2011 में ट्यूनीशिया से शुरु हुई अरब वसंत की क्रांति मिस्र, सीरिया, लीबिया, यमन और कई दूसरे अरब देशों तक फैली और अरब क्रांति कहलायी. पांच साल बीतने के बाद इनमें से केवल ट्यूनीशिया को ही सफल प्रयोग माना जा सकता है.
विज्ञापन
करीब 23 सालों तक ट्यूनीशिया में तानाशाही राज चलाने वाले जिने अल आबेदीन बेन अली को गद्दी से हटाने का संघर्ष छेड़ने वाले नागरिकों ने अनजाने में ही पूरे अरब क्षेत्र को एक नई राह दिखा दी थी. सड़कों पर उतरे लाखों प्रदर्शनकारियों के आंदोलन का असर था कि 14 जनवरी 2011 को बेन अली को सत्ता छोड़नी पड़ी. हालांकि तानाशाह के हट जाने भर से देश की समस्याएं नहीं सुलझ गईं. आज भी आर्थिक परेशानियां और देश में पनपती जिहादी हिंसा बड़ी चिंता का कारण है.
इस क्रांति से पूरा मध्यपूर्व हिल गया था. फिर ट्यूनीशिया से प्रेरणा लेकर दूसरे अरब देशों में जन जागृति और आंदोलनों का जो सिलसिला चला, वो अरब वसंत कहलाया. इसके पांच साल बीतने के बाद स्थिति की समीक्षा करने से साफ पता चलता है कि जिन देशों ने ट्यूनीशिया की मिसाल देख कर क्रांति की राह पकड़ी थी, उनकी हालत बहुत बेहतर नहीं कही जा सकती. यहां कुछ नए निरंकुश शासकों, संघर्षों, गृह युद्धों और आईएस जैसे फैलते जिहादी तंत्र ने जगह बना ली है.
अरब वसंत पर अपनी नई किताब में विश्व बैंक के उपनिदेशक हाफेज गनेम ने लिखा है, "वे रोमांचक दिन थे. लोकतंत्र का बुखार फैला था," आगे सवाल उठाते हैं, "लेकिन क्या कोई ऐसा देश रातोंरात एक सुचारू रूप से चलने वाला लोकतंत्र बन सकता है और अपने सभी नागरिकों का जीवन सुधार सकता है, जहां कोई लोकतांत्रिक परंपरा ना रही हो और जहां की संस्थाएं कमजोर हों? जाहिर है इसका जवाब है ना."
याद करें कैसे जनवरी के इस निर्णायक दिन के लगभग एक महीना पहले एक स्ट्रीट वेंडर मोहम्मद बोआजिजि ने ट्यूनीशिया के एक शहर में सार्वजनिक रूप से खुद को आग लगा ली थी. इस घटना के बाद ही सामूहिक रैलियों का सिलसिला शुरु हुआ जो अंत में बेन अली के सत्ता से हटने पर ही थमा. ट्यूनीशिया की कहानी को मामले के जानकार आंशिक रूप से सफल मानते हैं. यहां नई सरकार चुनी गई और चार प्रमुख नागरिक संगठनों के प्रतिनिधित्व वाला नेशनल डायलॉग क्वॉरटेट बना, जिसे 2015 के नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
लीबिया का भूतिया शहर
लीबिया में अरब क्रांति के तीन साल बाद भी तावरगा शहर दोबारा आबाद नहीं हो पाया है. शहर से बेघर हुए लोग देश के किसी दूसरे हिस्सों में घर बनाने की जद्दोजहद में हैं.
तस्वीर: DW/K. Zurutzua
सुनसान शहर
2011 के गृह युद्ध के दौरान तावरगा शहर मुहम्मद गद्दाफी की सेना का प्रमुख गढ़ रहा. घेराबंदी टूटने पर मिस्तारा के विद्रोहियों ने तावरगा के उन क्षेत्रीय लोगों से बदला लिया जिनका वे मिसराता के संघर्ष में हाथ मानते थे. तब से यह शहर खाली है और यहां के रहने वाले देश भर में धक्के खा रहे हैं.
तस्वीर: DW/K. Zurutzua
कंटेनर में जिंदगी
त्रिपोली हवाई अड्डे के पास शरणार्थी कैंपों में लोग प्लास्टिक और निर्माण केंद्रों से निकले लोहे के केबिन में रह रहे हैं. एक समय में इस इलाके में आलीशान अपार्टमेंट ब्लॉक, पार्क, स्विमिंग पूल और शॉपिंग मॉल बनाए जाने की योजना थी.
तस्वीर: DW/K. Zurutzua
निशाने पर अल फलाह कैंप
16 नवंबर को हथियारों से लैस चार लोगों ने त्रिपोली के अल फलाह कैंप पर हमला किया. उन्होंने 28 साल के अबू मुंतलिब पर गोली चलाई, तीन अन्य लोग भी घायल हुए. घटना को अपनी आंखों से देखने वालों ने बताया कि उस दिन कुछ लोग पूछते हुए आए थे कि क्या यहां तावरगा के शरणार्थी हैं.
तस्वीर: DW/K. Zurutzua
गुस्सा और दुख
इस महिला के भाई का मिसराता के विद्रोहियों ने अपहरण कर लिया, "वे हमें गद्दाफी का समर्थक कहते हैं, वे हमारे रंग से भी चिढ़ते हैं."
तस्वीर: DW/K. Zurutzua
कामचलाऊ स्कूल
त्रिपोली के जांजूर कैंप में करीब 400 बच्चे पढ़ते हैं. जुफ्रा में लीबिया की सरकार ने शरणार्थियों के लिए 500 घरों के निर्माण का प्रस्ताव दिया है. हालांकि तावरगा की स्थानीय समिति ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया है.
तस्वीर: DW/K. Zurutzua
कोई अंत नहीं
जलिया सलीम (बाएं) ने अपने बेटे को नवंबर से नहीं देखा है, जब उसका अपहरण हुआ था. ह्यूमन राइट्स वॉच के अनुसार लीबिया में जारी मानवता के खिलाफ अपराधों पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है.
तस्वीर: DW/K. Zurutzua
जख्म भरने में समय लगेगा
लीबिया में आंतरिक विस्थापन कार्यालय की प्रमुख वफा एल्नास को नहीं लगता कि तावरगा के रहने वाले कभी घर लौटेंगे. उनके अनुसार तावरगा वाले जानते हैं कि पड़ोंसी मिसराता वालों में उनके खिलाफ कितनी नफरत भरी है. ये जख्म जल्दी नहीं भर पाएंगे.
तस्वीर: DW/K. Zurutzua
7 तस्वीरें1 | 7
वहीं मिस्र में होस्नी मुबारक को सत्ता से हटाने के बाद देश में उथल पुथल जारी रही और एक बार फिर होस्नी मुबारक की जगह लेने वाले मुस्लिम ब्रदरहुड के मुहम्मद मुर्सी का सेना ने तख्तापलट किया. मुर्सी देश के पहले लोकतांत्रिक रूप से चुने गए राष्ट्रपति थे. मुर्सी को हटाकर सेना प्रमुख अब्देल फतह अल-सिसी ने सत्ता संभाली और मुस्लिम ब्रदरहुड के समर्थकों को चुन चुन कर प्रताड़ित करना शुरु किया. इस प्रक्रिया में सैकड़ों लोग मारे गए और हजारों जेल में डाल दिए गए.
2011 में ही लीबियाई तानाशाह मोआम्मर गद्दाफी की हत्या के बाद भी वहां राजनीतिक अराजकता और कलह का माहौल बना रहा. वहां एकजुटता से कोई सरकार बनाने की संयुक्त राष्ट्र की भी सभी कोशिशें कोई नतीजा नहीं दिला पाई हैं. इसके अलावा गद्दाफी के गृहनगर सिरते को आईएस जिहादियों ने अपना गढ़ बना लिया और वहां से समय समय पर हिंसक वारदातों को अंजाम देते रहते हैं.
आतंकी हमलों की जद में देश
विजन ऑफ ह्यूमैनिटी संस्था की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में 2000 से अब तक आतंकवाद के कारण होने वाली मौतों की संख्या पांच गुना बढ़ी है. दुनिया के कौन से देश आतंकी घटनाओं के सबसे ज्यादा शिकार हैं, एक नजर...
तस्वीर: picture-alliance/dpa/S. Suna
1. इराक
साल 2014 के आंकड़ों पर आधारित ग्लोबल टेररिज्म इंडेक्स के मुताबिक इराक आतंकी गतिविधियों में सबसे आगे हैं. 2014 में इराक में 3370 आतंकी हमले हुए जिनमें करीब 10,000 लोग मारे गए और 15,000 के करीब घायल हुए.
तस्वीर: SAFIN HAMED/AFP/Getty Images
2. अफगानिस्तान
दूसरे स्थान पर है अफगानिस्तान. 2014 में अफगानिस्तान में हुए आतंकी हमलों में 4500 लोग मारे गए और 4700 जख्मी हुए. अफगानिस्तान से अंतरराष्ट्रीय शांति सैनिकों के हटाए जाने के बाद भी वहां तालिबान का साया बरकरार है. बीते दिनों कुंदुस में हुए हमलों में बड़ी संख्या में नागरिक मारे गए.
तस्वीर: Getty Images/AFP/J. Tanveer
3. नाइजीरिया
नाइजीरिया में आतंकवादी समूह बोको हराम के 662 हमलों में 7512 लोग मारे गए. इन हमलों में 22,000 लोग घायल हुए. विजन ऑफ ह्यूमैनिटी की रिपोर्ट के मुताबिक बोको हराम के हमलों में मारे जाने वाले 77 फीसदी लोग निहत्थे नागरिक थे.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo
4. पाकिस्तान
पाकिस्तान में 2014 में आतंकवाद संबंधी 1821 घटनाएं हुईं. इनमें 1760 लोग मारे गए और 2836 घायल हुए. पाकिस्तान में कई आतंकवादी संगठन सक्रिय हैं लेकिन प्रमुख है तहरीक ए तालिबान. पेशावर में स्कूल पर हुए हमले की जिम्मेदारी भी इसी ने ली थी जिसमें 132 स्कूली छात्र मारे गए.
तस्वीर: AFP/Getty Images/A Majeed
5. सीरिया
सीरिया में आतंकवाद और गृह युद्ध के शिकार लोगों के बीच अंतर करना आसान नहीं है. विजन ऑफ ह्यूमैनिटी संस्था की रिपोर्ट के मुताबिक सीरिया में 2014 में 232 आतंकवादी हमले हुए जिनमें मुख्य हाथ इस्लामिक स्टेट और अल नुसरा मोर्चे का था.
तस्वीर: Getty Images/AFP/Y. Akgul
6. भारत
2008 के मुंबई हमले के बाद ऐसा माना जाता है कि भारत में कोई बड़ी आतंकवादी घटना नहीं हुई, लेकिन विजन ऑफ ह्यूमैनिटी की रिपोर्ट के मुताबिक 2014 में भारत में 763 आतंकी घटनाएं हुईं जिनमें 416 लोग मारे गए. इनमें ज्यादातर साम्यवादियों, इस्लामी कट्टरपंथियों और अलगाववादियों का हाथ था. पिछले साल माओवादियों ने हमला कर पुलिस और सुरक्षा बल के 22 जवानों की हत्या कर दी.
तस्वीर: AP
7. यमन
कुल 512 आतंकी हमलों के साथ 2014 यमन के लिए एक बुरा साल रहा. इन घटनाओं में 654 लोग मारे गए. यमन में इन हमलों के लिए अल कायदा और हूथी विद्रोही जिम्मेदार हैं. यमन में अल कायदा एकमात्र ऐसा संगठन है जो आत्मघाती हमले करता है.
तस्वीर: Reuters/K. Abdullah
8. सोमालिया
2014 सोमालिया के लिए आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में सबसे ज्यादा खूनखराबे वाला साल था. 469 आतंकी घटनाओं में करीब 800 लोग मारे गए. अफ्रीकी देश में अल शबाब आतंकवादी समूह सबसे बड़ा खतरा है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Abdiwahab
9. लीबिया
लीबिया में 2014 में आतंकी गतिविधियों में अचानक 225 फीसदी तेजी आई. 554 आतंकी हमलों में 429 लोगों ने जान गंवा दी. लीबिया में कई आतंकी समूह सक्रिय हैं जिनमें एक इस्लामिक स्टेट भी है.
तस्वीर: Reuters/E.O. Al-Fetori
10. थाईलैंड
2014 में थाईलैंड में 336 आतंकी घटनाएं हुईं जिनमें 156 लोग मारे गए. ज्यादातर घटनाएं दक्षिणी इलाकों में हुईं जहां मलय मुसलमानों का सरकारी बलों के खिलाफ संघर्ष जारी है. थाईलैंड में होने वाले 60 फीसदी आतंकी हमले बम धमाकों के रूप में हुए.
तस्वीर: P. Kittiwongsakul/AFP/Getty Images
10 तस्वीरें1 | 10
यमन की कहानी भी इससे अलग नहीं रही. अरब वसंत के जिस सपने के साथ पांच साल पहले ये क्रांति शुरु हुई थी उसका सबसे दुखदायी नतीजा जाहिर तौर पर सीरिया में दिखा है. वहां राष्ट्रपति बशर अल असद के विरोध से शुरु हुए आंदोलन ने एक क्रूर गृह युद्ध का रूप ले लिया. इसकी चपेट में आकर अब तक ढाई लाख से भी अधिक लोगों की जान जा चुकी है और लाखों लोग अपना घर छोड़ कर पड़ोसी देशों और यूरोप की ओर भागे हैं.
इंटरनेशनल क्राइसिस ग्रुप के विश्लेषक मिशेल अयारी बताते हैं, "इतिहास में अरब स्प्रिंग की तुलना बर्लिन की दीवार गिरने से की जा सकती है. 1990 के दशक की ही तरह इस बार पूरे भू-राजनीतिक नक्शे में बड़े बदलाव आए थे." अब भी स्थिति के सुधरने की उम्मीद करने वाले विशेषज्ञों को उम्मीद है कि अगर अरब सरकारें आर्थिक विकास और सुशासन को आगे बढ़ाने के लिए और अधिक 'समावेशी' नीतियों पर ध्यान दें तो एक नई राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था की स्थापना की जा सकेगी.
आरआर/एमजे (एएफपी)
कट्टरपंथ से जूझते देश
संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि दुनिया भर के 100 देशों के 25,000 लोग सीरिया और इराक जैसे देशों में इस्लामिक स्टेट और अल कायदा जैसे दलों के साथ लड़ रहे हैं. दुनिया के कई देश इस्लामी कट्टरपंथियों के हमलों का सामना कर रहे हैं.
तस्वीर: DW
इराक
इस्लामिक स्टेट संगठन ने इराक की अस्थिरता का फायदा उठाकर उसे अपना गढ़ बना लिया है. पिछले दिनों इराकी सेना ने सुन्नी बहुल शहर तिकरित पर फिर से कब्जा करने में कामयाबी पाई. अब आईएस को दूसरे शहरों से खदेड़ने की चुनौती है.
तस्वीर: picture-alliance/epa/STR
सीरिया
सीरिया में राष्ट्रपति बशर अल असद के खिलाफ शांतिपूर्ण आंदोलन इस बीच कट्टरपंथी गुटों की कामयाबी के रूप में सामने आया है. इस्लामिक स्टेट वहां लगातार अपनी जड़ें मजबूत कर रहा है और नए इलाकों को अपने प्रभाव में लेता जा रहा है.
तस्वीर: Reuters/K. Ashawi
नाइजीरिया
कट्टरपंथी इस्लामी संगठन बोको हराम ने नाइजीरिया की नाक में दम कर रखा है. वहां कट्टरपंथी धमकियों के बावजूद हुए राष्ट्रीय चुनाव में लोगों ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया. नए राष्ट्रपति से उम्मीद की जा रही है कि वे बोको हराम पर काबू पा सकेंगे.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
चाड
पिछले सालों में बोको हराम लगातार अपने पैर पसार रहा है. उसने नाइजीरिया के पड़ोस में स्थित चाड को भी निशाना बनाया है. बोको हराम के लड़ाके गांवों पर हमला कर कत्लेआम करते हैं और बड़ी संख्या में लोगों को बंधक बना ले जाते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
लीबिया
अंतरराष्ट्रीय कार्रवाई के परिणामस्वरूप तानाशाह मुअम्मर अल गद्दाफी के पतन के बाद से लीबिया में शांति नहीं आ पाई है. वहां विभिन्न कट्टरपंथी गिरोह सत्ता पर कब्जे के लिए संघर्ष कर रहे हैं. देश अक्सर आतंकवादी हमलों का निशाना बनता रहता है.
तस्वीर: Reuters
नाइजर
बोको हराम से प्रभावित देशों में नाइजीरिया का पड़ोसी देश नाइजर भी शामिल है. लेकिन वहां बोको हराम को आम लोगों के भारी विरोध का भी सामना करना पड़ रहा है. हाल ही में नियामाय शहर में कट्टरपंथी संगठन के खिलाफ विशाल प्रदर्शन हुआ.
तस्वीर: AFP/Getty Images/B. Hama
माली
इस्लामी कट्टरपंथ झेल रहा एक और देश माली है. वहां फ्रांस और साथी देशों के हस्तक्षेप के बाद स्थिति थोड़ी बेहतर हुई है लेकिन इस्लामी कट्टरपंथियों का खतरा बना हुआ है. बामाको के रेस्तरां जैसे आतंकी हमले आए दिन देश की शांति को तोड़ते दिखते हैं.
तस्वीर: AFP/Getty Images/H. Kouyate
सोमालिया
सोमालिया न सिर्फ एक विफल राष्ट्र है बल्कि आतंकवाद का प्रश्रयदाता भी. वहां सक्रिय शबाव मिलिशिया देश के अंदर और पड़ोसी देश केन्या में हमले करता रहा है. वह ईसाईयों तथा उदार मुसलमानों को आतंकित कर रहा है और शरीया लागू करना चाहता है.
तस्वीर: Reuters/F. Omar
केन्या
केन्या की संसद ने पिछले दिनों एक सख्त आतंकवादविरोधी कानून बनाया है लेकिन नया कानून भी आतंकवादियों को रोकने में कामयाब नहीं साबित हुआ. हाल ही में वहां एक हथियारबंद गिरोह ने एक यूनिवर्सिटी को निशाना बनाया.
तस्वीर: Simon Maina/AFP/Getty Images
पाकिस्तान
पाकिस्तान आतंकवादी संगठनों की ट्रेनिंग का गढ़ रहा है. अमेरिका के दबाव में पश्चिमी देशों के खिलाफ लड़ने वाले संगठनों पर कार्रवाई कर अब वह खुद उनके निशाने पर है. रास्तों, स्कूलों और मस्जिदों पर आतंकी हमले आम बात हो गए हैं.
तस्वीर: DW/T.Shahzad
बांग्लादेश
बांग्लादेश इस्लामी कट्टरपंथियों और कट्टरपंथ का विरोध करने वालों के बीच कटु संघर्ष का गवाह बन रहा है. पिछले दिनों वहां कट्टरपंथ के खिलाफ आवाज उठाने वाले ब्लॉगरों की हत्या के मामले सामने आए हैं.