राष्ट्रपति एर्दोवान के कार्यकाल में तुर्की बदल रहा है. राजनीतिक विरोधियों और खासकर पत्रकारों पर दबाव बनाया जा रहा है. डॉयचे वेले के अलेक्जांडर कुदाशेफ का कहना है कि इसीलिए देश अलग थलग है.
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तुर्की लगातार अलग थलग होता जा रहा है. तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तेयप एर्दोवान उसे इस्लामी प्रभाव वाले निरंकुश शासन में बदल रहे हैं. कुछ लोगों का तो कहना है कि वह देश को इस्लाम के प्रभाव वाली तानाशाही की ओर ले जा रहे हैं. मामला यह नहीं है कि देश की संसदीय व्यवस्था को उनके अनुसार ढली राष्ट्रपति व्यवस्था में बदला जा रहा है, मौत की सजा के प्रावधान के साथ. मामला तुर्की के रोजमर्रे का है, सेना, प्रशासन स्कूल, विश्वविद्यालय और सरकारी दफ्तरों के दसियों हजार लोगों की गिरफ्तारी का है. उन पर संदेह है कि वे गुलेन आंदोलन के समर्थक हैं और एर्दोवान को सत्ताच्युत करना चाहते हैं. गिरफ्तारी की इस लहर में कानूनी राज्य और प्रेस तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता खतरे में पड़ गई है.
इस बीच 150 से ज्यादा पत्रकार कैद या न्यायिक हिरासत में हैं. अखबारों को बंद कर दिया गया है, दूसरे को रास्ते पर आने के लिए मजबूर कर दिया गया है. विपक्षी आवाजें सुनना दुर्लभ हो गया है. और अब एक जर्मन पत्रकार डेनिस यूजेल को भी हिरासत में ले लिया गया है. जर्मनी में उचित ही एकजुटता की लहर दिखी है, सरकार, चांसलर और विदेश मंत्री तक.
अब तक जर्मन सरकार ने तुर्की के घटनाक्रम पर संयम दिखाया है. उसने तुर्की और एर्दोवान के लिए पुल बनाने की कोशिश की है. इस चिंता की वजह से भी कि एर्दोवान की आलोचना तुर्की के साथ शरणार्थी समझौते को खतरे में डाल सकती है. लेकिन अब उसे साफ रवैया अख्तियार करना होगा. और वह भी ऐसे समय में जब तुर्की का जनमत पहले से कहीं ज्यादा तनाव में है. क्योंकि तुर्की में अंतर करने की राजनीतिक जगह नहीं बची है. अब सिर्फ एर्दोवान का समर्थन या विरोध है. सिर्फ दोस्त हैं या दुश्मन हैं.
जर्मनी में अखबारों ने लिखा है, हम सब डेनिस हैं. यही फेसबुक और ट्विटर पर लिखा जा रहा है. हां मीडिया में हम सब डेनिस हैं. हम सब को अपने सहकर्मी की चिंता है और उन 154 दूसरे पत्रकारों की भी जो तुर्की में जेल में हैं. हमें तुर्की में प्रेस और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की चिंता है. हमें तुर्की की चिंता है. वह यूरोप से दूर जा रहा है. ये देश राजनीतिक तौर पर अलग थलग हो गया है. यूजेल की हिरासत इसका एक नमूना है. अभी भी हम सब डेनिस हैं. लेकिन चिंता इस बात की है कि हमें जल्द ही हैशटैग फ्री डेनिस की छतरी के नीचे इकट्ठा होना होगा.
विश्व भर के पत्रकारों के लिए कैसा रहा 2016
कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स (सीपीजे) की वार्षिक रिपोर्ट दिखाती है कि विश्व के कई देशों के पत्रकारों के लिए 2016 गिफ्तारियों का साल रहा. इस साल अब तक 259 पत्रकार कैद में रखे गए हैं, जो बीते 30 सालों में सबसे अधिक है.
तस्वीर: picture-alliance/AP/M. Ugarte
किसने बनाई सूची
मीडिया के अधिकारों और स्थिति पर नजर रखने वाली संस्था सीपीजे के अनुसार बीते तीस सालों में 2016 में सबसे ज्यादा देशों की सरकारों ने पत्रकारों को गिरफ्तार कर जेल में डाला है.
क्या है मकसद
गैर लाभकारी संगठन सीपीजे प्रेस की आजादी को सुरक्षित रखने की दिशा में काम करती है. इस रिपोर्ट के अनुसार कुल 259 पत्रकार इस साल जेल में बंद हैं जबकि साल 2015 में यह संख्या 199 थी.
तस्वीर: AFP/Getty Images/K. Desouki
कौन से पत्रकार शामिल
संगठन ने सन 1990 से जेल में डाले गए पत्रकारों के आंकड़े दर्ज करना शुरू किया. इनमें गायब हुए, अगवा किए गए या किसी गैरसरकारी तत्व द्वारा कब्जे में लिए गए पत्रकार शामिल नहीं हैं.
तस्वीर: picture alliance/Pacific Press
नंबर एक पर
चीन में इस साल 1 दिसंबर तक 38 पत्रकार हिरासत में रखे गए थे. रिपोर्ट में लिखा है, "चीन में विरोध प्रदर्शन और मानवाधिकार के उल्लंघन से जुड़े मामले कवर करने वाले पत्रकारों पर ज्यादा कड़ी कार्रवाई हुई है."
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/Apple Daily
नंबर दो पर
तुर्की में कम से कम 81 पत्रकार जेल में बंद हैं. इन पर सरकार विरोधी होने के आरोप हैं. 15 जुलाई को सरकार के तख्तापलट में साथ देने के संदेह में 100 से अधिक मीडिया संस्थानों को बंद कर दिया गया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
नंबर तीन पर
तुर्की और चीन के बाद इस सूची में मिस्र का नाम है जहां 25 पत्रकारों को जेल में बंद रखा गया है. सरकारों का कहना है कि किसी पत्रकार को पत्रकारिता करने के लिए नहीं बल्कि कोई गैरकानूनी काम करने के आरोप में सजा हुई है.
तस्वीर: Reuters/A.A.Dalsh
टॉप 5 से कैसे हटा ईरान
2008 से लेकर 2016 में पहली बार ऐसा हुआ है कि टॉप पांच देशों में ईरान का नाम नहीं आया. कारण ये है कि 2009 में चुनाव के बाद जिन पत्रकारों को सजा सुनाई गई थी, उनमें से कई अपनी सजा काट कर रिहा हो गए हैं.
तस्वीर: Ilna
भारत में भ्रष्टाचार पर लिखना जानलेवा
इस साल जेल में डाले गए पत्रकारों में 20 महिला पत्रकार हैं. भारत के आंकड़े देखें तो सन 1992 से अब तक 27 पत्रकारों की उनकी रिपोर्टिंग के कारण हत्या कर दी गई और अब तक इसके लिए किसी को सजा नहीं हुई है.