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अल्जीरिया संकट और घेरे में सरकार

१९ जनवरी २०१३

अल्जीरिया में बंधक संकट और इससे निपटने के लिए सरकारी कदम को लेकर सवाल उठने लगे हैं. फौज ने बंधकों को छुड़ाने की कोशिश करने की जगह सीधे उग्रवादियों की सफाई का फैसला किया और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोई मशविरा नहीं किया.

तस्वीर: dapd

इस्लामी चरमपंथियों को गैस प्लांट से हटाने के लिए अल्जीरिया की फौज ने जो कार्रवाई की है, उसकी वजह से अल्जीरिया सरकार पर दाग लगे हैं और ये दाग लंबे वक्त तक बने रहेंगे. खास तौर पर इसलिए क्योंकि बंधक संकट निपटाने के दौरान कई विदेशी नागरिकों की मौत हो गई है.

हालांकि फौज ने ज्यादातर उग्रवादियों का सफाया कर दिया लेकिन अल्जीरिया की मजबूत सेना पर सवाल उठ रहे हैं कि दूसरे देश से किस तरह सशस्त्र लोगों का दल देश में पहुंच जाता है और भारी सुरक्षा वाले हिस्से में पहुंच कर चीजों को अपने कब्जे में कर लेता है. अफ्रीका का यह हिस्सा हाल के दिनों में बेहद अस्थिर हो गया है और अल्जीरिया के सामने इस बात को साबित करने की चुनौती है कि उसके यहां सब कुछ ठीक ठाक चल रहा है. यह देश भी अल कायदा और इस्लामी चरमपंथ की चपेट में रह चुका है.

गैस संयंत्र से उग्रवादियों का सफायातस्वीर: Reuters

अल्जीरिया में राजस्व का तीन चौथाई हिस्सा तेल कारोबार से आता है और यहां भारी संख्या में विदेशी नागरिक और कंपनियां काम करती हैं. ऐसे में उनकी सुरक्षा को लेकर जो सवाल उठे हैं, उससे अल्जीरिया के कारोबार पर भी असर पड़ सकता है. बंधक संकट को खत्म करने के लिए अल्जीरिया सरकार ने जो कदम उठाए हैं, उससे जापान बहुत नाराज है. टोक्यो कह चुका है कि उससे राय मशविरा किए बगैर अल्जीरिया ने कार्रवाई की, जिसमें जापानी नागरिकों की मौत हो गई. ऐसे में इस बात की संभावना बहुत कम है कि आने वाले दिनों में जापान वहां कारोबार में बहुत उत्साहित रहेगा.

ब्रिटेन की विशालकाय तेल कंपनी बीपी भी इस मामले पर नाराजगी जता चुकी है. पूरे ड्रामे का बहुत बड़ा हिस्सा बीपी से जुड़ा है. अल्जीरिया के गैस प्लांट में बीपी की बड़ी हिस्सेदारी है. उसका कहना है कि अल्जीरिया ने इस बारे में उससे बात भी नहीं की है. बीपी वहां से अपना कारोबार तो नहीं समेट सकती क्योंकि अल्जीरिया में तेल का भारी भंडार है लेकिन भविष्य में वह अपने विस्तार पर विराम लगा सकती है. पश्चिमी देशों में सुरक्षा पर खास ध्यान दिया जाता है.

सिर्फ फ्रांस ने इस मुद्दे पर कोई बयान नहीं दिया है. अल्जीरिया पहले फ्रांस का उपनिवेश रह चुका है. दोनों देशों में नजदीकी संबंध हैं और समझा जाता है कि माली में फ्रांस की सैनिक कार्रवाई के मद्देनजर उसे अल्जीरिया की सहायता की जरूरत पड़ सकती है.

रिहाई के बाद भी सदमे में लोगतस्वीर: dapd

हालांकि पेरिस में अल्जीरिया मामले की एक्सपर्ट खदीजा मोहसिन फिनान का कहना है कि यह मुख्तार बेल मुख्तार के लिए बड़ी कामयाबी साबित हो सकती है. एक आंख वाले मुख्तार को अल्जीरिया का एक नंबर का दुश्मन माना जाता है.

अल्जीरिया में 1990 से ही खून खराबा हो रहा है, जिसमें दो लाख से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है. हालांकि इस दौरान तेल उत्पादन क्षेत्रों पर हाथ नहीं डाला गया था. अब चिंता जताई जा रही है कि हमले का अगला पड़ाव तेल क्षेत्र हो सकता है.

जानकारों को इस बात की भी चिंता है कि हमलावरों ने इसे माली में फ्रांस की दखल के विरोध में की गई कार्रवाई बताई है. इसके बाद ऐसी स्थिति बन सकती है, जहां अल्जीरिया में दो धड़े पैदा जाएं. मोहसिन फिनान का कहना है, "कई लोग इस बात से नाराज हैं कि अल्जीरिया ने अपना हवाई क्षेत्र फ्रांस के लिए खोल दिया है. यह सरकार के अंदर भी तनाव की वजह है."

एजेए/ओएसजे (एएफपी)

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