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अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में इलेक्टोरल कॉलेज होता क्या है?

२७ अक्टूबर २०२०

अमेरिका के चुनाव तंत्र में शायद सबसे महत्वपूर्ण है इलेक्टोरल कॉलेज जो वास्तव में अगले राष्ट्रपति का चुनाव करने के लिए वोट डालता है. चुनाव के वक्त मुद्दों की गूंज ही ज्यादा होती है लेकिन इलेक्टोरेल कॉलेज आखिर क्या बला है?

USA Pennsylvania | Electoral College in Harrisburg
तस्वीर: Bastiaan Slabbers/Zuma/picture-alliance

अमेरिका के संविधान में इसे 1787 में शामिल किया गया. इस संस्था में फिलहाल 538 इलेक्टर या प्रतिनिधि होते हैं जिनका चुनाव होता है. हरेक राज्य से उतने ही प्रतिनिधि होते हैं जितने कि उस राज्य से संसद की दोनों सदनों में सांसद. सबसे कम आबादी वाले वायोमिंग से 3 इलेक्टर हैं जबकि सबसे ज्यादा आबादी वाले कैलिफोर्निया से 55. राष्ट्रपति का चुनाव जीतने के लिए कम से कम 270 इलेक्टरों के वोट की जरूरत होती है.

मिशिगन यूनिवर्सिटी में राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर केन कोलमन का कहना है, "जब आप अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में वोट डालते हैं, तो वास्तव में आप इलेक्टर के लिए उम्मीदवारों की सूची को वोट देते हैं. जब आप रिपब्लिकन या डेमोक्रैटिक पार्टी के लिए वोट डालते हैं तो यह वोट दरअसल उस पार्टी के उम्मीदवारों की एक सूची को जाता है, जो या तो डेमोक्रैट या फिर रिपब्लिकन होते हैं. हर राज्य में ये इलेक्टर इलेक्टोरल कॉलेज का एक छोटा संस्करण होते हैं, जो सीधे चुनाव के बाद राष्ट्रपति के चुनाव के लिए वोट डालते हैं."

बीच का रास्ता

इलेक्टोरल कॉलेज अमेरिकी संविधान को बनाने वालों के लिए बीच का रास्ता था. एक पक्ष की दलील थी कि संसद को राष्ट्रपति का चुनाव करना चाहिए, तो दूसरी तरफ वो लोग थे जिनका कहना था का कि ऐसा विकेंद्रीकृत सिस्टम बने, जो सत्ता को महज कुछ लोगों की मुट्ठी में जाने से रोक सके.

इलेक्टोरल कॉलेज वास्तव में सीधे मिलने वाले वोट यानी एक आदमी एक वोट और देश के राष्ट्रपति के चुनाव के बीच एक फिल्टर का काम करता है. जब 48 राज्यों में निर्वाचन मंडल का चुनाव 'विनर टेक्स ऑल' यानि ईकाई नियम के आधार पर होता है, तो ऐसे में इस बात की आशंका रहती है कि पार्टियां स्विंग स्टेट या कांटे की टक्कर वाले राज्यों में जीत हासिल कर निर्वाचन मंडल में 270  मत हासिल करने में कामयाब हो जाएंगी. इससे सीधे वोट की अहमियत कम हो जाती है.

सिर्फ पॉपुलर वोट से जीत नहीं

चुनाव में जीत सिर्फ पॉपुलर वोट से नहीं होती और यह इस सदी में दो बार हो चुका है. पॉपुलर वोट में पिछड़ने के बावजूद रिपब्लिकन उम्मीदवार जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने साल 2000 में और डॉनल्ड ट्रंप ने 2016 में राष्ट्रपति चुनाव जीता. डॉनल्ड ट्रंप को हिलेरी क्लिंटन की तुलना में करीब 30 लाख कम वोट मिले थे.

इलेक्टोरल कॉलेज के तरफदार कहते हैं कि यह उम्मीदवारों के देश की ज्यादा यात्रा करने पर मजबूर करता है क्योंकि उनका काम सिर्फ ज्यादा आबादी वाले राज्यों से नहीं चल सकता. कोलमैन कहते हैं, "दलील यह है कि अगर हम पॉपुलर वोट को देखें तो उम्मीदवारों को अपना सारा समय बड़ी आबादी वाले केंद्रों में ही बिताना होगा. वो केवल बड़े शहरों में जाएंगे और देश के ग्रामीण क्षेत्रों की अनदेखी करेंगे. यह उसकी तुलना में थोड़ा जटिल है. वो वैसे भी देश के ग्रामीण इलाकों की पहले ही अनदेखी करते हैं - यह इस बात पर निर्भर है कि क्या आप स्विंग स्टेट के ग्रामीण इलाके में गए. तब वो आप पर ध्यान देते हैं."

वॉशिंगटन से स्वतंत्रता

इलेक्टोरल कॉलेज के लिए प्रतिनिधियों के चुनाव का तरीका कुछ राज्यों में अलग है. ज्यादातर राज्यों में जिस पार्टी को ज्यादा वोट मिलता है, उसके सारे प्रतिनिधि चुन लिए जाते हैं. जबकि नेब्रास्का और मेन में पार्टियों को मिले वोट के अनुपात में प्रतिनिधियों को चुना जाता है. यानी वोट के अनुपात में दोनों पार्टी के प्रतिनिधि चुने जाते हैं. अकसर चुनाव के नतीजों में इन राज्यों की भूमिका अहम होती है.

इलेक्टरों को उनके गृह राज्य में वोट के आधार पर नियुक्त किया जाता है. यह काम वोटिंग के बाद दिसंबर महीने के दूसरे बुधवार के बाद पहले सोमवार को होता है. इस साल वे 14 दिसंबर को अपना वोट डालेंगे. इसके बाद राज्यों के इलेक्टर अपने वोट संसद को भेजते हैं. जनवरी के पहले सप्ताह में सांसदों का संयुक्त सत्र बुलाया जाता है. इसी सत्र में विजेता के नाम की घोषणा मौजूदा उपराष्ट्रपति बुलंद आवाज में करते हैं. इस वक्त वो संसद के ऊपरी सदन सीनेट के सभापति के रूप में अपनी भूमिका का निर्वहन करते हैं. 6 जनवरी 2021 को यह काम माइक पेंस करेंगे. जाहिर है कि पूरी प्रक्रिया में वॉशिंगटन की भूमिका महज औपचारिक होती है. सारा काम राज्यों में होता है.

डेमोक्रैटिक पार्टी महिला वोटों पर भरोसा कर रही है जो रिपब्लिकन पार्टी की नीतियों के विरोध में हैं. तस्वीर: Michael McCoy/Reuters

भारी भरकम वोटिंग सिस्टम

आलोचकों का कहना है कि इलेक्टोरल कॉलेज लाखों लोगों का हक छीन कर कम आबादी वाले राज्यों को असंगत तरीके से ज्यादा वोट का मूल्य देता है. अमेरिका के संघीय चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक वायोमिंग में इलेक्टोरल कॉलेज के वोट का मतलब है 1,90,000 जबकि कैलिफोर्निया राज्य का वोट 7,20,000 लोगों के बराबर होता है.

केन कोलमेन कहते हैं, "आधे से ज्यादा राज्यों का इलेक्टोरल कॉलेज के कारण पॉपुलर वोट से जितना होता उससे ज्यादा प्रभाव है." हालांकि इसके साथ ही कोलमैन ने यह भी कहा, "कम आबादी वाले इलाकों को ज्यादा राजनीतिक ताकत देने के लिहाज से इलेक्टोरल कॉलेज की तुलना में सीनेट ज्यादा बड़ी समस्या है. अमेरिकी सीनेट नाटकीय रूप से एक असंगत संस्था है, मतलब छोटे राज्यों को सीनेट में बड़े राज्यों की तुलना में बहुत ज्यादा प्रतिनिधित्व मिला हुआ है."

2016 में डॉनल्ड ट्रंप ने "स्विंग" राज्य विस्कॉन्सिन, मिशिगन, पेनसिल्वेनिया और फ्लोरिडा में बहुत मामूली अंतर से जीत हासिल की. यूनिट रूल ने उन्हें उनके सारे 75 इलेक्टरों को जीत दिला दी. इस साल उनके पक्के समर्थक यानी कॉलेज की पढ़ाई नहीं करने वाले गोरे लोगों का प्रतिनिधित्व कांटे की टक्कर वाले राज्यों में ज्यादा है. ये राज्य हैं एरिजोना, जॉर्जिया, फ्लोरिडा, मिशिगन, मिनेसोटा, नॉर्थ कैरोलाइना, पेनसिल्वेनिया और विस्कॉन्सिन.

ट्रंप कांटे की टक्कर वाले एरिजोना राज्यों में बढ़त पा सकते हैं.तस्वीर: Carlos Barria/Reuters

लंबे समय में इलेक्टोरल कॉलेज का नक्शा कैसा होगा, इस बारे में पूछने पर कोलमैन कहते हैं, "देश का भौगोलिक रूप से ज्यादा राजनीतिक ध्रुवीकरण हो रहा है, मैं इसमें जल्दी ही कोई बदलाव नहीं देख रहा हूं. मेरे ख्याल में अमेरिका के सामने बड़ा सवाल है कि रिपब्लिकन पार्टी ट्रंप के बाद खुद को कैसे बदलेगी? मेरे ख्याल में ज्यादा बड़ा सवाल अमेरिका के पार्टी सिस्टम को लेकर है."

कोलमैन का कहना है कि ट्रंप पार्टी को "अलगाववाद, संरक्षणवाद और अपनी संस्कृति की दिशा" में ले गए हैं. कोलमैन के मुताबिक,"अब बड़ा सवाल है कि क्या पार्टी वहीं रहेगी जहां हैं या फिर वो उस दिशा में वापस लौटेगी जहां वह पांच या छह साल पहले थी, क्योंकि सबकुछ इसी पर निर्भर है."

हालांकि कोलमैन का यह भी कहना है, "अगर रिपब्लिकन वहीं रहते हैं, जहां वे हैं या फिर वो ट्रंपवादी पार्टी स्थायी रूप से या फिर कम से कम एक पीढ़ी के लिए बन जाते हैं, तो उनके लिए केंद्र में जीतने के आसार बहुत कम हो जाएंगे."

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