1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

उधार के संसाधनों पर जिंदगी जी रहे इंसान

आने सोफी ब्रैंडलीन | एलिस्टर वाल्श
५ अगस्त २०२२

इंसानों ने सात महीने में ही उतने प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल कर लिया जितना पृथ्वी पर एक साल में पैदा हो सकता है. अब हम भविष्य से उधार ले रहे हैं. इसके लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार विकसित देश हैं.

औद्योगिक देश जर्मनी को अपना कार्बन उत्सर्जन घटाने की जरूरत है
औद्योगिक देश जर्मनी को अपना कार्बन उत्सर्जन घटाने की जरूरत हैतस्वीर: Christoph Hardt/Geisler-Fotopress/picture alliance

 

साल 2022 का करीब आधा समय ही बीता और 28 जुलाई को अर्थ ओवरशूट डे की घोषणा हो गई. सामान्य शब्दों में कहें, तो इंसान 28 जुलाई तक ही उतने संसाधनों का इस्तेमाल कर चुके हैं जितना पृथ्वी स्थायी तौर पर पूरे एक साल में फिर से पैदा कर सकती है. अर्थ ओवरशूट डे की गणना के अनुसार, साल के बाकी बचे महीने के लिए इंसान धरती के संसाधनों पर बोझ बढ़ा देंगे.

ग्लोबल फुटप्रिंट नेटवर्क के संस्थापक और अध्यक्ष माथिस वेकरनेगल ने डीडब्ल्यू को बताया, "यह उस तरह है जैसे कि आपने अपना सारा पैसा 28 जुलाई तक ही खर्च कर दिया और अब साल के बाकी महीने कर्ज पर जिंदगी गुजार रहे हैं. यह काफी गंभीर मामला है, क्योंकि अगर बात पैसे की होती है, तो आप उधार ले सकते हैं या ज्यादा पैसा छाप सकते हैं. वहीं, बात संसाधनों की करें, तो आप इसे भविष्य से उधार ले सकते हैं, लेकिन छाप नहीं सकते.”

यह भी पढ़ेंः कार्बन उत्सर्जन ना खाने को अन्न मिलेगा ना सांस लेने को साफ हवा

उनका संगठन अर्थ ओवरशूट डे की गणना इस आधार पर करता है कि हम संसाधनों का कितना उपभोग करते हैं, कितनी तेजी से उत्पाद बनाए जाते हैं, कितने लोग संसाधनों को तेजी से खर्च कर रहे हैं और प्रकृति फिर से कितना उत्पादन कर सकती है. 

संसाधनों की खपत की मौजूदा दर की बात करें, तो इंसानों की वर्तमान जरूरत को पूरा करने के लिए पृथ्वी के साथ-साथ किसी अन्य ग्रह के 75 फीसदी हिस्से की जरूरत होगी. वेकरनेगल ने कहा कि इतनी तेजी से संसाधनों के इस्तेमाल के कारण ही धरती पर कई तरह के संकट आ रहे हैं.  

ड्रायर की बजाय धूप या हवा में टांग कर कपड़े सुखाने से काफी ऊर्जा की बचत होगीतस्वीर: FABRIZIO BENSCH/REUTERS

उन्होंने कहा, "हम सभी समस्याओं को अलग-अलग तरीकों से देखते हैं. जैसे, जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता का नुकसान या भोजन की कमी. हमें लगता है कि सभी के पीछे की वजह अलग-अलग है, क्योंकि वे अलग-अलग समय पर सामने आ रहे हैं. हालांकि, ये सभी एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं. पृथ्वी जितनी मात्रा में संसाधनों का फिर से उत्पादन कर सकती है उसकी तुलना में इंसानों की खपत काफी ज्यादा बढ़ गई है.”

घड़ी को पीछे धकेलने के उपाय

उन्होंने कहा कि घड़ी को पीछे धकेलने के कई विकल्प हैं. डिकार्बोनाइजेशन के लिए वित्तीय सहायता उपलब्ध करा कर हम 22 दिन और खरीद सकते हैं. दूसरे शब्दों में कहें, तो मौजूदा समय में जिस दिन ओवरशूट डे घोषित हुआ है उस तारीख को 22 दिन और आगे बढ़ाया जा सकता है. इसी तरह, स्मार्ट सिटी डिजाइन को लागू करके हम 29 दिन और खरीद सकते हैं. हर एक टन कार्बन उत्सर्जन की कीमत 100 डॉलर तय करके हम ओवरशूट डे को 63 दिन आगे बढ़ा सकते हैं. साथ ही, यूरोपीय संघ की ग्रीन न्यू डील जैसी संरचना को पूरी दुनिया में अपनाकर 42 दिन और खरीद सकते हैं. 

इंसानों के लिए एक पृथ्वी कम पड़ रही है

08:16

This browser does not support the video element.

अगर इन तमाम उपायों को अपनाया जाता, तो वर्ष 2022 में अर्थ ओवरशूट डे की घोषणा 28 जुलाई की जगह 31 दिसंबर को होती. इसका मतलब यह होता कि हम एक साल में उतने ही संसाधनों का इस्तेमाल करते जितनी पृथ्वी इस समयावधि में फिर से उत्पादन करने में सक्षम है और हमें भविष्य से उधार नहीं लेना पड़ता. 

हालांकि, इन तमाम बड़े उपायों के साथ-साथ कई ऐसे छोटे उपाय भी हैं जो अर्थ ओवरशूट डे की तारीख को आगे बढ़ा सकते हैं. जैसे, वाहनों की गति सीमा को कम करना, कपड़े सूखाने के लिए मशीन की जगह प्राकृतिक हवा और धूप का इस्तेमाल करना, घरों में एलईडी बल्ब का इस्तेमाल करना वगैरह.

ध्यान देने वाली एक और बात यह है कि पृथ्वी के लिए अर्थ ओवरशूट डे 28 जुलाई को घोषित हुआ, लेकिन कई देशों में यह तारीख काफी पहले ही आ गई थी. कतर ने वर्ष 2022 में 10 फरवरी तक ही अपने हिस्से के सभी नवीकरणीय संसाधनों का इस्तेमाल कर लिया था. इसके बाद, दूसरे नंबर पर लक्जमबर्ग रहा जिसने 14 फरवरी को ही अपने एक साल के हिस्से के संसाधनों का इस्तेमाल कर लिया. वहीं, कई ऐसे देश भी हैं जिन्होंने अपने हिस्से से ज्यादा संसाधनों का इस्तेमाल नहीं किया है. 

कितने पृथ्वी की जरूरत है

जर्मनी को तीन जर्मनी चाहिए

जर्मनी का ओवरशूट डे 4 मई को ही हो गया था. दूसरे शब्दों में कहें, तो अगर दुनिया भर के लोग जर्मनी की तरह रहने लगें, तो उनकी जरूरतों को पूरा करने के लिए पृथ्वी जैसे तीन ग्रह चाहिए होंगे. जबकि, हमारे पास सिर्फ एक ग्रह ही है.

जर्मन डेवलपमेंट नेटवर्क आईएनकेओटीए में रिसोर्स जस्टिस की वरिष्ठ नीति सलाहकार लारा लुइजा जीवर ने 4 मई से कुछ दिनों पहले कहा था, "इसे चेतावनी का संकेत माना जाना चाहिए, जो हमें स्थिति की गंभीरता को दिखाता है. यह सभी नागरिकों के साथ-साथ नेताओं और उद्योगों के लिए भी चेतावनी है कि हम लंबे समय तक इस तरह की स्थिति को जारी नहीं रख सकते.” 

पर्यावरण और सतत विकास समूह जर्मन वाच के प्रेस प्रवक्ता स्टेफन कूपर कहते हैं कि जर्मनी में ओवरशूट डे जल्दी आने की वजह यह है कि कृषि क्षेत्र और इमारतों में इस्तेमाल होने वाली ऊर्जा के लिए संसाधनों का बहुत ज्यादा इस्तेमाल हुआ है. उन्होंने कहा, "और यह जर्मनी को उधारी पर जीने और पृथ्वी के संसाधनों का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल करने की दिशा में ले जा रहा है.”

काफी धीमी प्रगति

पहली बार यह स्थिति नहीं बनी है जब जर्मनी ने इतनी जल्दी अपने हिस्से के संसाधनों का इस्तेमाल कर लिया है. दरअसल, पिछले कई वर्षों से देश का आधिकारिक ओवरशूट डे एक ही तारीख के आसपास रहा है. कूपर ने कहा, "और यह सबसे दुखद बात है. हम कम संसाधनों का इस्तेमाल करने या ग्रीनहाउस गैसों का कम उत्सर्जन करने की दिशा में कोई वास्तविक और दर्ज की जा सकने लायक प्रगति नहीं कर रहे हैं. इससे दूसरे देशों को गलत संदेश जाता है. शायद वे देश जर्मनी को देखकर यह जानना चाहते हों कि वह उत्सर्जन की समस्या से कैसे निपट रहा है.” 

उन्होंने आगे कहा, "वह देख रहे हैं कि जर्मनी अपने जलवायु लक्ष्यों तक पहुंचने के लिए कोई खास प्रगति नहीं कर रहा है. ऐसे में, वे सोचेंगे कि यह उनके लिए भी प्राथमिकता का विषय नहीं है. इसलिए, जर्मनी को यह दिखाने के लिए बड़े और जरूरी कदम उठाने होंगे कि उसने ना सिर्फ लक्ष्य निर्धारित किए, बल्कि उस तक पहुंचने के लिए कुछ काम भी कर रहा है.”

जर्मनी से बहुत कम उत्सर्जन के बावजूद इंडोनेशिया जैसे देश इसका दंड भोग रहे हैंतस्वीर: Aditya Sutanta/ABACA/picture alliance

गरीब देशों का हक मार रहे अमीर देश

जर्मनी ही नहीं, बल्कि कई ऐसे अमीर देश हैं जो साल की पहली तिमाही में ही ओवरशूट डे की सीमा-रेखा को पार कर गए. इनमें कतर, लक्जमबर्ग, कनाडा, संयुक्त अरब अमीरात और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देश शामिल हैं. जीवर का कहना है कि इससे पता चलता है कि औद्योगिक रूप से विकसित देश, किस तरह कम विकसित देशों के संसाधनोंपर आश्रित हैं. जमैका, इक्वाडोर, इंडोनेशिया, क्यूबा और इराक जैसे देश साल के अंत तक भी ओवरशूट डे की सीमा-रेखा तक नहीं पहुंचेंगे. ये तुलनात्मक रूप से काफी कम संसाधनों का इस्तेमाल करते हैं.

जीवर ने कहा, "जर्मनी दुनिया भर में कच्चे माल का पांचवां सबसे बड़ा उपभोक्ता है और दक्षिणी गोलार्ध के देशों से 99 फीसदी खनिजों और धातुओं का आयात कर रहा है. दक्षिणी गोलार्ध के ये देश, विकसित देशों की तुलना में समान मात्रा में कच्चे माल का उपभोग नहीं करते हैं, लेकिन मानवाधिकारों का हनन और पर्यावरणीय क्षति जैसी कीमत चुकाते हैं.” 

संसाधनों का लगातार बढ़ रहा दोहन

करीब आधी सदी पहले तक, पृथ्वी पर इतने संसाधन मौजूद थे जो इंसानों की सलाना जरूरत को पूरा करने से ज्यादा थे, लेकिन धीरे-धीरे इंसानों की खपत बढ़ती गई और ‘अर्थ ओवरशूट डे' होने लगा. अब यह तारीख हर साल के कैलेंडर में जल्दी नजर आने लगी. वर्ष 2020 में यह 22 अगस्त थी. वहीं, 1970 में 30 दिसंबर और 1990 में 10 अक्टूबर थी. 2010 में यह तारीख 6 अगस्त को पड़ी थी. 

कूपर कहते हैं, "मुझे यही बात सबसे ज्यादा चिंतित करती है कि हम दशकों से अपने संसाधनों का काफी ज्यादा इस्तेमाल कर रहे हैं. पूरी दुनिया में ऐसा हो रहा है. हमें संसाधनों के अति-उपभोग पर तुरंत रोक लगाने की जरूरत है.”

देशों के अर्थ ओवरशूट डे

आखिर कैसे बदलेगी यह स्थिति?

अर्थ ओवरशूट डे के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार कारक में शामिल है कार्बन उत्सर्जन. फिलहाल, पूरी दुनिया में मानवीय क्रियाकलापों की वजह से 60 फीसदी कार्बन का उत्सर्जन होता है. अगर हम कार्बन उत्सर्जन को आधा कर देते हैं, तो तीन महीने बाद अर्थ ओवरशूट डे पर पहुंचेंगे.

अक्षय ऊर्जा के इस्तेमाल को बढ़ावा देना, कार्बन उत्सर्जन में कटौती के सबसे असरदार तरीकों में से एक है. हालांकि, जीवर का कहना है कि हमें अक्षय ऊर्जा को विकसित करने में इस्तेमाल होने वाले कच्चे माल से जुड़ी लागत पर भी ध्यान देना होगा. 

उन्होंने कहा, "हर कोई अक्षय ऊर्जा के इस्तेमाल को बढ़ावा देने की बात कर रहा है, लेकिन हमें इसके लिए खनिज और धातुओं की जरूरत होती है, जैसे कि कोबाल्ट, लीथियम, और निकल. हम अक्सर भूल जाते हैं कि वैश्विक कार्बन डाइ ऑक्साइड उत्सर्जन का 11 फीसदी हिस्सा इन धातुओं के प्रसंस्करण के दौरान निकलता है.”

जीवर का समूह सिविल सोसायटी के साथ काम कर रहा है, ताकि दूसरे देशों से कच्चे माल के आयात और उसके इस्तेमाल में कमी लाई जा सके. इसका फायदा होता भी दिख रहा है. जर्मन सरकार ने अपने समझौते में कच्चे माल की खपत कम करने की योजना बनाई है.

जर्मनी के वुपरटाल में पुरानी रेल लाइन को साइकिल मार्ग में बदल दिया गया हैतस्वीर: Jochen Tack/IMAGO

सुरक्षित भविष्य के लिए पहल

नागरिकों की कई पहल, नगरपालिकाओं की नीतियां, और कारोबार से जुड़ी रणनीतियां पहले से ही कई तरह का बदलाव ला रही हैं. इनका असर आने वाले वर्षों में जर्मनी के ओवरशूट डे पर हो सकता है.

पश्चिमी जर्मनी के शहर वुपरटाल में, नागरिकों ने पुराने रेलमार्ग को साइकिल के लिए इस्तेमाल होने वाली सड़क के रूप में बदलने की शुरुआत की है. ऐसी उम्मीद है कि अगले 30 वर्षों में 9 करोड़ लोग इस सड़क का इस्तेमाल साइकिल चलाने के लिए करेंगे.

नीति-निर्माताओं ने जर्मनी के आखेन शहर को 2030 तक कार्बन-न्यूट्रल बनाने के लिए रणनीतिक तैयारियां की है. यहां मौजूद इमारतों की छतों पर सोलर प्लेट लगाए जाएंगे जिससे इलाके के सभी लोगों को पर्याप्त बिजली मिलेगी. 150 रूफटॉप सोलर प्लेट को इंस्टॉल करने के लिए पैसे की व्यवस्था हो चुकी है. इस साल 1000 और सोलर प्लेट लगाने की दिशा में काम किया जा रहा है.

कूपर का मानना है कि फ्राइडे फॉर फ्यूचर जैसे अभियानों से नेताओं पर दबाव बढ़ता है और इस तरह के कदम उठाए जाते हैं. उनका कहना है कि अर्थ ओवरशूट डे जैसी तारीखें दुनिया भर में चेतावनी देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है.

उन्होंने कहा, "जब हमने अन्य संगठनों के साथ ओवरशूट डे के बारे में लोगों को जागरूकता करना शुरू किया, तो शायद ही किसी को इसके बारे में पता था. अब काफी लोग इसे लेकर जागरूक हो गए हैं. हमें इसी की जरूरत है. जनता के दबाव के बिना कोई भी बदलाव संभव नहीं है.”

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें