जॉर्ज फ्लॉयड की हत्या ने पुलिस व्यवस्था में सुधार की मांगों को फिर से जिंदा कर दिया था. लेकिन साल भर बाद ज्यादातर अमेरिकियों का कहना है कि काले लोगों के खिलाफ पुलिस ज्यादती को रोकने की दिशा में खास प्रगति नहीं हुई है.
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जॉर्ज फ्लॉयड की गर्दन पर घुटना रखे पूर्व पुलिस ऑफिसर डेरेक शोविन की तस्वीर ने न सिर्फ अमेरिका में बल्कि पूरी दुनिया में तहलका मचा दिया था और जगह-जगह विरोध प्रदर्शन होने लगे थे. उनके नाम पर बने स्मारक और भित्तिचित्र सांसदों और पुलिस विभागों में सुर्खियों में छा गए, चारों ओर बहस छिड़ गई कि वो कैसे अपनी नीतियों और दृष्टिकोण में बदलाव को लागू करेंगे.
महीनों बाद, देश ने शोविन के खिलाफ चले मुकदमे को देखा और लोगों ने तब राहत की सांस ली जब उन्हें दोषी ठहरा दिया गया. तमाम लोगों ने इस खुशी में जश्न मनाया, लेकिन मिनियापोलिस में कोर्ट हाउस से सिर्फ दस मील की दूरी पर डाउन्टे राइट के एक वीडियो के सामने आने के बाद प्रदर्शन फिर शुरू हो गए. इस वीडियो में पुलिस के हाथों एक और एफ्रो अमेरिकन की मौत कैद हुई थी. यह बेहद गंभीर क्षण था, जब देश में तमाम लोग ये उम्मीद लगाए बैठे थे कि देश न्याय व्यवस्था में सुधार के एक अहम मोड़ पर पहुंच चुका है.
पिछले एक साल के दौरान देश ने देखा कि कैसे पुलिस बल सुधार के आह्वान को दबाने की कोशिश में लगे रहे. इस बीच, काले लोगों के खिलाफ पुलिस वालों के अत्याचार संबंधी वीडियो भी सामने आते रहे. अत्याचार संबंधी ये तस्वीरें पुलिसिंग और नस्ली संबंधों के बारे में लोगों के नजरिए में बदलाव की दिशा में काफी अहम साबित हो रही हैं.
‘ब्लैक लाइव्स मैटर' के क्या मायने
‘ब्लैक लाइव्स मैटर' यानी ‘काले लोगों के जीवन का भी महत्व है' आंदोलन फ्लॉयड की हत्या से कई साल पहले से ही चल रहा था, लेकिन इस घटना ने इसे एकाएक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के आंदोलन में तब्दील कर दिया. विरोध प्रदर्शन एक-एक शहर में होने लगे, सांसदों और अन्य अधिकारियों पर पुलिस सुधार और सामाजिक न्याय संबंधी मांगों को सुनने का दबाव बढ़ने लगा. वॉशिंगटन डीसी में हजारों लोग ‘ब्लैक लाइव्स मैटर' आंदोलन के समर्थन में सड़कों पर उतर आए ताकि फ्लॉयड की हत्या से लोगों का ध्यान न हटने पाए.
कई हफ्ते तक आंदोलन चलता रहा और कई बार आंदोलनकारी आक्रामक हो गए और कई बार अमरीकी नेशनल गार्ड के साथ उनकी हिंसक झड़पें भी हुई हैं. इसके जवाब में, मेयर मुरियल बाउजर ने व्हाइट हाउस परिसर के बाहर ‘ब्लैक लाइव्स मैटर' को प्रदर्शित करते हुए एक भित्तिचित्र बनाने का आदेश दिया. इन प्रतीकात्मक संकेतों ने आंदोलन को मुख्यधारा की संस्कृति में लाने में काफी मदद की. ब्रांड्स, स्पोर्ट्स टीम और मशहूर हस्तियों ने भी इसमें शिरकत की और इस वजह से उनकी आलोचना भी हुई. एक साल के बाद, आंदोलन की गति धीमी पड़ गई है और इसकी पहचान भी धूमिल हो गई है.
जॉर्जिया स्टेट यूनिवर्सिटी में अफ्रीकन स्टडीज के एसोसिएट प्रोफेसर मॉरिस हॉब्सन कहते हैं, "ब्लैक लाइव्स मैटर उन तमाम आंदोलनों में से एक है जो नागरिक और मानवाधिकारों के समर्थन में उभर रहे हैं. इसलिए, यकीन मानिए, आने वाले सालों में एक और गोली कांड हो सकता है, और वो उससे भी ज्यादा खतरनाक होगा जैसा कि जॉर्ज फ्लॉयड के साथ हुआ था. मेरा मतलब है, ये अमरीका है.” हॉब्सन कहते हैं कि हालांकि ब्लैक लाइव्स मैटर आंदोलन को फ्लॉयड की मौत ने मुख्यधारा के आंदोलन की पहचान दी, लेकिन यह भी अन्य नागरिक आंदोलनों की एक पुनरावृत्ति ही है और इस तरह के समूह भविष्य में भी ऐसा करते रहेंगे.
जॉर्ज फ्लॉयड की मौत पर दुनिया भर में प्रदर्शन
अमेरिका में अश्वेतों के साथ बर्ताव पर दुनियाभर में प्रदर्शन हो रहे हैं. जॉर्ज फ्लॉयड की मौत पर अमेरिका से लेकर यूरोप तक लोग विरोध में उतर आए हैं. इन प्रदर्शनों में लोग "मैं सांस नहीं ले पा रहा हूं" के नारे लगा रहे हैं.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/M:.Schreiber
अश्वेत की मौत
अमेरिका में अश्वेत जॉर्ज फ्लॉयड की पुलिस हिरासत में मौत के बाद दुनिया के कई शहरों में लोग विरोध जताते हुए सड़कों पर उतर आए हैं. अमेरिका के कई शहरों के अलावा, लंदन, बर्लिन, टोरंटो में विरोध हो रहे हैं. प्रदर्शनकारी तख्तियों पर "ब्लैक लाइव्स मैटर" के नारे लिख कर अमेरिकी पुलिस की क्रूरता का विरोध कर रहे हैं.
तस्वीर: Reuters/L. Bryant
व्हाइट हाउस के बाहर विरोध
फ्लॉयड की हिरासत में मौत के बाद पिछले छह दिनों से अमेरिका में लगातार विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. मिनेसोटा के मिनेपोलिस में पुलिस द्वारा बल प्रयोग करने के दौरान फ्लॉयड सांस नहीं ले पा रहे थे. हिंसक विरोध प्रदर्शनों के बाद अमेरिका के कम से कम 40 शहरों में कर्फ्यू लगा दिया गया है. 15 राज्यों और वॉशिंगटन में नेशनल गार्ड की तैनाती की गई है. प्रदर्शनकारी व्हाइट हाउस के बाहर तक विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Ngan
बर्लिन में फ्लॉयड की याद में
जर्मनी की राजधानी बर्लिन में जॉर्ज फ्लॉयड की याद में दीवार पर एक बड़ी सी पेंटिंग बनाई गई है. फ्लॉयड की पुलिस हिरासत में मौत के विरोध में शनिवार को बर्लिन में हजारों लोगों ने अमेरिकी दूतावास के बाहर मार्च निकाला.
तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/O. Messinger
लंदन में विरोध
लंदन में भी रविवार को बड़े पैमाने पर लोग विरोध प्रदर्शनों में शामिल हुए और नस्लवाद के खिलाफ नारेबाजी की. कुछ प्रदर्शनकारी बेहद भावुक दिखे. कुछ लोगों ने हाथों में तख्तियां ले रखी थी जिसपर लिखा था नस्लवाद महामारी है.
तस्वीर: picture-alliance/AA/I. Tayfun Salci
"मैं सांस नहीं ले पा रहा हूं"
कोरोना वायरस महामारी के बीच भी लोग अपना गुस्सा जाहिर करने के लिए सड़कों पर उतर रहे हैं. कुछ लोग वायरस से बचने के लिए लगाए जाने वाले मास्क पहने दिख रहे हैं जिन पर "मैं सांस नहीं ले पा रहा हूं" लिखा हुआ है.
तस्वीर: Reuters/B. Synder
फ्लॉयड के शहर में हिंसा
जॉर्ज फ्लॉयड मिनेसोटा के मिनेपोलिस में रहते थे, उनकी मौत के बाद से वहां हिंसा का दौर जारी है. स्टोर में लूटपाट और आगजनी की घटनाए दर्ज की जा रही हैं. राज्य के गवर्नर ने लोगों से संयम बरतने को कहा है.
तस्वीर: Reuters/L. Bryant
नेशनल गार्ड तैनात
अमेरिका के कई राज्यों में हिंसा, आगजनी और लूटपाट की घटनाओं के बाद नेशनल गार्ड की तैनाती की गई है. फ्लॉयड की मौत के आरोपी पुलिस अधिकारी पर कोर्ट में सुनवाई शुरू हो रही है.
तस्वीर: Getty Images/M. Tama
कौन थे जॉर्ज फ्लॉयड
46 साल के जॉर्ज फ्लॉयड एक साधारण इंसान थे. वह अफ्रीकी मूल के थे और एक रेस्तरां में गार्ड का काम करते थे. 25 मई की शाम उनकी पुलिस हिरासत में मौत हो गई और उसके बाद दुनिया भर में अश्वेतों के साथ पुलिस बर्ताव को लेकर नई बहस छिड़ गई.
तस्वीर: AFP/Facebook/Darnella Frazier
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पुलिस सुधारों की सुगबुगाहट नहीं
कानून प्रवर्तन अधिकारी आपराधिक गतिविधियों से लेकर मानसिक स्वास्थ्य संकट जैसे मामलों तक को संभालते हैं. सबसे पहले प्रतिक्रिया देने वाले के तौर पर उनसे उम्मीद की जाती है कि वे स्थिति को सुलझा देंगे, लेकिन पुलिस में भर्ती होने वालों को प्रशिक्षण में हथियार और आत्मरक्षा कौशल पर जोर दिया जाता है. केंटकी में ब्लैक लाइव्स मैटर आंदोलन के एक कार्यकर्ता केटुरा हेरॉन कहते हैं, "देश भर में औसतन, पुलिस अधिकारी 60 घंटे हथियारों का प्रशिक्षण लेते हैं और मामले को सुलझाने जैसा प्रशिक्षण सिर्फ 10 घंटे का होता है. मतलब, उनका प्रशिक्षण इस तरह होता है कि उन्हें पहले आक्रमण करना है."
हेरॉन कहते हैं, "पुलिसिंग की संरचना मामलों को संभालने के हिसाब से नहीं बनी है, जब तक कि वे ताकत के साथ जवाब नहीं देते. मुझे नहीं लगता कि यह कोई प्रशिक्षण है, मुझे लगता है कि हमें इस विचार को बदलने की जरूरत है."
अमेरिका में पुलिस विभाग में फंड को कम करने से लेकर पारदर्शिता बढाने तक सुझाव सामने आने लगे हैं. न्यूयॉर्क के इथाका में मेयर और शहर के अधिकारियों ने पुलिस विभाग को किसी नई सिटी एजेंसी से बदलने का प्रस्ताव दिया है. वॉशिंगटन डीसी में पुलिस अब मानसिक स्वास्थ्य संबंधी फोन कॉल्स का जवाब देने की पहल नहीं करती है. ऐसी स्थितियों में अब निहत्थे स्वास्थ्य अधिकारियों की टीम पहले भेजी जाती है. लेकिन इसके साथ ही, पुलिस संघ इसका विरोध कर रहा है और वे पुलिस सुधारों के विरुद्ध सक्रियता से लड़ रहे हैं.
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इतिहास का खेल
राष्ट्रपति जो बाइडेन, उप राष्ट्रपति कमला हैरिस और डेमोक्रेटिक बहुमत वाली कांग्रेस ने पुलिस क्रूरता के खिलाफ कानून बनाने का समर्थन किया है. हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव ने पार्टी लाइन से हटकर हाल ही में पुलिस एक्ट में जॉर्ज फ्लॉयड कानून पारित किया है, जिसमें पुलिस प्रशिक्षण और उन तरीकों को अपनाने की बात कही गई है जिनसे शरीर को नुकसान नहीं होता. सीनेट में किसी एक पार्टी को पूर्ण बहुत न होने के कारण विधेयक अभी अधर में लटका हुआ है. सीनेट में रिपब्लिक सांसदों ने कहा है कि वे इस विधेयक का मौजूदा स्वरूप में समर्थन नहीं कर सकते हैं लेकिन यदि थोड़ा बहुत संशोधन हो जाए तो वो अपने फैसले पर पुनर्विचार कर सकते हैं.
कुछ पर्यवेक्षक इस बात पर आश्चर्य जताते हैं कि जो बाइडन और कमला हैरिस इसके लिए सही नेता नहीं हैं. एक सीनेटर के तौर पर, बाइडेन ने विधेयक का समर्थन किया था. कुछ लोगों के मुताबिक, इसकी वजह से एफ्रो-अमेरिकन पुरुष और महिलाओं ने उनका समर्थन किया था. उन्होंने 1994 के अपराध विधेयक का भी समर्थन किया था, जिसने कड़ी सजा का प्रावधान किया और उससे उत्पन्न समस्याओं का अमेरिका को आज भी सामना करना पड़ रहा है. सैन फ्रांसिस्को की डिस्ट्रिक्ट अटॉर्नी और फिर बाद में कैलिफोर्निया की अटॉर्नी जनरल के तौर पर कमला हैरिस का आपराधिक न्याय सुधार के मामले में मिला-जुला रवैया रहा है. पद पर रहते हुए उन्होंने राज्य के "तीन हड़ताल” कानून का बचाव किया जिसकी वजह से कई आपराधिक कृत्यों के लिए दोषी लोगों को दशकों लंबी जेल की सजा देने का प्रावधान हुआ.
हैरिस ने साल 2011 में सुप्रीम कोर्ट के उस नियम का विरोध किया जिसने कैलिफोर्निया को आदेश दिया था कि अहिंसक मामलों में सजा पाए हजारों लोगों को छोड़ दिया जाए क्योंकि जेलों में भीड़ बहुत ज्यादा हो गई थी और जेलों की स्थिति खतरनाक और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक बन गई थी. साल 2016 में सेनेट के लिए चुने जाने के बाद हैरिस ने आपराधिक न्याय सुधार की दिशा में कई तरह के प्रयास किए. हॉब्सन कहते हैं, "मुझे लगता है कि उम्मीद अभी बाकी है. बाइडेन प्रशासन के पास अपने पुराने अविवेकपूर्ण कार्यों के लिए प्रायश्चित करने का एक सुनहरा अवसर है. लेकिन मुझे अभी ऐसा होता नहीं दिख रहा है. जब तक ऐसा नहीं होता, मुझे यह इतिहास का खेल ही लग रहा है.”
अप्रैल में यूएस कैपिटोल में अपने पहले संबोधन में बाइडेन ने कांग्रेस से आपराधिक न्याय सुधार विधेयक को पास करने और मई के अंत तक उनके पास भेज देने को कहा था. यह समय सीमा खत्म हो जाएगी और बाइडेन का पिछला एजेंडा कई लोगों के संदेह के घेरे में छोड़ देता है कि क्या वे ऐसा करेंगे. हेरॉन कहते हैं, "मुझे नहीं लगता है कि हमें उनसे कुछ खास उम्मीद रखनी चाहिए. मुझे लगता है कि हमें अपनी यह मांग जारी रखनी चाहिए कि वे कुछ करें.”
रिपोर्ट: डेविड स्लोन, वाशिंगटन से
रंगभेद के खिलाफ दुनिया भर में प्रदर्शन
अमेरिका के मिनियापोलिस में जॉर्ज फ्लॉयड की मौत से पूरी दुनिया आंदोलित है. वीकएंड में सभी महादेशों में लाखों लोगों ने नस्लवाद के खिलाफ प्रदर्शन किया है. भारत में भी सेलेब्रिटी "ब्लैक लाइव्स मैटर" का समर्थन कर रहे हैं.
तस्वीर: picture-alliance/Photoshot/A. Morissard
पेरिस: भेदभाव का विरोध
कुछ दिन पहले फ्रांस की राजधानी में पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को आंसू गैस का इस्तेमाल कर तितर बितर कर दिया था. शनिवार को भी आइफेल टॉवर और अमेरिकी दूतावास के सामने प्रदर्शनों की इजाजत नहीं दी गई थी. फिर भी दसियों हजार लोगों ने प्रदर्शन में हिस्सा लिया. पेरिस के बाहरी इलाकों में रहने वाले काले नागरिकों के खिलाफ पुलिस हिंसा आम है.
तस्वीर: picture-alliance/Photoshot/A. Morissard
लिएज: प्रतिबंधों के बावजूद प्रदर्शन
कई दूसरे यूरोपीय देशों की तरह बेल्जियम का भी औपनिवेशिक शोषण और लोगों को गुलाम बनाने का इतिहास रहा है. आज का डेमोक्रैटिक रिपब्लिक कॉन्गो कभी किंग लियोपोल्ड द्वितीय की निजी संपत्ति हुआ करता था. उनके नाम पर वहां नस्लवादी शासन चलता था. ब्रसेल्स, अंटवैर्पेन और लिएज शहरों में कोरोना के प्रतिबंधों के बावजूद प्रदर्शन हुए.
तस्वीर: picture-alliance/abaca/B. Arnaud
म्यूनिख: रंग बिरंगा बवेरिया
जर्मनी के बड़े प्रदर्शनों में से एक दक्षिणी प्रांत बवेरिया की राजधानी म्यूनिख में हुआ. यहां करीब 30,000 लोग नस्लवाद का विरोध करने सड़कों पर उतरे. इसके अलावा कोलोन, फ्रैंकफर्ट और हैम्बर्ग में भी प्रदर्शन हुए. राजधानी बर्लिन में प्रदर्शन के लिए जाते लोगों को रोकने के लिए पुलिस ने कुछ समय के लिए सिटी सेंटर में स्थित अलेक्जांडरप्लात्स का रास्ता रोक दिया था.
तस्वीर: picture-alliance/Zumapress/S. Babbar
वियना: 50,000 लोगों का विरोध प्रदर्शन
ऑस्ट्रिया की राजधानी वियना में शुक्रवार को ही 50,000 लोगों ने प्रदर्शन किया. ये देश में पिछले सालों में हुए बड़े प्रदर्शनों में एक रहा. स्थानीय पुलिसकर्मी भी प्रदर्शन के समर्थन में दिखे. रिपोर्टरों के अनुसार पुलिस की एक गाड़ी पर भी "ब्लैक लाइव्स मैटर" का नारा लिखा दिखा.
तस्वीर: picture-alliance/H. Punz
सोफिया: सैकड़ों नस्लवाद विरोधी
कई दूसरे यूरोपीय देशों की तरह बुल्गारिया में भी दस लोगों से ज्यादा के साथ प्रदर्शन की अनुमति नहीं है. फिर भी नस्लवाद का विरोध करने राजधानी सोफिया में सैकड़ों लोग पहुंचे. वे जॉर्ज फ्लयॉड के कहे कथित तौर पर अंतिम शब्द "आई कांट ब्रीद" के नारे लगा रहे थे. प्रदर्शनकारियों ने साथ बुल्गारियाई समाज में व्याप्त नस्लवाद की ओर भी ध्यान दिलाया.
तस्वीर: picture-alliance/AA
तूरीन: कोरोना काल में विरोध
इस महिला ने अपना नारा कोरोना काल में जरूरी किए गए मास्क के ऊपर लिख रखा है, "काली जिंदगियां इटली में भी कीमती हैं." रोम और मिलान में हुए प्रदर्शनों में कोरोना महामारी की वजह से हुई तालाबंदी के बाद पहली बार लोग इतनी बड़ी तादाद में एक साथ इकट्ठा हुए. यूरोपीय संघ में सबसे ज्यादा अफ्रीकी आप्रवासी इटली में रहते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/M. Ujetto
लिस्बन: बिना अनुमति के रैली
पुर्तगाल की राजधानी लिस्बन में निकाले गए मार्च में इस प्रदर्शनकारी ने अपनी तख्ती पर लिख रखा है, "अब कार्रवाई करो." हालांकि विरोध प्रदर्शन करने की अनुमति नहीं दी गई थी, लेकिन पुलिस ने रैली को नहीं रोका. पुर्तगाल में भी काले नागरिकों के खिलाफ पुलिस बर्बरता की घटना अक्सर होती रहती है. जनवरी 2019 में पुलिस ने नस्लवाद विरोधी प्रदर्शनकारियों पर रबर की गोलियां चलाई थी.
तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/J. Mantilla
मेक्सिको सिटी: फ्लॉयड और लोपेस
मेक्सिको में सिर्फ जॉर्ज फ्लॉयड की मौत का गुस्सा नहीं है बल्कि जोवानी लोपेस के साथ हुए बर्ताव पर भी है. राजमिस्त्री का काम करने वाले लोपेस को मई में पश्चिमी प्रांत खालिस्को में मास्क नहीं पहनने के कारण गिरफ्तार कर लिया गया था. कथित तौर पर पुलिस हिंसा के कारण उनकी मौत हो गई थी. कुछ समय एक वीडियो सामने आने के बाद मेक्सिको के लोगों में आक्रोश है.
तस्वीर: picture-alliance/Zumapress
सिडनी: मूल निवासियों के खिलाफ नस्लवाद
सिडनी में प्रदर्शन की शुरुआत धुआं करने के परंपरागत महोत्सव के साथ हुई. यहां प्रदर्शन में शामिल होने वालों की एकजुटता सिर्फ जॉर्ज फ्लॉयड के साथ नहीं बल्कि देश के अबोरिजिन मूल निवासियों के साथ भी थी. वे भी पुलिस हिंसा के शिकार रहे हैं. प्रदर्शनकारियों की मांग है कि उनमें से किसी की मौत पुलिस हिरासत में नहीं होनी चाहिए.
तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/I. Khan
प्रिटोरिया: मुक्का तान कर प्रदर्शन
हवा में तना हुआ मुक्का ब्लैक लाइव्स मैटर आंदोलन का प्रतीक चिह्न है. लेकिन यह प्रतीक हाल के आंदोलन से कहीं पुराना है. जब दक्षिण अफ्रीका की नस्लवादी सरकार ने फरवरी 1990 में नस्लवाद विरोधी नेता नेल्सन मंडेला को 27 साल बाद जेल से रिहा किया था, तो वे हवा में मुक्का लहराते जेल से बाहर निकले थे. अभी भी दक्षिण अफ्रीका में गोरी आबादी बेहतर स्थिति में है. रिपोर्ट: डाविड एल