1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

अमेरिकी अर्थशास्त्रियों को नोबेल

१५ अक्टूबर २०१२

विश्व में एक तरफ देनदार हैं तो दूसरी तरफ जरूरतमंद. इन्हें आपस में कैसे जोड़ा जा सकता है, इस संबंध में सिद्धांत बनाने वाले दो अमेरिकी अर्थशास्त्रियों को इस साल अर्थशास्त्र के नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया है.

तस्वीर: Reuters

तमाम कयासों और अनुमानों को धता बताते हुए नोबेल पुरस्कार समिति ने सम्मान के लिए अमेरिका के लॉयड शैप्ले और एल्विन रॉथ के नाम का एलान किया. 89 साल के शैप्ले और 60 साल के रॉथ ने दिलचस्प शोध किया. उनके शोध का विषय था कि अलग अलग आर्थिक पहलुओं को आपस में कैसे मिलाया जाए.

पुरस्कार से जितने हैरान कयास लगाने वाले हुए उतना ही आश्चर्य रॉथ को भी हुआ, "नहीं, इसकी बिल्कुल उम्मीद नहीं थी, लेकिन मुझे यह उम्मीद जरूरत थी कि लॉयड शैप्ले पुरस्कार जीतेंगे. उनके साथ इस पुरस्कार को साझा कर मैं गदगद हूं."

रॉथ और शैप्ले का शोध बताता है कि कैसे अंगदान करने की ख्वाहिश रखने वाले लोगों को जरूरतमंद से मिलाया जा सकता है. कैसे छात्रों को उचित यूनिवर्सिटी तक पहुंचाया जा सकता है या फिर इंटरनेट सर्च इंजन कैसे विज्ञापन के लिए बनाई गई जगह की नीलामी कर सकते हैं.

हालांकि शुरुआती वर्षों में दोनों ने अलग अलग ढंग से अपना शोध किया. 1962 में शैप्ले ने प्रयोग किया कि शादियां टिकाऊ कैसे रहती हैं. प्रयोग के दौरान उन्होंने दो अलग अलग विचारधारा वाले पति पत्नी के वैवाहिक जीवन का अध्ययन किया. इस दौरान उन्होंने देखा कि कैसे विचारधारा में बड़े फर्क के बावजूद दोनों खुशी खुशी साथ हैं.

दूसरी तरफ रॉथ भी ऐसे ही प्रयोग कर रहे थे. सोच की समानता और एक दिशा में जाते शोध ने शैप्ले और रॉथ को मिला दिया. दोनों अध्ययन करते रहे कि कैसे तेल के दाम बढ़ने से ग्राहक ऊर्जा बचाने लगते हैं. कैसे ऊंची तनख्वाह वाली नौकरी खास वर्ग को अपनी तरफ खींचती है. शैप्ले और रॉथ के मुताबिक ये बातें सब जानते हैं लेकिन इसके बावजूद बाजार के इन अलग अलग तत्वों को मिलाने की खास कोशिशें नहीं देखी जा रही हैं. नोबेल पुरस्कार विजेताओं के मुताबिक इसमें सिर्फ पैसा ही सब कुछ नहीं है. पैसा यह तय नहीं करता कि लेनदार या देनदार क्या फैसला करेगा.

शोध के बाद दोनों ने एक सिंद्धात पेश किया. इसे 'द थ्योरी ऑफ स्टेबल एलोकेशन एंड प्रैक्टिस ऑफ मार्केट डिजाइन' कहा गया है. दोनों अर्थशास्त्रियों को रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंस 12 लाख डॉलर का इनाम देगी.

तस्वीर: dapd

हैरानी की बात रही कि धुरंधर इन दोनों के नाम पर बिल्कुल भी अटकल नहीं लगा रहे थे. कयास लगाने वालों की जुबान पर रॉबर्ट शिलर, कारमन राइनहार्ट, केनेथ रॉगोफ और पॉल रोमर के नाम थे. अमेरिका के शिलर बाजार के औचक व्यवहार और बिहेवियरल फाइनेंस के विशेषज्ञ हैं. रॉगोफ और राइनहार्ट सार्वजनिक व्यय के धुरंधर हैं. पॉल और रोमर विकास के अलग अलग प्रकार का सिद्धांत गढ़ चुके हैं.

अर्थशास्त्र के लिए नोबेल पुरस्कार देने की शुरुआत 1969 में हुई. तब यह पुरस्कार नॉर्वे के रागनर अंटोन किटिल फ्रिश और नीदरलैंड्स के यान टिनबेर्गेन ने जीता. दक्षिण एशिया के खाते में अर्थशास्त्र का नोबेल 1998 में आया. भारतीय अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने यह सम्मान हासिल किया.

बीते साल दो अमेरिकी अर्थशास्त्रियों को 'मूल कारण और उसके परिणाम' के सिद्धांत के लिए अर्थशास्त्र का नोबेल मिला. क्रिस्टोफर सिम्स और थोमस सारजेंट ने 1970 से 1980 के दशक में यह सिद्धांत प्रतिपादित किया. उनके सिद्धांत से केंद्रीय बैंकों को नीतियां बनाने और चुनौतियां खोजने में मदद मिली.

वैसे अब तक अर्थशास्त्र के नोबेल पर ज्यादातर अमेरिकी बुद्धिजीवियों का ही बोलबाला रहा है. अमेरिका के 40 से ज्यादा अर्थशास्त्री यह प्रतिष्ठित पुरस्कार जीत चुके हैं. बीते दस साल में जिन 20 अर्थशास्त्रियों ने नोबेल जीता है, उनमें से 17 अमेरिकी हैं.

ओएसजे/एएम (एएफपी)

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी

और रिपोर्टें देखें
डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें