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अल कायदा के 'दिमाग' रहमान की मौत पर संदेह

३० अगस्त २०११

आतंक के खात्मे के लिए लगातार अपनी प्रतिबद्धता जाहिर करते अमेरिकी सुरक्षा तंत्र के लिए अल कायदा के दूसरे अहम व्यक्ति अतिया अब्द अल रहमान के ड्रोन हमले में मारे जाने की खबर राहत ला सकती है. लेकिन पाकिस्तान का रुख अलग है.

This undated photo made available by the U.S. National Counterterrorism Center shows Atiyah Abd al-Rahman. U.S. and Pakistani officials said Saturday, Aug. 27, 2011 that al-Qaida's second-in-command has been killed in Pakistan, delivering another big blow to a terrorist group that the U.S. believes to be on the verge of defeat. (Foto:National Counterterrorism Center/AP/dapd)
अतिया अब्द अल रहमानतस्वीर: AP

पाकिस्तान ने हालांकि अमेरिका की खबर का खंडन किया है और सोमवार को कहा कि अल कायदा के उप प्रमुख के मारे जाने की कोई खबर उसे नहीं मिली है. दो दिन पहले अमेरिकी अधिकारियों ने कहा था कि रहमान का मारा जाना अल कायदा के खिलाफ लड़ाई में एक बड़ी जीत है.

मतभेद जारी

ओसामा बिन लादेन के मारे जाने के बाद लीबियाई नागरिक अतिया अब्द अल रहमान अल कायदा का नंबर दो बना और अयमान अल जवाहिरी को गुट की कमान सौंपी गई. अमेरिकी अधिकारियों का कहना उत्तरी वजीरिस्तान में 22 अगस्त को एक ड्रोन हमले में रहमान मारा गया. 

पाक-अफगान सीमा के कबायली इलाकों से आतंकी नेटवर्क की पनाहगाह खत्म करना अमेरिका का लक्ष्य है. पाकिस्तान के वरिष्ठ सैन्य अधिकारी के हवाले से रॉयटर्स समाचार एजेंसी ने लिखा है, "हमने जांच की लेकिन उसके मारे जाने के समाचार की कहीं से भी पुष्टि नहीं हो सकी है."

पाकिस्तानी सेना के वरिष्ठ अधिकारी ने एक बार फिर यह दिखाया है कि उत्तरी वजीरिस्तान में और उत्तर पश्चिमी इलाकों में उसकी खुफिया एजेंसी की पकड़ कितनी है. सामान्य तौर पर लीडर के मारे जाने पर उन्हें तुरंत दफना देते हैं इस कारण मारे जाने की खबर की पुष्टि करने में काफी मुश्किल होती है.

वैसे भी पाकिस्तान के अधिकारी अल कायदा के बारे में अमेरिकी विश्लेषण से असहमत रहते हैं. अमेरिका अल रहमान को नंबर दो का बताता है तो इस्लामाबाद का कहना है कि वे यह भी नहीं जानते कि रहमान नंबर दो था भी या नहीं.

अल कायदा का मुखिया अयमान अल जवाहिरीतस्वीर: picture-alliance/ dpa

पाकिस्तान के खुफिया अधिकारी सिर्फ इस बात की पुष्टि कर सके हैं कि उत्तरी वजीरिस्तान के मीर अली शहर में 22 अगस्त को ड्रोन हमला हुआ था जिसमें हाफिज गुल बहादुर के 4 समर्थक मारे गए. बहादुर इस इलाके में पाकिस्तानी तालिबान का कमांडर है जिसकी अफगान तालिबान से नजदीकियां हैं.

कौन है रहमान

40 साल का रहमान लीबियाई शहर मिसराता का रहने वाला है. लेकिन अल कायदा में वह विचारक, आयोजक और पाकिस्तान की केंद्रीय लीडरशिप का नजदीकी माना जाता रहा. बताया जाता है कि उसने इराक में अल कायदा और मुख्य लीडरशिप के बीच मध्यस्थता की और 2007 में इस्लामिक मगरिब में अल कायदा (AQIM) नाम का गुट बनाया जिसमें अल्जीरियाई के इस्लामिक चरमपंथी भी शामिल थे. रहमान ही ने अरब देशों में हुई क्रांति का समर्थन किया और गुट के समर्थकों से क्रांति का साथ देने के लिए कहा भले ही विद्रोही इस्लामिक विचारधारा से प्रेरित नहीं थे. लंदन में इस्लामिस्ट हिंसा का विश्लेषण करने वाली अना मुरिसन कहती हैं, "यह बहुत जरूरी है कि वह मारा जाए. एक विचार के तौर पर तो अल कायदा जिंदा रहेगा ही. लेकिन अल कायदा एक संगठन के तौर पर कमजोर हुआ है. क्योंकि मुख्य लीडरशिप वाले लोग कम हो गए हैं." मुरिसन अयमान अल जवाहिरी, मिस्त्र के सैफ अल अद्ल, रहमान और धर्मशास्त्री अबु याह्या अल लिबी को अल कायदा के लीडर के तौर पर देखती हैं. ब्रिटेन के कुइल्लियम थिंक टैंक में काम करने वाले नोमान बेनोट्मन कहते हैं, "यह एक ऐसा व्यक्ति था जिसे अल कायदा खोना नहीं चाहेगा. वह अल कायदा का सीईओ था जो दुनिया भर में अल कायदा का प्रबंधन देख रहा था. वह बहुत कड़े फैसले लेने वाला, ठोस तर्क देने वाला और अलग अलग इस्लामी गुटों में मध्यस्थता करने में माहिर भी." बेनोटमन ने कहा, "रहमान का असली नाम जमाल इब्राहिम इश्तावी है और वह मिसराता से इंजीनियरिंग में ग्रैजुएट था. उसने 1988 में लीबिया छोड़ा और अफगानिस्तान में सोवियत सेना के खिलाफ लड़ने गया."

ओसामा बिन लादेन के साथ जवाहिरी. ओसामा बिन लादेन को अमेरिकी नौसेना की विशेष ईकाई ने एबटाबाद में मारा.तस्वीर: picture alliance / dpa

रहमान अल कायदा के सबसे पुराने सदस्यों में से एक और अल्जीरिया और मॉरिटेनिया में पश्चिम विरोधी उग्रवादी गुट में शामिल रहा है. 23 फरवरी को रहमान ने इंटरनेट में ऑनलाइन फोरम में लिखा था, "मिस्र और ट्यूनीशिया की क्रांति वैसे नहीं हुई जैसी हमने उम्मीद की लेकिन वे खुशी का मौका तो थे ही."

साथ ही रहमान ने अल कायदा के बारे में उस विचार का भी खंडन किया कि अल कायदा के पास कोई 'जादू की छड़ी' है जिससे वह लोगों को इकट्टा कर सकता और सरकारें गिरा सकता है. लेकिन उसने लिखा कि 'अल कायदा जिहादी उम्माह (देश) का साधारण हिस्सा है. तो इसे उससे ज्यादा समझो भी मत. हमें अपनी क्षमता को समझना चाहिए और अच्छाई और जिहाद का साथ देना चाहिए.'

बड़ा झटका 

अगर अतिया अब्द अल रहमान के मारे जाने की पुष्टि हो जाती है तो अल कायदा के लिए यह बड़ा झटका होगा. अमेरिकी अधिकारियों के मुताबिक जवाहिरी रहमान पर निर्भर था.

कबायली इलाकों और सैन्य मामलों के जानकार रहिमुल्ला युसुफजई कहते हैं, "ओसामा बिन लादेन यहां मिला, अल कायदा के पुराने सदस्य यहां मिले, अगर अतिया अब्द अल रहमान के रहने और मारे जाने की पुष्टि होती है तो साबित हो जाएगा कि वे सब यहां हैं. ओसामा बिन लादेन के मारे जाने से उन्हें (अल कायदा) काफी नुकसान हुआ है. ड्रोन हमलो से भी उन्हें हानि हुई है. लेकिन फिर भी इस बात का कोई सबूत नहीं है कि वे यह जगह छोड़ कर जा रहे हैं." 

सिर्फ इतना ही नहीं अल कायदा के समर्थक यमन से लेकर लीबिया तक में सामने आ रहे हैं. आतंकी नेटवर्क और आतंक के खिलाफ लड़ाई दो विचारधाराओं की लड़ाई है, जिसने आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े लोगों को साथ लिया है. और लगातार इसमें देशों, समाज का दमन देख रहे संपन्न लोग भी वैचारिक रूप से शामिल हो गए हैं. कभी पहाड़ी इलाकों से लड़ी जाने वाली यह लड़ाई अब शहरों और शहरों के संपन्न धड़े में घुसपैठ कर रही है. 

रिपोर्टः एजेंसियां/आभा एम

संपादनः ओ सिंह

 

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