अमेरिका के न्यू मेक्सिको में 23,000 साल पुराने मानव पदचिन्ह मिले हैं. इसे इस बात का संकेत माना जा रहा है कि आखिरी हिम युग के अंत से पहले ही उत्तरी अमेरिका में मानव सभ्यता मौजूद थी.
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इस खोज से इस महाद्वीप में सबसे पहले बसने वाले लोगों का इतिहास हजारों साल पीछे चला गया है. ये पदचिन्ह बहुत पहले ही सूख चुकी एक झील के किनारे मिट्टी में पाए गए. यह इलाका अब न्यू मेक्सिको रेगिस्तान का हिस्सा है. धीरे धीरे इन पदचिन्हों में गाद भर गई और ये ठोस हो कर पत्थर बन गए.
इससे हमारे प्राचीन रिश्तेदारों के होने के सबूत का संरक्षण हो पाया और अब वैज्ञानिकों को उनकी जिंदगी के बारे में विस्तार से जानने का मौका मिला है.
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प्राचीन प्रवासन
अमेरिकी पत्रिका साइंस में छपे एक अध्ययन में बताया गया, "कई चिन्ह बच्चों और किशोरों के लगते हैं. वयस्कों के बड़े पदचिन्ह उनसे कम ही हैं. इसका एक कारण तो श्रम विभाजन हो सकता है, जिसके तहत वयस्क ऐसा काम करते हैं जिनमें कौशल लगता हो और 'सामान ढोना और लाना-ले जाना बच्चे करते हैं."
अध्ययन में यह भी लिखा गया, "बच्चे किशोरों के साथ ही चलते थे और दोनों ने साथ मिलकर ज्यादा पदचिन्ह छोड़े हैं." शोधकर्ताओं को इनके अलावा मैमथ, पूर्व ऐतिहासिक भेड़िए और विशालकाय स्लॉथ के पदचिन्ह भी मिले हैं. ऐसा लगता है कि ये पशु भी उसी समय उस झील के आस पास थे जब ये मानव वहां गए थे.
अमेरिका को इंसानों द्वारा बसाए गए आखिरी महाद्वीप के रूप में जाना जाता है. दशकों से सबसे ज्यादा माना जाने वाला सिद्धांत तो यह कहता है कि मानव पूर्वी साइबीरिया से एक जमीनी पुल के जरिए उत्तरी अमेरिका आए थे. यह इलाका आज बेरिंग स्ट्रेट के नाम से जाना जाता है.
अलास्का पहुंचने के बाद ये मानव बेहतर आबहवा की तलाश में दक्षिण की ओर चले गए. मैमथों को मारने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले भालों के सिरों जैसे पुरातात्विक सबूत लंबे समय से 13,500 साल पुरानी एक संस्कृति का संकेत दे रहे थे. इस संस्कृति का तथाकथित क्लोविस संस्कृति से संबंध माना जाता है.
और भी संभावनाएं
इसका नाम न्यू मेक्सिको के एक शहर के नाम पर पड़ा. इसे इस महाद्वीप की पहली सभ्यता माना जाता था और अमेरिकी मूल प्रजाति के नाम से जाने जाने वाले समूहों का अगुआ माना जाता था.
हालांकि पिछले बीस सालों में क्लोविस संस्कृति की अवधारणा को नई खोजों से चुनौती मिली है. इनकी वजह से सबसे पहली बस्तियों की उम्र और पीछे चली गई है. सामान्य रूप से यह नई उम्र भी 16,000 सालों से ज्यादा पुरानी नहीं थी.
यह वो युग है जब तथाकथित "आखिरी ग्लेशियल मैक्सीमम" का अंत हो गया था यानी कि वो काल जिसमें बर्फ की चादरें सबसे ज्यादा क्षेत्रफल में फैली हुई थीं. यह काल करीब 20,000 साल पहले तक चला था.
इसे बेहद अहम माना जाता है क्योंकि यह माना जाता है कि महाद्वीप के उत्तरी इलाकों के अधिकांश हिस्से बर्फ से ढके होने की वजह से एशिया से उत्तरी अमेरिका और उसके आगे मानव प्रवासन बहुत मुश्किल रहा होगा.
अध्ययन के लेखकों का कहना है कि इससे उत्तरी अमेरिका में इंसानों के होने की पहले से ज्यादा ठोस बेसलाइन सामने आई है. हालांकि यह संभव है कि वो इससे भी पहले आए हों.
सीके/ (एपी, एएफपी)
बर्फ में 5,300 सालों से दबा पाषाण युग का मानव "ओट्जी"
हजारों सालों से एक ग्लेशियर में दबे "ओट्जी" की खोज सितंबर 1991 में हुई थी, लेकिन वह आज भी लोगों की जिज्ञासा का केंद्र बना हुआ है.
तस्वीर: Picture-alliance/dpa/M. Rattini/Port au Prince Pictures
सनसनीखेज खोज
जर्मन कपल एरिका और हेल्मुट साइमन को नौ सितंबर को ओट्ज्टाल ऐल्प्स पहाड़ों में बर्फ में जमा हुआ एक मानव मिला. यह जगह ऑस्ट्रिया और इटली की सीमा पर कहीं स्थित थी. शुरू में समझा गया कि यह शायद किसी हाइकर का शव है जिसकी किसी वजह से अचानक मौत हो गई होगी लेकिन बाद में पता चला कि यह पाषाण युग के एक आदमी का शरीर है, जो 5,300 सालों से बर्फ में पड़ा हुआ है. फिर इसे "ओट्जी" का उपनाम दिया गया.
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आकर्षण का केंद्र
कई सालों की सौदेबाजी के बाद एरिका को दक्षिणी टायरॉल राज्य की सरकार से 2,04,899 डॉलर का इनाम मिला. तब तक उनके पति का देहांत हो चुका था. वो पहाड़ों में हाइक करते हुए एक हादसे में मारे गए थे, जिसकी वजह से "ओट्जी के श्राप" जैसी बातें भी चल निकलीं. इसके बावजूद कोविड से पहले बोल्जानो स्थित पुरातत्व संग्रहालय में "ओट्जी" को हर साल देखने आने वालों की संख्या 3,00,000 के आस पास हो गई थी.
तस्वीर: Robert Parigger/APA/dpa/picture alliance
कैसा दिखता होगा
"ओट्जी" के शरीर को संग्रहालय में 99 प्रतिशत आर्द्रता वाले एक बर्फीले कमरे में रखा जाता है. उस पर नियमित रूप से रोगाणु-हीन पानी का छिड़काव किया जाता है. अगर शरीर में कुछ बदलाव हुए तो उनका पता लगाने के लिए एक तोलन यंत्र भी लगा हुआ है. इसे निरीक्षण के लिए सामान्य तापमान के माहौल में कम ही लाया जाता है और वो भी बहुत ही कम समय के लिए. इस तस्वीर के जरिए कल्पना की गई है कि "ओट्जी" कैसा दिखता होगा.
तस्वीर: dapd
किसका "ओट्जी"?
"ओट्जी" की खोज की अहमियत जैसे ही स्पष्ट हुई ऑस्ट्रिया और इटली के बीच इस बात पर झगड़ा शुरू हो गया कि उसे कौन रखेगा. अंत में एक सर्वेक्षण में पाया गया कि उसे दोनों देशों के बीच की सीमा से 92.56 मीटर दूर, इटली की सीमा के अंदर पाया गया था.
तस्वीर: AP
शरीर पर टैटू
"ओट्जी" के शरीर पर 61 टैटू पाए गए. क्रॉस और रेखाएं वाले इन टैटूओं को बनाने वाले ने "ओट्जी" की त्वचा को काट दिया था और बाद में घावों को सख्त कोयले से भर दिया था. यह काफी दर्द भरा तरीका रहा होगा. "ओट्जी" की मौत उसके कंधे में एक तीर के लग जाने से हुई थी. जब उसके शरीर की खोज हुई, वह तीर तब भी उसके शरीर में गड़ा हुआ था.
"ओट्जी" के पेट में जो भी था उसका भी गहन अध्ययन किया गया और पता चला कि उसे अपनी मौत से ठीक पहले काफी गरिष्ठ और चर्बीयुक्त खाना खाया था. इस भोजन में अनाज की एक काफी पुराना किस्म "आइनकॉर्न गेहूं" और बकरे का मांस मिला.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/M.Samadelli
आधुनिक तकलीफें
"ओट्जी" को ऐसी कई स्वास्थ्य समस्याएं थीं जो आज भी पाई जाती हैं. उसे दांतों का खराब होना, लाइम बीमारी और शरीर में पिस्सू होना जैसी समस्याएं थीं. उसे लैक्टोज असहनशीलता भी थी और आग के आस पास काफी ज्यादा वक्त बिताने से उसके फेंफड़े किसी सिगरेट पीने वाले के फेंफड़ों जैसे हो गए थे. उसे हेलिकोबैक्टर पाइलोरी नाम की पेट की समस्या भी थी और हृदय रोग भी थे.
तस्वीर: dpa
"ओट्जी" 2.0"
"ओट्जी" के बारे में और लोग जान सकें इस उद्देश्य से अप्रैल 2016 में उसकी एक प्रति बनाई गई. इटली के युरैक रिसर्च सेंटर के शोधकर्ताओं ने एक थ्रीडी प्रिंटर की मदद से राल का इस्तेमाल कर उसकी एक प्रति बनाई. उसके बाद अमेरिकी पैलियो आर्टिस्ट गैरी स्ताब ने उसकी बारीकियों को उभारा. वो अब न्यू यॉर्क के कोल्ड स्प्रिंग हार्बर लैबोरेटरी के डीएनए लर्निंग सेंटर में है. (टॉर्स्टन लैंड्सबर्ग)