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अलग-अलग जगह पर जख्म एक: आतंक

२ अगस्त २०११

कहते हैं वक्त बड़े से बड़े जख्म को भर देता हैं. लेकिन आतंकवादी हमलों के शिकार बच्चों के जहन से उदासी और अकेलेपन को हटाना मुश्किल है. एक अनोखे कैंप में यह बच्चे खुश रहना सीख रहे हैं.

तस्वीर: AP

जूली ग्रिफिन और एंजल सेरानो अभी मिली हैं, लेकिन जो रिश्ता इन्हें जोड़ता है वह सालों पुराना और दर्दीला है. जूली और एंजल की ही तरह 75 और किशोर एक ऐसे कैंप में भाग ले रहे हैं जिसमें वे किसी अपने करीबी को आतंकी हमले में खो चुके हैं. प्रोजेक्ट कॉमन बॉन्ड कैंप अमेरिका के वर्जीनिया शहर में चल रहा है. इस कैंप की खास बात यह है कि इसमें शामिल बच्चे आतंकी हमलों के शिकार हैं. हमलों में इनके सगे संबंधी मारे जा चुके हैं.

तस्वीर: AP

नन्ही उम्र में दुखों का पहाड़

जूली ग्रिफिन के पिता 11 सितंबर 2001 को वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के उत्तरी टॉवर पर हुए आतंकी हमले में मारे गए थे. जबकि एंजल सेरानो 11 मार्च 2004 को मैड्रिड ट्रेन बम हमले में बेहद करीबी रिश्तेदार को खो चुकी हैं. यह एक ऐसी क्षति है जिसके बारे में इन 75 में से कोई भी अपने रिश्तेदार या फिर दोस्त से बात नहीं करना चाहता. लेकिन प्रोजेक्ट कॉमन बॉन्ड के जरिए इन्हें अलग अलग तरह के वर्कशॉप में भाग लेने के लिए कहा जाता है. जैसे सुबह के समय खेलकूद या दोपहर में डांस क्लास होती हैं. इन सबके जरिए इन्हें इस बात के लिए प्रोत्साहित किया जाता है कि ये अपनी दुनिया से बाहर निकले और चुप्पी तोड़े. प्रोजेक्ट का उद्देश्य है कि ये बच्चे अकेलेपन के दुख को किसी तरह से मिटा सकें. 18 वर्षीय ग्रिफिन कहती हैं, "बातचीत करने से मैं परहेज करती थी, क्योंकि मैं जिनसे बात करूंगी वह मेरे बारे में पूछेंगे, मेरे बारे में जांचेंगे. बिना मुझे जाने वे बोलेंगे भी क्या."

दूर होगा अकेलापन

तस्वीर: AP

ग्रिफिन कहती हैं इस प्रोजेक्ट में आने के बाद वह थोड़ा बदलाव महसूस कर रही हैं. ग्रिफिन के मुताबिक, "मैं जब इस प्रोजेक्ट में आई तो मैं सभी लोगों से आराम से बातचीत कर पाई. दोपहर के खाने के दौरान अगर कोई उदास महसूस कर रहा है तो वह अपनी उदासी के बारे में बात कर सकता है. यह बड़ा ही आसान है. आप दोपहर के खाने के दौरान बात कर सकते हैं और आपकी परेशानी सब आसानी से समझ लेते हैं." यह प्रोजेक्ट साल 2008 से जारी है. इस साल रिकॉर्ड आठ देशों से बच्चे इस प्रोजेक्ट में शामिल हुए हैं. अर्जेंटीना, इस्राएल, लाइबीरिया, उत्तरी आयरलैंड, रूस, स्पेन, श्रीलंका, अमेरिका और फलिस्तीन प्रशासित इलाके से आतंकवादी हमले के पीड़ित बच्चे प्रोजेक्ट में शामिल हैं.

खास कैंप

कैंप में भाग ले रही एली स्टालमैन कहती हैं, "मेरे लिए अपनी मां से इस बारे में बात कर पाना बहुत मुश्किल हैं. हम दोनों को अलग अलग नुकसान हुआ है. मां ने अपना पति खोया है और मैंने पिता." स्टालमैन के पिता 9/11 के हमले में मारे गए थे. स्टालमैन बताती हैं, "लेकिन यहां बहुत सारे लोग हैं जिन्होंने अपने पिता को खोया है. सबकी परेशानी एक है, मुद्दे एक हैं और नुकसान एक है, चाहे आप कैलिफोर्निया से आते हो या श्रीलंका से. हम सबकी समस्या एक है और हम एक दूसरे से जुड़ जाते हैं." 17 साल की मिजेल टानेनबाउम जिसके दादा की मौत 1994 में ब्यूनस आयर्स के यहूदी कैंप पर हमले में हुई थी बताती हैं, "हमारे रिश्ते ऐसे हैं जैसे किसी और के साथ नहीं हो सकते."

तस्वीर: DW-World

आठ देश से 75 पीड़ित बच्चे

रूस से आई मदीना भी इस कैंप में भाग ले रही है. उसके मुताबिक, "इस कैंप ने मेरी बहुत मदद की है इसने मेरा अकेलापन भुलाने में मदद की है." 18 वर्षीय प्रसाद इल्लिपुल्ली ने तो अपने पिता को कभी देखा ही नहीं है. उसके पिता श्रीलंका में 1993 में हुए एक आतंकी हमले में मारे गए थे. स्टालमैन कहती हैं, "हम यह भी नहीं जानते कुछ लोगों का नाम कैसे उच्चारण करते हैं लेकिन जब वे उदास होते हैं तो आप उन्हें गले लगा सकते हैं और वे आपको गले लगा सकते हैं."

रिपोर्ट:रॉयटर्स/आमिर अंसारी

संपादन: आभा एम

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