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अमेरिकी चुनाव में पैसों का कितना बड़ा खेल

२७ नवम्बर २०१९

दुनिया के सबसे अमीर लोगों में एक माइकल ब्लूमबर्ग क्या अपनी दौलत के दम पर अमेरिका के राष्ट्रपति भी बन सकते हैं. अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में पैसे के इस्तेमाल पर बहस तेज हो गई है.

USA | New Yorker Ex-Bürgermeister Michael Bloomberg
तस्वीर: Getty Images /Hudson River Park/B. Bedder

चुनाव में पैसे का खेल कोई नई बात नहीं और अमेरिका के राष्ट्रपति का चुनाव भी इससे अछूता नहीं है. पिछली बार ट्रंप के चुनाव मैदान में उतरने से जिस बहस को हवा मिली थी वो इस बार ब्लूमबर्ग के दौड़ में शामिल होने के बाद और तेज हो गई है.

न्यू यॉर्क के भूतपूर्व मेयर ब्लूमबर्ग की निजी संपत्ति 50 अरब अमेरिकी डॉलर से ज्यादा है. शनिवार को ब्लूमबर्ग के एक प्रमुख सलाहकार ने कहा कि वे डॉनल्ड ट्रंप को अगले साल चुनाव में हराने के लिए "जितना जरूरी होगा" उतना खर्च कर सकते हैं. बफैलो यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान के एसोसिएट प्रोफेसर जैकम नील हाइजेल बताते हैं कि कई यूरोपीय देशों के उलट अमेरिका में किसी उम्मीदवार के चुनाव पर पैसा खर्च करने की कोई सीमा नहीं है.

तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/M. Rourke

कितना चंदा कितना खर्च

अमेरिका के कानून में यह तय किया गया है कि किसी उम्मीदवार को कोई आदमी 2,800 डॉलर से ज्यादा का चंदा नहीं दे सकता. हालांकि उम्मीदवारों अपनी निजी संपत्ति से जितना चाहें उतना पैसा चुनाव प्रचार पर खर्च कर सकते हैं. इसका फायदा ब्लूमबर्ग, टॉम स्टेयर और उन जैसे दूसरे अरबपति उम्मीदवारों को मिलेगा.

सरकारी पैसा

जो लोग अमीर नहीं हैं वो भी चुनाव में करोड़ों डॉलर की रकम खर्च कर सकते हैं. पॉलिटिकल एक्शन कमेटियों को चुनाव प्रचार के लिए असीमित धन जमा करने की  छूट है हालांकि ये कमेटियां सीधे उम्मीदवारों से नहीं जुड़ी होती हैं. मुख्य उम्मीदवार आमतौर पर सार्वजनिक धन का इस्तेमाल करते हैं. इसके जरिए उन्हें संघीय धन का उपयोग करने का अधिकार मिल जाता है हालांकि इस खर्च की कुछ सीमाएं हैं.

तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/P. M. Ebenhack

संघीय खजाने से उम्मीदवारों को प्राइमरी और आम चुनाव दोनों के लिए पैसा मिल सकता है. अमेरिकी के संघीय चुनाव आयोग के मुताबिक प्राइमरी के अभियान में उम्मीदवार को धन देने वाले हर समर्थक के बदले 250 डॉलर की रकम मिल सकती है. इसके अलावा प्रमुख पार्टी के उम्मीदवारों को आम चुनाव में खर्च करने के लिए भी पैसा मिलता है.

1976 से 2012 के बीच प्रमुख पार्टियों के उन सम्मेलनों के लिए भी पैसा दिया गया जिनमें उम्मीदवारों का नामांकन होता है. इसके अलावा छोटी पार्टियों को इन सम्मेलनों के लिए कुछ आर्थिक मदद दी गई. 2014 में यह कानून बन गया कि सम्मेलनों के लिए सरकारी पैसा नहीं मिलेगा. उम्मीदवारों को बहुत पैसा जुटाने की जरूरत पड़ती है ताकि वो अपनी प्रचार टीम को भुगतान कर सकें या फिर विज्ञापन खरीद सकें.

खर्च में ब्लूमबर्ग पहले ही आगे

ब्लूमबर्ग ने बीते रविवार अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव की उम्मीदवारी की दौड़ में शामिल होने का एलान किया. हालांकि वह अपने पैसे का इस्तेमाल रिकॉर्ड तोड़ने में पहले से ही कर रहे हैं. पिछले हफ्ते उन्होंने 3.35 करोड़ खर्च कर 20 राज्यों में टीवी विज्ञापन के स्लॉट खरीदे. इससे पहले इस काम पर सबसे ज्यादा रकम बराक ओबामा ने खर्च की थी. राजनीतिक विज्ञापनों पर नजर रखने वाली फर्म एडवर्टाइजिंग एनालिटिक्स के मुताबिक ओबामा ने 2012 में इसके लिए 2.5 करोड़ डॉलर खर्च किए थे.

तस्वीर: Reuters/C. Barria

ब्लूमबर्ग एलान कर चुके है कि वह ट्रंप को निशाना बनाने वाले विज्ञापनों पर 10 करोड़ डॉलर खर्च करेंगे. ब्लूमबर्ग का कहना है कि अपनी संपत्ति का इस्तेमाल कर वे खेमेबाजी करने वाले गुटों के असर से खुद को आजाद रख सकेंगे. उम्मीदवारों पर इन गुटों के असर के बारे में अकसर चर्चा होती है. ये गुट राष्ट्रपतियों को नीतियां बनाने या उनमें बदलाव करने पर विवश करते हैं.

2015-16 में चुनाव मैदान में उतरे डॉनल्ड ट्रंप ने भी यही दलील दी थी. अमेरिका में व्हाइट हाउस की दौड़ में शामिल होने वाले पहले अरबपति ने कहा था कि उनका चुनाव खर्च उनकी कंपनी उठाएगी ताकि उन पर किसी का कर्ज ना रहे. ट्रंप ने हालांकि 6.6 करोड़ डॉलर अपनी जेब से खर्च किए लेकिन आखिर में उन्होंने भी कई बड़े दानदाताओं से चंदा लिया.

लॉबिस्टों से परहेज

डेमोक्रैटिक पार्टी की वामपंथी उम्मीदवार एलिजाबेथ वारेन और बर्नी सैंडर्स लगातार अरबपतियों के असर की आलोचना करते हैं और वह चाहते हैं कि टैक्स लगा कर इन लोगों के पैसे से यूनीवर्सिल हेल्थकेयर और छात्रों की कर्जमाफी की योजनाओं पर खर्च की जाए. ये लोग पहले से ही ब्लूमबर्ग पर "चुनाव खरीदने" का आरोप लगा रहे हैं.

पहले सैंडर्स और फिर वारेन ने लॉबिस्टों से चंदा लेने से मना कर दिया. इन लॉबिस्टों पर अकसर अमेरिकी लोकतंत्र को "भ्रष्ट" करने के आरोप लगते हैं. दोनों उम्मीदवार इस पैसे की क्षतिपूर्ति अपने समर्थकों से चंदा मांग कर करते हैं. सितंबर के आखिर तक दोनों उम्मीदवार चंदा जुटाने में सबसे आगे थे. इन दोनों में से हर एक ने करीब 2.5 करोड़ डॉलर का चंदा समर्थकों से ही जमा कर लिया. राजनीति में धन के असर को घटाने के लिए काम करने वाले संगठन कैम्पेन लीगल सेंटर के ब्रेंडन फिशर का कहना है, "ऐसा लगता है कि उनकी शपथ की गूंज जनता में सुनाई दे रही है."

जनता का पैसा

तस्वीर: Getty Images/J. Sullivan

डेमोक्रैटिक पार्टी जमीनी स्तर पर चंदा जमा करने को बढ़ावा देना चाहती है. 20 दिसंबर की बहस में शामल होने के लिए उम्मीदवारों के यह साबित करना होगा कि उन्होंने कम से कम 2 लाख लोगों से चंदा हासिल किया है. इनमें 800 से ज्यादा चंदा देने वाले 20 राज्यों से होने चाहिएं. जो लोग इसमें नाकाम रहेंगे वो उम्मीदवारी की दौड़ से बाहर हो जाएंगे.

ब्लूमबर्ग ने चंदे से दूर रह कर ऐसा लगता है फरवरी की पहली प्राइमरी से पहले की इन टीवी बहसों से खुद को बाहर कर लिया है. हालांकि नीलहाइजेल के मुताबिक चिंता की कोई बात नहीं है क्योंकि बड़ी धनराशि ने दूसरे उम्मीदवारों के मुकाबले उन्हें पहले ही "ज्यादा उपयुक्त" बना दिया है.

चुनावों के लिए पैसा अहम है लेकिन इतना भी नहीं कि नतीजों को प्रभावित कर सके. आखिर पिछले चुनाव में ट्रंप के मुकाबले दोगुनी रकम (60 करोड़ डॉलर) खर्च करने के बाद भी हिलेरी क्लिंटन हार गईं.  फिशर का कहना है, "यह लोकप्रिय विचारों या फिर प्रेरक उम्मीदवार के रास्ते में नहीं आ सकता लेकिन यह एक जरूरी पूर्वशर्त तो है."

रिपोर्टः निखिल रंजन/एएफपी

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