अमेरिका के ताइवान दौरे की घोषणा से क्यों चिढ़ा चीन
५ अगस्त २०२०
40 साल बाद ऐसा पहली बार होगा जब अमेरिका का कोई उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल ताइवान का दौरा करेगा. सन 1979 से ताइवान पर चीन के साथ एक सी समझ रखने वाले अमेरिका की इस घोषणा से चीन नाराज है.
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विश्व की दो सबसे बड़ी आर्थिक शक्तियों अमेरिका और चीन के आपसी संबंधों का ऐतिहासिक रूप से सबसे बुरा दौर चल रहा है. ऐसे में अमेरिका की ओर से अपना सबसे वरिष्ठ प्रतिनिधिमंडल ताइवान भेजने की घोषणा ने आग में घी डालने का काम किया है. चीन ने इस पर नाराजगी जताई है और इसे क्षेत्र में "शांति और स्थायित्व" के लिए खतरा बताया है.
अमेरिकी दल का नेतृत्व स्वास्थ्य मंत्री एलेक्स एजार करेंगे. ताइवान स्थित अमेरिकन इंस्टीट्यूट ने बताया है, "पिछले छह सालों में किसी कैबिनेट सदस्य की यह पहली यात्रा होगी और सन 1979 के बाद से इतने उच्च स्तर के किसी अमेरिकी कैबिनेट मंत्री की भी." अमेरिकन इंस्टीट्यूट को ताइवान में अमेरिका का ‘डी फैक्टो' दूतावास माना जाता है. इंस्टीट्यूट ने जानकारी दी कि अभी दौरे की तारीख नहीं बताई गई है.
अमेरिका तालिबान को हथियारों की सप्लाई करने वाला सबसे प्रमुख निर्यातक रहा है. लेकिन ऐतिहासिक रूप से उसने ताइवान के साथ कोई आधिकारिक संबंध स्थापित करने में सावधानी बरती है. चीन मानता है कि ताइवान उसकी धरती है और एक ना एक दिन वह उसे अपनी मुख्यभूमि में मिला लेगा. विश्व का कोई भी देश जो ताइवान को मान्यता देता है या उससे आधिकारिक तौर पर संपर्क तक रखता है, वह चीन की आंखों में खटकता रहता है. पिछले सालों में बहुत से देशों ने चीन के दबाव में ताइवान के साथ रिश्ते तोड़ दिए हैं.
चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने अमेरिकी मंत्री के प्रस्तावित दौरे को रद्द करने की मांग करते हुए कहा, "चीन को इस पर कड़ी आपत्ति है कि अमेरिका और ताइवान आपस में आधिकारिक तौर पर आदान प्रदान करें.” वांग वेनबिन ने कहा, "हम अमेरिका से अपील करते हैं कि वह एक-चीन सिद्धांत का पालन करे ताकि चीन-अमेरिका संबंधों को गंभीर खतरे में डालने से बचा जा सके और ताइवान खाड़ी के पूरे इलाके में शांति और स्थिरता भी बनी रहे.”
ताइवान का कहना है कि स्वास्थ्य मंत्री एजार राष्ट्रपति साईइंग-वेन से मुलाकात करेंगे. खुद साई ने ट्वीट किया, "यह यात्रा ताइवान-अमेरिका के बीच लंबी दोस्ती और साझा मूल्यों पर आधारित मजबूत साझेदारी का एक और सबूत है."
अमेरिका में राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के सत्ता में आने के समय से ही ताइवान के साथ उसके रिश्तों में गर्मी आई है. चीन के साथ जैसे जैसे अमेरिका ने व्यापार से लेकर कोरोना वायरस तक के तमाम मुद्दों पर तकरार का रुख अपनाया है, वैसे वैसे लोकतांत्रिक ताइवान को अपने करीब लाने की कोशिश की है.
अमेरिका मानता है कि कोरोना संकट से निपटने में ताइवान ने जबर्दस्त प्रदर्शन किया है. 2016 में राष्ट्रपति चुने जाने के बाद ट्रंप को फोन कर बधाई देने वालों में ताइवान की नेता साई भी थीं. यह एक ऐतिहासिक फोन कॉल थी.
अमेरिका ने ताइवान को खास फाइटर जेट जैसे कई हथियार बेचे हैं और 2018 में उसके साथ एक द्विपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किया, जिससे दोनों के संबंध और गहरे हुए जिससे भविष्य में ऐसी उच्च स्तरीय मुलाकातों के लिए रास्ता तैयार हो सका.
दुनिया के कई हिस्से खुद को एक अलग देश मानते हैं, उनकी अपनी सरकार, संसद और अर्थव्यवस्था है. कइयों की अपनी मुद्रा भी है. फिर भी उन्हें पूरी दुनिया में मान्यता नहीं है और न ही वे यूएन के सदस्य हैं. ऐसे ही देशों पर एक नजर.
तस्वीर: DW
फलस्तीन
फलस्तीन को संयुक्त राष्ट्र के 136 सदस्य देशों और वेटिकन की मान्यता हासिल है और फलस्तीनी इलाकों में फलस्तीनी विधायी परिषद की सरकार चलती है. लेकिन लगातार खिंच रहे इस्राएल-फलस्तीन विवाद के कारण एक संपूर्ण राष्ट्र के निर्माण का फलस्तीनियों का सपना अधूरा है.
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कोसोवो
कोसोवो ने 2008 में एकतरफा तौर पर आजादी की घोषणा की, लेकिन सर्बिया आज भी उसे अपना हिस्सा समझता है. वैसे कोसोवो को संयुक्त राष्ट्र के 111 सदस्य देश एक अलग देश के तौर पर मान्यता दे चुके हैं. साथ ही वह विश्व बैंक और आईएमएफ जैसी विश्व संस्थाओं का सदस्य है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
सहारा रिपब्लिक
पश्चिमी सहारा के इस इलाके ने 1976 में सहारावी अरब डेमोक्रेटिक रिपब्लिक (एसएडीआर) नाम से एक आजाद देश की घोषणा की. उसे संयुक्त राष्ट्र के 84 देशों की मान्यता हासिल है. लेकिन मोरक्को पश्चिमी सहारा को अपना क्षेत्र मानता है. एसआएडीआर यूएन का तो नहीं, लेकिन अफ्रीकी संघ का सदस्य जरूर है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/M. Messara
ताइवान
चीन ताइवान को अपना एक अलग हुआ हिस्सा मानता है जिसे एक दिन चाहे जैसे हो, चीन में ही मिल जाना है. चीन के बढ़ते प्रभाव के कारण दुनिया के मुट्ठी भर देशों ने ही ताइवन के साथ राजनयिक संबंध रखे हैं. हालांकि अमेरिका ताइवान का अहम सहयोगी है और उसकी सुरक्षा को लेकर बराबर आश्वस्त करता रहा है.
तस्वीर: Taiwan President Office
दक्षिणी ओसेतिया
दक्षिणी ओसेतिया ने आजादी की घोषणा 1991 में सोवियत संघ के विघटन के समय ही कर दी थी. लेकिन उसे आंशिक रूप से मान्यता 2008 में उस वक्त मिली जब रूस और जॉर्जिया के बीच युद्ध हुआ. रूस के अलावा निकारागुआ और वेनेजुएला जैसे संयुक्त राष्ट्र के सदस्य भी उसे मान्यता दे चुके हैं.
तस्वीर: DW
अबखाजिया
2008 के युद्ध के बाद रूस ने जॉर्जिया के अबखाजिया इलाके को भी एक देश के तौर पर मान्यता दे दी, जिसे जॉर्जिया ने अखबाजिया पर रूस का "कब्जा" बताया. अबखाजिया को संयुक्त राष्ट्र के छह सदस्य देशों की मान्यता हासिल है जबकि कुछ गैर मान्यता प्राप्त इलाके भी उसे एक देश मानते हैं.
तस्वीर: Filip Warwick
तुर्क साइप्रस
1983 में आजादी की घोषणा करने वाले तुर्क साइप्रस को सिर्फ तुर्की ने एक देश के तौर पर मान्यता दी है. हालांकि इस्लामी सहयोग संगठन और आर्थिक सहयोग संगठन ने साइप्रस के उत्तरी हिस्से को पर्यवेक्षक का दर्जा दिया है. सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 541 में उत्तरी साइप्रस की आजादी को अमान्य करार दे रखा है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/I. Hatzistavrou
सोमालीलैंड
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सोमालीलैंड को सोमालिया का एक स्वायत्त इलाका माना जाता है. लेकिन बाकी सोमालिया से शांत और समृद्ध समझे जाने वाले इस इलाके की चाहत एक देश बनने की है. उसने 1991 में अपनी आजादी का एलान किया, लेकिन उसे मान्यता नहीं मिली.
अर्टसाख रिपब्लिक
सोवियत संघ के विघटन के समय जब अजरबाइजान ने आजादी की घोषणा की, तभी अर्टसाख ने भी आजादी का एलान किया. अजरबाइजान इसे अपना हिस्सा मानता है. यूएन के किसी सदस्य देश ने इसे मान्यता नहीं दी है.
तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/C. Arce
ट्रांसनिस्त्रिया
ट्रांसनिस्त्रिया का आधिकारिक नाम प्रिदिनेस्त्रोवियन मोल्दोवियन रिपब्लिक है, जिसने 1990 में मोल्दोवा से अलग होने की घोषणा की थी. लेकिन इसे न तो मोल्डोवा ने आज तक माना है और न ही दुनिया के किसी और देश ने मान्यता दी है.