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राजनीतिविश्व

अमेरिका-ईरान के बीच सुलह कराने में जुटे हैं बड़े देश

२७ दिसम्बर २०२१

ईरान और अमेरिका के बीच 2015 न्यूक्लियर डील पर सहमति के लिए जेसीपीओए सदस्य देशों के बीच दोबारा वार्ता शुरू. सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य और जर्मनी के राजनयिक ऑस्ट्रिया की राजधानी वियना में मध्यस्थता प्रयास कर रहे हैं.

Österreich | Atomgespräche mit Iran in Wien
तस्वीर: Michael Gruber/AP Photo/picture alliance

ईरान के परमाणु कार्यक्रम के भविष्य पर चल रही अंतरराष्ट्रीय वार्ता क्रिसमस की छुट्टियों के बाद दोबारा शुरू हुई है. वार्ताकार 2015 के परमाणु समझौते पर ईरान और अमेरिका के बीच फिर से सहमति बनाने की कोशिश कर रहे हैं. इसका लक्ष्य ईरान को अपना परमाणु कार्यक्रम रोकने के लिए मनाना है. ईरान बदले आर्थिक प्रतिबंधों को हटाने की मांग कर रहा है. इसके लिए जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन, रूस और चीन के कूटनीतिज्ञ मध्यस्थता का प्रयास कर रहे हैं.

पश्चिमी देशों के वार्ताकारों का कहना है कि समझौते पर सहमति बनाने के लिए कुछ ही हफ्तों का समय बचा है. अगर ईरान ने परमाणु तकनीक की विशेषज्ञता हासिल कर ली, तो फिर इस समझौते की कोई प्रासंगिकता नहीं रहेगी. खबरों के मुताबिक, अगर वियना में चल रही बातचीत सफल नहीं रही, तो अमेरिका ईरान पर और आर्थिक प्रतिबंध लगा सकता है. वार्ता का पिछला दौर दिसंबर के दूसरे हफ्ते में बेनतीजा खत्म हुआ था.

क्या था 2015 का परमाणु समझौता?

सालों तक चले तनाव के बाद जुलाई 2015 में ईरान और वैश्विक शक्तियों के बीच एक समझौता हुआ था. इस 'जॉइंट कंप्रिहेंसिव प्लान ऑफ एक्शन' (जेसीपीओए) के तहत ईरान के परमाणु संवर्धन प्रोग्राम पर विस्तृत पाबंदियां लगाई गई थी. ईरान ने माना कि वह उच्चस्तरीय यूरेनियम या प्लूटोनियम का उत्पादन नहीं करेगा.

अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के महानिदेशक रफाएल मारियानो ग्रोसीतस्वीर: Askin Kiyagan/AA/picture alliance

ईरान ने यह भी कहा कि उसके परमाणु संयंत्र केवल सिविलियन, मेडिकल और इंडस्ट्रियल शोध से ही जुड़ा काम करेंगे. उसने अपने परमाणु संयंत्रों की नियमित जांच पर भी हामी भरी. तय हुआ कि अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के इंस्पेक्टर ईरानी परमाणु संयंत्रों का निरीक्षण कर सकेंगे. ईरान द्वारा दी गई इन सहमतियों के बदले उसपर लगाए गए आर्थिक प्रतिबंध वापस लिए गए.

क्या था समझौते का मकसद?

अंतरराष्ट्रीय शक्तियां इस समझौते के द्वारा ईरान को अपना परमाणु कार्यक्रम रोकने के लिए राजी करवाना चाहते थे. उनकी कोशिश थी कि ईरान का परमाणु प्रोग्राम इतना धीमा हो जाए कि अगर वह परमाणु हथियार बनाने की कोशिश भी करे, तो इसमें उसे कई साल लगे, ताकि वैश्विक शक्तियों को इस चुनौती से निपटने का समय मिल जाए. वार्ता के समय अमेरिकी खुफिया अधिकारियों ने अनुमान जताया था कि अगर समझौता नहीं होता है, तो कुछ ही महीनों में ईरान परमाणु हथियार बनाने के लिए जरूरी परमाणु सामग्री का उत्पादन कर लेगा.

ईरान का इमाम खौमैनी स्पेसपोर्टतस्वीर: Planet Labs Inc./AP/picture alliance

समझौते के समर्थकों को उम्मीद थी कि डील के चलते ईरान और उसके क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वियों के बीच संघर्ष की आशंका कम होगी. मगर 2018 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने अमेरिका को इस समझौते से अलग कर लिया. उन्होंने ईरान पर फिर से आर्थिक प्रतिबंध भी लगा दिए. जवाब में ईरान ने भी परमाणु समझौते की कई शर्तें तोड़ीं. इसके बाद से ही इस डील की सार्थकता पर संशय बना हुआ था.

बाइडेन के आने के बाद वार्ता फिर शुरू हुई

2021 में जो बाइडेन अमेरिका के नए राष्ट्रपति बने और उन्होंने कहा कि अगर ईरान समझौते की शर्तों पर वापस लौट आए, तो अमेरिका भी फिर से डील में शामिल हो जाएगा. हालांकि बाइडेन का यह भी कहना था कि वह एक विस्तृत विमर्श चाहते हैं, जिसमें ईरान के मिसाइल कार्यक्रम जैसी बाकी गतिविधियां भी शामिल हों.

मगर ईरानी नेताओं का कहना था कि आगे बढ़ने के लिए जरूरी है कि अमेरिका पहले आर्थिक प्रतिबंध वापस ले. जून 2021 में ईरान के राष्ट्रपति बने इब्राहिम रईसी ने यह भी कहा कि वार्ता में प्रगति के लिए अमेरिका को मूल समझौते पर लौटना होगा. रईसी ने कहा कि क्षेत्रीय और मिसाइल नीति से जुड़ी ईरानी पॉलिसी पर बात नहीं होगी.

एसएम/एमजे (डीपीए)

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