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अर्थशास्त्रियों को नहीं सरकारी डाटा पर भरोसा

१५ मार्च २०१९

आर्थिक और सामाजिक विशेषज्ञों ने चुनावों से ठीक पहले भारतीय अर्थव्यस्था से जुड़े डाटा पर सवाल उठाए हैं. जानकारों का कहना है कि सरकार ऐसे आंकड़ों के साथ छेड़छाड़ कर रही है जो सरकार के काम में कमियों को उजागर करते हैं.

Indien Narendra Modi
तस्वीर: AFP/Getty Images/P. Singh

भारत और विश्व भर के 108 अर्थशास्त्रियों और समाजशास्त्रियों ने भारत सरकार की ओर से पेश किए जा रहे इकोनॉमिक डाटा पर सवाल उठाए हैं. एक ओपन लेटर में इन्होंने कहा है कि जो भी सरकारी आर्थिक आंकड़े पेश किए जा रहे हैं, वे काफी हद तक सरकार से प्रभावित हैं. उनका मानना है कि इन आंकड़ों के पीछे कई राजनीतिक विचार काम कर रहे हैं.

इस पत्र में कहा गया है कि सरकार की उपलब्धि और उसके काम पर सवाल उठाने वाले मामूली से आंकड़ों को भी या तो दबा दिया जाता है या उसमें कोई संशोधन कर दिया जाता है. साल 2015 में केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) ने इकोनॉमिक आउटपुट डाटा में आधार वर्ष को बदल दिया था, जिसके चलते वृद्धि दर में काफी तेजी नजर आई.

इस पत्र में साल 2016-17 में दर्ज की गई 8.2 फीसदी की संशोधित वृद्धि दर पर भी सवाल उठाए गए हैं. इस वृद्धि दर को इस दशक की सबसे ऊंची वृद्धि दर कहा गया है. हालांकि यह आंकड़ा अर्थशास्त्रियों के अनुमान से काफी अलग है. दरअसल यह वृद्धि दर उस वक्त की है जब मोदी सरकार की नोटबंदी की नीति के चलते तकरीबन 86 फीसदी नोट बैंकों में पहुंच गए थे और देश भर में कारोबारी हालात बिगड़ गए थे.

तस्वीर: Reuters/D. Siddiqui

नोटबंदी के बाद साल 2017 में केंद्र सरकार ने देश भर में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के नए कानून को लागू कर दिया था, जिसके चलते कई क्षेत्रों को वापस पटरी पर आने में काफी वक्त लगा.

इस पत्र में रोजगार से जुड़े एक अहम सर्वे को जारी नहीं किए जाने पर भी बात की गई है. कहा गया है कि सर्वे में देरी के चलते सांख्यिकी कार्यालय के दो वरिष्ठ अधिकारियों ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था. मीडिया रिपोर्टों के अनुसार ये रिसर्च बताती है कि बेरोजगारी साल 1970 के बाद से अब तक के सबसे ऊंचे स्तर पर है. लेकिन सरकार के हिसाब से यह निष्कर्ष निकालना अभी संभव नहीं है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के सांख्यिकीय कार्यालयों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है. इससे भी ज्यादा गौर करने वाली बात है कि यही आंकड़े बाद में अर्थनीतियों को तय करने में मददगार होते हैं. साथ ही एक ईमानदार और लोकतांत्रिक संवाद का आधार बनते हैं. इस पत्र पर दस्तखत करने वालों में कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के पॉल निहाउस, मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के अभिजीत बनर्जी समेत मैसाचुसेट्स यूनिवर्सिटी के श्रीपद मोतीराम जैसे वरिष्ठ अर्थशास्त्री शामिल हैं. अब तक भारत सरकार की ओर से इस पत्र पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी गई है.

एए/आरपी (एएफपी)

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