तेहरान में इन दिनों चिंता, तकलीफ, महंगाई और डर के बादल नजर आ रहे हैं. राजनीतिक खेमों से दूर ईरान के आम लोग अमेरिका के परमाणु समझौते से बाहर होने के चलते परेशान हैं. लेकिन अब उनकी उम्मीदें यूरोप पर टिकी हैं.
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ईरान की राजधानी में रहने वाली 51 साल की अजम के दिलो-दिमाग में जहां गुस्सा भरा हुआ है, तो वहीं उसे कहीं न कहीं डर भी सता रहा है. अजम को अपने 75 साल के पिता की सेहत परेशान कर रही है. दरअसल उसके पिता एक तरह की दिल की बीमारी के मरीज हैं, जिसके लिए उन्हें वारफ्रिन नाम की दवा देनी पड़ती है. लेकिन पिछले कुछ समय से तेहरान में यह मिल ही नहीं रही है. अजम बताती हैं, "पिछले कुछ हफ्तों से यह दवाई ड्रग स्टोर्स में नहीं मिल रही है. इस दवाई को खरीदना बहुत ही मुश्किल हो गया है."
यह कहानी सिर्फ अजम और उनके पिता की ही नहीं है, बल्कि ईरान के सैकड़ों आम लोग रोजमर्रा की इन समस्याओं से जूझ रहे हैं. क्योंकि उनका मुल्क अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों का सामना कर रहा है. ईरान में वारफ्रिन जैसी दवा नहीं बनाई जाती, बल्कि इसका आयात किया जाता है. इसलिए अब देश में दवाइयां कम पहुंच रही हैं. साथ ही दवा की कीमतों में तेजी आ गई है.
टूटती मुद्रा
प्रतिबंधों के बीच ईरान आर्थिक संकट से भी गुजर रहा है. जब से अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने ईरान के साथ हुए परमाणु समझौते से बाहर निकलने की बात कही है, तब से ईरान की मुद्रा लगातार गिर रही है. वर्तमान में एक अमेरिकी डॉलर की कीमत तकरीबन 43 हजार ईरानी रियाल के लगभग है. लेकिन यह कीमत पिछले साल तक 32 हजार रियाल हुआ करती थी.
वहीं काले बाजार में ईरानियों को एक अमेरिकी डॉलर हासिल करने के लिए 85 हजार रियाल देने पड़ रहे हैं. परमाणु समझौते से पीछे हटने के बाद अमेरिका ने आर्थिक प्रतिबंध लगाने की धमकी उन विदेशी कंपनियों को भी दी है जो ईरान के साथ कारोबार में शामिल हैं. इसका असर यहां आम लोगों पर पड़ रहा है. अमेरिका के इन कदमों से ये तो साफ है कि अमेरिका ईरान को आर्थिक रूप से तोड़ना चाहता है.
क्या है ईरान परमाणु डील पर विवाद
ट्रंप अपने शब्दों के पक्के हैं. जो वादा करते हैं, उसे पूरा भी करते हैं, भले ही उसका अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर कितना भी बड़ा असर क्यों न हो. पहले वे पेरिस पर्यावरण संधि से अलग हुए और फिर ईरान समझौते से. ईरान विवाद को समझें.
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विवाद की शुरुआत
अंतरराष्ट्रीय समुदाय की नजर ईरान में मौजूद पांच परमाणु रिएक्टरों पर थी. इनमें रूस की मदद से बनाया गया बुशेर परमाणु प्लांट सबसे ज्यादा विवाद में रहा. ईरान का कहना था कि परमाणु बिजली घर देश में लोगों को ऊर्जा मुहैया कराने के मकसद से बनाया गया है, जबकि अमेरिका और इस्राएल को शक था कि वहां परमाणु बम बनाने पर काम चल रहा है.
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समझौता
परमाणु प्लांट के इस्तेमाल के सिलसिले में फ्रांस, जर्मनी और ब्रिटेन ईरान के साथ बातचीत कर रहे थे. साल 2006 में अमेरिका, चीन और रूस भी इसमें शामिल हुए. आखिरकार 2015 में जा कर ये देश एक समझौते पर पहुंच सके. समझौते के अनुसार ईरान अपने परमाणु संयंत्रों की नियमित जांच के लिए राजी हुआ ताकि सुनिश्चित किया जा सके कि वहां हथियार बनाने पर काम नहीं चल रहा है.
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नागरिक खुश
इस समझौते के बाद से ईरान पर से कई तरह के प्रतिबंध खत्म हुए. नागरिकों में खुशी का माहौल देखने को मिला. सालों तक चले आर्थिक प्रतिबंधों का असर आम लोगों के जीवन पर देखने को मिल रहा था. देश में खाद्य सामग्री और दवाओं की भारी कमी हो गई थी. लोगों में उम्मीद जगी कि राष्ट्रपति हसन रूहानी अब देश को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और मौके दिलवा सकेंगे.
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जांच एजेंसी
ईरान समझौते के अनुसार काम कर रहा है या नहीं, इस बात की जांच की जिम्मेदारी दी गई अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) को. दिसंबर 2016 में आईएईए के अध्यक्ष यूकिया अमानो (बाएं) रूहानी से मिलने तेहरान पहुंचे. आईएईए को हर तीन महीने में एक रिपोर्ट दर्ज करनी होती है. अब तक किसी भी रिपोर्ट में ईरान पर शक की बात नहीं की गई है.
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अलग रुख
इस्राएल हमेशा से इस समझौते के खिलाफ रहा है और इसे दुनिया के लिए संकट के रूप में देखता रहा है. आठ सालों तक बराक ओबामा के साथ नाकाम रहे इस्राएली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को आखिरकार डॉनल्ड ट्रंप के रूप में एक ऐसा अमेरिकी राष्ट्रपति मिला, जो उनकी बात मानने को तैयार दिखा. 2016 के चुनावों के दौरान ट्रंप ने ईरान समझौते को "अब तक की सबसे बुरी डील बताया".
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ट्रंप का फैसला
8 मई 2018 को अमेरिका इस समझौते से अलग हो गया. ट्रंप ने कहा, "आज हम जानते हैं कि ईरान का वादा एक झूठ था." ट्रंप ने इस्राएल द्वारा उपलब्ध कराए गए खुफिया दस्तावेजों की बात करते हुए कहा कि आज इस बात के पुख्ता सबूत मौजूद हैं कि ईरान सरकार परमाणु हथियार बनाने पर काम कर रही है. हालांकि आईएईए का कहना है कि 2009 के बाद से ऐसी किसी गतिविधि की जानकारी नहीं है.
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अब आगे क्या?
अमेरिका के अलग होने के बाद भी ईरान पांच अन्य देशों के साथ समझौते में बंधा है. रूस, चीन, ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी ने आगे भी समझौते को जारी रखने की बात कही है. डील के अनुसार ईरान यूरेनियम की मात्रा को सीमित रखेगा, जिससे केवल देश के लिए ऊर्जा पैदा की जा सके और किसी भी प्रकार के परमाणु हथियारों का निर्माण मुमकिन ना हो.
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कारोबार पर असर
अमेरिकी प्रतिबंधों से ईरान का बैंकिंग सेक्टर सबसे अधिक प्रभावित हो रहा है. विशेषज्ञ मान रहे हैं कि इन कदमों का मकसद ईरान के वित्तीय संस्थानों को वैश्विक पूंजी बाजार से दूर करना है. ये वहीं पूंजी बाजार हैं जिनमें ईरान को परमाणु समझौते के बाद कुछ जगह मिली थी. जून 2018 के अंत तक, अधिकतर यूरोपीय बैंकों ने ईरान के साथ अपने वित्तीय लेन-देन बंद कर दिए थे. नतीजतन, यूरोपीय कंपनियों को भी ईरान के साथ आयात-निर्यात के अपने सौदों का हिसाब करने में मुश्किलें आ रही हैं. तेहरान के कारोबारी मानते हैं कि ये कदम उनके कारोबार को चौपट कर रहे हैं. 38 साल के कारोबारी इस्माइल कहते हैं, "हमने हसन रोहानी को राष्ट्रपति चुना क्योंकि वह पश्चिमी देशों के साथ सामंजस्य बनाना चाहते थे, साथ ही हम भी अंतरराष्ट्रीय समझौते को लेकर प्रतिबद्ध थे. लेकिन अब हमें अचानक किस बात की सजा मिल रही है? अमेरिका में सरकार बदल गई, क्या इसलिए हमें सजा मिल रही है?"
पिछले साल इस्माइल दो बार जर्मनी की यात्रा पर आए. अपनी यात्राओं में उन्होंने कई कारोबारी मेलों को देखा और कई जर्मन फूड पैकेजिंग मशीनों के आयात की इचछा जताई, जिस पर वे काम भी कर रहे थे. लेकिन अब राजनीतिक मंच पर आए इस बदलाव ने उनकी कारोबारी योजनाओं को तहस-नहस कर दिया है. इस्माइल कहते हैं, "यूरोप हमें समर्थन दे सकता है, सहयोग भी दे सकता है. ईरान मध्य एशिया का बड़ा और एक स्थिर देश है. यूरोप को ईरान की बर्बादी से क्या मिलेगा?"
अमेरिका की नीति
ईरान पर दबाव बनाने के लिए अमेरिकी प्रशासन अपने सभी साथियों से उसके साथ रिश्ते तोड़ने के लिए कह रहा है. साथ ही अमेरिका ने भारत समेत कई देशों को ईरान के साथ तेल आयात रोकेने के लिए 4 नवंबर, 2018 तक की मोहलत भी दी है. अमेरिका के करीबी देश दक्षिण कोरिया ने तो साफ भी कर दिया है कि वह जुलाई से ईरान का तेल नहीं लेगा. ईरान को तेल से बड़ी कमाई होती रही है.
तेहरान में रहने वाले 19 साल के सईद को उम्मीद है कि एक दिन ईरान स्वतंत्र और लोकतांत्रिक मुल्क बनेगा. लेकिन सईद वर्तमान अमेरिकी नीतियों को गलत मानते हैं. उन्होंने कहा, "अमेरिका का अन्य मुल्कों पर दबाव बनाना कि वे हमारी मदद न करें, गलत है क्योंकि आर्थिक संकट साधारण लोगों को चोट पहुंचाता है. उससे मेरे मां-बाप जैसे लोग प्रभावित होते हैं. उन्हें महंगाई की चिंता है, साथ ही डर भी कि कहीं युद्ध न हो जाए."
रोहानी की यूरोप यात्रा
ईरान के राष्ट्रपति रोहानी की हालिया यूरोप यात्रा भी कोई खास नहीं रही. रोहानी अपनी यात्रा के दौरान स्विट्जरलैंड और ऑस्ट्रिया में बड़े नेताओं और अधिकारियों से मिले. लेकिन रोहानी को इससे कोई उम्मीद नहीं है. अपनी इस यात्रा के बाद रोहानी ने कहा था कि समाधान का जो पैकेज यूरोपीय संघ ने सुझाया, वह ठोस और व्यावहारिक नहीं है. एक आधिकारिक बेवसाइट के मुताबिक, रोहानी ने जर्मनी की चांसलर अंगेला मैर्केल के टेलीफोन पर हुई बातचीत में कहा, "यूरोप के प्रस्ताव में सहयोग जारी रखने की जो कार्य योजना पेश की गई थी, वह अस्पष्ट थी"
एक ईरानी पत्रकार ने कहा, "जब अमेरिका-ईरान समझौता हुआ था, तब हम खुश थे. हम रुहानी और उनकी नीतियों को अपना समर्थन दे रहे थे. लेकिन अचानक अमेरिका का ऐसे समझौते से निकल जाना ईरानी लोगों पर हमला है. यूरोपीय संघ को कम से कम हमारी शांति की इच्छा का समर्थन करना चाहिए."
अब तक ये सभी डील तोड़ चुके हैं ट्रंप
अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप कभी अपने ट्वीट तो कभी अपने फैसलों के चलते चर्चा में बने रहते हैं. ट्रंप ने जिस दिन से पद संभाला है, उस दिन से लेकर अब तक वह कई समझौतों, करारों और साझेदारियों को तोड़ चुके हैं.
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ईरान परमाणु संधि
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की नजर में ईरान परमाणु संधि अब तक का सबसे घटिया समझौता है. साल 2015 में हुए ईरान परमाणु समझौते के तहत ईरान ने अपने करीब नौ टन अल्प संवर्धित यूरेनियम भंडार को कम करके 300 किलोग्राम तक करने की शर्त स्वीकार की थी. इस समझौते का मकसद था परमाणु कार्यक्रमों को रोकना. इन शर्तों के बदले में पश्चिमी देश ईरान पर लगाए गए आर्थिक प्रतिबंध हटाने पर सहमत हुए थे.
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ट्रांस पैसिफिक पार्टनरशिप
2016 में बराक ओबामा ने "ट्रांस पैसिफिक पार्टनरशिप" (टीपीपी) पर दस्तखत किए थे. टीपीपी प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में स्थित 11 देशों के बीच हुआ एक व्यापार समझौता है. उद्देश्य था इन देशों के बीच आयात-निर्यात पर लगने वाले शुल्क में कमी लाना. लेकिन ट्रंप ने एक कार्यकारी आदेश पर दस्तखत कर इससे बाहर निकलने की घोषणा कर दी.
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पेरिस जलवायु समझौता
जून 2017 में ट्रंप ने पेरिस जलवायु समझौते से पीछे हटने की घोषणा की थी. साल 2015 के पेरिस जलवायु समझौते में दुनिया के लगभग 195 देशों ने हस्ताक्षर किए थे. यह समझौता दुनिया भर के तापमान में वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस पर रोकने की बात करता है. ट्रंप को इस फैसले के चलते दुनिया की काफी आलोचना सहनी पड़ी थी.
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घरेलू पर्यवारण नियमन
डॉनल्ड ट्रंप ने न केवल अंतराराष्ट्रीय करारों और संधियों पर सख्ती दिखाई. बल्कि अमेरिका के भीतर भी ट्रंप ने पर्यावरण से जुड़े कई नियमों में उलटफेर किय. हाल में ही अमेरिका की एनवायरमेंट प्रोटेक्शन एजेसी के प्रमुख स्कॉट प्रूइट ने कहा था कि पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के कार्यकाल में जिन वाहन उत्सर्जन मानकों को तय किया गया उन्हें खत्म किया जाएगा.
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ओबामाकेयर
'द पेशंट प्रोटेक्शन एंड एफोर्डेबल केयर एक्ट' (पीपीएसीए) को बराक ओबामा आम अमेरिकियों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं देने के मकसद से लाए थे. इस हेल्थकेयर प्लान के तौर पर शुरू किया गया था. जो ओबामाकेयर नाम के मशहूर है. साल 2010 पर इस पर कानून बना. मकसद था स्वास्थ्य मामलों पर खर्च की जानेवाली रकम को कम करना. लेकिन इसकी जगह ट्रंप नया हेल्थ केयर बिल लेकर आए हैं. (क्रिस्टीना बुराक/एए)