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अमेरिका के चार नए दोस्त

१३ दिसम्बर २०१२

अमेरिका के दो प्रमुख थिंक टैंकों का कहना है कि मौजूदा व्यवस्था बनाए रखने के लिए अमेरिका को चार देशों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए. उन्होंने ब्राजील, भारत, इंडोनेशिया और तुर्की को ग्लोबल स्विंग स्टेट कहा है.

तस्वीर: Fotolia/mucft

स्विंग स्टेट की शब्दावली अमेरिका के राष्ट्रपति चुनावों से प्रसिद्ध है. ये अमेरिका के वे प्रांत हैं जो चुनावों में रिपब्लिकन और डेमोक्रैटिक पार्टियों के बीच डोलते हैं और किसी को भी जितवा देते हैं. इसलिए मतदाताओं को लुभाने के लिए गहन चुनाव प्रचार करना फायदेमंद होता है. वाशिंगटन के दो थिंक टैंक के विशेषज्ञों ने इस सिद्धांत को अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी लागू करने की मांग की है. जर्मन मार्शल फंड के डैनियल क्लीमैन और सेंटर फॉर ए न्यू अमेरिकन सिक्योरिटी के रिचर्ड फोंटेन का कहना है कि अमेरिका को अंतरराष्ट्रीय विश्व व्यवस्था को बनाए रखने के लिए ब्राजील, भारत, इंडोनेशिया और तुर्की को लुभाने की कोशिश करनी चाहिए.

यही चार देश क्यों? वे विशेषज्ञों की शर्तों को पूरा करते हैं. वे लोकतांत्रिक हैं, बड़ी और तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था हैं, भौगोलिक स्थिति के कारण इलाके के केंद्रीय किरदार हैं या कई इलाकों के बीच पुल का काम करते हैं. इतना ही नहीं, इन देशों को संयुक्त राष्ट्र, विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष वाली लोकतांत्रिक विश्व व्यवस्था के समर्थन के लिए जीता जा सकता है.

तस्वीर: Getty Images

रिपोर्ट के लेखकों का कहना है कि इन देशों के साथ अमेरिका का सहयोग व्यापार, वित्त, जहाजरानी, परमाणु निरस्त्रीकरण और मानवाधिकार जैसे पांच इलाकों में हो सकता है. क्लीमैन और फोंटेन ने इन्हें शांति, समृद्धि और आजादी वाली वैश्विक व्यवस्था का पाया बताया है. उनका कहना है कि चारों देश अलग अलग इलाकों में योगदान दे सकते हैं क्योंकि उनकी क्षमताएं और कमजोरियां अलग अलग हैं. क्लीमैन का कहना है कि इंडोनेशिया मानवाधिकारों और लोकतंत्र को बढ़ावा देने में योगदान दे सकता है जबकि भारत समुद्री कानून के मामले में अच्छा साथी हो सकता है.

अमेरिकी विशेषज्ञों के अनुसार ब्राजील भले ही मुक्त व्यापार और सीरिया के मामले में विरोध करता नजर आया है लेकिन विश्व बैंक और मुद्रा कोष को धन देने के अलावा समुद्री सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. चार देशों में तुर्की को शामिल किया जाना विवादास्पद है.

तुर्की पर विवाद

तस्वीर: dapd

अनुदारवादी अमेरिकी इंटरप्राइज संस्थान के माइकल रूबीन का कहना है कि तुर्की ईरान के खिलाफ प्रतिबंधों को तोड़ रहा है. ईरान से तेल और गैस की खरीद के लिए डॉलर और यूरो पर प्रतिबंध के बाद वह सोने में भुगतान कर रहा है. लेकिन क्लीमैन और फोंटेन अपनी रिपोर्ट में तुर्की को इस ग्रुप में शामिल किए जाने की वकालत करते हैं. "यह वैश्विक व्यवस्था में यूरोप का महत्वपूर्ण योगदान होगा." इसके विपरीत रूबीन तुर्की को लोकतांत्रिक मानने से इनकार करते हैं. वे बताते हैं कि एक मंत्री की आलोचना के कारण उन्हें अदालत में तलब किया गया था.

रूबीन का कहना है कि जो तुर्की को लोकतंत्र कहता है उसे रूस को भी लोकतंत्र कहना होगा. लोकतांत्रिक नहीं होने के कारण रूस को इस दल में शामिल नहीं किया गया है. रूबीन की एक आलोचना यह भी है कि इन देशों का महत्व मौजूदा स्थिति है, जो तेजी से बदल सकता है. दक्षिण कोरिया, मलेशिया और केन्या को भी इन देशों में शामिल किया जा सकता था.

पुरानी बोतल में नई शराब

माइकल रूबीन ग्लोबल स्विंग स्टेट की शब्दावली में कोई नयापन नहीं देखते. वे 1996 में रोबर्ट चेज, एमिली हिल और पॉल कैनेडी के लेख की ओर ध्यान दिलाते हैं, जिसका टाइटल था, केंद्रीय देश और अमेरिकी रणनीति. उस पेपर का सार यह था कि अमेरिका को क्षेत्रीय और वैश्विक स्थिरता के लिए कुछ देशों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए. नौ देशों की सूची में भारत, ब्राजील, इंडोनेशिया और तुर्की शामिल थे.

क्लीमैन और फोंटेन की रिपोर्ट की कुछ सलाहें भी नई नहीं हैं, उनमें कुछ को तो लागू किया जा चुका है - मसलन इन देशों के लोकतांत्रिक संस्थानों का समर्थन. अमेरिका लोकतांत्रिक संरचनाओं के अध्ययन के लिए इन देशों के अध्येताओं को स्कॉलरशिप देता रहा है. लेकिन रूबीन का कहना है अमेरिका को आदर्श बताने का उल्टा नतीजा भी हो सकता है. वे कहते हैं, "सर्वोत्तम मिसाल हमेशा अमेरिका मिसाल नहीं है."

चीन का विकल्प

डैनियल क्लीमैन अपनी रिपोर्ट को चीन के प्रभाव को कम करने पर लक्षित नहीं मानते. वे इसे वैश्विक व्यवस्था को मजबूत बनाने की वकालत बताते हैं, जो एक ओर चीन के लिए भी आदर्श हो तो दूसरी ओर बुरी परिस्थितियों में चीन के दबाव का सामना कर सके.

माइकल रूबीन इस पर भी संदेह व्यक्त करते हैं कि क्या इस रिपोर्ट में शामिल देश वैश्विक व्यवस्था की मजबूती के लिए अमेरिका के साथ सहयोग करने के लिए तैयार हैं. वे रिपोर्ट को दिलचस्प बौद्धिक प्रयास बताते हैं लेकिन उन्हें संदेह है कि यह कामयाब होगा और इच्छित नतीजा देगा.

क्लीमैन भी भारत, ब्राजील, इंडोनेशिया और तुर्की पर पूरी तरह निर्भर नहीं होना चाहते. नई विदेश नीति की सफलता के लिए वे यूरोप के साथ सहयोग को जरूरी मानते हैं. "यूरोप वैश्विक व्यवस्था का केंद्रीय किला बना रहेगा, क्योंकि यूरोप पांचों अहम इलाकों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है."

रिपोर्ट: क्रिस्टीना बैर्गमन/एमजे

संपादन: मानसी गोपालकृष्णन

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