पूर्वोत्तर में जहां भारत चीन के साथ सीमा विवाद में उलझा है, वहीं पूर्वोत्तर राज्य अपने ही विवादों में फंसे हुए हैं. अब असम और मेघालय के बीच तनाव बढ़ गया है.
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पूर्वोत्तर राज्यों में लंबे अरसे से सीमा के मुद्दे पर विवाद होता रहा है. कभी असम और नागालैंड के बीच विवाद तेज होता है तो बीते सप्ताह मिजोरम के साथ इसी मुद्दे पर हिंसक झड़पें हुई थीं. अब पड़ोसी मेघालय के सात दशकों पुराना सीमा विवाद का मुद्दा एक बार फिर जोर पकड़ रहा है. कोरोना की वजह से मेघालय की ओर से असम के व्यापारियों की आवाजाही पर लगाई गई पाबंदियों ने इस विवाद की आग में घी डालने का काम किया है. अब अखिल असम छात्र संघ (आसू) समेत 40 संगठनों ने चेतावनी दी है कि अगर इन पाबंदियों को तुरंत नहीं हटाया गया तो वह 29 अक्तूबर से गारो हिल्स जाने वाली तमाम सड़कों की नाकेबंदी कर देंगे. उधर, मेघालय के विभिन्न राजनीतिक दलों ने सरकार से असम के साथ सीमा विवाद को शीघ्र सुलझाने की मांग की है. बीजेपी के एक विधायक ने इस मुद्दे पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को पत्र लिख कर विवाद को शीघ्र सुलझाने की अपील की है.
कैसे शुरू हुआ मेघालय और असम का विवाद
असम के साथ मेघालय का सीमा विवाद वर्ष 1972 में इस राज्य के गठन जितना ही पुराना है. मेघालय कम से कम 12 इलाकों पर अपना दावा ठोकता रहा है. वह इलाके फिलहाल असम के कब्जे में हैं. दोनों राज्यों ने एक नीति अपना रखी है, जिसके तहत कोई भी राज्य दूसरे राज्य को बताए बिना विवादित इलाकों में विकास योजनाएं शुरू नहीं कर सकता. यह विवाद उस समय शुरू हुआ जब मेघालय ने असम पुनर्गठन अधिनियम, 1971 को चुनौती दी. उक्त अधिनियम के तहत असम को जो इलाके दिए गए थे उसे मेघालय ने खासी और जयंतिया पहाड़ियों का हिस्सा होने का दावा किया था. सीमा पर दोनों पक्षों के बीच नियमित रूप से झड़पें हुई हैं. नतीजन दोनों राज्यों में बड़े पैमाने पर स्थानीय लोगों के विस्थापन के साथ ही जान-माल का भी नुकसान हुआ है.
1985 में वाईवीचंद्रचूड़ समिति का गठन
इस मुद्दे पर अतीत में कई समितियों का गठन किया गया और दोनों राज्यों के बीच कई दौर की बातचीत भी हुई. लेकिन अब तक नतीजा सिफर ही रहा है. सीमा विवाद की जांच और उसे सुलझाने के लिए वर्ष 1985 में वाईवीचंद्रचूड़ समिति का गठन किया गया था. लेकिन उसकी रिपोर्ट भी ठंढे बस्ते में है. अब मिजोरम और असम के बीच बीते सप्ताह हुई हिंसा के बाद राज्य में इस विवाद को शीघ्र सुलझाने की मांग उठ रही है. मेघालय के तमाम राजनीतिक दलों ने केंद्र से कहा है कि वह 2022 से पहले इस विवाद को सुलझाने की पहल करे. वर्ष 2022 में मेघालय के गठन को 50 वर्ष पूरे हो जाएंगे. सत्तारुढ़ गठबंधन में शामिल कई दलों के प्रतिनिधियों ने भी इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री कोनराड संगमा से मुलाकात कर उसे इस मामले में पहल करने और असम सरकार के साथ बातचीत दोबारा शुरू करने को कहा है. वैसे, पहले भी इस मुद्दे पर दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों और मुख्य सचिवों के बीच कई बैठकें हो चुकी हैं. लेकिन विवाद जस का तस है.
पूर्वोत्तर में कहां किसकी सरकार है?
भारत के राष्ट्रीय मीडिया में पूर्वोत्तर के राज्यों का तभी जिक्र होता है जब वहां या तो चुनाव होते हैं या फिर कोई सियासी उठापटक. चलिए जानते है सात बहनें कहे जाने वाले पूर्वोत्तर के राज्यों में कहां किसकी सरकार है.
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असम
अप्रैल 2016 में हुए राज्य विधानसभा के चुनावों में बीजेपी ने शानदार प्रदर्शन किया और लगातार 15 साल से सीएम की कुर्सी पर विराजमान तरुण गोगोई को बाहर का रास्ता दिखाया. बीजेपी नेता और केंद्रीय मंत्री रह चुके सर्बानंद सोनोवाल को मुख्यमंत्री पद सौंपा गया.
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त्रिपुरा
बीजेपी ने त्रिपुरा में सीपीएम के किले को ध्वस्त कर फरवरी 2018 में हुए चुनावों में शानदार कामयाबी हासिल की. इस तरह राज्य में बीस साल तक चली मणिक सरकार की सत्ता खत्म हुई. बीजेपी ने सरकार की कमान जिम ट्रेनर रह चुके बिप्लव कुमार देब को सौंपी.
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मेघालय
2018 में हुए राज्य विधानसभा चुनावों में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनने के बावजूद सरकार बनाने से चूक गई. एनपीपी नेता कॉनराड संगमा ने बीजेपी और अन्य दलों के साथ मिल कर सरकार का गठन किया. कॉनराड संगमा पूर्व लोकसभा अध्यक्ष पीए संगमा के बेटे हैं.
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मणिपुर
राज्य में मार्च 2017 में हुए चुनावों में कांग्रेस 28 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी जबकि 21 सीटों के साथ बीजेपी दूसरे नंबर पर रही. लेकिन बीजेपी अन्य दलों के साथ मिलकर सरकार बनाने में कामयाब रही. कई कांग्रेसी विधायक भी बीजेपी में चले गए. कभी फुटबॉल खिलाड़ी रहे बीरेन सिंह राज्य के मुख्यमंत्री हैं.
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नागालैंड
नागालैंड में फरवरी 2018 में हुए विधानसभा चुनावों में एनडीए की कामयाबी के बाद नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) के नेता नेफियू रियो ने मुख्यमंत्री पद संभाला. इससे पहले भी वह 2008 से 2014 तक और 2003 से 2008 तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे हैं.
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सिक्किम
सिक्किम में पच्चीस साल तक लगातार पवन कुमार चामलिंग की सरकार रही. लेकिन 2019 में हुए विधानसभा चुनावों में उनकी सरकार में कभी मंत्री रहे पी एस गोले ने उन्हें सत्ता से बाहर कर दिया. चामलिंग की पार्टी एसडीएफ के 10 विधायक भाजपा और 2 गोले की पार्टी एसकेएम में चले गए. अब वो अपनी पार्टी के इकलौते विधायक हैं.
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अरुणाचल प्रदेश
अप्रैल 2014 में हुए चुनावों में कांग्रेस ने 60 में 42 सीटें जीतीं और नबाम तुकी के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बरकरार रही. लेकिन 2016 में राज्य में सियासी संकट में उन्हें कुर्सी गंवानी पड़ी. इसके बाद कांग्रेस को तोड़ पेमा खांडू मुख्यमंत्री बन गए और बाद में बीजेपी में शामिल हो गए.
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मिजोरम
2018 तक मिजोरम में कांग्रेस की सरकार हुआ करती थी. तब लल थनहवला मुख्यमंत्री थे. लेकिन दिसंबर में हुए चुनावों में मिजो नेशनल फ्रंट ने बाजी मार ली. अब जोरामथंगा वहां के मुख्यमंत्री हैं.
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अमित शाह को लिखा पत्र
मेघालय के बीजेपी विधायक शानबोर शुल्लई ने अपने राज्य और असम के बीच काफी समय से लंबित सीमा विवाद सुलझाने के लिए बीते शुक्रवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को पत्र लिखा है. उनका कहना है कि असम और मेघालय के बीच कई इलाके हैं जहां अक्सर सीमा के सवाल पर हिंसक झड़पें होती रहती हैं. शुल्लई ने लिखा है, "इस विवाद की वजह से सीमा के दोनों ओर तनावपूर्ण शांति और लोगों के बीच दुश्मनी बनी रहती है. इस विवाद के चलते संबंधित इलाकों में विकास का काम ठप है.”
मेघालय सरकार की ओर से कोरोना की वजह से असम के व्यापारियों के राज्य में प्रवेश पर लगाई गई पाबंदियों से भी दोनों राज्यों के आपसी संबंधों में कड़वाहट बढ़ रही है. असम के गारो हिल्स इलाके में कारोबार करने वाले असम के व्यापारियों को लॉकडाउन के दौरान वापस जाने को कह दिया गया था. अब वह लोग वापस जाना चाहते हैं. लेकिन मेघालय सरकार उनको इसकी अनुमति नहीं दे रही है. इसके विरोध में अब अखिल असम छात्र संघ (आसू) समेत पचास संगठनों ने मेघालय को शीघ्र यह पाबंदी हटाने की चेतावनी दी है. इन संगठनों ने कहा है कि अगर उसने ऐसा नहीं किया तो गारो हिल्स जाने वाली तमाम सड़कों की नाकेबंदी कर दी जाएगी.
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मेघालय के गारो हिल्स की परेशानी
इन संगठनों की दलील है कि मेघालय के व्यापारियों पर असम आने-जाने पर कोई रोक नहीं है. लेकिन असम के व्यापारियों को मेघालय जाने की अनुमति नहीं दी जा रही है. आसू के एक प्रवक्ता कहते हैं, "अगर पाबंदी ही लगानी है तो मेघालय के व्यापारियों को भी असम आने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए.” उनका सवाल है कि जब केंद्रीय गृह मंत्रालय ने एक से दूसरे राज्य में आने-जाने पर लगी पाबंदी हटा ली है तो आखिर मेघालय सरकार ने इसे जारी क्यों रखा है. अखिल असम अल्पसंख्यक छात्र संघ (आम्सू) के ग्वालपाड़ा जिला अध्यक्ष अनिमूल हक चौधरी कहते हैं, "मेघालय सरकार के मनमाने फैसले से राज्य के व्यापारियों को भारी नुकसान हो रहा है. इससे बिचौलियों की किस्मत खुल गई है. यह लोग असम से कम कीमत पर सामान लेकर मेघालय में ऊंची कीमत पर बेचते हैं.” असम का ग्वालपाड़ा जिला मेघालय के गारो हिल्स से सटा है.
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि असम से काट कर अलग-अलग राज्यों के गठन के समय सीमा का ठीक से निर्धारण नहीं किया गया. वही विवाद की जड़ है. यही वजह है कि इलाके के ज्यादातर राज्य असम के साथ सीमा विवाद में उलझे हैं. एक पर्यवेक्षक सुनील बरगोहाईं कहते हैं, "असम के साथ विभिन्न राज्यों का सीमा विवाद रह-रह कर हिंसक हो उठता है. केंद्र सरकार को इस मामले में हस्तक्षेप कर सीमा निर्धारण के लिए किसी आयोग का गठन करना चाहिए ताकि दशकों पुराने इस विवाद को शीघ्र निपटाया जा सके. उसके बाद ही सीमावर्ती इलाको में शांति बहाल हो सकेगी.”
देश का संविधान किसी राज्य को विशेष नहीं कहता लेकिन इसके बावजूद कई राज्यों को "विशेष दर्जा" प्राप्त है. वहीं कई राज्य अकसर यह मांग करते नजर आते हैं कि उन्हें यह दर्जा मिले. लेकिन क्या होता है राज्यों का "विशेष दर्जा."
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क्या है राज्यों का "विशेष दर्जा"
संविधान में किसी राज्य को विशेष दर्जा दिए जाने जैसा कोई प्रावधान नहीं है. लेकिन विकास पायदान पर हर राज्य की स्थिति अलग रही है जिसके चलते पांचवें वित्त आयोग ने साल 1969 में सबसे पहले "स्पेशल कैटेगिरी स्टेटस" की सिफारिश की थी. इसके तहत केंद्र सरकार विशेष दर्जा प्राप्त राज्य को मदद के तौर पर बड़ी राशि देती है. इन राज्यों के लिए आवंटन, योजना आयोग की संस्था राष्ट्रीय विकास परिषद (एनडीसी) करती थी.
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क्या माने जाते थे आधार
पहले एनडीसी जिन आधारों पर विशेष दर्जा देती थी उनमें था, पहाड़ी क्षेत्र, कम जनसंख्या घनत्व या जनसंख्या में बड़ा हिस्सा पिछड़ी जातियों या जनजातियों का होना, रणनीतिक महत्व के क्षेत्र मसलन अंतरराष्ट्रीय सीमा से सटे इलाके, आर्थिक और बुनियादी पिछड़ापन, राज्य की वित्तीय स्थिति आदि. लेकिन अब योजना आयोग की जगह नीति आयोग ने ले ली है. और नीति आयोग के पास वित्तीय संसाधनों के आवंटन का कोई अधिकार नहीं है.
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14वें वित्त आयोग की भूमिका
केंद्र सरकार के मुताबिक, 14वें वित्त आयोग ने अपनी सिफारिशों में राज्यों को दिए जाने वाले "विशेष दर्जा" की अवधारणा को प्रभावी ढंग से हटा दिया था. केंद्र सरकार ने आंध्र प्रदेश के मसले पर कहा कि केंद्र, प्रदेश को स्पेशल कैटेगिरी में आने वाला राज्य मानकर वित्तीय मदद दे सकता है. लेकिन सरकार आंध्र प्रदेश को "विशेष राज्य" का दर्जा नहीं देगी.
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"विशेष दर्जा" का क्या लाभ
नीति आयोग से पहले योजना आयोग विशेष दर्जे वाले राज्य को केंद्रीय मदद का आवंटन करती थी. ये मदद तीन श्रेणियों में बांटी जा सकती है. इसमें, साधारण केंद्रीय सहयोग (नॉर्मल सेंट्रल असिस्टेंस या एनसीए), अतिरिक्त केंद्रीय सहयोग (एडीशनल सेंट्रल असिस्टेंस या एसीए) और विशेष केंद्रीय सहयोग (स्पेशल सेंट्रल असिस्टेंस या एससीए) शामिल हैं.
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क्या है मतलब
विशेष दर्जा प्राप्त राज्य में केंद्रीय नीतियों का 90 फीसदी खर्च केंद्र वहन करता है और 10 फीसदी राज्य. वहीं अन्य राज्यों में खर्च का 60 फीसदी ही हिस्सा केंद्र सरकार उठाती है और बाकी 40 फीसदी का भुगतान राज्य सरकार करती है.
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किन राज्यों के पास है दर्जा
एनडीसी ने सबसे पहले साल 1969 में जम्मू कश्मीर, असम और नगालैंड को यह दर्जा दिया था. लेकिन कुछ सालों बाद तक इस सूची में अरुणाचल प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, सिक्किम, त्रिपुरा शामिल हो गए. साल 2010 में "विशेष दर्जा" पाने वाला उत्तराखंड आखिरी राज्य बना. कुल मिलाकर आज 11 राज्यों के पास यह दर्जा है.
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अन्य राज्यों की मांग
देश के कई राज्य "विशेष दर्जा" पाने की मांग उठाते रहे हैं. इसमें आंध्र प्रदेश, ओडिशा और बिहार की आवाजें सबसे मुखर रही है. लेकिन अब तक इन राज्यों को यह दर्जा नहीं दिया गया है.