माइक लिबेकी अपनी 14 साल की बेटी लिलियाना के साथ अरुणाचल प्रदेश के तवांग जिले के एक गांव में रहते हैं. तमाम परेशानियों के बीच बाप-बेटी की यह जोड़ी इलाके के बच्चों को कंप्यूटर सिखा रही है.
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नेशनल ज्योग्राफिक के रिसर्चर माइक लिबेकी और उनकी 14 वर्षीया बेटी लिलियाना ने दुनिया के कई देशों की यात्राएं की. लेकिन अरुणाचल की यात्रा बाप-बेटी की इस जोड़ी के लिए काफी अलग रही. अब अरुणाचल के तवांग में यह जोड़ी बच्चों को कंप्यूटर सिखा रही है. तवांग जिले में एक कम्युनिटी स्कूल चलता है, जिसमें 90 छोटे-छोटे बच्चों से लेकर किशोर उम्र के छात्र पढ़ने आते हैं.
इनके द्वारा चलाए जा रहे 'झमत्से गत्सल चिल्ड्रन कम्युनिटी' सेंटर में बच्चों के पालन-पोषण से लेकर पढ़ाई तक की व्यवस्था की गई है. इन बच्चों को कंप्यूटर सिखाया जा रहा है. बाप-बेटी की जोड़ी को इस काम में आईटी कंपनी डेल भी मदद दे रही है. कंपनी के कई कर्मचारी यहां इनके साथ काम कर रहे हैं.
इस केंद्र में 20 नए लैपटॉप, नए प्रिंटर, इंटरनेट की सुविधा दी गई है. तवांग के बच्चों और टीचर्स को कंप्यूटर का ज्ञान दिया जा रहा है. कंप्यूटर केंद्र और कम्युनिटी की अन्य इमारतों में बिजली के लिए सौर ऊर्जा पैनल और सौर जनरेटर भी लगाए गए हैं. माइक लिबेकी इस बारे में कहते हैं, "हम कम्युनिटी के साथ मिलकर काम कर रहे हैं. इस केंद्र में शिक्षा ग्रहण कर रहे बच्चे या तो अनाथ हैं या पारिवारिक समस्याओं के कारण यहां रहने आए हैं. ये ऐसे बच्चे हैं, जिनके परिवार में कभी किसी बच्चे को पढ़ाई करने का मौका नहीं मिला और ये शिक्षा पाने वाले अपने परिवार की पहली पीढ़ी के बच्चे हैं."
उन्होंने आगे कहा, "हमने यहां अनाथ बच्चों को शिक्षा प्रदान करने के मकसद से सौर ऊर्जा की व्यवस्था और कंप्यूटर लैब व इंटरनेट की सुविधा दी गई है. समुदाय के लोग चाहते हैं कि उनके बच्चे कॉलेज जाएं. कंप्यूटर और इंटरनेट के बगैर वे पीछे रह जाएंगे और अपने मकसद में कामयाब नहीं हो पाएंगे. आज हम जिस दौर में रह रहे हैं, वहां प्रौद्योगिकी प्रगति की जरूरत है."
बच्चों को पढ़ाने लगे हैं रोबोट
अब वह दिन दूर नहीं जब बच्चों को पढ़ाने के लिए स्कूल में शिक्षकों की नहीं बल्कि रोबोट की भर्ती होगी. फिनलैंड के एक प्राइमरी स्कूल में ऐसा ही पायलट प्रोजेक्ट चल रहा है, जहां बच्चों को एक रोबोट भाषा सिखा रहा है.
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भाषा सिखाता रोबोट
इससे मिलिए, ये है एलियास. जो बतौर लैंग्वेज टीचर बच्चों को फिनलैंड के स्कूल में पढ़ा रहा है. यह बच्चों के सवालों का आराम से जवाब देता है ताकि किसी को सवाल पूछने में कोई शर्म या झिझक न हो. यह लैंग्वेंज पढ़ाने वाली मशीन एक ह्यूमनाइड रोबोट और मोबाइल ऐपलिकेशन है. यह उन चार रोबोटों में से एक है जिसे इस पायलट योजना के तहत तैयार किया गया है.
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23 भाषाओं का ज्ञान
यह रोबोट 23 भाषाएं बोल और समझ सकता है. साथ ही इसके अंदर लगा सॉफ्टवेयर इसे बच्चों की जरूरतों के बारे में बताता है ताकि पढ़ाई को लेकर वह इन्हें प्रोत्साहित कर सके. हालांकि इस ट्रायल प्रक्रिया में फिलहाल यह अंग्रेजी, जर्मन और फिनिश भाषाओं में काम कर रहा है.
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रिपोर्ट कार्ड भी तैयार
इस रोबोट की खास बात यह है कि ये बच्चों की प्रतिभा और कौशल को पहचान कर उनके स्तर के सवाल उनसे पूछ सकता है. साथ ही शिक्षकों को बच्चों के परफॉर्मेंस का फीडबैक और उनसे जुड़ी सभी संभावित समस्याओं का ब्योरा भी दे सकता है.
जो शिक्षक पढ़ाने की इस नई तकनीक के साथ काम कर रहे हैं वह इसे बच्चों को पढ़ाने और उन्हें पढ़ाई में व्यस्त रखने की एक नई तकनीक के रूप में देख रहे हैं. शिक्षक मानते हैं कि यह नया पाठ्यक्रम बच्चों को पढ़ाई से जोड़े रखने के साथ-साथ उन्हें काफी सक्रिय भी बना रहा है. साथ ही यह क्लास में बच्चों को कई तरह की गतिविधियों में व्यस्त रखता है.
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गणित सिखाने वाला रोबोट
एलियास के अलावा यह छोटे नीले रंग का नजर आ रहा रोबोट है मैथ्स रोबोट ओव्हीओबॉट. यह नीले रंग की मशीन 25 सेंटीमीटर ऊंची है और एक उल्लू की तरह नजर आती है. इसे भी फिनलैंड की एक कंपनी ने डेवलप किया है. मध्यपूर्व, एशिया और अमेरिका के भी कई स्कूलों में रोबोट का इस्तेमाल पढ़ाने के लिए किया जाता है.
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बच्चों में अनुशासन
रोबोट चाहे कितना कुछ भी सिखा ले लेकिन एक चीज जो वह नहीं कर पाता है वह है कक्षा में अनुशासन बनाए रखना. और, जब बात प्राइमरी कक्षा की हो तो यह और भी अहम हो जाता है. इसलिए फिलहाल ऐसा तो नहीं लगता कि निकट भविष्य में शिक्षकों की नौकरी को खतरा हो सकता है.
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कंप्यूटर और इंटरनेट जैसी प्रौद्योगिकी के बिना प्रगति संभव नहीं है. माइक ने बताया कि तवांग में सभी उपकरण अमेरिका से मंगाए गए हैं और डेल के कर्मचारियों ने यहां इन उपकरणों की संस्थापना में मदद की है. उन्होंने कहा, "सिर्फ कंप्यूटर स्थापित करना काफी नहीं था. हमें यह भी सुनिश्चित करना था कि बच्चे इनका इस्तेमाल करने में सक्षम हो पाएं. इसलिए उनको समुचित ढंग से प्रशिक्षण दिया जा रहा है. जब कभी कोई समस्या हो, तो उन्हें तकनीशियनों से मदद मिले. हमें यह भी सुनिश्चित करना था कि सिस्टम सौर ऊर्जा से संचालित हों क्योंकि इस तरह के दूरदराज के इलाकों में प्राय: बिजली नहीं होती है."
जब उन्होंने काम शुरू किया तो अच्छे नतीजे देखने को मिले और अनुभव संतोषजनक रहा. गत्सल चिल्ड्रन कम्युनिटी सेंटर के बच्चों ने पहली बार कंप्यूटर देखा था. माइक बताते हैं, "छोटे-छोट बच्चों ने जब लिलियाना को कंप्यूटर चलाते और इंटरनेट का इस्तेमाल करते देखा तो उनके चेहरे खिल गए." लिलियाना 14 साल की उम्र में 26 देशों की यात्राएं कर चुकी है और उसने यहां कंप्यूटर लगाने में अपने पिता की मदद की. उसे कंप्यूटर चलाते देख बच्चे ही नहीं, यहां के शिक्षक और अन्य कर्मी भी रोमांचित थे. उनमें सीखने की लालसा बढ़ गई.
माइक आगे कहते हैं, "हर समय हम समुदाय से जुड़ते हैं और हमें उनसे जो मिलता है, उसके एवज में उन्हें कुछ वापस करने की कोशिश करते हैं क्योंकि हम उनको जो देते हैं, उससे ज्यादा हमें मिलता है. हमारे पास जो अवसर हैं, वे उनके पास नहीं हैं और उनकी जिंदगी में थोड़ा बदलाव लाकर सचमुच हमें बड़ी तसल्ली मिलती है. हम उनको कंप्यूटर और इंटरनेट प्रदान कर रहे हैं."
माइक का कहना है कि वे इस प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल एक औजार के रूप में कर रहे हैं, "ये बच्चे भी अन्य लोगों की तरह ही कॉलेज जाना चाहते हैं. तो फिर इन सुदूर इलाके के बच्चों को भी हमारी तरह अवसर क्यों न मिले? इसी दिशा में हम अपना काम कर रहे हैं." वे कहते हैं कि अगर वे अपने योगदान से एक समुदाय के जीवन में बदलाव लाते हैं, तो उससे हजारों लोगों के जीवन में बदलाव आ सकता है क्योंकि इस तरह की पहलों का प्रभाव दूर तक जाता है, "जो आज इस प्रयास से लाभ उठा रहे हैं, उनको जब कभी मौका मिलेगा, वे दूसरों की जिंदगी में बदलाव लाने की कोशिश करेंगे."
ये हैं भारत के सबसे विवादित इलाके
वैश्विक मंच पर भारत को विश्व की उभरती अर्थव्यवस्थाओं में गिना जाता है. आर्थिक तरक्की के बावजूद देश में अब भी कुछ ऐसे हिस्से हैं जिन पर पड़ोसी देशों के साथ विवाद बरकरार हैं. एक नजर देश के विवादित इलाकों पर.
तस्वीर: AP
अक्साई चिन
अक्साई चिन, उत्तर पश्चिम में भारत-चीन सीमा पर स्थित तिब्बती पठार का विवादित क्षेत्र है. वर्तमान में यह चीन के कब्जे में हैं. साल 2017 में चीन ने, भारत-चीन विवाद समझौते के मद्देनजर कहा था कि अगर भारत, अरुणाचल प्रदेश का तवांग क्षेत्र चीन को देता है तो वह अक्साई चिन के अपने कब्जे वाला एक हिस्सा भारत को दे सकता है. चीन तवांग को दक्षिणी तिब्बत कहता है. (तस्वीर में तवांग की मॉर्डन टाउनशिप)
तस्वीर: DW
देपसांग घाटी
भारत-चीन की वास्तविक सीमा रेखा के निकट स्थित यह देपसांग घाटी दोनों देशों को अलग करती है. साल 2014 में पहली बार चीन ने लद्दाख क्षेत्र की देपसांग घाटी में अतिक्रमण करने की बात कबूली थी और कहा था कि ऐसी घटनाएं वास्तविक नियंत्रण रेखा के बारे में अलग-अलग धारणाओं की वजह से हुईं थी.
तस्वीर: picture alliance/AP Photo/A. Wong
अरुणाचल प्रदेश
भारत के पूर्वोत्तर में स्थित अरुणाचल प्रदेश भी भारत-चीन विवाद में अहम स्थान रखता है. चीन दावा करता रहा है कि अरुणाचल, दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा है. साल 2018 की शुरुआत में चीनी फौजों की प्रदेश में घुसपैठ करने जैसे खबरें आईं थी. वहीं पिछले साल चीन ने दलाई लामा का अरुणाचल प्रदेश जाने का विरोध किया था. चीन दलाई लामा को अलगाववादी नेता मानता है.
तस्वीर: Prabhakar Mani
सर क्रीक
सर क्रीक पर भी भारत और पाकिस्तान के बीच कोई सहमति नहीं बन पाई है. यह भारत के गुजरात के कच्छ जिले और पाकिस्तान के सिंध प्रांत के बीच स्थित 96 किलोमीटर लंबी पट्टी है. आजादी से पहले यह क्षेत्र भारत के बॉम्बे प्रेसिडेंसी का भाग था. लेकिन आजादी के बाद इसके हिस्से हो गए लेकिन इसका मालिकाना हक स्पष्ट नहीं हो सका. यह क्षेत्र मछुआरों के लिए बेहद ही अहम है.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/A. Naveed
भारत और पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर
भारत-पाकिस्तान के बीच विवाद की जड़ यह क्षेत्र है. पाकिस्तान, भारत नियंत्रित कश्मीर पर अपना दावा करता है. वहीं भारत, पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर और गिलगित बल्तिस्तान पर. गिलगित बल्तिस्तान, पाकिस्तान प्रशासित सबसे उत्तरी इलाका है जिसकी सीमा दक्षिण में पाकिस्तान और भारत के नियंत्रण वाले कश्मीरी इलाकों से मिलती है.
हिमालय के काराकोरम पर्वतमाला में भारत-पाक नियंत्रण रेखा के पास स्थित सियाचिन ग्लेशियर पर भारत का नियंत्रण है. लेकिन पाकिस्तान इस पर अपना दावा करता है. इस क्षेत्र में कमर तक बर्फ जमी होती है. साल 2016 में हिमस्खलन के चलते यहां भारतीय सेना के 10 जवानों की बर्फ के नीचे दब जाने से मौत हो गई थी.