अमेरिकी सीनेट में हांगकांग पर बिल से नाराज हुआ चीन
२० नवम्बर २०१९
अमेरिकी संसद के ऊपरी सदन सीनेट ने मंगलवार को सर्वसम्मति से हांगकांग राइट्स बिल को मंजूरी दे दी है. चीन ने इस पर नाराजगी जताई है.
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हांगकांग में चल रहे प्रदर्शनों के बीच चीन और अमेरिका का इस मुद्दे पर टकराव शुरू हो गया है. "हांगकांग राइट्स बिल" पास करने के साथ ही अमेरिकी संसद ने इस बात की चेतावनी दी है कि वह हांगकांग का विशेष आर्थिक दर्जा खत्म कर सकता है. अमेरिका के इन कदमों से नाराज चीन ने अमेरिकी राजदूत को तुरंत तलब किया और जवाबी कदम उठाने की बात कही है.
अमेरिकी सांसदों ने ऐसे उपाय करने की मंजूरी भी दी है जिससे कि आंसू गैस, रबर बुलेट और लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शनों को दबाने के लिए इस्तेमाल किए जा रहे दूसरे उपकरणों की बिक्री पर भी रोक लग जाएगी. चीन के उप विदेश मंत्री मा झाओक्सु ने अमेरिका के कार्यवाहक राजदूत विलियम क्लाइन को तलब कर "कड़ा विरोध" जताया है. चीन ने अमेरिका से मांग की है कि वह इस बिल को कानून बनने से रोके. चीन में अमेरिका के राजदूत टेरी ब्रैनस्टेड फिलहाल देश के बाहर हैं.
हांगकांग ह्यूमन राइट्स एंड डेमोक्रैसी एक्ट
अमेरिकी सीनेट के हांगकांग ह्यूमन राइट्स एंड डेमोक्रैसी एक्ट के तहत अमेरिकी राष्ट्रपति हांगकांग को अमेरिका से मिले विशेष कारोबारी दर्जे की सालाना समीक्षा करते हैं. यह एक्ट मानवाधिकार का उल्लंघन करने वाले हांगकांग और चीन के ऐसे अधिकारियों के खिलाफ प्रतिबंध लगाने का भी अधिकार देता है. मानवाधिकार उल्लंघनों में "न्याय प्रक्रिया के बाहर व्याख्या" भी शामिल है.
सीनेट का बिल 1992 के हांगकांग पॉलिसी बिल में सुधार करता है. सीनेटर बेन कार्डिन ने ध्यान दिलाया है कि हांगकांग के पास बीते कई सालों से विशेष आर्थिक दर्जा है. इसके लिए अधिकारियों पर भरोसा किया जाता है कि वे इलाके में "लोकतंत्र और मानवाधिकारों की रक्षा" करेंगे. कार्डिन ने कहा, "यह प्रतिबद्धता थी और अगर वो इसका पालन नहीं करेंगे तो यह विशेष दर्जा लागू नहीं रहेगा."
पिछले महीने जब अमेरिकी संसद के निचले सदन ने भी इसी तरह के उपायों के लिए प्रस्ताव पास किया था तब भी चीन ने बहुत नाराजगी के साथ प्रतिक्रिया जताई थी. संसद के दोनों सदन अब बिल को शाब्दिक रूप से एक जैसा बना कर संसद से पारित कराएंगे और फिर राष्ट्रपति के पास दस्तखत के लिए भेजेंगे.
आजादी समर्थकों को संदेश
रिपब्लिकन सीनेटर मार्को रूबियो के मुताबिक सीनेट ने "हांगकांग में आजादी के लिए लड़ रहे लोगों को यह स्पष्ट संदेश दिया है: हम आपको सुनते हैं, हम आपके साथ खड़े रहेंगे और आप व्यर्थ में खड़े नहीं हैं क्योंकि चीन आपकी स्वायत्तता को कमजोर कर रहा है." सीनेट की विदेश मामलों की कमेटी के शीर्ष डेमोक्रैट नेता रॉबर्ट मेनेंडेद ने का कहना है कि यह विधेयक "यह स्पष्ट कर रहा है कि अमेरिका हांगकांग के लोगों की वैध आकांक्षाओं के साथ मजबूती से और बिना हिचकिचाहट के खड़ा रहेगा."
चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गेंग शुआंग का कहना है कि अमेरिका का उद्देश्य "चीन के खिलाफ चरमपंथी और हिंसक तत्वों को समर्थन देना है जो हांगकांग में अव्यवस्था फैलाने की कोशिश कर रहे हैं...वह हांगकांग मुद्दे का फायदा उठा कर चीन के विकास में बाधा डालने की अपनी कुटिल साजिश को पूरा करना चाहते हैं."
हांगकांग में लोकतंत्र के लिए आंदोलन जून में तब शुरू हुआ जब हांगकांग की सरकार एक विवादित बिल ले कर आई. इसके तहत हांगकांग में रहने वाले शख्स पर मुकदमा चलाने के लिए उसे चीन में प्रत्यर्पित किया जा सकता था. पहले तो सरकार विरोध के बावजूद बिल पर अड़ी रही लेकिन बाद में विरोध बढ़ता देख उसे रद्द कर दिया गया. हालांकि विरोध प्रदर्शन इसके बाद भी नहीं रुके. विरोध प्रदर्शनों और उन्हें रोकने के लिए सरकार के प्रयासों ने पूरे हांगकांग को अस्त व्यस्त कर रखा है. इसी हफ्ते सरकार ने हांगकांग की अर्थव्यवस्था के मंदी में जाने की भी पुष्टि कर दी है.
एनआर/एमजे (एएफपी)
हांगकांग में चल रहे प्रदर्शनों की वजह क्या है
हांगकांग में चल रहे विरोध प्रदर्शन दुनियाभर की मीडिया में छाए हुए हैं. हांगकांग में प्रदर्शनकारी चीन से अधिक स्वायत्तता की मांग कर रहे हैं. हांगकांग में हो रहे प्रदर्शनों की पृष्ठभूमि क्या है.
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अंग्रेजों का हांगकांग में आना
हांगकांग पहले एक किसानों और मछुआरों का द्वीप हुआ करता था. यहां पर चीन के क्विंग साम्राज्य का राज चलता था. 1841 में पहली बार ब्रिटिश सेनाओं और क्विंग साम्राज्य के बीच ओपिअम का प्रथम युद्ध हुआ. इसमें ब्रिटिश सेनाओं की जीत हुई और पहली बार हांगकांग के कुछ हिस्से पर ब्रिटेन का शासन शुरू हुआ.
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हांगकांग पर ब्रिटिश शासन
इसके बाद क्विंग साम्राज्य कमजोर होता गया. ब्रिटिश और मजबूत होते गए. क्विंग और ब्रिटिशों के बाद युद्ध और संधियां चलती रहीं. ब्रिटेन ने हांगकांग के अलग-अलग हिस्से जीत लिए. 1898 में हुई एक संधि के बाद वर्तमान हांगकांग को ब्रिटेन को 99 साल के लिए लीज पर दे दिया गया. हांगकांग पूरी तरह ब्रिटेन के अधिकार में आ गया.
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हांगकांग की विकास यात्रा
ब्रिटेन का राज शुरू होने के बाद हांगकांग में विकास के काम भी होने लगे. 1911 में हांगकांग यूनिवर्सिटी, 1924 में एयरपोर्ट बनने के बाद हांगकांग ने तेजी से विकास किया. हांगकांग जल्दी ही दुनिया की तेजी से विकसित हो रही जगहों में शामिल हो गया. 1949 में चीन में नई व्यवस्था लागू हो गई लेकिन हांगकांग पर ब्रिटिश शासन चलता रहा. हांगकांग में ब्रिटेन एक गवर्नर नियुक्त कर शासन चलाता था.
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चीन के हवाले हांगकांग
ब्रिटेन ने हांगकांग को 99 साल की लीज पर लिया था. ये लीज 1997 में खत्म होने वाली थी. ऐसे में 1979 में पहली बार हांगकांग के गवर्नर मूरे मैकलेहोसे ने 1997 के बाद इसके भविष्य के बारे में सवाल उठाया. 1984 में ब्रिटेन और चीन के बीच समझौता हुआ कि 1 जुलाई 1997 को ब्रिटेन हांगकांग को चीन के अधिकार में सौंप देगा. लेकिन हांगकांग को कुछ विशेषाधिकार दिए जाएंगे.
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एक देश, दो व्यवस्था
तत्कालीन चीनी राष्ट्रपति डेंग जियाओपिंग ने हांगकांग को स्वायत्तता देने के लिए एक देश, दो व्यवस्था की मांग स्वीकार की. ये व्यवस्था जुलाई, 2047 तक के लिए मान्य है. हांगकांग बेसिक लॉ नाम से अलग कानून बनाया गया. इसके मुताबिक हांगकांग में स्वतंत्र मीडिया और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार होगा. यहां अलग संसद होगी जिसका निष्पक्ष चुनाव होगा. चीन की साम्यवादी व्यवस्था और नीतियां यहां लागू नहीं होती.
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जिनपिंग का एलान
2017 में हांगकांग की यात्रा पर गए चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने एलान किया कि 50 साल पूरे होने यानी जुलाई 2047 के बाद भी एक देश, दो व्यवस्था का कानून चलता रहेगा. हांगकांग की संसद के पूर्व राष्ट्रपति जास्पर त्सांग योक सिंग का मानना है कि हांगकांग बेसिक लॉ 2047 के बाद भी नहीं बदलेगा और यह व्यवस्था ऐसे ही चलती रहेगी.
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हांगकांग के नागरिकों को भरोसा नहीं
जिनपिंग के खुले एलान के बाद भी हांगकांग के निवासियों को इस बात पर भरोसा नहीं है. उनका मानना है कि 2047 के बाद हांगकांग में भी चीन जैसी व्यवस्था लागू हो जाएगी. ऐसे में उनकी स्वतंत्रता का अधिकार भी छिन जाएगा. हांगकांग में फिलहाल कैरी लाम की सरकार है जो चीन की समर्थक मानी जाती हैं. यही वजह है कि हांगकांग के लोगों का चीन पर शक बढ़ रहा है.
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प्रत्यर्पण कानून का विरोध
लाम ने हांगकांग की संसद में एक बिल पेश किया जिसके मुताबिक हांगकांग के लोग जो चीन में अगर कोई अपराध करेंगे तो उनका चीन को प्रत्यर्पण किया जा सकेगा. तब तक ऐसा नहीं था. इस बिल का हांगकांग में काफी विरोध हुआ. लाम ने इस बिल को ठंडे बस्ते में डाल दिया लेकिन प्रदर्शनकारियों ने इसे पूरी तरह खत्म करने की मांग की.
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प्रदर्शनकारियों पर कार्रवाई से भड़का आक्रोश
प्रत्यर्पण कानून का विरोध कर रहे प्रदर्शनकारियों पर पुलिस ने बल प्रयोग किया. उन पर आंसू गैस के गोले और रबर की गोलियों का प्रयोग किया गया. कुछ लोग इसमें घायल हो गए. इससे प्रदर्शनकारी और भड़क गए. प्रदर्शनकारियों ने लाम के इस्तीफे और बल प्रयोग की जांच को लेकर प्रदर्शन शुरू कर दिया. पुलिस पर आरोप है कि लोगों को घायल करने के लिए बल प्रयोग किया गया.
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चुनाव से लेकर अलगाववाद तक
हांगकांग में कई प्रदर्शनकारी चीन से आजादी की मांग कर रहे हैं. हालांकि वहां की सभी राजनीतिक पार्टियां ऐसे प्रदर्शनकारियों से दूरी बना रही हैं. बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारी हांगकांग में निष्पक्ष चुनावों की मांग कर रहे हैं. अब तक हांगकांग के नेता को एक चीन समर्थक समिति और चीन की सरकार द्वारा चुना जाता है. लाम भी इस तरीके से हांगकांग की नेता चुनी गई हैं.
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वर्तमान चुनाव का तरीका चीन के पक्ष में
हांगकांग की संसद में 70 सीटें हैं. इनमें से आधी सीटों पर चुनाव से प्रतिनिधि चुने जाते हैं. बची हुई आधी सीटों को फंक्शनल संसदीय क्षेत्र मानकर उन पर प्रतिनिधि मनोनीत किए जाते हैं. फिलहाल 43 सांसद चीन समर्थक हैं. ऐसे में इनका ही बहुमत है. हांगकांग बेसिक लॉ के मुताबिक संसद और उसका नेता स्वतंत्र रूप से चुना जाना चाहिए लेकिन अभी तक ऐसा नहीं हो सका है.
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चीन से क्या क्या अलग है हांगकांग में
चीन के पास हांगकांग के रक्षा और विदेश मामलों के ऊपर कानून बनाने का अधिकार है. इनके अलावा सभी मुद्दों पर हांगकांग के पास अपने कानून बनाने का अधिकार है. इसलिए हांगकांग को स्पेशल एडमिनिस्ट्रेटिव जोन कहा जाता है. हांगकांग की मुद्रा भी चीन से अलग है. चीन की मुद्रा युआन और हांगकांग की मुद्रा हांगकांग डॉलर है.
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चीन की सेना हांगकांग में नहीं आ सकती
चीन हांगकांग के रक्षा संबंधी मामलों पर कानून बनाने का अधिकार रखता है. हांगकांग बेसिक लॉ के अनुच्छेद 14 के मुताबिक चीन की सेना हांगकांग पर बाहरी हमले की स्थिति में रक्षा करेगी. चीन की सेना हांगकांग के आंतरिक मामलों में दखल नहीं दे सकती है. हाल में चल रहे प्रदर्शनों में चीन की सेना चीन सरकार के आदेश पर कानूनी रूप से दखल नहीं दे सकती है. हालांकि अगर हांगकांग सरकार मदद मांगे तो ऐसा हो सकता है.
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30 जून 2047 के बाद क्या होगा
हांगकांग का समाधान एक राजनीतिक समाधान हो सकता है. लेकिन यह समाधान चीन और हांगकांग दोनों को मान्य हो तभी संभव है. अगर दोनों तरफ के लोग किसी राजनीतिक समाधान पर राजी होते हैं तो 2047 के बाद भी वर्तमान व्यवस्था लागू रह सकती है. लेकिन हांगकांग में मौजूद चीन समर्थित सरकार कोई चीन समर्थक फैसला लेती है तो भविष्य अलग भी हो सकता है.