मानवाधिकारों पर काम करने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा है कि भारत में प्रशासन और पुलिस अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने वाले स्वघोषित गौरक्षक समूहों को कानून से बचाती रही है.
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ह्यूमन राइट्स वॉच संस्था की 104 पन्नों की रिपोर्ट के मुताबिक 2014 के बाद से देश के मुस्लिम, दलित और अन्य अल्पसंख्यक समूहों पर स्वघोषित गौरक्षक समूहों की ओर से होने वाले हमले तेजी से बढ़े हैं. 2014 में नरेंद्र मोदी की अगुवाई में बीजेपी ने लोक सभा चुनावों में भारी जीत हासिल की. केंद्र में बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार बनी.
रिपोर्ट कहती है कि 2015 से 2018 के दौरान ऐसे मामलों में 44 लोगों की मौत हुई, जिसमें से 36 मुस्लिम थे. इसके साथ ही हमलावरों पर किसी भी तरह की अदालती कार्रवाई करने में भी देरी की गई, और कई मौकों पर तो बीजेपी के नेताओं ने खुलेआम हमलों को सही ठहराया.
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संस्था की दक्षिण एशिया डायरेक्टर मीनाक्षी गांगुली ने कहा, "गायों की रक्षा की अपील पहले शायद हिंदू वोटों को आकर्षित करने के लिए की गई होगी. लेकिन इसने स्वघोषित रक्षक समूहों और भीड़ को अल्पसंख्यकों पर निशाना साधने का खुला मौका दे दिया." गांगुली ने कहा कि प्रशासन को भी अल्पसंख्यकों पर होने वाले हमलों को उचित ठहराना और पीड़ितों को दोष देना बंद करना चाहिए.
रिपोर्ट में 11 मर्डर केसों पर विस्तार से बात की गई है. इसमें से अधिकतर मामलों में पुलिस की ओर से शुरुआती देरी दिखाई गई या नियमों की अनदेखी कर प्रक्रिया में ढुलमुल रवैया अपनाया गया. एक मामले में तो यह भी कहा गया कि उत्तेजक भीड़ द्वारा मारे गए एक मुस्लिम व्यक्ति की मौत को पुलिस के कागजों में "मोटरबाइक एक्सीडेंट" कह डाला था.
क्या है राज्यों में "गाय" की स्थिति
भारत में गौहत्या को लेकर विवाद बढ़ता ही जा रहा है. हाल में राजस्थान में तथाकथित गौरक्षकों द्वारा एक व्यक्ति को इतना पीटा गया कि उपचार के दौरान उसकी मौत हो गई. डालते हैं एक नजर इसके संवैधानिक प्रावधान पर.
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राज्यों का अधिकार
हिंदू धर्म में गाय का वध एक वर्जित विषय है. गाय को पारंपरिक रूप से पवित्र माना जाता है. गाय का वध भारत के अधिकांश राज्यों में प्रतिबंधित है उसके मांस के सेवन की भी मनाही है लेकिन यह राज्य सूची का विषय है और पशुधन पर नियम-कानून बनाने का अधिकार राज्यों के पास है.
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गौहत्या पर नहीं प्रतिबंध
केरल, पश्चिम बंगाल, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, मेघालय, नगालैंड, त्रिपुरा और सिक्किम जैसे राज्यों में गौहत्या पर कोई प्रतिबंध नहीं है. हालांकि संविधान के अनुच्छेद 48 में राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों के तहत गौहत्या को निषेध कहा गया है.
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आंध्रप्रदेश और तेलंगाना
इन दोनों राज्यों में गाय और बछड़ों का वध करना गैरकानूनी है. लेकिन ऐसे बैल और सांड जिनमें न तो प्रजनन शक्ति बची हो और न ही उनका इस्तेमाल कृषि के लिये किया जा सकता हो और उनके लिये "फिट फॉर स्लॉटर" प्रमाणपत्र प्राप्त हो, उन्हें मारा जा सकता है.
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उत्तर प्रदेश
राज्य में गाय, बैल और सांड का वध निषेध है. गोमांस को खाना और उसे स्टोर करना मना है. कानून तोड़ने वाले को 7 साल की जेल या 10 हजार रुपये जुर्माना, या दोनों हो सकता है. लेकिन विदेशियों को परोसने के लिये इसे सील कंटेनर में आयात किया सकता है. भैंसों को मारा जा सकता है.
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असम और बिहार
असम में गायों को मारने पर प्रतिबंध है लेकिन जिन गायों को फिट-फॉर-स्लॉटर प्रमाणपत्र मिल गया है उन्हें मारा जा सकता है. बिहार में गाय और बछड़ों को मारने पर प्रतिबंध है लेकिन वे बैल और सांड जिनकी उम्र 15 वर्ष से अधिक है उन्हें मारा जा सकता है. कानून तोड़ने वाले के 6 महीने की जेल या जुर्माना हो सकता है.
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हरियाणा
राज्य में साल 2015 में बने कानून मुताबिक, गाय शब्द के तहत, बैल, सांड, बछड़े और कमजोर बीमार, अपाहिज और बांझ गायों को शामिल किया गया है और इनको मारने पर प्रतिबंध हैं. सजा का प्रावधान 3-10 साल या एक लाख का जुर्माना या दोनों हो सकता है. गौमांस और इससे बने उत्पाद की बिक्री भी यहां वर्जित है.
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गुजरात
गाय, बछड़े, बैल और सांड का वध करना गैर कानूनी है. इनके मांस को बेचने पर भी प्रतिबंध है. सजा का प्रावधान 7 साल कैद या 50 हजार रुपये जुर्माना तक है. हालांकि यह प्रतिबंध भैंसों पर लागू नहीं है.
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दिल्ली
कृषि में इस्तेमाल होने वाले जानवर मसलन गाय, बछड़े, बैल, सांड को मारना या उनका मांस रखना भी गैर कानूनी है. अगर इन्हें दिल्ली के बाहर भी मारा गया हो तब भी इनका मांस साथ नहीं रखा जा सकता, भैंस इस कानून के दायरे में नहीं आती.
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महाराष्ट्र
राज्य में साल 2015 के संशोधित कानून के मुताबिक गाय, बैल, सांड का वध करना और इनके मांस का सेवन करना प्रतिबंधित है. सजा का प्रावधान 5 साल की कैद और 10 हजार रुपये का जुर्माना है. हालांकि भैंसों को मारा जा सकता है.
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एक रिटायर पुलिस अधिकारी के हवाले से रिपोर्ट में लिखा गया है, "पुलिस पर गौरक्षक समूहों के साथ नरमी दिखाने, कमजोर जांच और उन्हें छोड़ देने जैसा राजनीतिक दबाव था." उन्होंने बताया, "पुलिस ऐसे मामलों में तुरंत कार्रवाई करने को लेकर मजबूर थी. ऐसे में संदेह में घिरे लोगों को पकड़ने की बजाए कई बार शिकायतकर्ता और पीड़ित परिवारों पर दबाव बनाया गया."
मानवाधिकार समूहों ने सरकार से ऐसे गौरक्षक समूहों के खिलाफ मामला चलाने की अपील की है. रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रशासन को सुनिश्चित करना चाहिए कि ऐसे मामलों की पूरी तरह से जांच हो और दोषी को सजा मिले. साथ ही मुस्लिम, दलित और अन्य अल्पसंख्यक समूहों पर होने वाले सांप्रदायिक या जातीय हमलों के खिलाफ एक जनअभियान भी छेड़ा जाना चाहिए.
रिपोर्ट ने यह भी कहा है कि कड़े कानूनों और गौरक्षा नीतियों के अभाव के चलते पशु व्यापार और ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर भी असर पड़ा है. इसके साथ ही चमड़ा और मांस उद्योग भी इससे प्रभावित हुआ है. हिंदू धर्म में गाय को पवित्र माना जाता है और देश के कई राज्यों में इसे मारने पर प्रतिबंध है.
ये हैं भारत के बीफ खाने वाले
भारत में खानपान की आदतें केवल व्यक्तिगत पसंद नहीं बल्कि धर्म, जाति, क्षेत्र और आय पर आधारित एक जटिल समीकरण से जुड़ी हैं. देखिए सरकारी आंकड़ों के अनुसार भारत में कौन लोग गाय या भैंस का मांस खाते हैं.
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राष्ट्रीय सैंपल सर्वे ऑफिस एनएसएसओ के 2011-12 के आंकड़ें दिखाते हैं कि भारत में करीब 8 करोड़ लोग बीफ या भैंस का मीट खाता है.
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आंकड़ों के अनुसार बीफ यानि गौमांस और भैंस का मीट खाने वाले ये लोग सभी धर्मों और राज्यों में पाये जाते हैं. इन 8 करोड़ लोगों में करीब सवा करोड़ हिन्दू हैं.
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एनएसएसओ के आंकड़ों से हाल के सालों में मीट की खपत बढ़ने का पता चलता है. इस सर्वे में करीब एक लाख लोगों से आंकड़ें इकट्ठे किए गए. देखा गया कि हफ्ते और महीने की औसत अवधि में एक परिवार खाने की किन चीजों पर कितना खर्च करता है.
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विश्व में मांस की खपत का लेखाजोखा करने वाली संयुक्त राष्ट्र की संस्था एफएओ की 2007 में जारी 177 देशों की सूची में भारत को अंतिम स्थान मिला. 43 किलो के विश्व औसत के मुकाबले भारत में प्रति व्यक्ति सालाना मांस की खपत मात्र 3.2 किलो दर्ज हुई.
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एफएओ बताता है कि दुनिया भर में लोगों की क्रय क्षमता बढ़ने, शहरीकरण और खानपान की आदतें बदलने के कारण मांस की खपत बढ़ी है. भारत में खपत विश्व औसत से काफी कम है लेकिन वह बीफ, भैंस के मांस और काराबीफ का सबसे बड़ा निर्यातक है.
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भारत में धर्म के आधार पर गाय या भैंस का मांस खाने वाला सबसे बड़ा समुदाय 6 करोड़ से अधिक मुसलमानों का है. संख्या के मामले में इसके बाद सबसे अधिक हिन्दू समुदाय आता है. जबकि प्रतिशत के अनुसार मुसलमानों के बाद ईसाई आते हैं.
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मुसलमानों के अलावा अनुसूचित जाति और जनजाति (एससी/एसटी) गाय या भैंसों का मीट खाने वाला सबसे बड़ा तबका है. हिन्दुओं में इसे खाने वाले 70 फीसदी से अधिक लोग एससी/एसटी, 21 प्रतिशत पिछड़ा वर्ग और करीब 7 फीसदी उच्च जातियों से आते हैं.