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अमेरिकी उप राष्ट्रपति का मध्यपूर्व दौरा

९ मार्च २०१०

अमेरिका के उप राष्ट्रपति जो बाइडन मध्य पूर्व दौरे पर इस्राएल पहुंचे हैं. बिडेन का मुख्य फ़ोकस मध्य पूर्व शांति प्रक्रिया पर होगा. 14 महीनों से इस्राएल और फ़लीस्तीनियों के बीच किसी तरह की सीधी बातचीत नहीं हुई है.

जो बाइडनतस्वीर: picture-alliance/ dpa

अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने साल भर पहले शपथ ली थी तब उन्होंने कहा था कि इस्राएल और फ़लीस्तीनियों के बीच शांति लाना उनका सबसे अहम लक्ष्य है. इस घोषणा के बाद जो बाइडन अमेरिका के सबसे उच्च अधिकारी हैं जो मध्य पूर्व पहुंचे हैं.

गज़ा पट्टी में हुए युद्ध के बाद से फ़लीस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास ने नई शांति वार्ता को स्थापित करने के लिए शर्तें रखीं थीं. उदाहरण के लिए उन्होंने कहा कि बातचीत तभी हो सकती है अगर इस्राएल जॉर्डन के पश्चिमी तट पर नई बस्तियां बनाना बंद कर दे. लेकिन इस्राएल ऐसा करने के लिए तैयार नहीं है. रविवार को फ़लीस्तीनी मुक्ति संगठन की कार्यकारी समिति ने कहा कि वो इस्राएल के साथ बातचीत करने के लिए तैयार हैं. लेकिन सीधी बातचीत नहीं होगी, बल्कि जॉर्ज मिचेल की मध्यस्थता में यह वार्ता होगी.

फ़लीस्तीन के मुख्य वार्ताकार साएब एरेकात का कहना है कि इस्राएल को समस्या का हल ढूंढने के लिए स्पष्ट प्रस्ताव रखने की ज़रूरत है. उन्होंने कहा, ''इस्राएल की सरकार को अनुमति नहीं दी जानी चाहिए कि वह शांति के लिए इस ऐतिहासिक मौके को खो बैठे. मेरी यही आशंका है कि यदि बस्तियां बनने की इस्राएली रणनीति से हालात ऐसे बनते हैं कि गतिरोध हो जाए तो पूरा क्षेत्र कट्टरपंथियों के हाथों में आ सकता है. यानी हिंसा पर जवाबी हिंसा ही होती जाएगी.''

ग़ज़ा पट्टीतस्वीर: AP

वैसे, इस्राएल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतनयाहू ने कहा कि वह फ़लीस्तीनी राष्ट्रपति अब्बास के साथ सीधे बात करने से ज़्यादा खुश होते. लेकिन उन्होने कहा है कि अगर एक मध्यस्थ के ज़रिए बात करना ही एकमात्र रास्ता है, और दोनों पक्ष इस तरह से बातचीत फिर से शुरू करते हैं तो इस्राएल इसके लिए तैयार है. उनका कहना है, ''अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इसे स्वीकार किया गया है कि इस्राएल शांति वार्ता को एक बार फिर शुरू करना चाहता है और मै यह एक बार फिर स्पष्ट करना चाहता हूं, हम इस वार्ता को परिणाम के साथ समाप्त भी करना चाहते हैं.''

लेकिन नेतनयाहू ने यह भी स्पष्ट किया है कि इस्राएल के लिए येरूशलम देश की राजधानी है, और उसे कई हिस्सों में बांटना संभव नहीं है. अगर एक देश फ़लीस्तीन बनता है तब उसकी कोई सेना नहीं होनी चाहिए.

इन कड़ी शर्तों को देखते हुए अमेरिकी उप राष्ट्रपति जो बाइडन और अमेरिकी राजदूत मिचेल पूरी कोशिश कर रहे हैं कि दोनों पक्षों के बीच बातचीत का महौल बनाया जाए. बाइडन इस्राएल के साथ ईरान के मुद्दे पर भी बात करना चाहते हैं. वह चाहते हैं कि इस्राएल हिंसा के बिना ईरान के साथ परमाणु विवाद को लेकर क़दम उठाए. इस्राएल का ईरान पर रुख फ़लीस्तीनियों के साथ बातचीत के लिए भी महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि ईरान के राष्ट्रपति महमूद अहमेदीनेजाद ने इस्राएल को धमकी दी है कि अगर फ़लीस्तीनियों को उनका हक़ नहीं दिया गया तो इस्राएल को गंभीर परिणाम भुगतने होंगे.

रिपोर्ट: एजेंसियां/ प्रिया एसेलबॉर्न

संपादन: ओ सिंह

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