अमेरिका और चीन के बीच महीनों से चल रहे कारोबारी युद्ध में जीत आखिर किसकी होगी? जानकार कहते हैं कि दोनों में से कोई नहीं जीतेगा बल्कि फायदा कोई तीसरा ही उठाएगा. आखिर कौन?
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संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि दुनिया की दो बड़ी ताकतों के बीच चल रही तनातनी का बड़ा फायदा यूरोपीय संघ को हो सकता है. यूएन कॉन्फ्रेंस ऑन ट्रेड एंड डिवेलपमेंट (यूएनसीटीएडी) की रिपोर्ट में अमेरिका और चीन की तरफ से एक दूसरे के खिलाफ उठाए जा रहे कदमों का विश्लेषण किया गया है.
रिपोर्ट को शीर्षक दिया गया है: "द ट्रेड वॉर: द पेन एंड द गेन" यानी कारोबारी युद्ध के नफा नुकसान. रिपोर्ट कहती है कि दोनों देशों की तरफ से एक दूसरे के खिलाफ लगाए गए शुल्कों से उन देशों की कंपनियों को फायदा मिल रहा है जो इनसे सीधे तौर पर प्रभावित नहीं हैं.
रिपोर्ट में अनुमान जताया गया है कि यूरोपीय संघ को इसमें सबसे ज्यादा फायदा हो सकता है. उसकी कंपनियों को इस ट्रेड वॉर की वजह से 70 अरब डॉलर का अतिरिक्त फायदा हो सकता है. पिछले साल अमेरिका और चीन ने 360 अरब डॉलर के दोतरफा व्यापार पर शुल्क लगाए. अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने अनुचित तौर तरीकों की शिकायतों के बाद इन शुल्कों को लगाने की शुरुआत की, जिस पर चीन ने पलटवार किया.
अमेरिका और चीन के बीच शुरू हुए ट्रेड-वॉर का घमासान भविष्य में और परवान चढ़ सकता है. अमेरिका ने टैरिफ बढ़ोतरी का फैसला कई मुल्कों के साथ किया है, जिसने 1000 अरब डॉलर से ज्यादा के वैश्विक कारोबार को खतरे में डाल दिया है.
कुल 250 अरब डॉलर का कारोबार प्रभावित.
भारतीय स्टील और एल्युमीनियम पर अमेरिका ने बढ़ाई ड्यूटी. भारत ने अमेरिकी गुड्स के आयात पर लगाई 50 फीसदी ड्यूटी. बादाम, अखरोट, केमिकल और मेटल प्रॉडक्ट्स शामिल.
तस्वीर: imago/photothek
चीन
कुल 900 अरब डॉलर का कारोबार प्रभावित.
अमेरिका ने 34 अरब डॉलर के गुड्स पर टैरिफ लगाया.
अगर चीन ने की कार्रवाई तो 400 अरब डॉलर के कारोबार पर लगेगी 10 फीसदी की ड्यूटी.
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यूरोपीय संघ
कुल 71.2 अरब डॉलर का कारोबार प्रभावित.
अमेरिका ने 61.2 अरब डॉलर के ऑटो कारोबार पर ड्यूटी लगाने की दी धमकी. अगर यूरोपीय संघ करेगा जवाबी कार्रवाई, तो 10 अरब डॉलर मूल्य के अमेरिकी गुड्स होंगे प्रभावित.
कुल 25.2 अरब डॉलर का कारोबार प्रभावित.
अमेरिका ने 12 अरब डॉलर वाले स्टील और एल्युमीनियम आयात पर लगाए शुल्क.
कनाडा ने भी अमेरिका पर ठीक वैसी ड्यूटी लगाने की दी धमकी.
कुल 6 अरब डॉलर का कारोबार प्रभावित.
दोनों देशों ने एक-दूसरे पर 3 अरब डॉलर मूल्य वाले गुड्स पर लगाए शुल्क.
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मलेशिया और दक्षिण कोरिया
कुल 5.6 अरब डॉलर का कारोबार प्रभावित अमेरिका ने सोलर पैनल्स और वॉशिंग मशीन पर ड्यूटी लगाई.
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इस बीच दोनों देश बातचीत के जरिए तनाव को दूर करना चाहते हैं ताकि उन्हें और नुकसान ना उठाना पड़े. लेकिन अगर उनके बीच 1 मार्च तक डील नहीं होती है तो फिर 200 अरब डॉलर के चीनी सामान पर अमेरिकी ड्यूटी 10 प्रतिशत से बढ़ कर 25 प्रतिशत हो जाएगी.
यूएनसीटीएडी में अंतरराष्ट्रीय व्यापार डिवीजन की प्रमुख पामेला कोक हैमिल्टन ने एक बयान में कहा, "हमारा विश्लेषण दिखाता है कि घरेलू कंपनियों की रक्षा करने के लिहाज से दोतरफा शुल्क बहुत प्रभावी नहीं हैं. वे सिर्फ लक्षित देश से कारोबार को सीमित करने में काम आते हैं." वह कहती हैं, "अमेरिका और चीन के बीच शुल्कों को लेकर चल रही तनातनी का असर नुकसानहेद होगा. चीन-अमेरिका का दोतरफा व्यापार कम होगा और इसकी जगह अन्य देशों की कंपनियां ले लेंगी."
रिपोर्ट में अनुमान जताया गया है कि चीन से अमेरिका को निर्यात होने वाले 250 अरब डॉलर के जिस सामान पर शुल्क लागू होंगे, उसमें से 80 प्रतिशत को अन्य देशों की कंपनियां हथिया लेंगी जबकि 12 प्रतिशत हिस्सा चीन के पास बना रहेगा. इसमें सिर्फ 6 प्रतिशत हिस्सा अमेरिकी कंपनियों के पास जा पाएगा.
कुछ ऐसी ही हाल अमेरिका से चीन को निर्यात होने वाले 85 अरब डॉलर के सामान का भी होगा जिस पर चीन 'जैसे को तैसा' की नीति पर चलते हुए शुल्क लगाएगा. इसमें भी 85 प्रतिशत हिस्सा अन्य देशों की कंपनियों के खाते में जाएगा जबकि 10 प्रतिशत अमेरिकी कंपनियों और पांच प्रतिशत हिस्सा चीनी कंपनियों को मिलेगा.
कॉकरोचों से अमीर होते चीन के लोग
02:12
यूएनसीटीएडी का कहना है, "चीन और अमेरिका के बीच कारोबारी युद्ध से जिन कंपनियों को फायदा होगा वे कहीं ज्यादा प्रतिस्पर्धात्मक हैं और उनमें चीनी और अमेरिकी कंपनियों की जगह लेने की आर्थिक क्षमता है."
रिपोर्ट संकेत देती है कि सबसे ज्यादा फायदा यूरोपीय संघ को मिलेगा. अनुमान है कि चीनी निर्यात में से लगभग 50 अरब डॉलर और अमेरिकी निर्यात में से 20 अरब डॉलर का कारोबार उनके खाते में जा सकता है. अध्ययन रिपोर्ट कहती है कि जापान, मेक्सिको और कनाडा जैसे देशों को 20 अरब डॉलर का फायदा होगा. इसका थोड़ा बहुत फायदा ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, भारत, फिलीपींस और पाकिस्तान जैसे देशों को भी होगा जो उनके निर्यात के आकार पर निर्भर करेगा.
जो भी हो, लेकिन इस कारोबार युद्ध का अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर नकारात्मक असर भी होगा. कुछ बाजारों में इसे खास तौर से महसूस किया जाएगा. इस संदर्भ में यूएनसीटीएडी की रिपोर्ट में सोयाबीन बाजार का जिक्र किया गया है जहां शुल्क बढ़ाने का असर महसूस होने लगा है. इसका फायदा ब्राजील को हुआ है जो पहले ही चीन का मुख्य सोयाबीन सप्लायर बन गया है.
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट कहती है, "चूंकि शुल्कों का दायरा और अवधि अभी स्पष्ट नहीं है, इसलिए ब्राजील के उत्पादक निवेश संबंधी फैसला करने की स्थिति में नहीं हैं. हो सकता है कि वे आज निवेश कर दें और निकट भविष्य में शुल्क हटा लिए जाएं, तो फिर वे तो घाटे में रहेंगे." इस बीच बढ़ती मांग को देखते हुए ब्राजील की कंपनियों को सोयाबीन महंगा मिलने लगा है, जिससे उनका मुनाफा घट रहा है.
एके/आईबी (एएफपी)
भारत-पाकिस्तान कारोबार करें तो होगा फायदा ही फायदा
वर्ल्ड बैंक ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि भारत और पाकिस्तान अगर कृत्रिम कारोबारी बाधाओं को दूर कर संभावनाओं को भुनाने पर जोर दें तो दोनों देशों के बीच 37 अरब डॉलर तक का कारोबार हो सकता है.
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2 से 37 अरब डॉलर
विश्व बैंक की रिपोर्ट कहती है कि भारत और पाकिस्तान के बीच कारोबार की जबरदस्त संभावनाएं है. टाइम्स ऑफ इंडिया ने इस रिपोर्ट के हवाले से लिखा है कि अभी दोनों देशों के बीच महज 2 अरब डॉलर का व्यापार होता है लेकिन अगर सारी संभावनाओं को भुनाया जाए तो यह कारोबार 37 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है.
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ग्लास हाफ फुल
रिपोर्ट "ग्लास हाफ फुल: प्रोमिस ऑफ रीजनल ट्रेड" में कहा गया है कि अगर दोनों देश कृत्रिम बाधाओं को दूर करने के लिेए एक साथ आ जाएं तो भारत और पाकिस्तान के कारोबार में बढ़ोतरी हो सकती है. दक्षिण एशिया में पाकिस्तान की संभावित कारोबार वृद्धि को लेकर भी बात की गई है.
तस्वीर: imago/photothek
विश्वास स्थापित हो
पाकिस्तान का दक्षिण एशियाई देशों के साथ मौजूदा कारोबार महज 5.1 अरब डॉलर का है, लेकिन अगर नीतिगत बाधाओं को दूर कर लिया जाए तो यह कारोबार 39.7 अरब डॉलर के पार पहुंच सकता है. भारत और पाकिस्तान के बीच करतारपुर कॉरिडोर मसले पर बनी सहमति को दोनों पक्षों में विश्वास स्थापित करने वाला कदम बताया गया है.
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क्या है बाधाएं
रिपोर्ट में भारत-पाकिस्तान की जिन कृत्रिम बाधाओं को खत्म करने की जरूरत बताई गई है, उनमें पहली है कारोबारी ट्रैरिफ से जुड़े मसले, उच्च लागत और आपसी विश्वास की कमी. वरिष्ठ अर्थशास्त्री और इस डॉक्यूमेंट को तैयार करने वाले संजय कथुरिया ने इस्लामाबाद में पत्रकारों से कहा है कि अगर दोनों देशों में आपसी विश्वास बढ़ता है तो कारोबार बढ़ेगा ही बढ़ेगा.
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हवाई सेवा का हाल
भारत और पाकिस्तान के हवाई परिवहन का आंकड़ा भी रिपोर्ट में दिया गया है. इसमें बताया गया है कि पाकिस्तान की दक्षिण एशियाई देशों के साथ हवाई परिवहन कम है. पाकिस्तान की भारत और अफगानिस्तान के साथ हफ्ते में केवल छह उड़ानें हैं. वहीं श्रीलंका और बांग्लादेश के साथ 10 और नेपाल के साथ केवल एक ही है लेकिन मालदीव और भूटान के साथ कोई उड़ान नहीं है.
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भारत है आगे
वहीं भारत का हवाई परिवहन व्यवस्था काफी मजबूत है. भारत में श्रीलंका के साथ 147 साप्ताहिक उड़ानें हैं, इसके बाद 67 बांग्लादेश के साथ, मालदीव के साथ 32, नेपाल के साथ 71, अफगानिस्तान के साथ 22 और भूटान के साथ 23 हैं.
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'एमएफएन' स्टेटस
रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान का भारत को एमएफएन स्टेटस (मोस्ट फेवरड नेशन) न देना भी पाकिस्तान के लिए एक बड़ी बाधा है. अंतरराष्ट्रीय राजनीति में कारोबार बढ़ाने के लिए जब कोई देश दूसरे देश को रियायतें और सुविधाएं देता है ताकि दोनों पक्षों में कारोबार में इजाफा हो, तो इस खास दर्जे को एफएफएन स्टेटस कहा जाता है.