अयोध्या में इतनी ‘खामोश हलचल’ क्यों है?
५ नवम्बर २०१९![Indien Ayodhay Gerichtsurteil im Religionsstreit](https://static.dw.com/image/51118156_800.webp)
अयोध्या में मंदिर-मस्जिद विवाद में सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई पूरी कर ली है और सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संवैधानिक पीठ इसी महीने इस विवाद पर अपना फैसला सुनाने वाली है. इस फैसले के बाद किसी तरह की अनहोनी की आशंका से निपटने के लिए सरकार, जिला प्रशासन और हिन्दू-मुस्लिम दोनों समुदायों के लोग संयम बरतने की अपील कर रहे हैं.
मंगलवार को अयोध्या में पंचकोसी परिक्रमा शुरू हुई जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु जुटे हैं. हालांकि पिछले कई दिनों से वहां धारा 144 लगी है, प्रशासनिक सख्ती बढ़ाई गई है और भारी मात्रा में पुलिस बल की तैनाती की गई है लेकिन इन सबका असर श्रद्धालुओं के आने जाने पर नहीं पड़ा है. प्रशासन दीपोत्सव कार्यक्रम से पहले भी यह कह चुका है कि इस तरह के आयोजनों पर धारा 144 का असर नहीं होगा, यह सब सिर्फ एहतियात के लिए लागू किए गए हैं.
सुप्रीम कोर्ट अयोध्या में उस 2.77 एकड़ जमीन के मालिकाना हक के मामले में फैसला सुनाएगी जिसे साल 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला विराजमान के बीच बराबर-बराबर बांट दिया गया था. यह जमीन बाबरी मस्जिद-रामजन्म भूमि विवाद से जुड़ी है, इसलिए किसी भी तरह के सांप्रदायिक संघर्ष या तनाव को रोकने के लिए फैसले से पहले तैयारियां की जा रही हैं.
अयोध्या के डीएम अनुज कुमार झा ने लोगों से बेखौफ रहने की अपील की है तो वहीं अफवाह फैलाने वालों को चेतावनी भी दी है. उनका कहना है, "भ्रामक और झूठी सूचना देने वालों पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून यानी रासुका(एनएसए) के तहत कार्रवाई की जाएगी. आने वाले दिनों में स्कूल समय पर खुलेंगे, मोबाइल और इंटरनेट सेवाएं भी चालू रहेंगी लेकिन अफवाह फैलाने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी. आम नागरिकों को किसी भी तरह से डरने या परेशान होने की जरूरत नहीं है.”
अयोध्या के तमाम सरकारी स्कूलों में पुलिस और सुरक्षा बलों के जवानों के रुकने के लिए अस्थाई व्यवस्था की गई है. डीएम अनुज कुमार झा का कहना है कि इसके बावजूद स्कूलों में पढ़ाई बाधित नहीं होगी.
वहीं फैसला आने से पहले पुलिस ने सड़क से लेकर सोशल मीडिया तक निगरानी बढ़ा दी है, ताकि कानून व्यवस्था की स्थिति बिगड़ने न पाए. राज्य सरकार ने इस बारे में सभी जिलों के अधिकारियों को निर्देश जारी किए हैं. आलाकमान से निर्देश मिलने के बाद पुलिस ने सभी थानों में पीस कमेटी के प्रभारियों के साथ बैठक शुरू कर उनको फैसले का सम्मान करने और दूसरों को भी इसके लिए जागरूक करने के लिए कहा है.
प्रशासनिक अमले के अलावा राजनीतिक दलों और सांस्कृतिकृ-धार्मिक संगठनों की ओर से भी इस तरह की अपील की जा रही है कि फैसला कुछ भी आए, उसका सम्मान किया जाए और सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखा जाए. जमीयत उलेमाए हिन्द के राष्ट्रीय महासचिव मौलाना अब्दुल अलीम फारूकी ने कहा है कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट चाहे जो फैसला दे, दोनों समुदायों को उसे स्वीकार करना चाहिए. उन्होंने एक बयान जारी कर कहा है कि आपसी झगड़ों से ना सिर्फ दोनों समुदायों का बल्कि देश का भी नुकसान होता है.
इसके अलावा मस्जिदों से भी यह एलान किया जा रहा है कि हर हाल में सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखना है. मेरठ, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर समेत पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई जिलों में इस तरह की अपील की गई है और पुलिस, स्थानीय लोगों और जनप्रतिनिधियों के साथ पीस कमेटी की बैठकें की जा रही हैं जिनमें लोगों से संयम बरतने और कोर्ट के फैसले को मानने की अपीलें की गई हैं.
वहीं भारतीय जनता पार्टी ने भी अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं से संयम बरतने की अपील की है. पार्टी ने अपने प्रवक्ताओं और मीडिया पैनलिस्टों को इस मामले में फैसला आने से पहले या बाद में किसी तरह का विवादास्पद बयान ना देने की हिदायत दी है. पार्टी का कहना है कि फैसला आने के बाद राष्ट्रीय मुख्यालय से ही इस बारे में पार्टी का अधिकृत पक्ष जारी किया जाएगा. पार्टी की राज्य इकाई की बैठक में इस बारे में ये फैसले लिए गए हैं.
सबसे दिलचस्प बात ये है कि पिछले कई सालों से कारसेवकपुरम में पत्थरों को तराशने का अनवरत चल रहा काम भी रोक दिया गया है. हालांकि विश्व हिन्दू परिषद से जुड़े नेता इसके पीछे किसी दबाव या फिर आदेश की बात को खारिज करते हैं लेकिन इसे बंद क्यों कर दिया गया, इसका भी उनके पास कोई जवाब नहीं है. वहीं प्रशासनिक अधिकारियों के मुताबिक, पत्थर तराशने के काम को ना तो किसी निर्देश के तहत शुरू कराया गया था और ना ही बंद करने के लिए कोई आदेश जारी किए गए हैं.
विवादित गर्भगृह पर राम मंदिर निर्माण के लिए रामघाट इलाके में 30 अगस्त 1990 को भूमि पूजन कर पत्थर तराशने के लिए यहां दो कार्यशालाएं खोली गई थीं जबकि उसी समय एक अन्य कार्यशाला राजस्थान में भी खोली गई. अयोध्या की कार्यशाला में राजस्थान से आने वाले पत्थरों से मंदिर निर्माण की शिलाओं को तराशने का काम अनवरत चल रहा था, लेकिन अब सब जगह काम बंद है और कारीगरों को छुट्टी दे दी गई है. छह दिसंबर 1992 को बाबरी ढांचा गिरने के बाद आरएसएस और उससे जुड़े संगठनों पर लगे छह माह के प्रतिबंध के बावजूद यहां तराशी का काम नहीं रुक पाया था.
सपा-बसपा की सरकारों में वीएचपी-बजरंग दल के तमाम कार्यक्रमों पर प्रतिबंध के दौरान भी राजस्थान से पत्थर आते रहे और तराशी का काम चलता रहा. बताया जा रहा है कि अब तक लगभग सवा लाख घनफुट पत्थरों को तराशने का काम पूरा हो चुका है.
यही नहीं, आरएसएस, विश्व हिन्दू परिषद समेत तमाम मुस्लिम संगठनों ने भी नवंबर और दिसंबर में होने वाले अपने कई कार्यक्रम और आयोजन रोक दिए हैं. आरएसएस ने तो पांच साल में एक बार होने वाली अपने प्रचारकों की महत्वपूर्ण बैठक को भी टाल दिया है. इससे पहले, संघ ने चार नवंबर से होने वाली दुर्गा वाहिनी शिविर को भी स्थगित कर दिया था. हालांकि इसके लिए कोई वजह नहीं बताई गई है लेकिन संघ के पदाधिकारियों के मुताबिक, ऐसा अयोध्या मामले में आने वाले फैसले के मद्देनजर किया गया है.
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