ऐसा पहले छोटे देशों के साथ होता था. अब यूरोपीय सुरक्षा और सहयोग संगठन ने अमेरिका की चुनाव व्यवस्था की आलोचना की है. राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार डॉनल्ड ट्रंप पहले ही चुनाव प्रक्रिया पर संदेह जता चुके हैं.
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अमेरिका में अगले महीने राष्ट्रपति चुनाव हो रहे हैं. रिपब्लिकन उम्मीदवार डॉनल्ड ट्रंप चुनाव प्रक्रिया सहित हर लोकतांत्रिक संस्था पर सवाल उठाए हैं. उन्होंने चुनाव नतीजों को स्वीकार करने पर भी स्पष्ट बयान नहीं दिया है और कहा है कि उसे तभी स्वीकार करेंगे जब वे जीतेंगे. अब यूरोपीय सुरक्षा व सहयोग संगठन ने अमेरिकी चुनाव व्यवस्था की आलोचना करते हुए कहा है कि विश्व के सबसे पुराने लोकतांत्रिक देश में 60 लाख से ज्यादा नागरिक मतदान में हिस्सा नहीं ले पाएंगे. संगठन के चुनाव पर्यवेक्षक आयोग के प्रमुख मिषाएल लिंक ने चुनाव प्रक्रिया की आलोचना करते हुए कहा है, "कई प्रांतों में पूर्व और मौजूदा कैदियों का मताधिकार बिना किसी अंतर के छीन लिया गया है."
इसके अलावा मतदान करने के लिए सख्त शर्तें रखी गई हैं. बहुत सी जगहों पर वोट डालने के लिए तस्वीर वाला परिचयपत्र जरूरी है. अमेरिका में हर किसी के पास तस्वीर वाला परिचयपत्र नहीं है, क्योंकि यह दस्तावेज बहुत ही महंगा है और उसे लेना हर किसी के वश की बात नहीं है. लिंक का कहना है कि इसकी वजह से गरीब तबके के लोगों के साथ चुनाव में भेदभाव हो रहा है. लिंक ने कहा है कि चुनाव में धांधली की जो शिकायत रिपब्लिकन उम्मीदवार डॉनल्ड ट्रंप ने की है, उसके संकेत फिलहाल पर्यवेक्षक दल नहीं देख रहा है. लेकिन उनके विचार में पारदर्शिता और प्रशासन के मामले में अमेरिकी चुनाव पद्धति में अभी बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है. यूरोपीय सुरक्षा और सहयोग संगठन 300 पर्यवेक्षकों के साथ अमेरिकी चुनाव की निगरानी करेगा. उनमें से एक हिस्सा अमेरिका पहुंच चुका है.
रूसकेसाथविवाद
इस बीच रूस द्वारा अमेरिकी चुनाव में अपने पर्यवेक्षक भेजने पर भी विवाद भड़क गया है. रूसी मीडिया ने पिछले हफ्ते रिपोर्ट दी थी कि टेक्सस, ओक्लाहोमा और लुइजियाना प्रांतों में चुनाव का पर्यवेक्षण करने के रूसी अधिकारियों के आग्रह को ठुकरा दिया गया था. इस पर प्रतिक्रिया देते हुए अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता जॉन किरबी ने कहा कि भले ही ये आग्रह प्रोपेगैंडा लगता हो, लेकिन रूस का पर्यवेक्षकों को भेजने के लिए स्वागत है. किरबी ने कहा कि रूसी अधिकारियों को यूरोपीय सुरक्षा व सहयोग संगठन के पर्यवेक्षक दल में शामिल होने का प्रस्ताव दिया गया था.
यूरोपीय सुरक्षा व सहयोग संगठन अमेरिका सहित अपने सदस्य देशों में चुनाव प्रक्रिया की निगरानी करता है. अमेरिका का आरोप है कि रूसी हैकरों ने डेमोक्रैटिक पार्टी के अधिकारियों के ईमेल हैक कर चुनाव प्रक्रिया को प्रभावित करने की कोशिश की है. व्हाइट हाउस के प्रवक्ता जोश अर्नेस्ट ने कहा है कि अगर स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव प्रक्रिया को समझने में उनकी दिलचस्पी होती तो रूसी पर्यवेक्षक यूरोपीय सुरक्षा व सहयोग संगठन के मिशन में शामिल हो सकते थे.
एमजे/वीके (एएफपी, डीपीए)
राष्ट्रपति भवनों का वैभव
रूस के पास क्रेमलिन, अमेरिका के पास व्हाइट हाउस और फ्रांस में एलिसी पैलेस है. अब तुर्की में भी नया राष्ट्रपति भवन बना है. यह भी बाकी राष्ट्रपति भवनों जैसा ही है यानि विशाल, दिखावे और चमक दमक से भरपूर.
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अवैध इमारत?
तुर्की राष्ट्रपति रैजब तईप एर्दोवान अंकारा में अपने भवन को व्हाइट पैलेस कहते हैं. इस बड़ी इमारत में हजार कमरे हैं. यहां के कमरे साउंड प्रूफ हैं और कमांड सेंटर एटम बम से सुरक्षित है. आलोचक इसे दिखावटी कह रहे हैं और अवैध सरकारी इमारत भी. क्योंकि अदालती आपत्ति के बावजूद इसे बनाया गया.
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पेट्रोल का पैसा
कजाकिस्तान की राजधानी में सरकारी इमारतें लगातार अपना रंग बदलती रहती हैं. इसलिए यहां का राष्ट्रपति भवन अमेरिकी व्हाइट हाउस की चमकीली कॉपी लगता है. नूरसुल्तान नजरबायेव सोवियत काल में भी राष्ट्रपति थे. उनके परिवार की संपत्ति सात अरब डॉलर की बताई जाती है.
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तुर्कमेनिस्तान में राजा की दीवानगी
अश्गाबाग के इस पैलेस में पूरी शानोशौकत के साथ राष्ट्रपति बर्दीमुखामिदोव रहते हैं. वह देश के संस्थापक नियाजोव के निजी डॉक्टर थे. राजा के आलोचकों को पागलखाने भेज दिया जाता था. 2006 में नियाजोव के निधन के बाद उनके दांत के डॉक्टर बर्दीमुखामिदोव राष्ट्रपति बने.
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कीव में शाही इमारत
यह शाही इमारत कीव के पास बेदखल राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच ने बनवाई थी. 2010 में राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने इसे 80 लाख यूरो खर्च कर बनवाया था. उनके भागने के बाद उनकी जमीन पर बनी झील से दस्तावेज निकाले गए और उन्हें काफी मेहनत के बाद इंटरनेट में जारी किया गया.
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सोना ही सोना
पुराने यूक्रेनी राष्ट्रपति का घर कुछ ऐसा दिखता था. भ्रष्टाचार के कारण यानुकोविच फंदे में आए. बताया जाता है कि उन्होंने हजारों यूरो की धांधली की. उनके बेटे विक्टर और अलेक्जांडर भारी आर्थिक मंदी में भी उनके कारण अमीर हो गए.
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दीवानगी
यह भारी भरकम इमारत आज भी रुमेनिया की राजधानी बुखारेस्ट में खड़ी है. पेंटागन के बाद यह दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी इमारत है. दो लाख पैंसठ हजार वर्ग मीटर में फैली यह इमारत 84 मीटर ऊंची है और इसमें 3,000 कमरे हैं. 1984 में उत्तर कोरिया यात्रा के दौरान निकोली चाउषेस्कू को इसे बनाने का आयडिया आया. अरबों डॉलर की इस इमारत को खड़ा करने के लिए एक पूरी कॉलोनी ध्वस्त कर दी गई.
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पेरिस का शाही दिखावा
फ्रांसीसी राष्ट्रपति भवन एलिसी पैलेस बहुत ही वैभवशाली है. यहां कई ऐतिहासिक कलाकृतियां और फर्नीचर रखा हुआ है. सीमेंट की दीवारें सिर्फ तहखाने में हैं जहां मोटे लोहे के दरवाजों के पीछे परमाणु हथियारों का कमांडो सेंटर 'फोर्स दे फ्राप' छिपा कर रखा हुआ.
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ईरान का वैभव
पूर्वोत्तर तेहरान में सादाबाद कॉम्प्लेक्स में 18 पैलेस हैं. 1920 के दौरान रेजा शाह पहलावी ने इसका विस्तार किया और इसे निवास और दफ्तर के तौर पर इस्तेमाल किया. ग्रीन पैलेस आखिरी शाह और उनकी पत्नी सोराया के लिए गर्मियों का निवास था.
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दोहा में
इस पैलेस में शेख हमाद बिन खलीफा अल थानी रहते हैं. उन्होंने पश्चिम कतर को पश्चिम के लिए खोला और 1996 में अल जजीरा चैनल की शुरुआत की. इन दिनों यह देश थोड़ा अलग थलग है क्योंकि वह मिस्र में मुस्लिम ब्रदरहुड का समर्थक है और संदेह है कि देश आतंकी गुटों को आर्थिक मदद देता है.
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आकरा में
यह शाही पैलेस घाना का राष्ट्रपति भवन है. अफ्रीका का ऐसा देश जहां स्थिरता और संपन्नता है. कोको और सोने के निर्यात से यहां काफी पैसा है. हालांकि घाना की दो करोड़ तीस लाख जनसंख्या का आधा हिस्सा गरीबी में रह रहा है. इसका मुख्य कारण पुरानी सरकार का भ्रष्टाचार है.
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सुंदर कला
दुनिया के अधिकतर राष्ट्रपति भवनों में बेहतरीन कला के नमूने रखे हए हैं. मेक्सिको सिटी के राष्ट्रपति भवन में एक बड़ी पेटिंग को निहारते हुए जर्मनी के विदेश मंत्री फ्रांक वाल्टर श्टाइनमायर.
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बर्लिन में
जर्मनी की राजधानी बर्लिन में श्लॉस बेलव्यू राष्ट्रपति भवन है. श्प्रे नदी के किनारे यह इमारत 1786 में फर्डिनांड फॉन प्रॉयसन का निजी निवास थी. यहां के बागीचे के समर फेस्टिवल लोगों में काफी लोकप्रिय हैं.