फ्रांस में होने वाली जलवायु वार्ता का मकसद जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए वित्तीय कोष जुटाना है. लेकिन सम्मेलन के ठीक एक दिन पहले फ्रांस ने अमेरिकी रिसर्चरों को वित्तीय मदद देने की घोषणा है.
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राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों को उम्मीद है कि फ्रांस के इस कदम से जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में निजी और सरकारी प्रोत्साहन मिलेगा. अमेरिका के "पेरिस जलवायु समझौते" से बाहर निकलने के बाद फ्रांस ने "मेक अवर प्लेनेट ग्रेट अगेन" नाम से यह कार्यक्रम शुरू किया है. सोमवार को एक स्टार्टअप इनक्यूबेटर "स्टेशन एफ" के मंच से दिए अपने भाषण में माक्रों ने कहा, "हम शोधार्थियों को बेहतर संसाधन देंगे, समय देंगे ताकि वे फ्रांस में आकर काम कर सकें." उन्होंने इस मौके पर वित्तीय मदद पाने वाले कुछ रिसर्चरों के नामों की घोषणा भी की. स्टार्टअप इनक्यूबेटर ऐसी कंपनियां होती हैं जो नए स्टार्टअप को बाजार में स्थापित होने में मदद करती हैं.
माक्रों ने उम्मीद जताई कि अमेरिका का बाहर पेरिस जलवायु संधि से निकलना निजी क्षेत्र के लिए भागीदारी बढ़ाने का मौका है. इस शोध कार्यक्रम में सबसे पहली प्राथमिकता अमेरिकी वैज्ञानिकों को दी जाएगी. इसके बाद इसे गैर-फ्रांसीसी शोधकर्ताओं को तरजीह मिलेगी. बयान में कहा गया है कि शुरुआती 18 अनुदानों में से 13 अमेरिकी वैज्ञानिकों को दिए जाएंगे, जो फ्रांस में रहते हुए तीन से पांच साल तक शोध कर सकेंगे.
किन देशों को पड़ रही है मौसम की मार
बॉन में चल रहे जलवायु सम्मेलन के दौरान जर्मनी की गैरलाभकारी संस्था जर्मनवॉच ने ग्लोबल क्लाइमेट इंडेक्स, 2018 जारी किया. यह ऐसे देशों की सूची है जहां जलवायु परिवर्तन का असर सबसे अधिक रहा.
तस्वीर: Reuters/Jitendra Prakash
हैती
रिपोर्ट के मुताबिक हैती की अर्थव्यवस्था सितंबर 2016 के मैथ्यू और निकोल चक्रवात के चलते बुरी तरह प्रभावित हुई है.
तस्वीर: AFP/Getty Images/E. Santelices
जिम्बाब्वे
अल नीनो जैसी मौसमी दशाओं के चलते देश में सूखा पड़ा जिसके चलते कृषि को खासा नुकसान हुआ.
तस्वीर: Reuters/B. Stapelkamp
3. फिजी
सम्मलेन की अध्यक्षता कर रहे फिजी की अर्थव्यवस्था को भी जलवायु परिवर्तन का खामियाजा भुगतना पड़ा. चक्रवात विंस्टन के चलते यहां काफी तबाही मची
तस्वीर: NU-EHS/C. Corendra
श्रीलंका
बीते साल मई के रोआनू तूफान ने देश की तटीय क्षेत्रों को बहुत अधिक प्रभावित किया. जिसके चलते बड़े हिस्से सूखाग्रस्त भी रहे
तस्वीर: Getty Images/AFP/L. Wanniarachchi
वियतनाम
वियतनाम में साल 2016 में सूखा पड़ा, जिसे पिछले 100 सालों का सबसे भयंकर सूखा कहा गया.
तस्वीर: Getty Images/AFP
भारत
भारत में 2 हजार लोग प्राकृतिक आपदाओं के चलते मारे गये. साथ ही दक्षिणी भारत में चेन्नई के निकट आये चक्रवात वर्धा ने बड़ी संख्या में लोगों को प्रभावित किया.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/B. Rout
ताइवान
ताइवान में जोरदार ठंड के चलते 85 लोगों की मौत हो गयी. साल 2016 में इस क्षेत्र में यहां 6 टायफून आये थे.
तस्वीर: Getty Images/B.H.C.Kwok
रिपब्लिक ऑफ मैसेडोनिया
साल 2016 के दौरान मैसेडोनिया में तापमान -20 डिग्री तक कम हो गया. यहां बाढ़ ने भी काफी लोगों को प्रभावित किया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/G. Licovski
बोल्विया
साल 2016 में बोलिविया की राजधानी ला पेज में जबरदस्त सूखा पड़ा. साथ ही भूस्खलन ने लोगों को सीधे तौर पर प्रभावित किया.
तस्वीर: AP
अमेरिका
अमेरिका के उत्तरी और दक्षिणी कैरोलाइना में बाढ़ और तूफान में कई जानें गयी. पिछले कुछ समय से अमेरिका में जलवायु परिवर्तन का असर सीधे तौर पर नजर आ रहा है.
तस्वीर: picture alliance/AP Images/G. Herbert
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मंगलवार को होने वाले "वन प्लेनेट सम्मिट" में इस पर और विस्तार से चर्चा होगी. इस सम्मेलन में राजनीति और कारोबार जगत से जुड़े अहम लोगों के साथ साथ निवेशक भी मौजूद होंगे. इनमें संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेश, विश्व बैंक के अध्यक्ष जिम यांग किम, ब्रिटेन की प्रधानमंत्री टेरीजा मे, स्पेन के प्रधानमंत्री मारियानो रखोय, यूरोपीय आयोग के अध्यक्ष ज्याँ क्लोद युंकर शामिल होंगे.
जर्मनी की पर्यावरण मंत्री बारबरा हेंड्रक्सि ने कहा, "जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए दुनिया को और बेहतर ढंग से निवेश करना चाहिए. इस मामले में बड़ी और निजी कंपनियों को भी आगे आना होगा."
आज से दो साल पहले 12 दिसंबर को ही पेरिस में 195 देशों ने ग्लोबल वॉर्मिंग के खतरों से निपटने के लिए पेरिस जलवायु समझौते को अपनाया था.
कैसे काम करता है कृत्रिम सूर्य
जर्मन एयरोस्पेस एजेंसी डीएलआर ने कृत्रिम सूर्य बनाया है. इसकी मदद से वैज्ञानिक तापमान और विकिरण की अंजान दुनिया में झांकते हैं.
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कृत्रिम सूर्य का ढांचा
जर्मन शहर यूलिष में 149 रिफ्लेक्टर लैंपों का यह ढांचा ही कृत्रिम सूर्य है. देखने में भले ही यह सामान्य सा लगे लेकिन इससे 3,000 डिग्री सेल्सियस की गर्मी पैदा की जा सकती है. इससे सूरज की रोशनी के मुकाबले 10 गुना ज्यादा विकिरण निकलता है.
तस्वीर: DLR/Markus Hauschild
ताप का खेल
149 शक्तिशाली लैपों की प्रोजेक्टर रोशनी को एक ही जगह पर केंद्रित किया जाता है. सारी रोशनी एक गोल्फ की गेंद के बराबर छोटे आकार पर फोकस की जाती है. और तब जाकर 3,000 डिग्री सेल्सियस की गर्मी पैदा होती है. इतनी गर्मी किसी भी धातु को सेकेंडों में पिघला देती है.
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सूर्य से अलग
आम तौर पर पृथ्वी पर पड़ने वाली सूर्य की रोशनी हर वक्त बदलती रहती है. वायुमंडल में मौजूद नमी, धूल और अन्य तत्व हर वक्त विकिरण में परिवर्तन करते रहते हैं. विशाल लैब के भीतर मौजूद कृत्रिम सूर्य के साथ ऐसा नहीं होता.
तस्वीर: DLR
एक सा माहौल
लैब के भीतर एक जैसा माहौल रहने से विकिरण संबंधी शोध किये जाते हैं. यह देखा जाता है कि अलग अलग रसायनों और प्राकृतिक तत्वों पर विकिरण का कैसा असर पड़ता है. प्रयोग के दौरान रोशनी घटायी या बढ़ायी जा सकती है.
तस्वीर: picture alliance/dpa/C. Seidel
कोई मैटीरियल नहीं
लेकिन वैज्ञानिकों के सामने एक मुश्किल है. परेशानी यह है कि 3,000 डिग्री के तापमान को बर्दाश्त करने के लिए कौन सा मैटीरियल इस्तेमाल किया जाए? पृथ्वी पर मौजूद ज्यादातर पदार्थ अधिकतम 1,800 या 2,000 डिग्री सेल्सियस तक का ही तापमान बर्दाश्त कर सकते हैं.
तस्वीर: picture alliance/dpa/C. Seidel
रिएक्टर बनाने की चुनौती
ऐसे में 3,000 डिग्री के ताप के लिए रिएक्टर कैसे बनाया जाए, यह चुनौती है. फिलहाल जो रिएक्टर बनाया गया है वह 1,800 डिग्री सेल्सियस का तापमान बर्दाश्त कर सकता है.
तस्वीर: DLR/Markus Hauschild
हाइड्रोजन का निर्माण
असल में 1,400 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर पानी की भाप हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में टूटने लगती है. वैज्ञानिक सौर ऊर्जा और कृत्रिम सूरज के सहारे बड़े पैमाने पर हाइड्रोजन का निर्माण करना चाहते हैं.
तस्वीर: Imago/Science Photo Library
ताप संबंधी प्रयोग
आखेन के निकट यूलिष शहर में डीएलआर ने एक मिरर पार्क भी बनाया है. असल में यह सोलर थर्मल पावर प्लांट हैं. 2,100 विशाल दर्पण सूर्य की रोशनी को परावर्तित कर एक टावर पर फोकस करते हैं. इससे करीब 1600 से 2000 डिग्री तक तापमान पैदा होता है.
तस्वीर: DW/O. S. Janoti
कृत्रिम सूर्य के लिए बिजली
दर्पण वाले पार्क की मदद से बनी बिजली का इस्तेमाल कृत्रिम सूर्य को चमकाने के लिए किया जाता है. कृत्रिम सूर्य को बहुत ज्यादा बिजली चाहिए. चार घंटे में ही वह चार घरों की सालाना बिजली के बराबर ऊर्जा इस्तेमाल करता है.
तस्वीर: DW/O. S. Janoti
बिजली और गर्मी
इस गर्मी से पानी खौलाया जाता है और उस भाप से बिजली बनती है. इसके साथ ही वैज्ञानिक गर्मी को स्टोर करने के तरीके भी खोज रहे हैं. डीएलआर अब तक गर्मी को एक हफ्ते तक सुरक्षित रख पा रहा है.
तस्वीर: DW/O. S. Janoti
भारत और अफ्रीका के लिए अहम
डीएलआर के वैज्ञानिकों के मुताबिक ऐसे थर्मल पावर प्लांट भारत और अफ्रीका के लिए खासे कारगर साबित हो सकते हैं. धूप का सही इस्तेमाल किया जाए तो पांच मेगावॉट बिजली प्रति वर्गमीटर हासिल की जा सकती है.