अमेरिका से बातचीत पर सोचेगा हक्कानी गुट
१३ नवम्बर २०१२![](https://static.dw.com/image/16221679_800.webp)
हक्कानी नेटवर्क की तरफ से इस तरह के लचीले रुख की उम्मीद नहीं रहती. लचीलेपन के इस संकेत के साथ चेतावनी भी जुड़ी हुई है कि हक्कानी गुट पश्चिमी ताकतों पर दबाव बनाने के लिए हमले जारी रखेगा और इस्लामी राष्ट्र कायम करने की कोशिशें जारी रखेगा. हक्कानी नेटवर्क पाकिस्तान अफगानिस्तान की सीमा पर सक्रिय है. नेटवर्क का कहना है कि वह अफगान तालिबान का हिस्सा है और शांति प्रक्रिया पर उनके फैसले के हिसाब से ही रुख तय करेगा.
हक्कानी नेटवर्क के इस कमांडर ने खुद की पहचान बताने से मना कर दिया. उसने यह आरोप भी लगाया कि अमेरिका शांतिवर्ता में संजीदा नहीं है और दोनों संगठनों के बीच दरार पैदा करने की कोशिश में जुटा है. किसी अज्ञात जगह से टेलीफोन पर रॉयटर्स से बातचीत में हक्कानी के इस कमांडर ने कहा, "हालांकि तालिबान के सुप्रीम कमांडर मुल्ला मोहम्मद उमर के नेतृत्व वाला सेंट्रल शूरा अगर अमेरिका से बातचीत का फैसला करता है तो हम उसका स्वागत करेंगे."
अमेरिका ने हक्कानी नेटवर्क को सितंबर में आतंकवादी संगठन घोषित कर दिया. हक्कानी कमांडर ने इसी कदम को इस बात का सबूत माना है कि अमेरिका अफगानिस्तान के लिए शांति प्रक्रिया में संजीदा नहीं है.
हक्कानी नेटवर्क अफगानिस्तान में नाटो सेनाओं की वापसी के बाद स्थिरता लाने की कोशिशों में जुटे राष्ट्रपति बराक ओबामा के लिए सुरक्षा की सबसे बड़ी चुनौती साबित हो सकता है. छापामार युद्ध में इस गुट को सोवियत सेनाओं के खिलाफ लड़ी जंग के जमाने से ही अनुभव हासिल है. यह जंग 1980 के दशक में हुई थी. इसके अलावा इसका मजबूत वित्तीय नेटवर्क शांति की कोशिशों को ध्वस्त करने में बड़ी भूमिका निभा सकता है जो अभी शुरुआती दौर में ही है.
कमांडर ने कहा कि हक्कानी नेटवर्क ओबामा के दोबारा चुने जाने से खुश है. हक्कानी नेटवर्क को उम्मीद है कि जंग के मैदान में मिल रही ओबामा को निराशा विदेशी फौजों की समय से पहले अफगानिस्तान से वापसी कराएगी. कमांडर ने कहा, "जमीन पर जो हम देख रहे हैं उससे लगता है कि ओबामा फौजों को वापस बुलाने के लिए 2014 का इंतजार नहीं करेंगे. उन लोगों ने धन और जीवन का भारी नुकसान देखा है, वो अब और नुकसान उठाने की स्थिति में नहीं हैं." तालिबान ने मार्च में कहा था कि वो अमेरिका के साथ शांति वार्ता को स्थगित कर रहे हैं.
तालिबान के साथ बातचीत की कोशिशों में शामिल एक वरिष्ठ अधिकारी ने पिछले हफ्ते बताया कि तालिबान के साथ बातचीत शुरू करने में सरकार नाकाम रही है और 2014 के पहले कोई बड़ा बदलाव होने की उम्मीद नजर नहीं आ रही है.
एनआर/ओएसजे(रॉयटर्स)