देश के करोड़ों असंगठित कामगारों के पंजीकरण के लिए केंद्र सरकार ने एक नई व्यवस्था शुरू की है. देखना होगा कि ई-श्रम पोर्टल से वाकई असंगठित कामगारों को सामाजिक सुरक्षा मिल पाती है या नहीं.
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सरकार ने असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिकों का एक डेटाबेस बनाया है. ई-श्रम नाम के इस डेटाबेस की शुरुआत केंद्रीय श्रम मंत्री भूपेंदर यादव ने की. इसके जरिए असंगठित क्षेत्र के 38 करोड़ श्रमिकों का पंजीकरण कराना सरकार का लक्ष्य है. इनमें निर्माण क्षेत्र के मजदूर, प्रवासी मजदूर, रेहड़ी-पटरी वाले और घरों में काम करने वाले और अन्य श्रमिक शामिल हैं.
इस डेटाबेस में शामिल किए जाने वाले श्रमिकों को 12 अंकों का एक यूनीक नंबर दिया जाएगा. उम्मीद की जा रही है कि भविष्य में इसी नंबर के जरिए उन्हें सामाजिक सुरक्षा योजनाओं से जोड़ा जाएगा. पंजीकरण तो आज ही से शुरू हो गया लेकिन इस डेटाबेस के इस्तेमाल के बारे में सरकार ने अभी विस्तृत जानकारी नहीं दी है.
90 प्रतिशत कामगार असंगठित
जानकारों का अनुमान है कि भारत में कम से कम 80 प्रतिशत कामगार असंगठित क्षेत्रों में काम करते हैं. संगठित क्षेत्रों में भी कई अनियमित श्रमिक काम करते हैं. उनकी संख्या भी अगर जोड़ दी जाए तो देश में कुल असंगठित कामगारों की तादात 90 प्रतिशत या करीब 45 करोड़ तक पहुंच जाती है.
असंगठित होने की वजह से इन्हें नियमित रोजगार, जायज वेतन, इलाज का खर्च, बीमा और भविष्य निधि जैसी सुविधाएं नहीं मिल पातीं. साथ ही आर्थिक आंकड़े इकट्ठे करने में इनकी गिनती नहीं हो पाती जिसकी वजह से आंकड़े भी असली तस्वीर को दिखा नहीं पाते हैं.
अगर वाकई इस तरह का डेटाबेस बनता है और इसमें असंगठित कामगारों का पंजीकरण होता है तो यह कदम सही दिशा में होगा. हालांकि बात सिर्फ पंजीकरण तक सीमित नहीं है. कई और सवालों पर काम करना होगा.
क्या मिल पाएंगे अधिकार?
नई दिल्ली स्थित सेंटर फॉर एम्प्लॉयमेंट स्टडीज के निदेशक रवि श्रीवास्तव कहते हैं कि अभी यह देखना होगा कि इस पोर्टल पर पंजीकृत होने वाले कामगारों के विशेष कार्ड को आधार के साथ जोड़ा जाएगा या नहीं. उन्होंने यह भी बताया कि पंजीकरण के पीछे ऐसे व्यवस्था होनी चाहिए जिसमें सभी कामगारों को अधिकार और सुविधाएं मिल पाएं.
मुख्य रूप से प्रवासी श्रमिक योजनाओं और सुविधाओं से वंचित रह जाते हैं, क्योंकि वो जहां से निकल जाते वहां तो उन्हें वो सुविधाएं नहीं ही मिलतीं, जहां जाकर वो काम कर रहे होते हैं वहां भी उन्हें उन सुविधाओं के बिना ही रहना पड़ता है.
रवि श्रीवास्तव ने यह भी बताया कि अगर यह नई व्यवस्था नई श्रम संहिताओं या लेबर कोड के अनुकूल बनेगी तो कॉन्ट्रैक्ट वर्कर, कैजुअल वर्कर आदि जैसे कई श्रमिक इससे बाहर हो जाएंगे. बहरहाल, अभी यह पहल शुरूआती चरण में ही है. आने वाले दिनों में जब इससे संबंधित और जानकारी सामने आएगी तो इसका बेहतर मूल्यांकन संभव हो पाएगा.
आखिर क्या बदल देंगे नए लेबर कोड
संसद ने श्रमिकों से जुड़े तीन बिल पारित किए हैं. एक तरफ इन्हें श्रम सुधार कहा जा रहा है तो दूसरी तरफ आलोचना हो रही है कि ये श्रमिकों के कल्याण के खिलाफ हैं. आखिर ऐसा क्या बदल देंगे ये लेबर कोड?
तस्वीर: DW/M. Kumar
तीन लेबर कोड
तीन श्रम संहिताएं पारित हुई हैं. ये हैं औद्योगिक संबंध संहिता, सामाजिक सुरक्षा संहिता और उपजीविकाजन्य सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्यदशा संहिता.
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नौकरी से निकालने की आजादी
पहले सिर्फ 100 से कम श्रमिकों वाले संस्थानों को किसी को नौकरी से निकालने से पहले या संस्थान को बंद करने से पहले सरकार से अनुमति लेना अनिवार्य नहीं था. अब इस अनिवार्यता से 300 तक श्रमिकों वाले संस्थानों को छूट दे दी गई है. यानी 300 श्रमिकों से काम लेने वाले संस्थान मनमाने तरीके से छंटनी कर सकेंगे.
तस्वीर: Reuters/R. De Chowdhuri
मनमानी शर्तों का खतरा
पहले 100 या उससे ज्यादा श्रमिकों वाले संस्थानों में सेवा से संबंधित शर्तें भी सरकारी मानकों के अनुसार सरकार की अनुमति से तय करना अनिवार्य था. अब इस अनिवार्यता से भी 300 तक श्रमिकों वाले संस्थानों को छूट दे दी गई है.
तस्वीर: Reuters/S. Roy
विनियमन मुश्किल
अभी तक फैक्टरी की परिभाषा थी वो संयंत्र जहां 10 कर्मचारी हों और बिजली का इस्तेमाल होता हो या जहां 20 कर्मचारी हों और बिजली का इस्तेमाल नहीं होता हो. इन सीमाओं को बढ़ा कर 20 और 40 कर दिया गया है. इससे ऐसी इकाइयों की निगरानी नहीं होगी जिनका पहले फैक्टरीज अधिनियम के तहत नियमन होता था.
तस्वीर: DW/J. Akhtar
अनियमित मजदूरी को बढ़ावा
फिक्स्ड टर्म कर्मचारियों को अब फैक्टरियां सीधे नौकरी पर रख सकती हैं. ठेके पर श्रमिक रखने की जरूरत नहीं होगी. लेकिन कॉन्ट्रैक्ट लेबर अधिनियम को ऐसे बदल दिया गया है कि सिर्फ 50 या उस से ज्यादा ठेके पर कर्मचारी रखने वाली कंपनियां ही इस कानून के तहत आएंगी. जानकारों के अनुसार इस से अनियमित मजदूरी को बढ़ावा मिलेगा.
तस्वीर: Reuters/R. Roy
हड़ताल की नई शर्तें
हड़ताल करने को और कठिन बना दिया गया है. पहले कानूनी रूप से हड़ताल करने के लिए अधिकतम दो सप्ताह से छह सप्ताह तक का नोटिस देना होता था. अब यूनियनों को हड़ताल पर जाने से पहले 60 दिनों तक का नोटिस देना होगा. अगर किसी भी पक्ष ने विवाद निपटारे की शुरुआत कर दी तो निपटारा होने तक हड़ताल नहीं की जा सकती.
तस्वीर: Reuters/A. Fadnavis
समझौता भी कठिन
नियोक्ता और कर्मचारियों के बीच विवाद होने पर उसी ट्रेड यूनियन को समझौते के लिए बातचीत का अधिकार होगा जिसके पास कम से कम 20 प्रतिशत कर्मचारियों की सदस्यता होगी. पहले यह 10 प्रतिशत था. कई स्थानों पर ऐसी कई यूनियनें हैं और उनमें से हर एक के लिए 20 प्रतिशत सदस्यता जुटाना मुश्किल है. ऐसे में किसी भी यूनियन को बातचीत का हक नहीं मिलेगा.
तस्वीर: AFP/N. Nanu
श्रम कानूनों से छूट आसान
राज्य सरकारों के लिए किसी भी संस्थान को किसी भी श्रम कानून के पालन से छूट देना आसान कर दिया गया है. पहले ऐसा करने से पहले राज्य सरकारों को इसकी आवश्यकता स्थापित करनी पड़ती थी.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/K. Frayer
असंगठित क्षेत्र अभी भी बाहर
कहा जा रहा है कि असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा के कदम उठाए गए हैं, जबकि यह कदम सिर्फ गिग इकॉनमी कर्मचारियों के लिए उठाए गए हैं, जो पूरे असंगठित क्षेत्र में दो प्रतिशत से भी कम हैं.
तस्वीर: Prabhakar Mani Tiwari
परिभाषाओं में बदलाव
नियोक्ता, कर्मचारी, श्रमिक और ठेकेदार जैसे शब्दों की परिभाषाओं को बदला गया है. लेकिन श्रम संगठनों का आरोप है कि मुख्य नियोक्ता की कामगारों के प्रति जवाबदेही को कम करने के लिए इन परिभाषाओं को अस्पष्ट रखा गया है.
तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/D. Talukdar
प्रवासी श्रमिकों का नुकसान
अभी तक प्रवासी श्रमिकों को नौकरी मिलते ही काम संभाल लेने तक वेतन और यात्रा का खर्च मिलता था. वो अब नहीं मिलेगा. पहले की तरह कार्य स्थल के पास उनके अस्थायी निवास की व्यवस्था करने का नियम भी हटा दिया गया है.