राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद विवाद के चलते सुर्खियों में रहने वाले अयोध्या के सरयू कुंज मंदिर में इफ्तार पार्टी का आयोजन किया गया.
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अयोध्या यूं तो हिन्दुओं की धर्मस्थली है लेकिन पिछले कई वर्षों से इस शहर को आमतौर पर मंदिर-मस्जिद विवाद की वजह से ही दुनिया में जाना जाता है. इसी शहर में स्थित बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद देश भर में तमाम दंगे हुए, लेकिन इस शहर के हिन्दू और मुसलमान सदियों से सौहार्द के साथ रहते हैं और अभी भी रह रहे हैं.
इसकी एक मिसाल पिछले दिनों तब देखने को मिली जब राम जन्मभूमि परिसर के पास स्थित एक पुराने मंदिर के महंत ने मुसलमानों के लिए इफ्तार पार्टी का आयोजन किया और तमाम मुस्लिम रोजेदारों ने वहां जाकर अपना रोजा तोड़ा.
अयोध्या के सरयू कुंज मंदिर के महंत ने इस इफ़्तार पार्टी का आयोजन किया था. महंत जुगल किशोर शरण शास्त्री बताते हैं, "ये आयोजन हमने पहली बार नहीं किया है बल्कि दो साल पहले भी किया था. पिछले साल मैं बीमार पड़ गया. इस वजह से ये आयोजित नहीं हो पाया. लेकिन अब आगे इसे जारी रखा जाएगा.”
महंत बताते हैं कि इफ्तार में रोजेदारों को वही चीजें खिलाई गईं जो भगवान को भोग लगाई गई थीं. उनके मुताबिक, "दरअसल इफ्तार की पार्टी में रोजेदारों को भगवान का प्रसाद खिलाया गया. हलवा, पकौड़ी, केला और खजूर जैसी चीजें थीं इस पार्टी में. दोनों समुदायों के करीब सौ लोग शामिल थे इसमें.”
जानिए अयोध्या में कब क्या हुआ
अयोध्या: कब क्या हुआ
भारतीय राजननीति में अयोध्या एक ऐसा सुलगता हुआ मुद्दा रहा है जिसकी आग ने समाज को कई बार झुलसाया है. जानिए, कहां से कहां तक कैसे पहुंचा यह मुद्दा...
तस्वीर: dpa - Bildarchiv
1528
कुछ हिंदू नेताओं का दावा है कि इसी साल मुगल शासक बाबर ने मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई थी.
तस्वीर: DW/S. Waheed
1853
इस जगह पर पहली बार सांप्रदायिक हिंसा हुई.
तस्वीर: Getty Images/AFP/D. E. Curran
1859
ब्रिटिश सरकार ने एक दीवार बनाकर हिंदू और मुसलमानों के पूजा स्थलों को अलग कर दिया.
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1949
मस्जिद में राम की मूर्ति रख दी गई. आरोप है कि ऐसा हिंदुओं ने किया. मुसलमानों ने विरोध किया और मुकदमे दाखिल हो गए. सरकार ने ताले लगा दिए.
तस्वीर: DW/Waheed
1984
विश्व हिंदू परिषद ने एक कमेटी का गठन किया जिसे रामलला का मंदिर बनाने का जिम्मा सौंपा गया.
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1986
जिला उपायुक्त ने ताला खोलकर वहां हिंदुओं को पूजा करने की इजाजत दे दी. विरोध में मुसलमानों ने बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का गठन किया.
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1989
विश्व हिंदू परिषद ने मस्जिद से साथ लगती जमीन पर मंदिर की नींव रख दी.
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1992
वीएचपी, शिव सेना और बीजेपी नेताओं की अगुआई में सैकड़ों लोगों ने बाबरी मस्जिद पर चढ़ाई की और उसे गिरा दिया.
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जनवरी 2002
तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने दफ्तर में एक विशेष सेल बनाया. शत्रुघ्न सिंह को हिंदू और मुस्लिम नेताओं से बातचीत की जिम्मेदारी दी गई.
तस्वीर: AP
मार्च 2002
गोधरा में अयोध्या से लौट रहे कार सेवकों को जलाकर मारे जाने के बाद भड़के दंगों में हजारों लोग मारे गए.
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अगस्त 2003
पुरातात्विक विभाग के सर्वे में कहा गया कि जहां मस्जिद बनी है, कभी वहां मंदिर होने के संकेत मिले हैं.
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जुलाई 2005
विवादित स्थल के पास आतंकवादी हमला हुआ. जीप से एक बम धमाका किया गया. सुरक्षाबलों ने पांच लोगों को गोलीबारी में मार डाला.
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2009
जस्टिस लिब्रहान कमिश्न ने 17 साल की जांच के बाद बाबरी मस्जिद गिराये जाने की घटना की रिपोर्ट सौंपी. रिपोर्ट में बीजेपी को जिम्मेदार ठहराया गया.
तस्वीर: AP
सितंबर 2010
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि विवादित स्थल को हिंदू और मुसलमानों में बांट दिया जाए. मुसलमानों को एक तिहाई हिस्सा दिया जाए. एक तिहाई हिस्सा हिंदुओं को मिले. और तीसरा हिस्सा निर्मोही अखाड़े को दिया जाए. मुख्य विवादित हिस्सा हिंदुओं को दे दिया जाए.
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मई 2011
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को निलंबित किया.
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मार्च 2017
रामजन्म भूमि और बाबरी मस्जिद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दोनों पक्षों को यह विवाद आपस में सुलझाना चाहिए.
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मार्च, 2019
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की मध्यस्थता के लिए एक तीन सदस्यीय समिति बनाई. श्रीश्री रविशंकर, श्रीराम पांचू और जस्टिस खलीफुल्लाह इस समिति के सदस्य थे. जून में इस समिति ने रिपोर्ट दी और ये मामला मध्यस्थता से नहीं सुलझ सका. अगस्त, 2019 से सुप्रीम कोर्ट ने रोज इस मामले की सुनवाई शुरू की.
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नवंबर, 2019
सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने फैसला दिया कि विवादित 2.7 एकड़ जमीन पर राम मंदिर बनेगा जबकि अयोध्या में मस्जिद के लिए पांच एकड़ जमीन सरकार मुहैया कराएगी.
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अगस्त, 2020
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में बुधवार को राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन किया और मंदिर की आधारशिला रखी. कोरोना वायरस की वजह से इस कार्यक्रम को सीमित रखा गया था और टीवी पर इसका सीधा प्रसारण हुआ.
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इफ्तार पार्टी में अयोध्या और फैजाबाद के मुसलमानों के अलावा करीब आधा दर्जन साधु-संतों को भी बुलाया गया था जो इस कार्यक्रम में आए भी थे. महंत जुगल किशोर शास्त्री ने बताया कि रोजेदारों के साथ ही मंदिर के संतों, कर्मचारियों और मेहमान साधु-संतों ने भी इफ्तार किया.
स्थानीय लोगों के मुताबिक सरयू कुंज स्थित ये मंदिर सैकड़ों साल पुराना है और विवादित राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद परिसर के पास ही स्थित है. इफ्तार पार्टी में न तो किसी राजनीतिक दल के लोगों को बुलाया गया था और न ही किसी अन्य ‘वीआईपी' को. यहां तक कि मीडिया को भी नहीं बुलाया गया था.
उत्तर प्रदेश समेत देश के तमाम इलाकों में हिन्दू और मुसलमान भले ही साथ रहते हों लेकिन दोनों के खान-पान और रहन-सहन में काफी अंतर होता है, खासकर गांवों और कस्बों. महानगरों में ये अंतर उतना नहीं दिखता.
मध्यकालीन इतिहासकार लालबहादुर वर्मा कहते हैं, "वास्तव में भारत में ज्यादातर मुसलमान भले ही यहां के मूल नागरिक हों, लेकिन धर्म बदलने के साथ ही उनके रहन-सहन, वेश-भूषा और खान-पान में पर्याप्त अंतर आ गया. बावजूद इसके, सांस्कृतिक स्तर पर तमाम साम्य देखने को मिलता है. कई इलाके आज भी ऐसे हैं जहां हिन्दुओं और मुसलमानों के रीति-रिवाज एक जैसे हैं. अलग-अलग धर्म के होने के बावजूद शादी-विवाह के संस्कारों तक में तमाम साम्यताएं दिख जाती हैं.”
जहां तक अयोध्या की बात है तो हिन्दुओं और मुसलमानों में आपसी भाई-चारा खूब है लेकिन इस तरह की कोई परंपरा नहीं रही है कि हिन्दू धर्म से जुड़े लोग मुसलमानों को अपने यहां बुलाकर इफ्तार की दावत दें या फिर ईद मनाएं. स्थानीय लोगों के मुताबिक अयोध्या के मशहूर हनुमानगढ़ी मंदिर के महंत ज्ञानदास ने भी इससे पहले दो बार मंदिर परिसर में इफ्तार का आयोजन किया था, लेकिन बाद में उन्होंने इसे बंद कर दिया.
वहीं दूसरी ओर मुसलमानों में भी हिन्दू त्यौहार मनाने का कोई रिवाज नहीं है, लेकिन एक-दूसरे के त्योहार में शामिल होने का रिवाज खूब है. अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद के मुस्लिम पक्षकार इकबाल अंसारी बताते हैं, "यहां हिन्दू और मुसलमान एक-दूसरे के त्यौहार में शरीक होते हैं. हम लोग होली-दीवाली पर हिन्दू भाइयों के यहां मिलने जाते हैं और उनके यहां से त्यौहार के पकवान हमारे यहां आते हैं जबकि ईद पर हिन्दू लोग हमारे यहां मिलने आते हैं और हम उन्हें सिवईं खिलाते हैं.”
दरअसल, ये परंपरा आमतौर पर हर उस जगह पर है जहां दोनों समुदायों के लोग एक साथ रहते हैं. लेकिन इन सबके बावजूद ऐसा देखा जाता है कि सामान्य तौर पर दोनों समुदाय के लोग एक-दूसरे से थोड़ी दूरी बनाकर ही रहते हैं. यहां तक कि अयोध्या में भी हिन्दू इलाके और मुस्लिम इलाके का स्पष्ट विभाजन दिखाई पड़ता है.
विद्रोह की प्रतीक टैटू
कौन हैं रामनामी, जो राम नाम का टैटू बनवाते आए हैं
भारत के छत्तीसगढ़ में रहने वाले रामनामी समाज के लोग 100 साल से भी लंबे समय से अपने शरीर के हर हिस्से में राम का नाम गुदवाते हैं. देखिए कौन सा अनोखा संदेश छुपा है इस टैटू परंपरा में.
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विद्रोही सोच
टैटू गुदवाने की इस परंपरा के साथ समाज की वंचित जातियों के लोग 'अगड़ी जातियों' को खास अंदाज में एक संदेश देते आए हैं. संदेश यह कि भगवान केवल 'सवर्णों' के नहीं, बल्कि सबके होते हैं.
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समर्पित
मंदिरों में प्रवेश करने से रोके जाने के कारण इन्होंने अपने पूजनीय भगवान राम के प्रति असीम श्रद्धा दिखाते हुए अपने शरीर पर ही उनके सैकड़ों प्रचलित नाम गुदवा लिए. जैसे - राम, राघव, कौशलेंद्र, रामभद्र, मर्यादापुरुषोत्तम वगैरह.
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वर्जनाएं
रामनामी समाज ने तथाकथित ऊंची जाति के लोगों के भेदभाव के खिलाफ एक शांतिपूर्ण विद्रोह के रूप में इसकी शुरुआत की. हालांकि भारत में जाति के आधार पर किसी भी तरह के भेदभाव की सख्त मनाही है.
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संस्कृत
ये लोग प्राचीन भारतीय भाषा संस्कृत में अपनी त्वचा पर राम के विभिन्न नाम गुदवाते हैं. संस्कृत को देवभाषा का दर्जा प्राप्त है. शरीर को मंदिर की तरह पवित्र मानते हुए ये लोग मांस और शराब का सेवन नहीं करते.
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जीवनशैली
लगभग हर परिवार अपने घर में भगवान राम पर लिखा एक महाग्रंथ या महाकाव्य रखता है. यहां तक की घरों की सजावट में इस्तेमाल होने वाले कपड़ों पर भी राम नाम अंकित होते हैं.
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महिलाएं
इस समाज के करीब एक लाख लोगों में इस एक मामले में महिला-पुरुष का कोई अंतर नहीं है. रामनामी समाज की औरतें भी राम नाम के टैटू बनवाती हैं.
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बदलती पीढ़ियां
इस समुदाय के सभी युवा अब अपने पूरे शरीर पर ऐसे टैटू नहीं गुदवाना चाहते. लेकिन नई पीढ़ी ने सदियों से चली आ रही अपनी इस परंपरा को पूरी तरह त्यागा भी नहीं है.
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लालबहादुर वर्मा इसकी वजह बताते हैं, "ऐसा नहीं है कि गांवों या कस्बों में सिर्फ हिन्दू और मुसलमान ही अलग-अलग इलाकों में रहते हैं. हिन्दुओं में तमाम जातियों के भी अलग-अलग टोले और मोहल्ले हैं. समान जातियों और समान धर्मों के लोगों के एक साथ रहने की सबसे बड़ी वजह तो उनकी सांस्कृतिक समानता ही रही है लेकिन इसके अलावा और भी कई कारण हैं. कई बार सामाजिक के अलावा आर्थिक कारण भी इसके लिए जिम्मेदार रहे हैं. लेकिन अब ये वर्जनाएं टूट रही हैं, खासकर महानगरों में.”
ये वर्जनाएं न सिर्फ महानगरों में ही टूट रही हैं बल्कि इस तरह के आयोजन छोटे शहरों में भी दोनों समुदायों को एक दूसरे के करीब लाने में मददगार साबित हो रहे हैं. अयोध्या के रहने वाले व्यापारी दिनेश अग्रहरि कहते हैं, "यही सब कोशिशें हैं जिन्होंने अयोध्या में कोई सांप्रदायिक दंगा नहीं होने दिया और तमाम कुठाराघातों के बावजूद यहां का सौहार्द बना हुआ है.”
दिनेश अग्रहरि बड़े आत्मविश्वास के साथ कहते हैं कि ये परंपरा भले ही सरयू कुंज से शुरू हुई है लेकिन आने वाले दिनों में इसका अवश्य विस्तार होगा.
इन हिंदू नामों का दीवाना मुस्लिम देश इंडोनेशिया
सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाला देश इंडोनेशिया बढ़ते कट्टरपंथ और शरिया के मुताबिक सजा देने के लिए चर्चा में रहा है. लेकिन इस देश में आज भी लोग बच्चों के नाम हिंदू देवताओं या पौराणिक चरित्रों के नाम रखते हैं.
तस्वीर: picture alliance/Heritage Images
कृसना (Krisna)
इंडोनेशिया में हिंदू नामों की वर्तनी कुछ अलग हैं, लेकिन उनका मूल एक ही है. जिसे हम कृष्ण के तौर पर जानते हैं, उसे इंडोनेशिया में कृसना कहा जाता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/R. Gupta
रामा (Rama)
इंडोनेशिया में इस्लाम के प्रसार से पहले हिंदू और बौद्ध धर्म प्रचलित थे. अब भी हिंदू नाम और संस्कृति दिखती है. इसीलिए आज भी रामा या कहें राम वहां एक प्रचलित नाम है.
तस्वीर: AP
सीता (Sita)
सीता भी इंडोनेशिया में रखे जाने वाले पसंदीदा नामों में से एक है. राम की पत्नी और राजा जनक की बेटी सीता रामायण के सबसे अहम किरादारों में से एक है.
तस्वीर: Rainer Wolfsberger/Museum Rietberg Zürich
विसनु (Wisnu)
विसनु यानी विष्णु. इस नाम वाले लोग भी आपको इंडोनेशिया में खूब मिलेंगे. अरकी डिकानिया विसनु नाम के एक नामी अमेरिकी-इंडोनेशियाई बास्केट बॉल खिलाड़ी हैं.
तस्वीर: Presse
लक्ष्मी (Lakshmi)
लक्ष्मी नाम जितना प्रचलचित भारत में है, उतना ही इंडोनेशिया में भी है. हिंदू धर्म में लक्ष्मी को धन और समृद्धि की देवी के तौर पर पूजा जाता है.
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सरस्वती (Saraswati)
ज्ञान की देवी मानी जाने वाली सरस्वती का नाम भी इंडोनेशिया में बहुत जाना माना है. 2013 में इंडोनेशिया की सरकार ने 16 फीट ऊंची सरस्वती की एक प्रतिमा अमेरिका को भेंट की थी.
तस्वीर: picture alliance/DINODIA PHOTO LIBRARY
सेतियावान (Setiawan)
सत्यवान नाम आपको भारत में आजकल शायद ही सुनने को मिलता है. लेकिन सत्यवान-सावित्री की पौराणिक कथा से निकले इस नाम को आज भी इंडोनेशिया में शौक से रखा जाता है.
तस्वीर: DW/M. Mamun
सावित्री (Savitri)
हिंदू पौराणिक कथा के अनुसार सावित्री यमराज से अपने पति सत्यावान की जिंदगी को वापस ले आयी थी. सावित्री भी इंडोनेशिया में एक प्रचलित नाम है.
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देवा/देवी (Devi/Deva)
इंडोनेशिया में आपको बहुत से लोग मिल जाएंगे जिनके नाम देवा या देवी होते हैं. स्वाभाविक रूप से देवा पुरुष तो देवी एक महिला नाम है.
तस्वीर: UNI
युदिसथीरा (Yudisthira)
महाभारत और रामायण इंडोनेशिया में अब भी प्रचलित संस्कृति का हिस्सा है. महाभारत में धर्मराज कहे जाने वाले युधिष्ठिर का नाम भी इसीलिए आपको इंडोनेशिया में खूब मिलता है.
तस्वीर: picture alliance/united archives
अर्जुना (Arjuna)
अर्जुना भी इंडोनेशिया में एक लोकप्रिय नाम है. महाभारत में श्रेष्ठ धनुर्धर होने के साथ साथ अर्जुन उस गीता उपदेश प्रकरण का भी हिस्सा रहे हैं जो हिंदू दर्शन के बड़े आधारों में से एक है.
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भीमा (bima/Bhima)
भीम पांडवों में दूसरे नंबर पर आते थे और बहुत बलशाही थे. उन्हीं के नाम पर इंडोनेशिया में बीमा या भीमा नाम रखा जाता है. बीमा इंडोनेशिया में एक शहर का नाम भी है.
तस्वीर: Andy Amaldan/AFP/Getty Images
पार्वती (Parwati)
पौराणिक कथाओं के अनुसार पार्वती शिव की पत्नी हैं. यह नाम भी इंडोनेशिया में प्रचलित उन नामों से एक है, जिनका मूल हिंदू धर्म से जुड़ा है.
इंद्र (Indra)
इंद्र भी इंडोनेशिया में एक प्रचलित नाम है. देवराज कहे जाने वाले इंद्र को वर्षा का देवता कहा जाता है. उनके दरबार की अप्सराओं और उनके गुस्से को लेकर कई कहानियां हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/S. Gupta
गनेसा (Ganesa)
गनेसा नाम हिंदू देवता गणेश के नाम का इंडोनेशियाई संस्करण है. इंडोनेशिया के बांडुंग शहर में मशहूर तकनीकी शिक्षण संस्थान आईटीबी में गनेशा कैंपस बहुत मशहूर है. वहां गणेश की बहुत ही प्रतिमाएं भी हैं.
तस्वीर: DW/Joanna Impey
गरुणा (Garuna)
गरुणा इंडोनेशिया की सरकारी एयरलाइन कंपनी है जिनका नाम गरुण से प्रेरित है. हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार गरुण पक्षी भगवान विष्णु की सवारी है.
तस्वीर: picture alliance/Heritage Images
सूर्या (Surya/Suria)
सूर्य नाम अब भारत में नई पीढ़ी के बीच पहले जितना प्रचलित नहीं है, लेकिन इंडोनेशिया में अब भी आपको बहुत से लोग मिल जाएंगे जिनका नाम सूर्या है.