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अमेरिका की भूमिका पर बहस आज

२२ अक्टूबर २०१२

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीद्वारों के बीच आज आखिरी बहस है. ओबामा के खिलाफ खड़े रोमनी को साबित करना है कि वह सिर्फ आलोचना करना नहीं जानते, बल्कि उन्हें नई सोच से काम करना भी आता हैं.

तस्वीर: Reuters

अमेरिका में राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों के बीच सार्वजनिक मंच पर तीन बार बहस होती है. अलग अलग मुद्दों पर उम्मीदवारों की राय जानी जाती है. पहली बहस में रिपब्लिकन उम्मीदवार मिट रोमनी राष्ट्रपति बराक ओबामा पर भारी पड़े. उन्हें बढ़त मिल गई लेकिन दूसरी बहस में रोमनी गड़बड़ा गए. उन्होंने डेमोक्रेट ओबामा की विदेश नीति की आलोचना तो की लेकिन खुद कोई बेहतर सुझाव न दे सके. लीबिया के मुद्दे पर तो वह हिचकोले ही खा गए. बेनगाजी में अमेरिकी उच्चायोग पर हुए हमले में राजदूत समेत चार अमेरिकी नागरिक मारे गए थे. रोमनी के मुताबिक ओबामा को इस हमले को आतंकवादी कार्रवाई बताने में तीन हफ्ते लगे. इसके जवाब में राष्ट्रपति ने कहा कि रोमनी को राष्ट्रीय शोक के विषय पर राजनीति नहीं करनी चाहिए. दूसरी बहस के बाद रोमनी और ओबामा के बीच अंतर कम हो गया.

आखिरी संग्राम

ऐसे में सोमवार शाम की तीसरी और आखिरी बहस अहम हो गई है. नेशनल ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन और वॉल स्ट्रीट जनरल के सर्वेक्षण के मुताबिक इस बहस को 47 फीसदी मतदाता देखेंगे. ओबामा चार साल राष्ट्रपति रह चुके हैं. रोमनी को उम्मीद है कि ओबामा के कामकाज से अंसतुष्ट लोग उन्हें वोट देंगे. घरेलू मुद्दों पर दोनों नेता अपनी राय दे चुके हैं. अब उन्हें अमेरिकी जनता को यह समझाना है कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर कौन ज्यादा प्रभावी साबित होगा.

चुनाव से ठीक 15 दिन पहले फ्लोरिडा के बोका रैटन में होने वाली तीसरी बहस पूरी तरह विदेश नीति पर केंद्रित होगी. बहस तीन टेलीविजन चैनलों पर प्रसारित होगी. कहा जा रहा है कि अनुभवहीनता और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर की गई गलत टिप्पणियों की वजह से रोमनी गड़बड़ा सकते हैं. बेनगाजी में अमेरिकी कूटनीतिक मिशन पर हुए हमले के मुद्दे पर रोमनी ओबामा को सही ढंग से नहीं घेर सके. वह ईरान, इस्राएल, सीरिया, चीन, अफगानिस्तान और रूस से बाहर ही नहीं निकल सके.

ओबामा और रोमनी के बीच तीसरी बहसतस्वीर: REUTERS

बहस के विषय

90 मिनट की बहस को छह हिस्सों में बांटा गया है. ये विषय हैं: विश्व में अमेरिका की भूमिका, अफगानिस्तान युद्ध, इस्राएल और ईरान, मध्यपूर्व में बदलाव, आतंकवाद और चीन की बढ़ती ताकत.

आलोचकों का कहना है कि रोमनी शांति के लिए कुर्बानी पर जोर दे रहे हैं. वह परमाणु कार्यक्रम को लेकर ईरान पर और सख्ती करने की वकालत करते हैं. डेढ़ साल से जारी सीरिया के संघर्ष के लिए भी वह ओबामा को जिम्मेदार ठहराते हैं. रोमनी के मुताबिक ओबामा 'पीछे से नेतृत्व' कर रहे हैं. वह आलोचना तो कर रहे हैं लेकिन कोई विकल्प नहीं सुझा रहे हैं.

अमेरिकी विदेश मंत्रालय के पूर्व नीति योजनाकार जॉन एल्टरमैन कहते हैं, "ओबामा के पास रिकॉर्ड है, रोमनी के पास नहीं है, इसीलिए वह बहस में छोटे मोटी चीजें ही उठा सकते हैं." रोमनी को लगता है कि विदेश नीति और राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर ओबामा की छवि को आघात पहुंचा कर उनकी राह आसान हो जाएगी.

मध्य पूर्व में अमेरिकी हितों को झटका और अफगानिस्तान में अमेरिका की अगुवाई वाली नाटो सेनाओं पर अफगान सैनिकों के सिलसिलेवार हमले, ओबामा के लिए यह बदलाव झटके भरे हैं. अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स की ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि ओबामा प्रशासन ईरान के साथ परमाणु कार्यक्रम के मुद्दे पर द्विपक्षीय बातचीत करने को तैयार हो गया है. इस खबर के आने के बाद रोमनी ओबामा को कमजोर और समझौता करने वाला नेता बता सकते हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति कार्यालय ने अखबार की रिपोर्ट का खंडन किया है. रोमनी की मदद कर रहे रिपब्लिकन सीनेटर रॉब पोर्टमैन कहते हैं, "अगर खबर सही है तो हैरानी की बात है कि ऐसा लग रहा है जैसे अमेरिका ऐसा दांव खेल रहा है जो हमारे सहयोगियों को नागवार गुजरेगा."

अब यह देखना होगा कि रिपब्लिकनों के इस तर्क का मतदाताओं पर कितना असर पडे़गा. वैसे ज्यादातर अमेरिकियों को बीते कुछ सालों से विदेश नीति के बजाए अपनी नौकरी और देश की अर्थव्यवस्था की ज्यादा फिक्र है. मैसाच्युसेट्स के गवर्नर और उद्योगपति रह चुके रोमनी ओबामा की कमजोरियों को गिनाने में अपनी कलई भी खोल रहे हैं. वह घरेलू और आर्थिक मुद्दों पर बहुत ज्यादा नहीं बोले हैं.

ओबामा राष्ट्रीय बीमा योजना, ओसामा बिन लादेन को मारने और इराक से सेना की वापसी को अपनी सफलता बता रहे हैं. वह रोमनी पर आरोप लगा रहे है कि वे नौकरियों को विदेश भेज देंगे.

ओएसजे/एमजे (एएफपी)

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