अमेरिका और पाकिस्तान दोनों पक्षों की अपनी-अपनी उम्मीदें हैं. पारस्परिक संबंधों का भविष्य इस पर निर्भर करेगा कि उम्मीदों पर कौन कितना खरा उतरता है. इस्तामाबाद की अपेक्षाएं अमेरिका से ज्यादा हैं.
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पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान की व्हाइट हाऊस में अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप से मुलाकात हुई और समाप्त हो गई. आश्चर्य नहीं कि खान की यात्रा का सबसे अधिक सुर्खियों वाला क्षण तब आया जब ट्रंप ने अपनी छवि के अनुरूप टिप्पणी की. मीडिया से बातचीत में ट्रंप ने कहा कि वह कश्मीर को लेकर भारत-पाकिस्तान विवाद में मध्यस्थता करने को तैयार हैं. यह एक ऐसी टिप्पणी थी जो निश्चित रूप से अमेरिका के प्रमुख सहयोगी भारत को पसंद नहीं आयी क्योंकि वह इस मुद्दे पर किसी तरह की बाहरी मध्यस्थता नहीं चाहता है.
ट्रंप-खान की बैठक कई घंटों तक चली. यह न सिर्फ अकेले में हुई सौहार्दपूर्ण बैठक रही, बल्कि अन्य उच्च-स्तरीय आदान-प्रदान भी हुए. इसमें ट्रंप प्रशासन के कई अधिकारियों के साथ दोपहर का भोजन भी शामिल था. नतीजतन, पिछले महीनों में काफी कमजोर हो गया रिश्ता फिर से जीवंत हो गया. अब इसे और ऊर्जा देने का अवसर मिला है. ट्रंप-खान बैठक के बाद पांच सवाल रिश्ते के गति को निर्धारित करने में मदद करेंगे.
क्या खान की यात्रा के दौरान साख बढ़ेगी?
अमेरिका-पाकिस्तान संबंधों के लिए एक स्थायी चुनौती विश्वास की कमी है. हालांकि दोनों देश के बीच शीत युद्ध के दौरान मजबूत संबंध रहे हैं लेकिन हाल के वर्षों में संबंधों में तनाव पैदा हुए हैं, जिससे विश्वास में कमी आयी है.
परमाणु हथियारों के विकास पर सच बोलने से पाकिस्तान के इंकार और आतंकवादियों के साथ संबंधों से लेकर पाकिस्तान में अमेरिका की गुप्त गतिविधियों तक कई पुराने विवाद हैं. खान की यात्रा से पैदा हुई गति को भुनाने के लिए काफी सारी उच्च स्तरीय दौरों और वार्ता की जरूरत होगी. हालांकि रणनीतिक वार्ता के बदले लेनदेन की कूटनीति के पक्षधर ट्रम्प प्रशासन के लिए यह बड़ी चुनौती है.
क्या इस्लामाबाद अफगानिस्तान में शांति प्रक्रिया को समर्थन देगा?
इमरान खान के साथ ट्रंप की बैठक के दौरान अफगानिस्तान निस्संदेह एक प्रमुख मुद्दा था. तालिबान के साथ हो रही शांति वार्ता में सहायता के लिए इस्लामाबाद का समर्थन पाना वाशिंगटन का लिए एक प्रमुख उद्देश्य है. क्या पाकिस्तान तालिबान को युद्ध विराम करने और अफगान सरकार के साथ सीधी बातचीत के लिए राजी कराने में सफल होगा? इन मांगों को तालिबान अब तक स्पष्ट रूप से अस्वीकार करता रहा है. यदि इस्लामाबाद का प्रयास कामयाब रहता है, तो अमेरिका-पाकिस्तान संबंधों को मजबूती मिलेगी. व्यापार और निवेश जैसे मामलों को लेकर संबंध और मजबूत हो सकते हैं.
हालांकि, यह पाकिस्तान से महात्वाकांक्षी मांग होगी. ये सच है कि इस्लामाबाद तालिबानी नेताओं को सुरक्षित पनाह देने की वजह से तालिबान का लाभ उठाता रहा है. फिर भी, विद्रोही मजबूत स्थिति से बातचीत कर रहे हैं, वे बड़े हमले कर रहे हैं और उनका पहले से कहीं बड़े इलाके पर कब्जा है. फिर उन्हें पाकिस्तानी संरक्षकों सहित किसी की भी बात सुनने की क्या पड़ी है.
क्या वाशिंगटन पाकिस्तान को कुछ आर्थिक प्रलोभन देगा?
अगर अफगानिस्तान शांति वार्ता और इस्लामाबाद के आतंकवाद विरोधी प्रयासों में पर्याप्त प्रगति होती है तो ट्रंप प्रशासन ने पाकिस्तान के साथ अधिक व्यापार और आर्थिक सहयोग की संभावना जताई है. पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था के संकट में होने के कारण कोई भी नया अमेरिकी आर्थिक और व्यापारिक समर्थन देश के लिए एक बड़ा वरदान साबित होगा.
पाकिस्तान अभी से ही व्यापार बढ़ाने के लिए उत्सुक है. अमेरिका पहुंचे बड़े प्रतिनिधिमंडल में खान के वाणिज्य सलाहकार भी शामिल हैं. खान के कार्यक्रम में शीर्ष निगमों के साथ बैठकें भी शामिल थीं. अमेरिका द्वारा व्यापार और निवेश फ्रेमवर्क समझौते (टीआईएफए) के तहत बैठकों की संख्या बढ़ाने की मांग जैसे मामूली पहल भी सहयोह बढ़ाने में सहायक होंगे और अफगानिस्तान में अधिक पाकिस्तानी सहयोग को प्रोत्साहित कर सकते है.
कितनी मजबूत है चीन और पाकिस्तान की दोस्ती
पाकिस्तान और चीन अपने रिश्तों को समंदर से गहरे, हिमालय से ऊंचे, शहद से मीठे और स्टील से भी अधिक मजबूत बताते हैं. जानते हैं दोनों देशों के रिश्तों की कहानी.
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राजनयिक संबंध
साल 1951 में चीन और पाकिस्तान ने एक दूसरे के साथ राजनयिक संबंध कायम किए. तब से लेकर अब तक दोनों देशों के बीच घनिष्ठ दोस्ती और रणनीतिक संबंध बने हुए हैं. पाकिस्तान, पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना को मान्यता देने वाले पहले कुछ देशों में से एक रहा. 1960 और 1970 के दशक में जब बीजिंग का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलगाव चल रहा था, उस वक्त भी पाकिस्तान चीन का स्थिर सहयोगी बना रहा.
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ऐतिहासिक घटनाएं
ऐतिहासिक रूप से कुछ घटनाओं ने चीन और पाकिस्तान के संबंधों को मजबूत बनाया है. साल 1959 के नक्शों में पाकिस्तान का कुछ हिस्सा चीन अपनी सीमाओं में दिखाता था. इसके बाद दोनों देशों के बीच मार्च 1963 में सीमा समझौता हुआ.
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पाकिस्तान बना मध्यस्थ
1965 में भारत-पाकिस्तान विवाद में भी चीन ने पाकिस्तान का साथ दिया. 1960 के दशक में जब दुनिया में अमेरिका और चीन के संबंधों को सामान्य बनाने की कोशिश चल रही थी तब अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन के सलाहकार हेनरी किसिंजर ने 1971 में पाकिस्तान होते हुए चीन की यात्रा की.
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सांस्कृतिक समझौता
साल 1965 में पाकिस्तान और चीन के बीच सांस्कृतिक समझौता हुआ. इस समझौते ने दोनों देशों के बीच गहरी साझेदारी की नींव रखी. इसी दौर में पाकिस्तानी टीवी चैनलों में चीन के, तो वहीं चीन में पाकिस्तान के नाटक और फिल्में प्रसारित होने लगीं. पाकिस्तान की एयरलाइन दुनिया की पहली ऐसी एयरलाइन थी जिसकी फ्लाइट सीधे बीजिंग तक जाती थी.
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बांग्लादेश को मान्यता
पाकिस्तान से अलग होने के बाद बांग्लादेश ने जब संयुक्त राष्ट्र की सदस्यता के लिए आवेदन दिया तो चीन ने उस प्रस्ताव को वीटो कर दिया. स्वतंत्र देश के रूप में बांग्लादेश को मान्यता देने वाले आखिरी कुछ देशों में चीन भी था. 31 अगस्त 1975 तक चीन ऐसा करने से इनकार करता रहा.
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रणनीतिक साथ
चीन ने हमेशा पाकिस्तान के विकास और परिस्थितियों के आधार पर आतंकवाद विरोधी सुरक्षा रणनीति के कार्यान्वयन का दृढ़ता से समर्थन किया है. वहीं पाकिस्तान, ताइवान, तिब्बत, शिजियांग और अन्य मुद्दों पर चीन का मजबूती से समर्थन करता है.
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मजबूत आर्थिक रिश्ते
चीन, पाकिस्तान के लिए दूसरा सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार है. वहीं पाकिस्तान, चीन के लिए दक्षिण एशिया में निवेश का सबसे बड़ा ठिकाना है. दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय कारोबार तकरीबन 18 अरब डॉलर तक पहुंच गया है. साल 2000 से 2015 की अवधि के दौरान दोनों देशों के बीच ट्रेड वॉल्यूम 5.7 अरब डॉलर से बढ़कर 100 अरब डॉलर तक पहुंच गया.
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रक्षा सौदे
1960 के दशक से चीन पाकिस्तान के लिए एक प्रमुख हथियार आपूर्तिकर्ता की भूमिका निभा रहा है. चीन ने पाकिस्तान को हथियारों के लिए फैक्ट्रियों के निर्माण करने में काफी मदद की. इसके साथ ही दोनों देशों के बीच अधिकारियों का प्रशिक्षण, संयु्क्त सैन्य अभ्यास, खुफिया सेवाओं का आदान-प्रदान और आंतकवाद के खिलाफ लड़ने को लेकर भी आपसी साझदेारी है.
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पाकिस्तानी बेड़े में चीन
पाकिस्तान के बेड़े में छोटी और मध्यम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइलें हैं मसलन शाहीन मिसाइल श्रृंखला जिसे जानकार चीन से आयातित बताते हैं. साथ ही पाकिस्तानी वायुसेना के पास चीनी इंटरसेप्टर और उन्नत ट्रेनर विमान के साथ-साथ विमान का पता लगाने के लिए उपयोग किए जाने वाले एक चीनी कंट्रोल रडार सिस्टम है. पाकिस्तान, चीन के साथ मिलकर जेएफ-17 जैसे कई लड़ाकू विमान को तैयार कर रहा है.
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परमाणु सहयोग
चीन शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम का एक मुखर और मजबूत समर्थक रहा है. चश्मा न्यूक्लियर पावर कॉम्पलेक्स पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में में बना एक कमर्शियल ऊर्जा संयंत्र है. इस संयंत्र की स्थापना अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के नियमों के तहत चाइना नेशनल न्यूक्लियर कॉरपोरेशन के सहयोग से की गई थी.
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बुनियादी ढांचा
चीन पाकिस्तान में चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर,सीपीईसी के तहत 60 अरब डॉलर का निवेश करने के लिए प्रतिबद्ध है. इस प्रोजेक्ट के तहत पाकिस्तान में सड़क, पाइपलाइन, पावर प्लांट, इंडस्ट्रियल पार्क और बंदरगाह बनाए जाएंगे. सीपीईसी बीजिंग के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) का हिस्सा है. बीआरआई का मकसद एशिया, अफ्रीका और यूरोप के 70 देशों के साथ जमीन और समुद्री व्यापार मार्ग बनाना है.
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चीनी भाषा का क्रेज
चीन के सीपीईसी प्रोजेक्ट से पाकिस्तानी नई नौकरियों की उम्मीद कर रहे हैं. साल 2017 में डीडब्ल्यू ने इस्लामाबाद की नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ मॉडर्न लैंगुएजेज (एनयूएमएल) में भाषा सिखाने वाले मिसबाख रशीद के हवाले से बताया था कि कि सीपीईसी से पहले यूनिवर्सिटी में करीब 200 छात्र चीनी भाषा सीख रहे थे लेकिन इसके बाद से यह संख्या 2,000 को भी पार कर गयी.
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भारत के लिए सिरदर्द
चीन-पाकिस्तान की नजदीकियां भारत को अकसर परेशान करती रही हैं. साल 1947 के बाद से ही भारत-पाकिस्तान जहां कश्मीर को लेकर विवाद है. वहीं चीन के साथ भी अरुणाचल प्रदेश, अक्साई चिन, तिब्बत को लेकर भारत हमेशा जूझता रहा है. भारत-चीन के बीच करीब 3000 किमी की सीमा पर कोई स्पष्टता नहीं है. ऐसे में चीन और पाकिस्तान की नजदीकी इसके लिए एक बड़ा सिरदर्द है.
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क्या रंग में भंग भी हो सकता है?
अमेरिका-पाकिस्तान संबंधों के नाजुक होने का एक कारण यह है कि नई प्रगति की विफलता में ज्यादा समय नहीं लगता. सालों से सबसे बड़ा खतरा अफगानिस्तान में बड़े पैमाने पर जानलेवा आतंकवादी हमले रहे हैं, खासकर जब हमले विशेष रूप से अमेरिका, अमेरिकी हितों या सहयोगी भारत को लक्ष्य बना होते हों. अगर इस तरह का हमला होता है और वाशिंगटन को लगता है कि ऐसा पाकिस्तान से हुआ है और पाकिस्तानी सुरक्षा प्रतिष्ठानों से जुड़े समूहों द्वारा किया गया है, तो रिश्ते को एक और झटका लगेगा. इससे द्विपक्षीय संबंधों में तनाव भी बढ़ेगा. इसकी वजह ये है कि वाशिंगटन का मानना है कि पाकिस्तान ने अमेरिकी और भारतीय जान माल को नुकसान पहुंचाने वाले अपने देश स्थित आतंकवादी समूहों के खिलाफ ठोस और बदले न जा सकने वाले कदम नहीं उठाए हैं.
क्या अलग-अलग उम्मीदों में सामंजस्य हो सकता है?
दरअसल पाकिस्तान की मध्यकालीन अपेक्षाएं अमेरिका की तुलना में अधिक महत्वाकांक्षी हैं. इस्लामाबाद द्विपक्षीय संबंधों को पूरी तरह से बहाल करना और व्यापक बनाना चाहता है. वहीं दूसरी ओर वाशिंगटन मुख्य रूप से अफगानिस्तान में अधिक पाकिस्तानी सहायता और आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई चाहता है.
दोनों पक्ष एक दूसरे की उम्मीदों में अंतर को किस तरह पाटते हैं, यही इस बात का फैसला करेगा कि काफी समय से उतार चढ़ाव का सामना कर रहे रिश्तों का भविष्य क्या होगा.
क्या पाकिस्तान के कबायली इलाके में चुनाव जीत सकती है एक महिला
पेशावर की रहने वालीं 40 साल की नहीद अफरीदी ने दर्शनशास्त्र में डिग्री ली हुई है. 12 पुरुषों के साथ वे भी खैबर के विधानसभा चुनाव में खड़ी एकलौती महिला उम्मीदवार हैं. ऐसे कबायली इलाके में चुनाव लड़ रहीं नहीद एक मिसाल हैं.
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अपने समाज के करीब आना
अफरीदी का चुनाव कार्यालय खैबर जिले के जमरुद कस्बे में है. यहां वो स्थानीय गांव में अपना प्रचार करती हैं. वो गांव में घर-घर जाकर प्रचार करती हैं. वो कबायली पुरुषों से महिलाओं को अपनी इच्छा के मुताबिक वोट करने देने की अपील करती हैं. उनका चुनाव 20 जुलाई को होना है.
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युवतियों के लिए एक प्रेरणा
एक छोटी बच्ची ने उनके प्रचार का स्टीकर लगाया हुआ है. अफरीदी ने डीडब्ल्यू से कहा कि पुरुषों के प्रभुत्व वाले समाज में चुनाव लड़ना मुश्किल है. लेकिन वो दूसरी लड़कियों और महिलाओं के सामने एक उदाहरण पेश करना चाहती हैं जिससे महिलाएं भी साहस दिखा सकें और नेतृत्व कर सकें. हालांकि गांव में महिलाओं को उनके चुनाव प्रचार में हिस्सा लेने का अधिकार नहीं है लेकिन छोटे बच्चे मदद करने आ जाते हैं.
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कबायली बुजुर्गों से मिलने वाली पहली महिला
अफरीदी कबायली बुजुर्गों से हुज्रा कही जाने वाली उनकी चौपाल पर मिलती हैं. वो इस इलाके में हुज्रा पर जाने वाली पहली महिला बन गई हैं. हुज्रा पर महिलाओं का आना मना होता है. एक बुजुर्ग ने डीडब्ल्यू से कहा कि वो अफरीदी के प्रचार और लोगों को समझाने के तरीके से प्रभावित हैं. कुछ समस्याएं ऐसी हैं जिन्हें महिलाएं बेहतर तरीके से समझ सकती हैं.
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लोगों के सामने आई एक महिला
जब अफरीदी किसी बाजार में जाकर भाषण देती हैं कि क्यों उन्हें विधानसभा में अपने जिले का नेतृत्व करने के लिए चुना जाए तो आसपास सुनने वाले दुकानदारों और दूसरे लोगों की भीड़ लग जाती है. उनका घर-घर जाकर प्रचार करना, गावों, बाजारों और हुज्रा पर प्रचार करना लोगों को भा रहा है. इसलिए उन्हें लगता है वो चुनाव जीत जाएंगी.
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हर वोट की कीमत है
जवान लड़के अपनी कार पर अफरीदी के प्रचार का स्टीकर लगा रहे हैं बच्चे अपने घरों और आसपास अफरीदी के पोस्टर लगाकर उनकी मदद कर रहे हैं. गांवों में महिलाओं को अफरीदी के साथ फोटो लेने की अनुमति नहीं है लेकिन बच्चे उनके साथ तस्वीरें लेने की लिए उत्सुक रहते हैं.
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एक नई आवाज
अफरीदी ने डीडब्ल्यू से कहा कि उनका प्रचार किसी से प्रतिस्पर्धा नहीं है. उनकी इच्छा इस सीट पर जीतना और विधानसभा में महिलाओं की आवाज बुलंद करना है. इसी इलाके के एक सामाजिक कार्यकर्ता का कहना है कि इस इलाके में महिलाओं को पढ़ने लिखने नहीं दिया जाता. उन्हें अपने अधिकारों की जानकारी नहीं है. इसलिए वो उम्मीद करते हैं कि अफरीदी जीतें और अपने जिले को गौरवान्वित करें.
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पाकिस्तान के कबायलियों के भविष्य की मिसाल
अफरीदी के प्रचार से महिलाओं को भाग लेने की मनाही है. लेकिन युवा उनके साथ खूब जुड़ रहे हैं. अफरीदी के साथ सेल्फी लेने वाले एक युवा कहते हैं कि वो अपने परिवार के लोगों से अफरीदी के लिए वोट करने को कहेंगे. वो कहते हैं कि ये इस कबायली इलाके में एक सकारात्मक परिवर्तन होगा. इस इलाके की विधानसभा में महिलाओं की सख्त जरूरत है. (रिपोर्ट-सबा रेहमान/आरएस)