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अल कायदा कमजोर, लेकिन अभी जिंदा

११ जून २०१२

पाकिस्तान में अमेरिकी ड्रोन हमलों से अल कायदा के नेतृत्व को नाकाम करने में मदद मिली है, लेकिन इस्लामी कट्टरपंथ को हवा देने वाली परिस्थितियां बनी हुई हैं. गरीबी और बेरोजगारी कम नहीं हो रही है.

तस्वीर: AP

पिछले दिनों ड्रोन हमले में मारा गया अल कायदा नेता अबू याह्या अल लिबी जब कुछ साल पहले पश्चिमोत्तर पाकिस्तान पहुंचा को उसका इतना दबदबा था कि दुनिया के खूंखार उग्रवादी भी उससे डरते थे. 2005 में अफगानिस्तान में अमेरिकी जेल से भागने के कारण जिहादी दुनिया में मशहूर लिबी न्यू यॉर्क या लंदन में तबाही मचाने का सपना देखने वालों को पैसे और ट्रेनिंग का वायदा करने की हालत में भी था. पिछले सप्ताह उसके मारे जाने के बाद पाकिस्तानी खुफिया अधिकारियों ने कहा कि ड्रोन हमलों ने पाकिस्तानी सीमा पर अल कायदा के नेटवर्क को तहस नहस कर दिया है.

धन का अभाव

अल कायदा को पैसा मिलना बंद हो गया है और कभी उसे आदर्श समझने वाले अब मानने लगे हैं कि उसका बचना संभव नहीं है. अल कायदा से निकट संपर्क रखने वाला पाकिस्तानी तालिबान का एक कमांडर कहता है, "वे कुछ साल पहले लैंड क्रूजर और डबल केबिन पिकअप ट्रकों में चला करते थे. अब पैसे की कमी के कारण वे मोटर साइकल चढ़ रहे हैं." सीमाई इलाके में अल कायदा का पतन पिछले साल मई में पाकिस्तानी शहर ऐबटाबाद में ओसामा बिन लादेन के मारे जाने के बाद शुरू हुआ. पिछले महीनों में नियमित ड्रोन हमलों से वह और कमजोर हुआ है.

अबू याह्या अल लिबी को मारने के बाद अमेरिकी दावेतस्वीर: picture-alliance/dpa

अफगानिस्तान से लगी सीमा पर पाकिस्तान के कबायली इलाके में अल कायदा के कमांडरों की संख्या घट रही है. पाकिस्तान के एक वरिष्ठ सुरक्षा अधिकारी के अनुसार करीब 8 तालिबान नेता ही वहां रह गए हैं. अल कायदा के वर्तमान प्रमुख आयमान अल जवाहिरी के भी उस इलाके में छुपे होने की आशंका है. कुछ साल पहले वहां दर्जनों खतरनाक आतंकवादी रहा करते थे. अल कायदा की ओर से लड़ने वाले बहुत से लड़ाकों ने अपने हथियार बेच दिए हैं और चंदा जमा कर रहे हैं ताकि वे भाग कर अपने अपने देशों में जा सकें.

असुरक्षित इलाके

लीबियाई मूल के अल लिबी को मारने वाले ड्रोन हमले या उग्रपंथियों के ठिकानों पर दूसरे ऐसे हमलों से इलाका अधिक सुरक्षित नहीं हुआ है. दूसरे हथियारबंद गुट इलाके में सक्रिय हो गए हैं और वे अल कायदा से कमजोर नहीं दिख रहे हैं. हवाई हमलों से अल कायदा कमजोर हुआ है लेकिन उसका सहयोगी पाकिस्तानी तालिबान पश्चिमोत्तर में उसके गढ़ों पर सेना के हमलों के बावजूद मजबूत ताकत बना हुआ है. पाकिस्तान की सरकार के लिए सबसे बड़ा खतरा समझे जाने वाले तालिबान को पूरे पाकिस्तान में कई आत्मघाती हमलों के अलावा सेना और पुलिस चौकियों पर हमले के लिए जिम्मेदार माना जाता है.

अफगानिस्तान में तालिबान के साथ जुड़े हक्कानी नेटवर्क के भी ठिकाने अमेरिकी अधिकारियों के अनुसार पाकिस्तान के पश्चिमोत्तर इलाके में हैं. लेकिन पाकिस्तान की सरकार और खुद हक्कानी नेटवर्क इससे इंकार करते है. अमेरिका के लिए 2001 में न्यू यॉर्क और वॉशिंगटन पर हमला करने वाला अल कायदा मुख्य लक्ष्य है. अमेरिकी रक्षा मंत्री लियोन पैनेटा ने पिछले सप्ताह काबुल में नाटो सैनिकों से कहा, "हमने पिछले दिन अल कायदा के एक और नेता को मार गिराया है." उनका इशारा लिबी की ओर था जो अल कायदा का दूसरे नंबर का नेता था.

इलाके के निवासियों और पूर्व उग्रपंथियों के अनुसार हवाई हमलों ने अल कायदा कमांडरों की गतिविधियां घटा दी हैं. पैसे का बंदोबस्त भी मुश्किल होता जा रहा है क्योंकि पकड़े जाने से बचने के लिए लेन देन व्यक्तिगत रूप से होता है. करिश्माई लिबी के नहीं रहने से अल कायदा पर वित्तीय संकट पैदा हो गया है. लड़ाकों का उत्साह बढ़ाने के लिए ट्रेनिंग कैंपों में आने वाले कमांडर अब कम ही दिखते हैं. इलाके के एक खुफिया अधिकारी ने रॉयटर्स को बाताया, "उनमें से ज्यादातर भूमिगत हो गए हैं, वे बंकरों और सेलर में छुपे हैं और बाहरी दुनिया से संपर्क से बचते हैं."

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पाकिस्तान की जरूरत

लेकिन आतंकवादियों का पूरी तरह खात्मा इस बात पर निर्भर करेगा कि अमेरिका पाकिस्तान पर उनके खिलाफ उत्तरी वजीरिस्तान में कार्रवाई करने के लिए दबाव बना सकता है या नहीं. अमेरिका का मानना है कि अल कायदा के कुछ खतरनाक सहयोगी उस इलाके में हैं. लेकिन पाकिस्तान कट्टरपंथी संगठनों के खिलाफ कारर्वाई का वादा नहीं कर रहा है. वरिष्ठ अधिकारी मानते हैं कि अल कायदा के बाकी नेता संभवतः उत्तरी वजीरिस्तान में छुपे हैं. उनकी संख्या कम है, लेकिन उन तक पहुंचना आसान नहीं. जान के डर से लोग उनके बारे में खबर नहीं देते.

दूसरी ओर उग्रवाद के लिए लड़ाके जुटाने वाली परिस्थितियां बनी हुई हैं. जब तक पाकिस्तान सरकार देश में सुधार करने और अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के साहसिक कदम नहीं उठाती, स्थितियां बदलने वाली नहीं हैं. उस इलाके में लोगों के पास नौकरियां नहीं हैं. उग्रवादी संगठनों में शामिल होकर एक-47 राइफल उठाना उनमें ताकत की भावना देता है. शिक्षा से वंचित किशोरों को आत्मघाती हमलावर बनना स्वर्ग में जाने की सीढ़ी लगती है. देश में 6 फीसदी आबादी 15 से 25 वर्ष की उम्र में है. उनके लिए रोजगार के कोई मौके नहीं हैं, और सरकार का इलाके पर कोई नियंत्रण नहीं है. एक सुरक्षा अधिकारी कहता है, "हर रोज कोई न कोई 18 का हो रहा है." उसका इशारा उन लोगों की ओर है जो हथियार उठाने की उम्र में हैं.

एमजे/एएम (रॉयटर्स)

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