1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

अल्पसंख्यकों को लुभाने की कवायद

१८ मार्च २०१३

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इस साल राज्य में होने वाले पंचायत चुनावों और आने वाले लोकसभा चुनावों से पहले अल्पसंख्यकों व पिछड़े तबके को लुभाने के लिए एक के बाद एक घोषणाएं कर रही हैं.

तस्वीर: DW

राज्य के कुल वोटरों में से 26 फीसदी अल्पसंख्यक समुदाय के हैं. हाल में उन्होंने इस तबके के छात्र-छात्राओं के लिए उच्च शिक्षण संस्थानों में 17 प्रतिशत अतिरिक्त आरक्षण देने का एलान किया है. लेकिन इसे लागू करने में कई व्यवहारिक दिक्कतें हैं. ममता ने इस आरक्षण के लिए सीटें बढ़ाने की बात कही है. लेकिन शिक्षण संस्थानों की दलील है कि पिछले साल लगभग एक हजार आरक्षित सीटों पर योग्य उम्मीदवार नहीं मिलने की वजह से उन सीटों को सामान्य वर्ग में बदलना पड़ा था. ऐसे में अतिरिक्त सीटों की बात गले से नीचे नहीं उतर रही है. इसके अलावा तकनीकी शिक्षा के मामले में सीटें बढ़ाने के लिए आल इंडिया काउंसिल ऑफ टेकनिकल एजुकेशन (एआईसीटीई) से अनुमति लेना जरूरी है.

अल्पसंख्यकों पर मेहरबानी

ममता बनर्जी वैसे भी सत्ता में आने के बाद से अल्पसंख्यकों पर काफी मेहरबान हैं. इस सप्ताह विधानसभा में पेश राज्य के बजट में अकेले आलिया विश्वविद्यालय को 235.19 करोड़ की रकम दी गई है. जबकि केंद्रीय बजट में वित्त मंत्री पी.चिदंबरम ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय को महज सौ-सौ करोड़ की ही सहायता दी है. इसी तरह अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय का बजट पिछले साल के 570 करोड़ से बढ़ा कर 859 करोड़ कर दिया गया है. यह पहला मौका है जब राज्य के किसी सरकारी विश्वविद्यालय को इतनी भारी रकम आवंटित की गई है. पिछले साल ममता ने इस विश्वविद्यालय के लिए 20 एकड़ जमीन दी थी. मुख्यमंत्री ने अल्पसंख्यक समुदाय के गरीब छात्रा-छात्राओं को स्कालरशिप के अलावा तमाम छात्राओं को साइकिल देने का फैसला तो पहले ही किया था. वित्त मंत्री अमित मित्र ने अपने बजट भाषण में कहा, सरकार ने चालू वित्त वर्ष के दौरान अल्पसंख्यक तबके के छात्र-छात्राओं को 24 लाख स्कालरशिप दी हैं. इसके अलावा इस तबके की छात्राओं को 1.60 लाख साइकिलें बांटी गई है. राज्य में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का परिसर खोलने, दस हजार मदरसों की स्थापना करने, तीन हज टावर बनाने और इमामों को भत्ता देने का फैसला पहले ही हो चुका है.

तस्वीर: DW

उच्च शिक्षा में आरक्षण

ममता ने अब उच्च शिक्षा में पिछड़े मुसलमानों के लिए 17 फीसदी अतिरिक्त आरक्षण का एलान किया है. इसके लिए विधानसभा के बजट अधिवेशन में एक विधेयक भी पेश किया जा चुका है. ममता की दलील है कि इससे सामान्य कोटे की सीटें कम नहीं होंगी. इसकी बजाय शिक्षण संस्थानों में सीटों की तादाद बढ़ाई जाएगी. लेकिन शिक्षाविदों का कहना है कि अगले शिक्षण सत्र से इसे लागू करना संभव नहीं है. शिक्षाविद सुनंद सान्याल कहते हैं, "तकनीकी शिक्षण संस्थानों में एआईसीटीई की अनुमति के बिना सीटें नहीं बढ़ाई जा सकतीं. इसकी प्रक्रिया लंबी और जटिल है. इसलिए फिलहाल इसे लागू करना संभव नहीं है." राज्य के तकनीकी शिक्षण संस्थानों में प्रवेश परीक्षा आयोजित करने वाले पश्चिम बंगाल ज्वाइंट एंट्रेंस एक्जामिनेशन बोर्ड (डब्ल्यूबीजेईई) के एक अधिकारी कहते हैं, "क्लासरूम और लैब की तादाद बढ़ाए बिना सीटें बढ़ाना संभव नहीं है. इंजीनियरिंग की कई शाखाओं में आधारभूत ढांचा मुहैया कराने के लिए काफी रकम खर्च करनी होगी." वेस्ट बंगाल यूनिवर्सिटी ऑफ टेकनोलॉजी, जिससे राज्य के तमाम निजी कालेज संबद्ध हैं, उसके वाइस चांसलर समीर कुमार बनर्जी कहते हैं, "इंजीनियरिंग कालेजों में सीटें बढ़ाने के लिए समुचित आधारभूत ढांचा मौजूद नहीं है. विभिन्न इंजीनियरिंग कालेजों की सीटें सामान्य तौर पर ही नहीं भर पातीं. अब अगर यह आरक्षण लागू किया गया तो खाली सीटों की तादाद और बढ़ जाएगी." उनके मुताबिक मुख्यमंत्री का फैसला लागू करने में कई व्यवहारिक समस्याएं हैं.

तस्वीर: DW

विपक्ष का आरोप

ममता के अल्पसंख्यक प्रेम की अब विपक्ष ने भी आलोचना शुरू कर दी है. विपक्षी सीपीएम के नेता सूर्यकांत मिश्र कहते हैं, "इससे राज्य के लोगों में विभाजन बढ़ेगा." वहीं तृणमूल कांग्रेस की सहयोगी रही कांग्रेस के नेता प्रदीप भट्टाचार्य कहते हैं, "ममता वोट बैंक की राजनीति कर रही हैं. अल्पसंख्यकों के विकास के उनके तमाम दावे हवाई ही हैं. राज्य भारी आर्थिक तंगी से जूझ रहा है. ऐसे में मुख्यमंत्री की घोषणाओं को अमली जामा पहनाने के लिए धन कहां से आएगा."

रिपोर्टः प्रभाकर, कोलकाता

संपादनः आभा मोंढे

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें
डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें