इस तरह के दृश्य अक्सर भूत प्रेत वाली फिल्मों में देखने को मिलते हैं. लेकिन उत्तर और दक्षिण अमेरिका के लोगों ने इस नजारे को अपनी आंखों से देखा. खासकर उन इलाकों में जहां आसमान साफ रहा. स्थानीय समय सुबह एक बजे से ग्रहण लगना शुरू हुआ और अगले साढ़े पांच घंटे इसने लोगों का ध्यान खींच कर रखा. 78 मिनट तक चांद धरती की छाया से ढका रहा. इसी दौरान चांद का रंग पहले नारंगी फिर लाल और फिर थोड़ा भूरा हो गया. स्पेसवैदर डॉटकॉम ने लिखा है कि इस रंग की वजह ज्वालामुखी की राख और अन्य एरोजोल हैं जो चांद के वातावरण में मौजूद हैं.
अमेरिका के अधिकतर हिस्से में इसे देखा जा सका. फ्लोरिडा और कैलिफोर्निया में तो लोग 'ब्लड मून पार्टी' करने के लिए रात भर बाहर रहे. अमेरिका के अलावा ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में भी इसे लोगों ने ब्लड मून देखा.
अंतरिक्ष के लिहाज से 2013 काफी अहम साल रहा. अमेरिका और रूस के साथ साथ भारत और चीन ने भी बड़ी ताकतों के तौर पर अपनी पहचान पक्की कर ली. मंगलयान ने हर भारतीय को गर्व से कहने का हक दिया कि हम भी किसी से कम नहीं.
तस्वीर: picture-alliance/dpaआसमान में टूटते तारों का नजारा खूबसूरत लगता है, पर जब ये धरती पर गिरते हैं तो तबाही मचा सकते हैं. इस साल की शुरुआत इसी तबाही से हुई. फरवरी में रूस में करीब 20 मीटर बड़ा उल्कापिंड गिरा जिससे करीब 1,500 लोग घायल हो गए और 3,000 इमारतों को नुकसान पहुंचा.
तस्वीर: picture-alliance/dpaमार्च में अल्मा यानि अटाकामा लार्ज मिलीमीटर ऐरे ने काम करना शुरू कर दिया. 2011 से यूरोप, अमेरिका, कनाडा, जापान, ताइवान और चिली की मदद से इसे बनाया जा रहा था. इसे दुनिया की सबसे बड़ी और सबसे जरूरी टेलीस्कोप ऑब्जरवेटरी माना जा रहा है.
तस्वीर: picture-alliance/dpaजुलाई में नासा के हबल टेलीस्कोप ने नेपच्यून ग्रह के 14वें चांद को ढूंढ निकाला. एडविन हबल का बनाया यह टेलीस्कोप 1990 से अंतरिक्ष में है. यह नया चांद 1,00,000 किलोमीटर की दूरी पर नेपच्यून ग्रह का चक्कर लगा रहा है.
तस्वीर: picture-alliance/dpaअंतरिक्ष यान केपलर ने इस साल भी कई नए तारों और ग्रहों को खोज निकाला. केपलर 62 नाम का सौर मंडल धरती से करीब 1,200 प्रकाश वर्ष की दूरी पर है और इसमें पांच ग्रह हैं. यह केपलर के लिए बहुत अच्छा साल नहीं रहा और इसके दो पहियों में खराबी आ गयी.
तस्वीर: NASA Ames/JPL-Caltechनवंबर भारत के लिए मंगलमयी महीना रहा. भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो ने 450 करोड़ रुपये खर्च कर मंगल मिशन लॉन्च किया. 300 दिन और करीब 78 करोड़ किलोमीटर का सफर तय कर के मंगलयान लाल ग्रह की कक्षा में पहुंचेगा.
तस्वीर: picture-alliance/dpaमंगलयान के लॉन्च को अभी दो हफ्ते भी पूरे नहीं हुए थे कि अमेरिका ने मावेन (मार्स एटमॉस्फेयर एंड वोलाटाइल इवॉल्यूशन) को अंतरिक्ष के लिए रवाना किया. मंगलयान की ही तरह यह ऑर्बिटर भी सितंबर 2014 में मंगल की कक्षा में पहुंचेगा.
तस्वीर: Getty Imagesनवंबर में यूरोपीय स्पेस एजेंसी ईएसए ने स्वार्म लॉन्च किया जिसके तहत तीन उपग्रह अंतरिक्ष में भेजे गए. स्वार्म का मकसद धरती के चुंबकीय क्षेत्र की जांच करना और यह समझना है कि सूरज का पृथ्वी पर क्या असर होता है. तीनों सैटेलाइट चार साल तक धरती के चक्कर लगाएंगे.
तस्वीर: GFZनवंबर वैज्ञानिकों के लिए काफी दिलचस्प रहा. महीने के अंत में आइसन नाम का धूमकेतु सूरज के करीब 12 लाख किलोमीटर पास पहुंचा. लेकिन यह सूरज की गर्मी बर्दाश्त नहीं कर पाया और धूल में बदल गया.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photoदिसंबर में चीन ने अपना पहला मानवरहित अंतरिक्ष यान 'चांग ई-3' चांद पर भेजा. पिछले करीब चार दशकों में पहली बार चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग हो सकी. चीन ने अपने इस अंतरिक्ष यान का नाम चंद्रमा की देवी चांग ई के नाम पर रखा है.
तस्वीर: picture-alliance/dpaसाल के अंत में यूरोपीय स्पेस एजेंसी ईएसए ने गाइआ मिशन के तहत अंतरिक्ष में एक दूरबीन भेजी है. गाइआ टेलीस्कोप हमारी आकाशगंगा की 3डी तसवीरें भेजेगा.
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ग्रहण जहां एक तरह आसमान की तस्वीरें लेने वालों के लिए एक अनोखा मौका ले कर आया, वहीं नासा के लिए यह सर दर्द भी बना हुआ था. नासा का उपग्रह एलएडीईई (लाडी) चांद की परिक्रमा कर रहा है. वैज्ञानिकों को डर था कि जिस दौरान चांद पर धरती की छाया रहेगी, उपग्रह काम करना बंद कर सकता है. दरअसल ग्रहण के दौरान चांद की सतह और आसपास का तापमान कम होने के कारण उपग्रह के जम जाने का खतरा बना हुआ था. यहां तक कि नासा ने अपनी वेबसाइट पर लिखा, "ग्रहण के दौरान जब आप लोग चांद की खूबसूरती को निहारेंगे, तब लाडी को अपनी दुआओं में जरूर शामिल करिएगा." नासा को डर था कि उपग्रह क्रैश हो जाएगा. हालांकि ऐसा नहीं हुआ.
इस साल होने वाले कुल चार ग्रहणों में यह पहला था. दो हफ्ते बाद ही अमेरिका में सूर्य ग्रहण देखा जाएगा. नासा ने बताया है कि इसके बाद अमेरिका में अगला पूर्ण चंद्र ग्रहण 2019 में होगा.
आईबी/एएम (एएफपी, रॉयटर्स)