को चेतावनी देते हुए कहा है कि अगर जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर अब भी उन्होंने कम आय वाले देशों की मदद नहीं की तो भविष्य में विस्थापन का यह एक बड़ा कारण साबित होगा.
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अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की "वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक" रिपोर्ट में कहा गया है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए कम आय वाले देशों की आर्थिक रूप से अधिक मदद करनी चाहिए. आईएमएफ का तर्क है, "उन्नत और उभरती अर्थव्यवस्थायें ही ग्लोबल वार्मिंग में अधिक योगदान करती रहीं हैं, इसलिये कम आय वाले देशों को इसके परिणामों का सामना करने के लिए मदद किया जाना ठोस वैश्विक आर्थिक नीति के तहत तो आवश्यक है ही साथ ही इन देशों का नैतिक कर्तव्य भी है."
पिछले 40 सालों से वैश्विक तापमान में हो रही वृद्धि और ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन ने कम आय वाले देशों में सूखा, बाढ़ और समुद्री जलस्तर में बढ़ोतरी जैसी आशंकाओं को बढ़ा दिया है. आईएमएफ के ब्लॉग पर लिखा गया है कि जलवायु परिवर्तन का असर हर देश पर अलग-अलग नजर आता है. यहां तक कि कम आय वाले देश ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में बेहद कम योगदान देते हैं लेकिन उन्हें भी अपनी भौगोलिक स्थिति के चलते बढ़ते तापमान के खतरों और प्रभावों को झेलना पड़ता है.
आईएमएफ का कहना है कि तापमान में हो रही यह बढ़ोतरी भविष्य में अधिक प्राकृतिक आपदाओं की ओर संकेत करती है, जिसका नतीजा टकराव और विस्थापन के रूप में नजर आ सकता है. रिपोर्ट के मुताबिक कम आय वाले देशों में इसका असर अधिक नजर आएगा लेकिन इसके प्रभावों से उन्नत अर्थव्यवस्थायें भी नहीं बच सकेगी. रिपोर्ट में शामिल एक शोध मुताबिक, विस्थापन उन्हीं लोगों तक सीमित है जो यात्रा करना वहन कर सकते हैं, लेकिन एक बड़ा तबका ऐसा भी है जो वहीं जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से जूझता रह सकता है.
आईएमएफ ने कहा, "आर्थिक रूप से कमजोर इन देशों के सामने आने वाली बाधाओं को देखते हुए, अंतरराष्ट्रीय समुदायों को जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए इनके प्रयासों में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए, क्योंकि इन परेशानियों में ये बेहद ही कम योगदान देते हैं." रिपोर्ट मुताबिक, "सतत विकास के लक्ष्यों (एसडीजी) की प्राप्ति के लिए इन देशों को अपने सकल घरेलू उत्पाद का 30 फीसदी खर्च करने की आवश्यकता होगी लेकिन इनमें से अधिकतर देशों के पास पैसा नहीं है."
आईएमएफ का कहना है, "कम आय वाले देशों के पास ढांचागत व्यवस्था, प्रशासनिक क्षमता और राजनीतिक स्थिरता का अभाव होता है जिसके चलते इन देशों के लिए उचित व्यापक आर्थिक नीतियों और रणनीतियों को लागू करना मुश्किल होता है." जर्मनी ने पिछले साल गरीब देशों की मदद के लिए जलवायु योजनाओं को ठोस रणनीतियों में बदलने के लिए प्रतिबद्धता जतायी थी. आईएमएफ के मुताबिक, "ऐसे अमीर देश जो ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन अधिक करते हैं उन्हें जलवायु अनुकूलन लागत में अधिक योगदान देना चाहिए."
रिपोर्ट: स्टुअर्ट ब्राउन/एए
प्रकृति और पत्ते
अपने आसपास कभी पत्तों को देखा है? अलग अलग आकार, अलग रूप और अलग रंग. वे अपने माहौल से तालमेल बिठा लेते हैं. लेकिन कैसे? शोधकर्ता इस राज को जानने की कोशिश कर रहे हैं. इससे उन्हें पत्तों पर जलवायु परिवर्तन का असर पता चलेगा.
तस्वीर: picture-alliance/F. May
केले का पत्ता
यह है केले के पत्ते की तस्वीर. तस्वीर से पता नहीं चलता कि केले के पत्ते कितने बड़े होते हैं. ये पत्ते दो से तीन मीटर लंबे और 30 से 60 सेंटीमीटर चौड़े हो सकते हैं. इतने बड़े पत्ते ट्रॉपिकल इलाकों में होते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/united archiv/R. Franken
छोटे पत्ते
केले के पत्तों के विपरीत हीदर के पत्ते बहुत ही छोटे होते हैं. इसके रूखे पत्ते कुछ ही मिलीमीटर के होते हैं और ऊंचाई पर सूखे इलाकों में होते हैं. दरअसल ये पौधे उतना ही बढ़ते हैं जितना पानी और तापमान इजाजत देते हैं.
आकार के बारे में जानने की पत्ता दर पत्ता कोशिश कर रहे हैं. सिडनी की मैक्वायर यूनिवर्सिटी के इएन राइट और दुनिया भर के उनके साथियों ने मिलकर पृथ्वी के हर इलाके के 7600 प्रजातियों के पत्तों का अध्ययन किया है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/M.Scholz
संतुष्टि से परे
वापस केले के पत्ते पर. केले के पत्ते इतने बड़े इसलिए होते हैं क्योंकि वे ऐसे इलाकों में होते हैं जहां पानी ज्यादा है और गर्मी बहुत अधिक. राइट कहते हैं कि जबतक जमीन का पानी पौधों को मिलता रहता है पत्ते बढ़ते रहते हैं. लेकिन यह पूरे सच का एक हिस्सा मात्र है.
रिसर्चरों की दूसरी जानकारी यह है कि पत्तों के आकार में तापमान की बड़ी भूमिका होती है, खासकर रातों को. अब तक समझा जाता है कि पत्तों को ज्यादा गर्मी से नुकसान पहुंचता है. लेकिन अब पता चला है कि ठंडी रातें उन्हें ज्यादा तकलीफ देती हैं.
तस्वीर: picture-alliance/OKAPIA/J. MacDonald
छोटा लेकिन मजबूत
ठंड का असर पत्तों के आकार पर भी होता है. इस लिहाज से रेगिस्तानों और गर्म इलाकों के पेड़ों और पत्तों को आसानी होती है. वे उतनी जल्द गर्म नहीं होते. ठंडे इलाकों में भी उनकी हालत बेहतर रहती है क्योंकि उनपर पाले का असर उतना नहीं पड़ता.
तस्वीर: picture-alliance/AFP Creative/M. Bernetti
पत्तों का जंगल
वर्षावन वाले इलाकों में बड़े पत्तों वाले पेड़ पौधे जमकर फलते फूलते और बढ़ते हैं. नियमित वर्षा के कारण नम मौसम उन्हें ठंडा रखता है और जंगल उन्हें धूप की गर्मी और किरणों से बचाते हैं. उन्हें पाले से भी कोई खतरा नहीं होता.
तस्वीर: picture-alliance/blickwinkel/K. Irlmeier
गर्मी और ठंड का खेल
दरअसल मौसम में गर्मी और ठंड दोनों ही पत्तों के आकार और रंगरूप पर असर डालते हैं. रिसर्चरों का कहना है कि यदि पाले के खतरे और गर्मी के जोखिम पर ध्यान दिया जाए तो पूरी दुनिया में पत्तों के आकार के पैटर्न को समझा जा सकता है.