अमेरिका में खुला सात दशक पुराना मॉब लिंचिंग का मामला
२२ अक्टूबर २०१९
अमेरिका में इन दिनों 1940 के दशक के एक मामले पर बहस चल रही है जिसमें गोरे लोगों की एक भीड़ ने चार काले लोगों की जान ले ली थी. आज तक किसी दोषी को पकड़ा नहीं गया है.
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1946 की गर्मियों की बात है. अमेरिका में अटलांटा से कुछ 50 किलोमीटर दूर दो किसान दंपतियों को सड़क पर रोका जाता है. भीड़ उन्हें घसीट कर गाड़ी से बाहर निकाती है और अपलाचे नदी तक ले जाती है. वहां गोली मार कर उनकी हत्या कर दी जाती है. मरने वाले काले किसान थे और मारने वाली भीड़ में सब गोरे लोग थे. कई महीनों तक एफबीआई इस मामले की छानबीन करती रही. 100 से भी ज्यादा लोगों के बयान दर्ज किए गए. लेकिन कातिलों का कोई सुराग हाथ नहीं लगा.
मारे गए लोगों में 24 साल के रॉजर मैलकम, उनकी पत्नी डॉरोथी मैलकम, जॉर्ज डॉर्सी और उनकी पत्नी मे मुरे डॉर्सी शामिल थे. दरअसल जुलाई 1946 में रॉजर मैलकम का एक दूसरे किसान से झगड़ा हुआ. बात बहस से हाथापाई तक पहुंची और रॉजर ने उस व्यक्ति को चाकू मार दिया. व्यक्ति बुरी तरह घायल हुआ और रॉजर को जेल जाना पड़ा. बाद में यह मामला दो किसानों का झगड़ा ना रह कर गोरे और काले लोगों का विवाद बन गया. बावजूद इसके एक दूसरे गोरे किसान लॉय हैरिसन ने रॉजर को छुड़वाया और इसके लिए उस समय 600 डॉलर का जुर्माना भी भरा.
लॉय हैरिसन ही चारों लोगों को गाड़ी में ले जा रहे थे जब भीड़ ने गाड़ी को घेरा. दिलचस्प बात यह है कि इस दौरान लॉय को कोई चोट नहीं आई. बाद में लॉय ने एफबीआई से कहा कि वह भीड़ में किसी को भी नहीं पहचानता था. एफबीआई के रिकॉर्ड के अनुसार लॉय अमेरिका के नस्ली संगठन केकेके (कू क्लक्स क्लेन्समैन) का सदस्य था और गैरकानूनी गतिविधियों में शामिल रहा था. हालांकि इस मामले में एफबीआई के पास लॉय के खिलाफ कोई सुबूत नहीं था.
सबसे बुरे सीरियल किलर
पिछले कुछ दशकों में दुनिया भर में ऐसे कई खतरनाक हत्यारे हुए हैं जिन्होंने एक दो नहीं कई लोगों की हत्या की है. देखिए कब और कहां से निकले ऐसे सीरियल किलर.
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नील्स होएगेल
जर्मनी के एक पूर्व नर्स नील्स होएगेल को अपनी ड्यूटी के दौरान 85 लोगों की हत्या करने के दोष में उम्रकैद की सजा सुनाई गई है. वह 2005 तक एक अस्पताल में काम करता था. शांतिकाल में वह जर्मनी का सबसे खतरनाक सीरियल किलर बन गया है. पुलिस को शक है कि 200 से अधिक लोग उसके शिकार बने होंगे.
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मिखाएल पोपकोव
साइबेरिया के इस पूर्व पुलिसकर्मी को दिसंबर 2018 में दोषी पाया गया. 54 साल की उम्र में उस पर 56 हत्यारों का आरोप सिद्ध हुआ. 22 लोगों की हत्या के दोष में वह पहले से ही जेल में था. रात में पुलिस की नौकरी के दौरान वह महिलाओं का बलात्कार और हत्या करता था. वह रूस का सबसे खतरनाक सीरियल किलर है.
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सैमुएल लिटिल
78 साल की उम्र में इसने 90 लोगों की हत्या का जुर्म कुबूला. नबंवर 2018 में उसने सन 1970 से 2005 के बीच की गई हत्याओं के बारे में बताया. इनमें से 40 से अधिक को साबित किया जा चुका है. अगर सब 90 हत्याएं साबित हो जाती हैं तो वह सबसे बुरा अमेरिकी सीरियल किलर माना जाएगा.
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आंद्रेई रोमानोविच चिकात्सिओ
सन 1992 में रूस के इस पूर्व शिक्षक को 52 लोगों की हत्या का दोषी पाया गया. "बुचर ऑफ रोस्तोव" कहलाने वाले आंद्रेई ने सन 1978 से 1990 के बीच दक्षिणी रूस के रोस्तोव इलाके में इनमें से ज्यादातर हत्याएं की थीं. सन 1994 में उसे फांसी दे दी गई. आरपी/एनआर (एएफपी)
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गैरी रिजवे
एक अमेरिकी ट्रक ड्राइवर ने 2003 में 48 लोगों की हत्या की बात मानी. उसके शिकार बने लोगों में ज्यादातर यौनकर्मी या फिर घर से भागे हुए लोग थे. उसे "ग्रीन रिवर किलर" का उपनाम मिला क्योंकि सिएटल की इसी नदी के पास उसका पहला पीड़ित पाया गया था. पुलिस को शक है कि उसने इससे ज्यादा लोगों को मारा.
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अलेक्जांडर पिचुश्किन
48 लोगों की हत्या करने के जुर्म में इसे साल 2007 में मास्को में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई. यह हत्याएं उसने 2002 से 2006 के बीच में की थीं. केवल 33 साल की उम्र में मुकदमे की सुनवाई के दौरान उसने बताया कि शतरंज के 64 खानों के हिसाब से वो 64 लोगों को मारना चाहता था. हर हत्या के बाद वह एक खाने को क्रॉस करता इसीलिए "चेसबोर्ड किलर" कहलाया.
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लुइस आलफ्रेदो गारावीतो
सन 2000 में गारावितो को 835 सालों की कैद की सजा सुनाई गई. उसके शिकार बने लोगों की लंबी फेहरिस्त में 189 लड़के थे, जिन्हें उसने मात्र पांच सालों के भीतर मार डाला था. अपने काले कृत्यों के कारण उसे कोलंबिया में उसके जन्मस्थान के नाम पर "मॉन्स्टर ऑफ जेनोवा" कहा गया. उसके सभी शिकार आठ से सोलह साल की उम्र के लड़के थे.
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चार्ल्स शोभराज
बिकिनी किलर के नाम से कुख्यात चार्ल्स शोभराज को 1975 में एक अमेरिकी पर्यटक की हत्या के आरोप में 2004 में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई. इसके अलावा भी थाईलैंड के पटाया में भी कई पर्यटकों की हत्या के पीछे फ्रांस में जन्मे शोभराज का हाथ माना जाता है. उसके माता-पिता भारतीय और वियतनामी मूल के थे.
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हैरल्ड शिपमैन
मैनचेस्टर के पास रहने वाले एक डॉक्टर को सन 2000 में अपने 15 मरीजों को जान से मारने के जुर्म में आजीवन कारावास की सजा हुई. वह अपने बुजुर्ग मरीजों को मॉर्फीन के खतरनाक डोज देकर मारता था. सन 2004 में उसने जेल में ही खुद को फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली.
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दिसंबर 1946 को इस मामले की फाइल बंद कर दी गई. अदालत को कोई भी दोषी नहीं मिला था. तब से ले कर अब तक इस फाइल को कई बार खोला और बंद किया जा चुका है. रिसर्चरों से ले कर एक्टिविस्ट तक सबकी इसमें रुचि रही है. इतिहासकार एंथनी पिच ने इन हत्याओं के बारे में एक किताब लिखी जिसका नाम था "द लास्ट लिंचिंग: हाउ अ ग्रूसम मास मर्डर रॉक्ड अ स्मॉल जॉर्जियन टाउन". 2016 में यह किताब प्रकाशित हुई. लेकिन किताब छप जाने के बाद भी पिच इस मामले पर शोध करते रहे.
पिच के अनुरोध पर 2017 में एक निचली अदालत ने मामले की फाइल खोलने का आदेश दिया. लेकिन अमेरिका के न्याय मंत्रालय ने इसके खिलाफ अपील की. मंत्रालय का कहना था कि अदालत के फैसले सुरक्षित रखे जाते हैं. अमेरिका में अदालत में मामलों की सुनवाई किसी एक जज के सामने नहीं, बल्कि जूरी के सामने होती है और इसमें नागरिक भी शामिल होते हैं. जूरी सदस्यों के फैसलों को गुप्त रखा जाता है. सभी सदस्य आपस में मिल कर जो फैसला लेते हैं, केवल उसे ही सार्वजनिक किया जाता है.
इस साल फरवरी में अपील कोर्ट की तीन जजों की बेंच ने निचली अदालत के फैसले को कायम रखने का निर्णय लिया. यानी पुरानी फाइल को खोलने की अनुमति मिल गई. पर साथ ही यह भी कहा कि पूरे मामले की सुनावाई एक बार फिर होगी. इस घोषणा के दो हफ्ते बाद पिच का निधन हो गया. वे 80 साल के थे. अब उनकी पत्नी मारियोन पिच उनकी ओर से मुकदमा लड़ रही हैं.
22 अक्टूबर से इस मामले में सुनवाई एक बार फिर शुरू हो गई है. इतने सालों बाद दोषी तो शायद नहीं मिलेंगे लेकिन इस मामले ने अमेरिका में एक नई बहस छेड़ दी है कि क्या जजों के पास पुराने मामलों को फिर से खोलने का हक होना चाहिए.
भारत के कुछ इलाके खास किस्म के अपराधों के लिए कुख्यात हैं. एक नजर इन इलाकों पर.
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गाड़ियों की चोरी
उत्तर प्रदेश के मेरठ, मुजफ्फरनगर गाड़ियों की चोरी के लिए बदनाम हैं. उत्तर भारत के कई शहरों से चोरी हुई गाड़ियां इन्हीं शहरों में ही काट पीटकर बेची जाती हैं.
तस्वीर: Colourbox/Andrey Armyagov
हत्या
सुपारी लेकर हत्या करने जैसे अपराधों के मामले में उत्तर प्रदेश के इटावा और बुलंदशहर कुख्यात हैं. बिहार के बेगूसराय जिले से भी कई गैंगस्टर निकले हैं. कर्नाटक का बेल्लारी भी ऐसे अपराधों के लिए बदनाम होता रहता है.
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कार्ड फर्जीवाड़ा
वोटर आईडी और पैन कार्ड की धांधली के ज्यादातर मामले हैदराबाद से शुरू होते हैं. हैदराबाद साइबर क्राइम पुलिस की जांच में इस बात का पता चला.
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लूट पाट, डकैती
मध्य प्रदेश और राजस्थान के बीच बसा चंबल का इलाका आज भी लूट पाट और डकैती के लिए बदनाम है. वहां की कई सड़कों पर आज भी रात में लोग अकेले गाड़ी चलाने से घबराते हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/D. Dutta
आईटी फ्रॉड
बेंगलुरू में दुनिया भर की कंपनियों के लिए सॉफ्टवेयर बनते हैं और वहीं से खूब हैकिंग भी होती है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/D. Sarkar
बलात्कार
इस मामले में देश की राजधानी सबसे बदनाम है. दिल्ली की छवि ऐसी बन चुकी हैं कि भारत घूमने जाने वाली विदेशी महिलाएं भी दिल्ली के नाम से थरथराती हैं.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/Saurabh Das
अपहरण
इसके लिए बिहार बदनाम है. हालांकि बीते बरसों में वहां अपहरण की वारदातों में काफी कमी आई है. लेकिन अभी भी बीच बीच में अपहरण के कुछ मामले सामने आ ही जाते हैं.
तस्वीर: Strdel/AFP/Getty Images
प्रॉपर्टी विवाद
दिल्ली से सटे गुरुग्राम (गुड़गांव) और ग्रेटर नोएडा प्रॉपर्टी के विवादों के लिए कुख्यात हैं. वहां रियल स्टेट का काम करने वाले गुटों में संघर्ष भी लगा रहता है.
तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/N. Kachroo
कोयला माफिया
कोयला की कालिख ने झारखंड के धनबाद शहर को बदनाम किया. कोल ब्लॉक आवंटन के बाद हालात कुछ सुधरे, लेकिन अब भी वहां माफिया की जंग छिड़ी रहती है.
तस्वीर: Ravi Mishra/Global Witness
वन्य जीव तस्करी
वन्य जीवों की खाल और जड़ी बूटियों के तस्कर उत्तराखंड में खासे सक्रिय रहते हैं. हर साल उत्तराखंड में कीड़ा जड़ी और तेंदुओं की खाल के साथ तस्करों के पकड़े जाने के मामले सामने आते हैं.
तस्वीर: AP
चरस, अफीम
हिमाचल प्रदेश में कुल्लू-मनाली की हसीन वादियों को चरस के लिए भी जाना जाता है. कई युवा वहां चरस की खातिर भी पहुंचते हैं. वहीं राजस्थान के बाड़मेर और मध्य प्रदेश के नीमच और मनसौर को अफीम की काला बाजारी भी होती है.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/R. R. Jain
नकल
नकल के लिए बिहार बदनाम है. हर साल वहां से बड़े स्तर पर नकल की खबरें आ ही जाती हैं. साथ ही राज्य टॉप करने वालों पर भी फर्जीवाड़े के केस चलने आम हो चुके हैं.