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अमेरिका की सेना संविधान और बाइडेन के साथ

१३ जनवरी २०२१

अमेरिकी सेना के शीर्ष अधिकारियों ने डॉनल्ड ट्रंप के समर्थकों की कैपिटॉल पर हिंसा की निंदा की है और इस बात की पुष्टि की है कि 20 जनवरी को नवनिर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडेन का शपथग्रहण होगा.

USA US-General Mark Milley
तस्वीर: Erin Scott/REUTERS

अमेरिका के शीर्ष जनरल मारिक मिली ने ज्वाइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ के साथ मिल कर एक बयान जारी किया है जिसमें कैपिटॉल पर हुई हिंसा की निंदा की गई है. इस बयान पर सेना की हर शाखा के प्रमुख का दस्तखत है. इसमें कहा गया है कि 6 जनवरी को हुई घटनाएं, "कानून के शासन के लिहाज से उचित नहीं थीं." बयान में यह भी कहा गया है, "अभिव्यक्ति की आजादी का आधिकार और सम्मेलन का अधिकार किसी को हिंसा, देशद्रोह और विद्रोह करने का अधिकार नहीं देता." सेना की तरफ से आए इस बयान में हरेक सैनिक को उनके मिशन की याद दिलाई गई है.

यह अमेरिका के लिए अप्रत्याशित घटना है. सेना के अधिकारियों ने इस समय पर यह संदेश देना जरूरी समझा है. उन्होंने याद दिलाया है, "संवैधानिक प्रक्रिया में बाधा डालने" की कोई भी कोशिश ना सिर्फ "हमारी परंपराओं, मूल्यों और शपथ के बल्कि कानून के भी खिलाफ होगी."

तस्वीर: Charlie Neibergall/AP Photo/picture alliance

सेना कानून के प्रशासन के साथ

सेना ने इस पत्र के जरिए राष्ट्रपति ट्रंप की खुले तौर पर मुखालफत की है जो 20 जनवरी को पद से हट जाएंगे. सेना के पत्र ने आने वाले डेमोक्रैट की जीत पर भी अपनी मुहर लगा दी है. सेना ने साफ कहा है, "20 जनवरी 2021 को संविधान के मुताबिक... नवनिर्वाचित राष्ट्रपति बाइडेन शपथ लेंगे और हमारे 46वें कमांडर इन चीफ बनेंगे."

सुरक्षा अधिकारियों ने कहा है कि नेशनल गार्ड वॉशिंगटन डीसी में शपथग्रहण समारोह की तैयारियां कर रहे है. आशंका जताई जा रही है कि डॉनल्ड ट्रंप के हथियारबंद समर्थक राजधानी या फिर देश में कुछ और हिंसक गतिविधियों को अंजाम दे सकते हैं. सेना सुरक्षा इंतजामों में हिस्सा नहीं लेगी. सेना खुफिया अधिकारियों के साथ इस बात पर जरूर चर्चा कर रही है कि शपथ ग्रहण में शामिल होने वाले जो सैनिक नेशनल गार्ड की तरफ से शामिल होंगे क्या उनकी पृष्ठभूमिक की जांच करना जरूरी है.

राष्ट्रपति और देश की सेना के सर्वोच्च कमांडर रहते रहते डॉनल्ड ट्रंप ने सेना पर खर्च बढ़ाया है. हालांकि सेना ने राष्ट्रपति के चुनाव में धोखधड़ी के अपुष्ट दावों से खुद को दूर ही रखा है.

तस्वीर: Carlos Barria/REUTERS

महाभियोग का प्रस्ताव

इस बार के अमेरिकी चुनाव और उसके बाद हुई घटनाओं ने पूरी दुनिया को हैरान किया है. डॉनल्ड ट्रंप ना सिर्फ चुनाव के नतीजों को खारिज कर रहे हैं बल्कि उनमें बिना सबूत धोखधड़ी के आरोप भी लगा रहे हैं. अमेरिका दुनिया भर में लोकतंत्र का सबसे बड़ा पैरोकार है और इस तरह की घटना को देखना ना सिर्फ देशवासियों बल्कि बाकी दुनिया के लोगों के लिए भी अप्रत्याशित है. खुद डॉनल्ड ट्रंप की पार्टी के ही सांसद और नेता ट्रंप के विरोध में आ गए हैं.

इस बीच संसद के निचले सदन में ट्रंप के खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव लाने के लिए औपचारिक अनुरोध कर दिया गया है. अगर यह प्रस्ताव आता है तो ट्रंप अमेरिका के पहले राष्ट्रपति होंगे जिनके खिलाफ दो बार महाभियोग का प्रस्ताव आएगा. ट्रंप के कार्यकाल में अब महज 7 दिन बचे हैं. ऐसे में इतनी जल्दी इस प्रक्रिया के पूरे होने के आसार कम ही हैं लेकिन डेमोक्रैटिक पार्टी इस प्रस्ताव को लाने पर अमादा है. माना जा रहा है कि यह प्रस्ताव ट्रंप को दोबारा चुनाव का उम्मीदवार बनने से रोकने के लिए है. कई रिपब्लिकन सांसद भी ट्रंप के खिलाफ इस प्रस्ताव का समर्थन कर रहे हैं.  

इससे पहले ट्रंप के खिलाफ एक महाभियोग का प्रस्ताव लाया जा चुका है. सीनेट में दो तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पारित नहीं होने के कारण ट्रंप को इस प्रस्ताव से राहत मिल गई. उस वक्त यूक्रेन के राष्ट्रपति को जो बाइडेन के खिलाफ जांच शुरू कराने के लिए ट्रंप के फोन करने की बात सामने आई थी. कथित टेलिफोन कॉल में इसके बदले में यूक्रेन को अमेरिकी सहायता का वादा किया गया था.

25वें संशोधन का इस्तेमाल

तस्वीर: Susan Walsh/AP/dpa/picture alliance

अमेरिकी संविधान के जानकार मान रहे हैं कि महाभियोग का प्रस्ताव ट्रंप को दोबारा उम्मीदवार बनने से रोकने के लिए लाया जा रहा है. बर्नार्ड कॉलेज के राजनीतिविज्ञानी शेरी बर्मन ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा है, "अगर सीनेट में उन पर दोष सिद्ध हो जाता है तो विचार यह होगा कि उन्हें दोबारा राष्ट्रपति बनने से रोका जाए. राष्ट्रपति ने देशद्रोह के लिए उकसाया है, हिंसा के लिए उकसाया है तो लोकतंत्र के लिए यह जरूरी है कि कानून का शासन उन्हें इसके लिए जिम्मेदार ठहराए."

हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स की स्पीकर नैन्सी पेलोसी ट्रंप के बयानों के आधार पर उनके खिलाफ महाभियोग का मामला बनाने की कोशिश कर रही हैं. इससे बचने के लिए उन्होंने उपराष्ट्रपति माइक पेंस के सामने 25वें संशोधन का इस्तेमाल करने का सुझाव दिया था. हालांकि उपराष्ट्रपति ने उनकी बात नहीं मानी और ट्रंप के साथ बने रहने की बात कही. 25वां संशोधन विशेष परिस्थिति से जुड़ा है. इसके तहत उपराष्ट्रपति अगर किसी वैध आधार पर राष्ट्रपति को उनके पद के लिए अयोग्य घोषित कर दे तो उस स्थिति में उपराष्ट्रपति खुद कार्यवाहक राष्ट्रपति बन जाते हैं और सारी शक्तियां उनके पास आ जाती हैं.

अमेरिका में कोई शख्स सिर्फ दो बार के लिए राष्ट्रपति बन सकता है. हालांकि यह जरूरी नहीं है कि यह दोनों कार्यकाल लगातार हों. बीते कुछ दशकों से लगभग सभी राष्ट्रपतियों ने दो कार्यकाल पूरे किए हैं. जॉर्ज एच डब्ल्यू बुश के बाद डॉनल्ड ट्रंप पहले राष्ट्रपति हैं जिन्हें एक कार्यकाल के बाद ही पद छोड़ना पड़ा है. जॉर्ज बुश 1989 से 1993 के बीच अमेरिका के राष्ट्रपति रहे थे.

रिपोर्ट: निखिल रंजन (एपी, एएफपी, डीपीए)

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