अमेरिका माना, भारतीय कंपनियों पर पड़ेगी मार
१८ अगस्त २०१०अमेरिकी विदेश विभाग के उप प्रवक्ता मार्क टोनर ने कहा, "हम भारत सरकार की चिंताओं को समझते हैं. हम महसूस करते हैं कि इससे उन भारतीय कंपनियों पर बुरा असर पड़ सकता है जो अमेरिका में निवेश करती हैं. साथ ही अमेरिका में काम करने वाले भारतीयों और कुछ हद तक अमेरिकी कारोबार पर पड़ने वाले इसके असर से भी हम परिचित हैं." लेकिन उन्होंने कहा कि अमेरिका को इस बात का भरोसा है कि भारत के साथ लंबे तक चलने वाली आर्थिक साझेदारी मजबूत होती रहेगी जिससे दोनों देशों को फायदा होगा.
अगले पांच साल के अमेरिकी वीजा की फीस में दो हजार डॉलर की वृद्धि की गई है जिससे अमेरिका और मैक्सिको की सीमा पर सुरक्षा बेहतर करने के लिए रकम जुटाई जाएगी. यह बढ़ी हुई फीस उन कंपनियों पर लागू होगी जिनके यहां काम करने वाले आधे से ज्यादा कर्मचारी वीजा लेकर दूसरे देशों से आए हैं.
इस बारे में तैयार सीनेट के बिल में कहा गया है कि विप्रो, टाटा, इंफोसिस और सत्यम जैसी भारतीय कंपनियों में सैकड़ों लोग वीजा लेकर अमेरिका में काम करने आते हैं. नैसकॉम का कहना है कि भारतीय कंपनियां और खासकर आईटी कंपनियां हर साल 50 हजार अमेरिकी वीजाओं के लिए आवेदन करती हैं जिसमें एच-1 बी और एल1 वीजा के साथ साथ पुराने वीजा आगे बढ़वाना भी शामिल है.
जब वीजा की फीस बढ़ाए जाने के मामले को डब्ल्यूटीओ में उठाए जाने की भारत की योजना के बारे में पूछा गया तो टोनर ने कहा, "ऐसा करना भारत के दायरे में है. हम इस कानून से भारत पर पड़ने वाले असर के बारे में जानते हैं और इसे कम करने की कोशिश कर रहे हैं. इससे ज्यादा मुझे कुछ नहीं कहना है. मेरा मतलब है कि भारत के साथ हमारे बहुत अच्छे आर्थिक रिश्ते हैं."
एच-1 बी और एल1 वीजा की फीस बढ़ाना अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के उस 60 करोड़ डॉलर के पैकेज का हिस्सा है जिसका मकसद अमेरिका और मैक्सिको की सीमा पर सुरक्षा को मजबूत करना है. लेकिन नीतिगत मामलों के अमेरिकी जानकार एलेक्स नॉरेस्टे कहते हैं, "आर्थिक तंगी के वक्त में यह एक बड़ी गलती है. अमेरिकी कांग्रेस को वीजा पर लगी पाबंदी कम करनी चाहिए, न कि इस तरह उसकी फीस बढ़ानी चाहिए." वह कहते हैं कि इस कानून का संरक्षणवादी पहलू चिंतित करने वाला है.
रिपोर्टः एजेंसियां/ए कुमार
संपादनः उभ